तब कहाँ थे भाजपा के राष्ट्रहित?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में जम्मू-कश्मीर में भाजपा के अचानक कश्मीर और राष्ट्रहित में समर्थन वापसी पर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का इस्तीफा और उसके बाद यहाँ आठवीं बार राज्यपाल शासन लागू किया जाना कुछ लोगों को अप्रत्याशित लगा है,क्यों कि उसने यही सब कहते हुए तीन साल पहले अलगाववादियों तथा पाक समर्थकों की पैरोकार पी.डी.पी. के साथ बेमेल साझा सरकार बनायी थी। लोग अब क्यास लगा रहे हैं कि आखिर यकायक ऐसा क्या हुआ,जो बीच में ही गठबन्धन तोड़ने की नौबत आ गई ?वैसे भाजपा गठबन्धन से अलग होने के अब जो कारण बता रही है,उन कोई भी विश्वास करने को सहज तैयार नहीं है। इसके एक नहीं,अनेक कारण भी हैं। फिर सत्ता हथियाने और उसमें बने रहने के लिए भाजपा ने भी दूसरे राजनीतिक दलों की तरह हर तरह के हथकण्डे अपनाने में कभी परहेज नहीं दिखाया है। यह अलग बात है कि हमेशा की तरह जम्मू-कश्मीर में पी.डी.पी.के साथ गठबन्धन सरकार बनाना उसके लिए घाटे का सौदा साबित हुआ है।उसने अपने समर्थकों को निराश किया है,जिन्होंने उसे सत्ता में पहुँचा कर उससे बहुत अपेक्षाएँ की हुई थीं।
इस सूबे में भाजपा और पी.डी.पी. गठबन्धन की सरकार के शासन के दौरान पहले मुफ्ती मोहम्मद सईद और फिर महबूबा मुफ्ती ही की चली,इस बीच भाजपा कहीं नजर नहीं आयी। विधानसभा में संख्या बल से महज 3 विधायक रखने वाली पी.डी.पी.ने न केवल मुख्यमंत्री और भाजपा से अधिक मंत्री पद लिए,बल्कि महŸवपूर्ण विभाग भी अपने पास रखे। उसने अपने एजेण्डे पर सरकार चलाने के साथ-साथ भाजपा को किसी भी एजेण्डे पर काम तक नहीं करने दिया।उन्होंने अपनी पूर्ववर्ती राज्य सरकारों की तरह जम्मू और लद्दाख की अनदेखी कर सभी तरह के फायदे कश्मीर घाटी को पहुँचाए,इस मामले में साझीदार भाजपा की भावनाओं की कतई परवाह नहीं की। आतंकवादियों को सुरक्षा बलों की कार्रवाई से बचाने वाले पत्थरबाजों से हजारों की संख्या में मुकदमे वापस लिए।इससे पहले उन पर पैलेटगन चलाने पर रोक लगवायी। अलगाववादियों द्वारा स्कूल/कॉलेजों को बन्द कराने तथा उन्हें जलाने पर सख्ती नहीं दिखायी। मस्जिदों से अलगावादियोें और पाक समर्थकों के जमावड़े और वहाँ से पाकिस्तानी और आई.एस.के झण्डे लेकर हिन्दुस्तान के विरोध में नारे लगाने वालोें पर सख्ती नहीं करने दी।इससे पत्थरबाजों के हौसले इतने बढ़ गए कि सुरक्षाबल के जवान अपनी और अपने हथियारों की रक्षा के लिए उनके मोहताज हो गए।जब कभी किसी जवान ने सख्ती दिखायी, तो उनके खिलाफ पुलिस में प्राथमिक दर्ज हुई,इसके लिए केन्द्र सरकार ने इजाजत दे दी,तब उस जवान के पिता को उच्चतम न्यायालय में बचाव करने को मजबूर होना पड़ा। अपवाद के लिए एक -आध बार को छोड़कर महबूबा और उनके पिता मरहूम मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कभी खुलकर अलगाववादियों , दहशतगर्दों,पाकिस्तान की मजम्मत नहीं की।हमेशा सुरक्षा बलों को ही हतोत्साहित किया। सरकार में साझीदार भाजपा की छवि और सिद्धान्तों से बेपरवाह मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती हमेशा कश्मीर समस्या के हल के लिए अलगाववादियों और पाकिस्तान समर्थक संगठन हुर्रियत और पाकिस्तान से बातचीत की पैरवी करती आयी हैं। यहाँ तक उनके मरहूम पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद ने अपने शपथ ग्रहण समारोह के वक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में शान्तिपूर्ण तरीके से चुनाव होने देने के लिए पाकिस्तान का शुक्रिया अदा किया। कठुआ के नाबालिग के साथ बलात्कार मामले की भाजपा की सी.बी.आई.से जाँच की माँग मंजूर नहीं की, क्यों कि आरोपी हिन्दू थे। अपने ही वित्तमंत्री हसीब आद्राबी के कश्मीर समसया को सामाजिक/मजहबी बताने पर इस्तीफा देने पर मजबूर किया,पर भाजपा चाह कर भी उनका बचाव नहीं कर सकी।
