किस काम का है ऐसा विकास ?

                          डॉ.बचन सिंह सिकरवार

 इस बार दीपावली के अवसर पर देश की राजधानी दिल्ली समेत कई दूसरे नगरों में जानलेवा स्तर तक पहुँचे वायु प्रदूषण ने एक बार फिर ऐसे कथित अन्धाधुन्ध विकास पर विचार करने को विवश कर दिया है जो अब मनुष्य की मौत का कारण बन रहा है। अगर इस धरती पर मनुष्य ही नहीं रहेगा तो वह ऐसा विकास किस के लिए कर रहा है? इस ज्वलन्त प्रश्न पर विचार करना अब आवश्यक ही नहीं, अपरिहार्य बन गया है। दीपावली के दूसरे दिन दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित नगर तो कोलकाता दूसरे एवं पाकिस्तान का लाहौर तीसरे तथा बांग्लादेश की राजधानी ढाका चौथे स्थान पर रही है। दिल्ली में वायु प्रदूषण को दीपावली पर लोगों द्वारा की गई आतिशबाजी ने और बढ़ा दिया, जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने आतिशबाजी का समय निर्धारित किया था, ताकि लोग कम से कम आतिशबाजी करें, लेकिन उसके निर्देशों का उल्लंघन किया गया, जिसके कारण पुलिस ने बड़ी संख्या में लोगों के खिलाफ चालान भी किये हैं। इससे पहले भवन निर्माण तथा पुराने वाहनों के दिल्ली में प्रवेश पर रोक लगायी गयी थी। फिर भी दीपावली के दूसरे दिन दिल्ली में काला धुआँ मिश्रित धुन्ध छायी हुई थी जिसके कारण लोगों को साँस लेने में बहुत मुश्किल आ रही थी,तो आँखों में बेहद जलन हो रही थी। ऐसे में अस्थमा, क्रोनिक ऑब्सटेªक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) से पीड़ितों की जान पर बन आयी तथा उच्च तथा निम्न रक्त चाप के रोगियों की तो हालत भी खराब हो गयी। ऐसी गम्भीर स्थिति को देखते हुए कई संस्थाओं ने लोगों को मास्क वितरित किये, तो दिल्ली नगर निगम ने कई जगहों पर पेड़ों तथा सड़कों पर पानी का छिड़काव किया, ताकि वातावरण में व्याप्त धूल आदि से थोड़ी मुक्ति मिल सके।
दिल्ली में दीपावली के दूसरे दिन जहाँ औसत एक्यूआई 390 तक पहुँच गया, तो तीसरे दिन यह बढ़कर 423 तक हो गया, इसका एक बड़ा कारण हवा के चलने की गति कम होना भी था। वायु प्रदूषण के कारण दृश्यता बहुत कम हो गई, जिससे वाहन चलाने में भारी परेशानी हुई। हमारे शास्त्रों में जल, वायु, भूमि, आग तथा आकाश को पाँच तत्त्व बताया गया है, इन्हीं के मिलने से जीव का निर्माण होता है। इस सत्य को जानते-बूझते हुए भी अपने को धरती का सबसे बुद्धिमान होने का दम्भ भरने वाला मनुष्य स्वार्थपूर्ति के लिए इन्हें तरह-तरह से बर्बाद कर रहा है। कथित विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अन्धाधुन्ध दोहन कर रहा है जिसके कारण वर्तमान में वायु, जल, मृदा, ध्वनि प्रदूषण लगातार बढ़ रहे हैं। इनके कारण धरती, जल और आकाश कहीं भी प्राणी सुरक्षित नहीं है। इनमें नदियाँ और तालाब चमड़ा पकाने वाली टेनरियों, चीनी मिलों, शराब की डिस्टलरियों, कई तरह के कारखानों के विषाक्त रासायनिक पदार्थ मिले कचरे, नगरों के गन्दे नाले, नालियों, सीवरों से निकलने वाले दूषित जल के मिलने वाले प्रदूषित जल के कारण, तो वायु कारखानों, वाहनों, चूल्हों, कूड़े के जलने से निकलने वाले धुएँ और उसमें मिली जहरीली गैसों, खदानों में खनन, क्रेशरों में गिट्टी बनने, सड़क, पुल, इमारतों के निर्माण में उठती धूल आदि से, ऐसे ही मृदा खेतों में अनाप-शनाप रासायनिक उर्वरक डालने तथा फसलों पर कीटनाशक छिड़कने से प्रदूषित हो गई है। इसी तरह कारखानों की मशीनों, वाहनों तथा उनके हौर्न, लाउडस्पीकर, घण्टे, घण्टियों से निकलने वाले शोर ने जीना हराम कर दिया है। यहाँ तक कि अब सागर/महासागर भी प्रदूषित हो रहे हैं। 
