कब बन्द होगा लोगों को मारने वाला कथित विकास ?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
तमिलनाडु के तूतीकोरिन में वेदान्ता ग्रुप की स्टरलाइट कम्पनी के तांबा संयंत्र(कॉपर प्लाण्ट) के विस्तार के विरोध में आन्दोलित स्थानीय लोगों पर पुलिस के गोली चलाने से एक दर्जन से अधिक लोगों के मरने और बड़ी संख्या में घायल होने की घटना अत्यन्त दुःखद और क्षोभकारी है, जो सालों से इससे निकलने वाली विषाक्त गैसों और जहरीले पानी से बिगड़े वातावरण के कारण तरह से तरह के गम्भीर रोगों से पीड़ित और परेशान हैं। फिर भी शासन-प्रशासन और प्रदूषण की रोकथाम से सम्बन्धित विभिन्न एजेन्सियाँ इन आमजनों के दुःख-दर्द और रोगों की बराबर अनदेखी कर इस उद्यम के स्वामियों का हित सम्वर्द्धन करती आयी है। अब यहाँ के लोग इस संयंत्र के विस्तार का विगत कोई तीन माह से अधिक समय से शान्ति पूर्ण तरीके से विरोध कर रहे थे, किन्तु उनके इस आन्दोलन की भी शासन-प्रशासन पूर्व भाँति उपेक्षा और अनदेखी कर रहा था। वह उनकी भावनाओं और कष्ट-कठिनाइयों को जाने बगैर हठीधर्मिता दिखाते हुए इस संयंत्र के विस्तार करने पर आरूढ़ बना हुआ है। शासन-सत्ता के इस क्रूर और संवेदनहीन रवैये से आक्रोशित होकर इस संयंत्र के आसपास के गाँवों के लोग संगठित होकर उग्र आन्दोलन को मजबूर हो गए। उन्होंने कई वाहनों को फूँक दिया,तब उग्र भीड़ को रोकने के लिए पुलिस ने हवा में गोलियाँ चलाने के बजाय सीधे गोलियाँ चलाकर ‘जलियां वाला बाग नरसंहार‘ की पुनरावृत्ति कर दी। उसके इस रवैये यही लगता है कि वह बन्दूक के जोर पर इन लोगों के आन्दोलन को कुचलना चाहती है,ताकि पूँजीपति के धन्धे में कोई रोड़ा न बने।
इस घटना के बाद उत्पन्न जनाक्रोश और विभिन्न राजनीतिक दलों की सक्रियता को देखते हुए तमिलनाडु की सरकार ने मृतकों और घायलों की आर्थिक सहायता के साथ-साथ मृतक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का आश्वासन दिया है।लेकिन लोगों का गुस्सा शान्त नहीं हो पा रहा है।उन्होंने गुरुवार को घरों में रह कर तथा दुकानें बन्द कर अपना विरोध जताया।सरकार ने इण्टरनेट सेवाएँ बन्द कर दी,ताकि यह आन्दोलन दूसरे इलाकों में न फैले। फिर भी इरोड, रामनाथपुरम, तिरुवर जैसे जिलों में प्रदर्शन हुए हैं। इस मुद्दे पर देश की राजनीति गरमा रही है। विरोधी पार्टियाँ इस घटना के लिए केन्द्र की राजग और तमिलनाडु की अन्ना द्रमुक जिम्मेदार मान रही है जिन्होंने समय रहते लोगों की इस गम्भीर समस्या की ओर ध्यान नहीं दिया। लेकिन इसके लिए केवल भाजपा ही नहीं, देश के सभी राजनीतिक दल दोषी हैं जो जनता के कल्याण के नाम पर वोट माँगते हैं,पर उनका सारा ध्यान पूँजीपतियों को देश के प्राकृतिक संसाधनों की लूट कराना रहा है,ताकि वे उनकी झोली नोटों से भर दें। ऐसा करते हुए इन्होंने देश के हर कानून का अनादर और अनदेखी की है और पर्यावरण का सर्वनाश। इसके कारण देश की सभी नदियाँ प्रदषित हो गई है और वातावरण में जहर घुला है। अब जहाँ द्रमुक मुख्यमंत्री के.