हाल में महबूबा मुफ्ती ने केन्द्र सरकार से आग्रह कर रमजान के महीने में आतंकवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों की कार्रवाई को स्थागित कराया, इसका भाजपा ने विरोध किया। फिर भी केन्द्र सरकार ने उनके अनुरोध को स्वीकार संघर्ष विराम किया, किन्तु आतंकवादियों ने 71बार सुरक्षा बलों पर हमले किये और पाकिस्तान इस दौरान हर रोज अन्तर्राष्ट्रीय और नियंत्रण रेखा(एल.ओ.सी.)पर गोलीबार कर युद्ध विराम का उल्लंघन करता रहा,इसमें कई जवान शहीद हुए और सरहद के आसपास रहने वाले दहशत की वजह से अपना छोड़ने का मजबूर हुए। इन हमलों 22सेना,सुरक्षाबलों, पुलिस के जवान मारे गए और बड़ी संख्या में जवान और आम लोग घायल हुए हैं। यहाँ तक कि ईद से पहले राइफल मैन औरंगजेब को अगवा कर उसकी नृशंस हत्या के साथ-साथ जानेमाने पत्रकार सम्पादक शुजात बुखारी और उनके दो अंगरक्षकों को इफ्तार पार्टी में जाते समय गोलियों भून दिया गया। ईद के दिन भी पत्थर बाजों के हमलों में 12सुरक्षाबल के जवान तथा 45दूसरे लोग घायल हुए थे। इसके बाद भी महबूबा मुफ्ती संघर्ष विराम की रट लगाये हुई थीं,लेकिन इण्टेलिजेन्श ब्यूरो(आई.बी),एन.एस.ए.तथा सेनाध्यक्ष की रिपोर्ट के बाद केन्द्रीय गृहमंत्रालय को पुनः ऑपरेशन ऑल आउट‘शुरू करना पड़ा। यह अलग बात है कि इसके बाद भी महबूबा मुफ्ती समर्थक अलगाववादी और पाक परस्त उनसे खुश नहीं हैं। यही कारण है कि उनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की खाली संसदीय सीट पर नेशनल कान्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ.फारुक अब्दुल्ला ने कब्जा जमा लिया।
अब जहाँ तक भाजपा का सवाल है तो उसे पहली बार इस सूबे की सरकार में शामिल होने का अवसर अवश्य मिला,किन्तु जिस हिन्दू बहुल जम्मू से उसके सभी 25विधायक जीत कर आए हैं,उस क्षेत्र के साथ होने वाले भेदभाव को वह रोकने में असमर्थ ही रही। यहाँ और लद्दाख के लोग पहले की तरह दोयम दर्जे के नागरिक ही बने रहे। वह अलगाववादी नेताओं के खिलाफ भी कोई खास सख्त उठाने में नाकाम रही है। नब्बे दशक में कश्मीर घाटी से इस्लामिक कट्टरपन्थियों द्वारा बेदखल किये कोई चार लाख कश्मीरी पण्डितों की घर वापसी की समस्या जस की तस बनी हुई है।अनुच्छेद 370को खत्म करना,तो दूर उसपर चर्चा भी नहीं की। इस सूबे के विकास और दूसरी सुविधाएँ उपलब्ध कराने को केन्द्र सरकार के खजाने खोल देने पर भी कश्मीर घाटी में भाजपा को अपना जनाधार बढ़ाने में कोई कामयाबी नहीं मिली,उल्टे जम्मू के हिन्दुओं को उससे निराशा जरूर बढ़ी है।शहीद राइफलमैन औरंगजेब के पिता मो.लतीफ का यह कहना माने रखता है कि हिन्दुस्तान बहुत बड़ा है और उसकी सेना बहुत ताकतवर है फिर भी 2003से आतंकवादियों को घर से बीन-बीन खत्म क्यों नहीं किया गया?श्रीनगर में रह रहे काँग्रेस,पीडीपी,नेका, भाजपा के नेेताओं भगाओ,जो हमारे बच्चों का मरवा रहे हैं।क्या इस पर भाजपा और दूसरे राजनीतिक दल गौर करेंगे?