   अब जहाँ तक वायु प्रदूषण का प्रश्न है तो पहले वायु के जीवधारी के लिए महत्त्व को जान लें। वायु के अभाव में जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। समस्त जीवधारी (चाहे वह पौधा हो या सूक्ष्म जीवी या जन्तु) श्वसन क्रिया करते हैं। इसके अन्तर्गत वे वातावरण से ऑक्सीजन (प्राणवायु) ग्रहण करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालते हैं। ऑक्सीजन केवल जीवन को ही आधार प्रदान नहीं करती, बल्कि जीवित तत्त्वों के अन्दर व्यावहारिक रूप से महत्त्वपूर्ण चौथाई भाग के लगभग परमाणुओं के इमारती खण्ड के रूप में आधारभूत भूमिका भी निभाती है। वस्तुतः सभी जीवधारियों को अपनी क्रियाशीलता (वृद्धि, गति, जल तथा खनिज पदार्थों का अवशोषण इत्यादि) के लिए ऊर्जा की अनिवार्य रूप से आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा पौधों में विभिन्न प्रकार के कार्बनिक पदार्थों में संचित रहती है। विभिन्न जैविक कार्यों के लिए आवश्यक यह ऊर्जा कार्बनिक पदार्थों मुख्यतः ग्लूकोस के ऑक्सीकरण द्वारा उन्मुक्त होती है। इस क्रिया में जटिल कार्बनिक पदार्थों के विघटन से ऊर्जा, कार्बन डाइऑक्साइड और जल का उत्पादन होता है। सभी जीवों में यह क्रिया श्वसन द्वारा सम्पन्न होती है।
ऑक्सीजन चक्र को प्रभावित करने वाला घटक स्वयं मनुष्य हैैै, जो पृथ्वी में सबसे नवीन प्राणी है। वह श्वसन की प्रक्रिया में ऑक्सीजन ग्रहण करता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालता है। इस प्रकार ऑक्सीजन का भण्डार कम करके कार्बन डाइऑक्साइड की आपूर्ति में वृद्धि करता है। इससे आगे बढ़कर अतिरिर्क्त इंधन को जलाता है और ऑक्सीजन आपूर्ति को और भी कम कर देता है। वह वनों को काटकर और उनकी जगह कंकरीट के जंगल यानी गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ खड़ी कर शहर बसा कर प्रकाश संश्लेषण क्रिया को कम कर धीरे-धीरे अपनी मौत का सामान तैयार कर रहा है। 
वर्तमान में वायु प्रदूषण समेत सभी प्रकार के प्रदूषण मानव जीवन के अभिन्न अंग बन गए, ऐसे में इनसे एकदम छुटकारा पाना सम्भव नहीं है, किन्तु इनकी भयावहता को समझकर आवश्यक सतर्कता एवं सावधानी तो बरती जा सकती है जिससे इनसे होने वाले हानियों को यथासम्भव कम किया जा सके।  ऐसे में वायुगुणवत्ता सूचकांक का ज्ञान आवश्यक है। अपने देश में भी‘ राष्ट्रीय वायुगुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) हर दिन वायु की गुणवत्ता को मापने का एक सूचकांक है। विभिन्न देशों में इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है। हम अपने नगर के वायु गुणवत्ता स्तर को उसके रंग से जान सकते हैं। वायु प्रदूषण सूचकांक के रंग देखकर यह पहचान सकते हैं कि आपके यहाँ की हवा कितनी प्रदूषित है। यदि आपके नगर की हवा हरे रंग की श्रेणी में है, तो यह अच्छी है। इसका स्वास्थ्य पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा। लेकिन अगर इसका रंग लाल है तो यह स्वस्थ लोगों को भी रोगी बना देगी।
