अमन के पैरोकार अब खामोश क्यों हैं?

डॉ बचन सिंह सिकरवार
 गत दिनों इस्लामिक पाक महीना रमजान को लेकर जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने केन्द्र सरकार से सुरक्षा बलों के आतंकवादियों के खिलाफ चलाये जा रहे अभियान बन्द करने की अपील मंजूर कर ली ,लेकिन इसे न इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान  ने माना और न हममजहबी आतंकवादियों तथा अलगावादियों ने ही। नतीजा यह है कि रमजान के पहले दिन से ही जहाँ पाकिस्तानी सेना द्वारा युद्ध विराम का उल्लंघन करते हुए भारत से जुड़ी अन्तर्राष्ट्रीय और नियंत्रण रेखा पर लगातार गोलीबारी और तोप के गोले बरसाती आ रही है, वहीं आतंकवादी भीे सुरक्षा बलों पर जहाँ-तहाँ हमले करने से बाज नहीं आ रहे हैं।   
                                              यहाँ तक अलगाववादी भी फलस्तीनियों के समर्थन में जुलूस-प्रदर्शन को करने को निकल पड़े,जिन्हें रोकने मंे पुलिस-प्रशासन को भारी मशक्कत करनी पड़ी। जिस भारतीय सेना पर अलगाववादी और दूसरे सियासी नेता कश्मीरियों पर जुल्म-सितम ढहाने को आरोप लगाते हुए दुष्प्रचार करते रहते है,उसने दक्षिण कश्मीर के शोपियां में जनता के साथ संवाद और समन्वय बढ़ाने के महती उद्देश्य से रोजा इफ्तार पार्टी आयोजित की,तो उसमें हिस्सा लेने के बजाय कुछ लोग राष्ट्र विरोधी नारे लगाते हुए सैनिकों पर ही टूट पड़े,तब उन्हें मजबूर होकर  आत्मरक्षार्थ गोली चलानी पड़ी।इसमें कई पुरुष और महिलाएँ हो गई,किन्तु सेना इस अच्छी कोशिश और मुल्क विरोधियों के इस दुष्कृत्य की न किसी ने भी निन्दा करने की जरूरत समझी और न रमजान के पाक माह में इन्सानियत या कश्मीरियत की दुहाई ही दी। इस सूबे के जम्मू, सांबा, कठुआ जिलों के सीमांत गाँवों में पाकिस्तानी सेना की गोलीबारी में एक दर्जन से अधिक जनसाधारण के साथ-साथ सेना के दो जवान शहीद हुए है। साथ ही बड़ी संख्या में घायल भी हुए हैं। कई दर्जन मवेशी मारी गई हैं और उससे कहीं ज्यादा घायल हैं। इस गोलाबारी से बड़ी संख्या में इमारतों को भारी नुकसान पहुँचा है। हाल में पाकिस्तानी सेना से 747 पर युद्ध विराम का उल्लंघन किया है, जो एक रिकॉर्ड है। इस दहशत के माहौल के कारण कोई 90 हजार लोग अपने घर छोड़ कर बंकरों और दूसरे सुरक्षित जगहों पर जाने को मजबूर हुए हैं तथा इन इलाकों के स्कूल-कॉलेज बन्द पड़े हैं इससे उनकी पढ़ाई पर बुरा असर पड़ रहा है। इससे एक लाख से भी ज्यादा लोग प्रभावित हैं ,पर इससे खुदा के इन बन्दों का क्या लेना-देना?उनके लिए रमजान से बढ़ कर उनका अपना मकसद है ?