हालाँकि वर्तमान में पी.डी.पी. काँग्रेस तथा कुछ निर्दलियों आदि के सहयोग से सरकार बना सकती थीं,पर राज्य के खराब हालात देखते हुए उसने सरकार बनाने से साफ इन्कार कर दिया। नेशनल कान्फ्रेंस तथा पी.डी.पी.के कश्मीर घाटी में एक-दूसरे की धुर प्रतिद्वन्द्वी हैं,इसलिए उनका सरकार बनाना सम्भव नहीं था। ऐसे में राज्यपाल शासन लागू किये जाने के सिवाय विकल्प ही क्या था? अब जहाँ तक महबूबा मुफ्ती की सरकार गिरने पर काँग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद के बयान का सवाल है तो उनके विचार भी महबूबा मुफ्ती कतई जुदा नहीं हैं,वे भी उनकी तरह पाकिस्तान और अलगादियों के संगठन हुर्रियत से बातचीत के पैरोकार हैं।उन्होंने पी.डी.पी.और भाजपा गठबन्धन को दो विपरीत विचारधारा के दलों का सत्तालोलुप होने का आरोप लगाया है,किन्तु वह भूल गए कि उनकी पार्टी ने भी कर्नाटक में अपनी धुर विरोधी और तीसरी स्थान की पार्टी जनतादल एस को मुख्यमंत्री पद सौंप कर सरकार बनायी है,क्या यह उनकी पार्टी की सत्ता लोलुपता नहीं है? काँग्रेस और कथित सेक्यूलर पार्टियों के नेताओं ने राइफलमैन औरंगजेब के यहाँ सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत तथा रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण के जाने पर यह कहते हुए आपत्ति जतायी है कि भाजपा ऐसा कर मुसलमानों को लुभावने के लिए कर रही है। ये लोग किसी शहीद हुए किसी हिन्दू जवान के यहाँ क्यों नहीं गए। सम्भव है कि इसमें कुछ सच्चाई भी हो,लेकिन अपनी ओझी राजनीति के लिए इन सभी सियासी पार्टियों का सेना का मजहब के आधार पर विभाजन सर्वथा अनुचित और अस्वीकार है। क्या मुसलमानों को लुभावने केवल हक केवल काँग्रेस,पीडीपी.नेकॉ,सपा,बसपा को ही है?
जहाँ तक काँग्रेस समेत कथित सेक्यूलर पार्टियों के महबूबा मुफ्ती सरकार में कश्मीर घाटी में अशान्ति ,आतंकवादी घटनाएँ,पाकिस्तान का युद्ध विराम उल्लंघन,पत्थरबाजी की घटनाओं की बढ़ोत्तरी के आरोप का प्रश्न है तो इसका कहीं न कहीं का आतंकवादियों और उनके हमदर्दों पर केन्द्र सरकार के बढ़ते अंकुश से हुई नाराजगी तथा पाकिस्तान की गुप्तचार एजेन्सी की सक्रियता, पाकिस्तान की हिन्दुत्ववादी पार्टी को विफल सिद्ध करने की नीति है।अब तक इस सूबे में काँग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पी.डी.पी.की राज्य सरकारें रही है,उस दौरान इस्लामिक कट्टरपन्थियों को यहाँ भारत विरोधी अपनी गतिविधिया चलाने, जगह-जगह मस्जिदें बनाकर अड्डे बनाने,मजहब के नाम पर लोगों को भड़काने में कोई बाधा नहीं थी, ऐसे में उन्हें हथियार उठाने की जरूरत ही क्या थी? दरअसल,कश्मीर में सियासी पार्टी कोई भी हो, इन ?सभी का मकसद इस सूबे में दारुल इस्लाम यानी शरीयत की हुकूमत कायम करना है और हिन्दू विहींन करना है।
अब भाजपा का पी.डी.पी.से गठबन्धन तोड़ने के पीछे असल कारण महबूबा मुफ्ती का हर मामले में अड़ियल रवैया रहा हो सकता है।इससे दिनोंदिन भाजपा छवि धूमिल हो रही थी। इसका प्रभाव आगामी 2019के लोकसभा तथा जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों पर भी पड़े बिना नहीं रहता,जहाँ पहली बार भाजपा ने चार में से तीन लोकसभा तथा 87में 25विधानसभाओं पर सफलता प्राप्त की थी।अब सम्भव है कि वह राज्यपाल के शासन के माध्यम से उन वादों में से कुछ को पूर्ण कर ले, जो उसने अपने समर्थकों से किये थे। फिर राज्यपाल शासन में स्थानीय सरकार के दबाव के बगैर सेना और सुरक्षा बलों के पहले से बेहतर कार्रवाई करने के आसार बढ़ गए हैं। अब पत्थरबाज भी अपनी हरकतों से बाज आएँगे,जो महबूबा की सरकार की सरपरस्ती रहते बेखौफ हो गए थे।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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