 जहाँ तक वायु प्रदूषण सूचकांक बनाने की प्रक्रिया का सवाल है तो सूचकांक में वायु की शुद्धता का मूल्यांकन 0 से 500 अंक के दायरे में किया गया है। जैसे अगर वायु की गुणवत्ता 50 तक है तो यह शुद्ध है। इससे जितने ऊपर  आँकड़े होते जाएँगे हवा की स्थिति बद् से बद्तर होती जाएगी। अगर यह 51 से 100 तक है तो उस दशा में संवेदनशील लोगों को साँस लेने में तकलीफ होगी। 101 से 200 तक तक यह बीच की स्थिति है इसमें फेफड़े, अस्थमा और हृदय रोगियों को साँस लेने में परेशानी होती है। 201 से 300 तक स्थिति खराब मानी जाती है इसमें अधिकांश लोगों को साँस लेने में बहुत कठिनाई होती है। 301 से 400 तक स्थिति बहुत खराब होती है। उस क्षेत्र में अधिक समय रहने पर साँस के रोगी बीमार पड़ सकते हैं।  401 से 500 तक की स्थिति खतरनाक मानी जाती है इसमें स्वस्थ लोगों पर भी गम्भीर प्रभाव पड़ता है।
 वायुमण्डल पृथ्वी की रक्षा करने वाला रोधी आवरण है। यह सूर्य के गहन प्रकाश और ताप को नरम करता है। इसकी ओजोन परत सूर्य से आने वाली अत्यधिक हानिकर पराबैंगनी किरणों को अधिकांशतः अवशोषित कर लेती है और इस प्रकार जीवों की विनाश से रक्षा करती है। वायुमण्डल गुरुत्व द्वारा पृथ्वी से बँधा हुआ है। वायुमण्डल में 78 प्रतिशत नाइट्रोजन, 21 प्रतिशत ऑक्सीजन ,निम्न प्रतिशत ऑर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड, निऑन, हीलियम और मीथेन इसी क्रम में विद्यमान हैं। जब वायु में उपस्थित उक्त गैसों का यह अनुपात बिगड़ जाता है यानी उसमें अन्य गैसें ,धूल आदि के कण आ जाते हैं उस दशा को ‘वायु प्रदूषण‘ कहा जाता है। सामान्यतः यह वायु प्रदूषण कारखानों में जलने वाले कोयले, विभिन्न प्रकार के वाहनों में प्रयुक्त डीजल, पेट्रोल आदि के जलने से उत्सर्जित गैसों जैसे कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फरडाइऑक्साइड, लैड, कैडमियम, नाइटेªट ,कार्बन डाइऑक्साइड आदि होता है। जब जाड़ों में (शरद ऋतु) धुआँ (स्मोक) तथा कोहरा (फॉग) मिल जाते हैं तो ‘स्मॉग‘ कहलाता है, जो यूरोपीय देशों में कई-कई दिन बना रहता है जो मनुष्यों के लिए कभी-कभी प्राणघातक तक बन जाता है।

ऐसे ही ओजोन हमारी धरती के वायुमण्डल की वह परत है जो पृथ्वी को पराबैंगनी किरणों (अल्ट्रावॉयलेट रेज ) से बचाती हैं। ये किरणें त्वचा कैंसर, फसलों को नुकसान और दूसरी समस्याओं के लिए जिम्मेदार होती हैं। वातावरण में उच्च ओजोन परत इस तरह की समस्याओं से रक्षा करती हैं। उक्त चर्चा के बाद हम सभी के लिए आवश्यक है कि अपने स्तर से वायु को प्रदूषित करने वाले कारकों को कम करें। इसके लिए अधिकाधिक ऐसे पेड़-पौधें लगायें,  जो विषाक्त कार्बन डाइऑक्साइड समेत कई गैसों को अवशोषित करने के साथ-साथ धूल के कणों को भी रोकते हों। धान की परली समेत फसलों के अवशेषों को जलाने के स्थान पर उनकी खाद बनाने या उनका कोई दूसरा इस्तेमाल करें। कारखानों तथा विभिन्न वाहनों के निकलने वाले धुएँ, गैसों को अवशोषित करने वाले उपकरण लगायें। निजी वाहनों के स्थान पर सामूहिक वाहनों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाए। खदानों में खनन, क्रेशरों, भवन, पुल, सड़क निर्माण में उठने वाली धूल को उठने से रोकने के लिए पानी का छिड़काव करें। घरों में खाना बनाने में कोयले, लकड़ी, उपलों के उपयोग से बचें। प्रशीतक यंत्रों में कलोरोफ्लूूरो कार्बन का कम से कम या उसके वैकल्पिक साधन इस्तेमान करें। हम विकास का ऐसा मॉडल बनायें, जो प्रकृृृृृति के साथ अधिकाधिक तादात्म्य स्थापित करता हो। अगर हम ऐसा नहीं करते, तो एक दिन हमारा कथित विकास ही हमारी जान लेने की वजह बन जाएगा। इसलिए समय रहते विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों पर रोक लगाने और खत्म करने की आवश्यकता है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

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