कश्मीर के इस माहौल और मुद्दे पर देश की राजनीतिक पार्टियों खासकर वामपंथी,कथित सेक्युलरों का रवैया भी हैरान और परेशान करने वाला है, वे  समुदाय विशेष के एक मुश्त वोट बैंक की चाहत में ज्यादातर खामोश रहना ही पसन्द करते है?लेकिन सेना की  राष्ट्र विरोधी तŸवों के विरुद्ध जरा ही सख्त कार्रवाई होते ही ये सभी पाकिस्तान और अलगाववादियों की तरफदार कश्मीर की सियासी पार्टियों के साथ देने लगतीं हैं। इनके अब तक के रवैये को देखते हुए तो यही लगता है कि उनके लिए सत्ता ही सब कुछ है और  जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा के कोई माने नहीं हैं। 
            अगर ऐसा नहीं  है तो केन्द्र सरकार से आतंकवादियों के खिलाफ सुरक्षा के अभियान बन्द कराने की माँग करने वाली महबूबा मुफ्ती ने एक बार भी पाकिस्तान और आतंकवादियों की  इन बेजा हरकतों की  मजम्मत क्यों नहीं की? महबूबा के साथ दूसरी सियासी पार्टियों के लीडर अब कहाँ दुबके पड़े हैं, जो रमजान में अमन-चैन की रट लगाये हुए थे? नेशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यकारी अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला अब क्यों नहीं ट्वीट कर रमजान में पाकिस्तानियों और आतंकवादियों को अमन का पैगाम भेज रहे हैं? उमर अब्दुल्ला की तरह उनके अब्बा डॉ.फारुक अब्दुल्ला भी खामोश हैं। पाकपरस्त विधायक इंजीनियर रशीद की जुबान पर क्या अब ताले पड़े हुए हैं? क्या सिर्फ भारतीय सुरक्षा बल ही अमन-चैन में में खलल डाले हुहए थे? इस्लाम के दूसरे रहनुमाओं ने उन्हंे खुदा के वास्ते रमजान में अमन-चैन बनाये रखने की अपील क्यों नहीं की? उन्हें यह याद क्यों नहीं दिलायी कि ऐसे माहौल में रोजे,नमाज और खुदा की इबादत कैसे होगी?  अलगाववादियों को इजरायल के पूर्वी यरुशलम में अमेरिका के दूतावास खोले जाने के खिलाफ फलस्तीनियों के विरोध प्रदर्शन और उसमें उनके मार जाने की तो भारी चिन्ता सता रही थी,पर इन्होंने अपने ही कश्मीरी भाइयों पर पाकिस्तानी सेना द्वारा गोलीबारी और तोप के गोले बरसाये जाने की कतई परवाह नहीं। तभी तो उन्हें पाकिस्तान के खिलाफ जुलूस निकलने और नारेबाजी करने का ख्याल तक नहीं आया। आखिर क्यों?  क्या इसलिए के पाकिस्तानी सैनिक ‘मुजाहिद‘ है जो उनके मजहब के लिए काम कर रहे हैं। उनका काफिरों की जान लेना सबब का काम है। जम्मू-कश्मीर के जिन जिलों के गाँवों पर गोलीबारी और गोले दागे जा रहे हैं उनमें रहने वाले अधिकांश हिन्दू हैं। पाकिस्तानी सेना का एक मकसद सीमा पर रह रहे हिन्दुओं को खदेड़ना है, ताकि इस इलाके को भी कश्मीर घाटी सरीखा बनाया जा सके। फिर यहाँ की जमीन पर अपने हममजहबियों को आबाद किया जा सके। ऐसा होने पर बगैर जीते ही यह सूबा को दारुल इस्लाम में तब्दील हो जाएगा। कश्मीर की ज्यादातर सियासी पार्टियाँ का भी यह  ही मकसद है?यही कारण है कि यहाँ  सियासी पार्टियाँ न कभी पाकिस्तान के खिलाफ अपनी जुबान खोलती हैं और न आतंकवादियों/अलगावादियों के ही। इन्हें युवकों के पाकिस्तानी या इस्लामिक दहशतगर्द संगठन आइ.एस. के झण्डों के साथ हिन्दुस्तान मुर्दाबाद, पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाये जाने पर। इसके विपरीत भारतीय सेना आतंकवादियों के सफाये को जब भी कोई कार्रवाई करती है/मुहिम चलाती है तो इन्हें उस पर भारी एतराज होता है और कश्मीरियों पर जुल्म नजर आता है। 
 पी.डी.पी.की मुखिया और मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती आतंकवादियों के हिमायती पत्थरबाजोें के प्रति हमेशा हमदर्दी ही जताती आयी हैं। यहाँ तक कोई साढ़े चार हजार पत्थरबाजों के खिलाफ दर्ज मुकदमें भी यह कहते हुए वापस लिए हैं, कि इन्होंने पहली बार अपराध किया है। फिर सही रास्ते पर लौट आएँगे। लेकिन महबूबा की ऐसी हमदर्दी सेना और सुरक्षाबलों के लिए कभी  नहीं दिखायी है,जिनके बगैर वे और कश्मीरी रहनुमा न एक दिन हुकूमत कर पाएँगे और  न ही जिन्दा। हकीकत यह है कि कहने को इस सूबे में पी.डी.पी.और भाजपा की साझा सरकार जरूर है, पर इसे केवल महबूबा ही चला रही हैं और उनकी ही चलती है। तभी तो भाजपा के विधायकों की इच्छा के विरुद्ध केन्द्र सरकार ने महबूबा मुफ्ती की संघर्ष विराम की माँग मान ली है। वैसे केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा कश्मीर की इस हकीकत से वाकिफ न हो ऐसा भी नहीं है, किन्तु वे भी सत्ता के मोह़ में चुप बने हुए हैं। वे अपनी सरकार के इस सघर्ष विराम के गलत फैसले के खिलाफ भी कुछ बोल नहीं पा रहे हैं, इसका खामियाजा आम नागरिक को उठाना पड़ रहा है।  भाजपा के सत्ता मोह के चलते वह कुछ नहीं कर पा रहे हैं, जो सत्ता से बाहर रहते हुए करने की बात करते रहते थे। कश्मीर पण्डितों की समस्या जस की तस बनी हुई है। इसी तरह पाकिस्तान को सबक सिखाने में भी विफल साबित हुई, जिसकी वजह से भारतीय सैनिकों की शहादत का सिलसिला थम नहीं पा रहा है। 
सम्पर्क- डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

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