पलानसवामी के इस्तीफे की माँग कर रही हैं,तो वहीं एमडीएमके के नेता वाइको का कहना है कि अधिकारियों को बदलने से सरकार के पाप नहीं धुल पाएँगे। प्रदर्शनकारियों के पुलिस की गोलियों से मारे जाने के मामले की जाँच केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो(सी.बी.आई.)से कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई है। सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता जी.एस.मणि ने तूतीकोरिन के जिलाधिकारी,पुलिस अधीक्षक और अन्य पुलिस अधिकारियों के खिलाफ धारा 302(हत्या)का मामलाा दर्ज करने की माँग की है। याचिका में कहा गया कि गोलीबारी में मारे गए लोगों के परिजनों को 10लाख रुपए की अनुग्रह राशि की घोषणा मात्र जनता को खुश करने के लिए तथा नरसंहार के अपराध से बचने के लिए की गई है।इधर स्टरलाइट के चैयरमेन अनिल अग्रवाल ने घटना पर दुःख व्यक्त किया है और कहा कि लोगों की इच्छा कार्य नहीं होगा। उधर एक अधिवक्ता ए.राजन ने इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकारी आयोग से सीधे हस्तक्षेप का निर्देश देने की माँग करते हुए उच्च न्यायालय में अर्जी लगायी थी। न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने कहा कि ‘राष्ट्रीय मानवाधिकारी आयोग(एनएचआरसी)पहले ही इस मामले का अपने हाथ में ले चुका है और उसने राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक से रिपोर्ट माँगी है। इस बीच तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्टरलाइट के कॉपर स्मेल्टर प्लाण्ट को तत्काल प्रभाव से बन्द करने का दिया है।
अब जहाँ आन्दोलनकारी पुलिस पर अपने नेताओं को चुन-चुन कर सीधे गोली मार कर हत्या करने का आरोप लगा रहे हैं,वहीं सरकार इन आन्दोलनकारियों को भड़काने के लिए विपक्षी दलों को दोषी ठहरा रही है। इधर मद्रास उच्च न्यायालय ने भी संयंत्र के नये विस्तार करने पर रोक लगा दी है। वैसे पुलिस के गोली चलाने और संयंत्र के विस्तार को अनुमति दिये जाने का सरकार के इस जनविरोधी निर्णय निन्दा और आलोचना के योग्य है। आखिर विकास का लक्ष्य मनुष्य का कल्याण है न कि उसका विनाश। लेकिन पूँजीवादी व्यवस्था में पूँजीपति का मकसद सिर्फ धन कमाना होता है इसके लिए वह कुछ भी कर सकता है। यही अपने देश में तूतीकोरिन और दूसरे इलाकों में हो रहा है। पूँजीपति नेताओं, नौकरशाहों को भारी घूस देकर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य से सम्बन्धित नियमों की खुलकर धज्जियाँ उड़ाते रहते हैं। धन वाले अपने धन के जोर पर वह सब करते आए हैं जो उन्हीं किसी भी सूरत में नहीं करना चाहिए। देश के कथित उद्यमियों की तरह ही वेदान्ता ग्रुप के मालिक भी कबाड़िये इस देन-लेन के जरिए विभिन्न प्राकृतिक संसाधनो को लूटकर बहुत बड़ा उद्यमी बना है। ऐसे कथित उद्यमियों के लिए माल के लिए जान के कोई माने नहीं हैं।
