भगवा से आजादी के माने
डॉ.बचन सिंह सिकरवार

धरने पर बैठे इन छात्र-छात्राओं के लड़कर लेंगे आजादी, तुम्हें देनी होगी आजादी, भगवा और भारत से चाहिए आजादी,तो फिर बोलो आजादी जैसे विष भरे नारों से निश्चय ही देश के उन लोगों की भावनाएँ आहत हुई होंगी, जिनकी आस्था तथा भावनाएँ भगवा रंग और देश से गहराई से जुड़ी हैं, किन्तु इनसे किसी को क्या? इसका कारण यह है कि ऐसे लोग किसी एक राजनीतिक दल के वोट बैंक जो नहीं हैं। इस कारण कोई भी राजनीतिक इन्हें अहमियत नहीं देता।
वैसे भगवा और भारत से आजादी सरीखे नारों से कहीं न कहीं एक धर्म के मानने वालों के प्रति नफरत और देश की मुखाफत की बू भी आती है। इसके बाद भी छोटी-छोटी बातों पर असहिष्णुता का राग अलापने वालों को अब इनके नारों में न असहिष्णुता दिखाई दे रही है और न उनके मुल्क और बहुसंख्यक वर्ग विरोधी रवैये में कोई खोट ही। वे इनसे यह सवाल क्यों नहीं करते? भारत को मजहबी आधार पर द्विराष्ट्र‘ का विचार देकर खण्डित करने और ‘सीधी कार्रवाई‘ का नारा लगाकर मजहबी हिंसा भड़का लाखों हिन्दू-मुसलमानों को मरवाने वाले की तस्वीर हटाने में उन्हें इतना ऐतराज और तकलीफ क्यों हैं? क्या इसलिए कि मोहम्मद अली जिन्ना ने उनके हममजहबियों के लिए भारत को बाँटकर पाकिस्तान के रूप में एक नया मुल्क उन्हें तोहफे में दिया था। जिस असम्भव कार्य को बड़े-बड़े विदेशी हमलावार और यहाँ पर सालोंसाल हुकूमत करने वाले भी नहीं कर पाये थे,उसे जिन्ना ने कर दिखाया। क्या वे इस वजह से ही जिन्ना के शुक्रगुजार बने हुए हैं?
इस अहम मुद्दे नर देश के अधिकांश राजनीतिक दलों का शान्त रहना उनकी सत्ता लोलुपता को दर्शाता है। उनके लिए देश और समाज से बड़ी सत्ता है जो एक वर्ग की तुष्टिकरण से आसानी से हासिल हो सकती है। इस प्रत्याशा के कारण ऐसे मामले में उनके मुँह पर ताले ही लगे रहते हैं।
अक्सर हमारे देश के विभिन्न राजनीतिक दलों विशेष रूप से अपने सेक्युलर बताने/जताने वाले नेताओं द्वारा कहा जाता है कि आतंकवाद का कोई धर्म/मजहब नहीं होता। फिर भी काँग्रेस के कुछ प्रमुख नेताओं ने कुछ हिन्दुओं के बम विस्फोटों की घटनाओं में गिरफ्तार किये जाने पर ‘भगवा‘ आतंकवाद कह कर उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की,कि जम्मू-कश्मीर से लेकर देश के विभिन्न हिस्सों बम फटने और दूसरी दहशतगर्दी में एक खास मजहब से सम्बन्धित ही दहशतगर्द नहीं हैं, बल्कि हिन्दू भी ऐसे ही हैं। लेकिन सालों जेलों में रहने के बाद जब उन्हें अदालतों ने बेकसूर मानकर रिहा कर दिया,क्यों कि उन्हें तत्कालीन काँग्रेसी सरकारों के फँसाया था। वैसे एक सवाल सेक्यूलर काँग्रेसी,वामपंथी,सपा,बसपा,राजद आदि से यह है कि जिन्ना की तस्वीर हटाने वाले भगवा आतंकवादी हैं,तो कश्मीर घाटी और दूसरी जगहों पर जिस रंग के झण्डे लेकर हिन्दुस्तान मुर्दाबाद,पाकिस्तान जिन्दाबाद, हिन्दुस्तान से चाहिए आजादी के नारे लगाते निकलते हैं, वे उस रग को आतंकवाद से क्यों नहीं जोड़ते? यह सब देखते हुए देश के लोगों को अब सभी सियासी पार्टियों से यह सवाल करना चाहिए कि उनकी सत्ता सुख भोगने की भूख इतनी बढ़ गयी है, जो उन्हें ऐसी मानसिकता वाले लोगों से देश की स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता पर खतरा नजर नहीं आता है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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