वैसे ‘तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड‘(टी.पीसी.बी.)ने इसी अप्रैल में इस इकाई (यूनिट)के संचालन का लाइसेन्स देने से इन्कार कर दिया था। बोर्ड का कहना है कि कम्पनी स्थानीय पर्यावरण कानून का पालन नहीं कर रही है। बोर्ड के निर्णय के विरुद्ध कम्पनी ने इसे आगे चुनौती दी है। इस सम्बन्ध में प्रदूषण बोर्ड ने इस मुद्दे पर सुनवायी की आगामी तारीख 6जून तय की है।
तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का आरोप है कि स्टरलाइट कॉपर यूनिट से निकलने वाला कॉपर स्लैग कम्पनी सीधे नदी में डाल देती है। इतना ही नहीं, संयंत्र के निकट स्थित बोरवेल के जल यानी भूमिगत जल विश्लेषण भी कम्पनी की ओर नहीं कराया जाता है। यही कारण है कि यहाँ का जल प्रदूषित हो रहा है। ये कोई पहली घटना नहीं है जब इस कम्पनी पर कोई कार्रवाई की गई हो, इससे पूर्व 13जून,2013 में भी ‘राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण‘(एन.जी.टी.)में एक मामले में कम्पनी को बन्द किया था।
अब जहाँ तक तूतीकोरिन संयंत्र समस्या का प्रश्न है तो इसकी स्थापना सन् 1996 के बाद से ही शुरू हो गयी थी। सन् 2008 में तेरुनेलवली मेडिकल कॉलेज द्वारा हेल्थ स्टेट्स एण्ड एपिडेमियोलॉजिकल स्टडी अराण्ड 5किलोमीटर रेडियस ऑफ स्टर लाइट इण्डस्ट्रीज(इण्डिया) लिमिटेड‘की रपट में इस तांबा संयंत्र की इकाई के आसपास के इलाके में रहने वालों में श्वास की बीमारियों के बढ़ते मामलों के लिए उत्तरदायी ठहराया था। भूमिगत जल में लोहे(आयरन)की मात्रा निर्धारित सरकारी मानकों से 17से 20 गुना अधिक पायी गयीं। इनमें कमजोरी, जोड़ों तथा पेट में दर्द होना पाया गया। स्टरलााइट के निकटवर्ती क्षेत्र में पूरे तमिलनाडु राज्य और गैर औद्योगिक क्षेत्रों की अपेक्षा 13.9प्रतिशत श्वास से रोगों पीड़ितों की संख्या अधिक पायी गई। अस्थमा(ब्रान्काइटिस) के मरीजों की संख्या राज्य औसत से दो गुने मिली।साइनस‘ और ‘फैरिनगाइटिस‘ सहित आँख,नाक, गले के दूसरे रोगों से ग्रस्त लोगों की सख्या भी बहुत अधिक मिली। इसके सिवाय इस इलाके में मासिक धर्म से सम्बन्धित समस्याओं से ग्रस्त महिलाएँ भी काफी बड़ी संख्या में पायी गई। तूतीकोरिन के इस तांबा संयंत्र द्वारा बहुत प्रदूषण फैलने के पीछे एक कारण यह भी बताया जाता है कि इस इकाई से उसकी क्षमता से कई गुना अधिक उत्पादन किया जा रहा है। इस इकाई से 70से 1.70लाख टन वार्षिक तांबा उत्पादन की क्षमता की स्टर लाइट इकाई की अध्ययन के दौरान 3से 4 लाख टन प्रति वर्ष के बीच तैयार होता रहा है।
तूतीकोरिन की इस दुखद घटना से यही लगता है कि केन्द्र और राज्य में सरकार किसी भी पार्टी की रही हांे, लेकिन उन्होंने अपने स्वार्थों के आगे जनभावनाओं, जन और राष्ट्र हित की सदैव उपेक्षा की है। वे जनता का बस नाम लेती है,पर सुनती और काम दाम वालों का ही करती हैं। देश में जनतंत्र बस नाम का है। जब तक सही माने में देश में जनतंत्र नहीं आएगा, तब तक जनता को सुनवायी के लिए अपनी जान से खेलने को मजबूर होना ही पड़ेगा। इसलिए पार्टी नहीं,व्यवस्था बदलने के लिए कोशिशें जारी रहनी चाहिए।
सम्पर्क- डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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