इन्हें तब ऐतराज क्यों नहीं होता?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.)के नागपुर में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के भाग लेने को लेकर काँग्रेसी,वामपन्थी नेताओं समेत देश के कथित बुद्धिजीवी वर्ग ने जिस तरह विरोध और उनकी मंशा पर सन्देह जताया है,उससे इन सहिष्णुता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के स्वम्भू प्रबल पक्षधरों को दोगलापन उजागर हो गया। एक ओर तो इन सभी के लिए राष्ट्रीय स्वयं संघ और भाजपा घोर कट्टरपन्थी, साम्प्रदायिक,सामाजिक सौहार्द्र विरोधी दिखायी देती हैं,लेकिन दूसरी ओर काँग्रेसियों को देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार मुस्लिम लीग जैसी साम्प्रदायिक,ईसाइयों की केरल काँग्रेस के साथ केरल में सरकार बनाने तथा केन्द्र या राज्य में उनका समर्थन लेने, कश्मीर के अलगाववादी, पाकिस्तान समर्थक नेताओं, मुल्ला-मौलवियों, जामा मस्जिद के शाही इमाम, पादरियों से अपने पक्ष में फतवा जारी कराने, भारत तेरे टुकड़े, कश्मीर माँगे आजादी जैसे नारे लगाने वाले रोहित वेमुला,कन्हैया कुमार का समर्थन करने , घोर जातिवादी पाटियों और उनके भ्रष्टाचार के आरोप में जेल काट रहे नेताओं से मिलने और गलबाहियाँ करने से कतई परहेज नहीं है। इसका प्रमाण कश्मीरी अलगाववादियों से मिलने के लिए काँग्रेसी,वामपंथी,जदयू के शरद यादव आदि नेताओं की आतुरता/ होड़ में देखने को मिला,जो उनके दरवाजे पर दस्तक देते रहे,पर उन्होंने इनके लिए अपने दरवाजे तक नहीं खोले। इन्हें काँग्रेस के वरिष्ठ नेता/पूर्व मंत्री मणिशंकर अय्यर के बार-बार पाकिस्तान जाने केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा को हटाने के लिए एक तरह से मदद माँगने पर भी कोई आपत्ति नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह समेत कई नेता सिमी और आतंकवादियों के खुली हिमायत कर चुके हैं। उन्हें खंूखार आतंकवादी सरगना को ओसामा जी कहने पर भी शर्म नहीं आती।लेकिन ‘हिन्दुत्व‘ पर उन्हें भारी आपत्ति है जिसके कारण वे और उनके हिमायती इस मुल्क में न केवल सुख-चैन से रह रहे हैं, बल्कि अपनी मनमानी भी कर रहे हैं। यह ‘हिन्दुत्व‘ ही है जो अपने मत से विपरीत मत रखने वाले के साथ संवाद और विचार-विमर्श को अवसर प्रदान करता है। सभी जीवों में परमात्मा का वास मानता है। ये लोकतंत्र,विचारों की स्वतंत्रता भी ‘हिन्दुत्व‘ की बदौलत ही है जिन्हें भरोसा न हो वे पड़ोसी मुल्कों में जाकर देख आएँ,जो अक्सर कुछ के ख्वाबों में आते रहते हैं।
क्या इससे यह नहीं लगता है कि काँग्रेस समेत कथित सेक्यूलर पार्टियों को केवल हिन्दुओं और हिन्दुत्व से दुराव है, यहाँ तक ऐसा करते समय है उन्हें हिन्दू, भारतीयता, राष्ट्रीय प्रतीकों से दूरी या हटाने में भी संकोच नहीं, ताकि समुदाय विशेष का उन पर भरोसे में कमी नहीं आए। अगर ऐस हुआ,तो उनके वोट एक मुश्त कैसे मिलेंगे?,उस हालत में सत्ता कैसे मिलेगी और सत्ता के बगैर वे कैसे रहेंगे? यही कारण है कि कुछ काँग्रेसियों ने प्रणब दा के नागपुर के संघ के कार्यक्रम में जाने का आमंत्रण स्वीकार करने का कारण उनकी ‘भारत रत्न‘ ‘पाने की लालसा/लालच तक बता दिया।
अब इन काँग्रेसियों की अपने वरिष्ठतम नेता प्रणब मुखर्जी को संघ शिक्षा वर्ग में जाने को लेकर फिक्र की वजह उनके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रंग में रंगने की नहीं,बल्कि उनके इनके द्वारा संघ के बारे में सालों से किये जा रहे दुष्प्रचार और भ्रम का पर्दाफाश होने का था। बड़े यतन और जतन से उन्होंने रा.स्व.सं. /भाजपा को राजनीतिक रूप से अछूत(अस्पृश्य) बनाया हुआ था, वहाँ जाकर प्रणब दा ने, क्यों स्पर्श योग्य
बना दिया? अब किस मुँह से कहेंगे कि संघ अल्पसंख्यकों विशेष रूप से मुसलमानों का जानी दुश्मन है? वहाँ तो उनके विनाश के नये षड्यंत्र रचे जाते हैं,केवल काँग्रेस ही उसकी वास्तविक रक्षक है,उसके सत्ता में रहते वे महफूज हैं। आजादी के बाद से पहले काँग्रेस,वामपन्थी फिर सपा,बसपा उनकेे इसी डर को भुना कर सत्ता हासिल करते आए हैं।
अब जहाँ तक पूर्व राष्ट्रप्रति प्रणब मुखर्जी के संघ शिक्षा वर्ग में उद्बोधन का प्रश्न है तो उन्होंने ‘राष्ट्रवाद‘ पर विचार अवश्य व्यक्त किये, किन्तु उसमें उनका अपना अनुभवजन्य या सोचा-विचारा कुछ नहीं था। उनका कथित राष्ट्रवाद यूनानी, मुसलमान, अँग्रेज इतिहासकारांे, विदेशी विचारकों, उनके विचारों को अपनी पुस्तक ‘भारत एक खोज‘(डिस्कवरी ऑफ इण्डिया)के माध्यम से आगे बढ़ाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विचारों पर आधारित है। उनके राष्ट्रवाद‘ में किसी भारतीय चिन्तक, विचारक के नाम का उल्लेख तक नहीं था,जबकि इस विषय पर आचार्य चाणक्य, महर्षि दयानन्द,स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविन्द घोष ने विस्तार से अपने विचार रखे हैं, जिनसे उन्होंने भारतीय की स्वतंत्रता की सुप्त भावना/चेतना को जागृत किया था । प्रणब दा के भाषण में ऐतिहासिक तथ्यों की सही पड़ताल तक नहीं थी। यही कारण है कि प्रणब दा ने भी मान लिया कि भारत में अँग्रेजों ने सन् 1757प्लासी युद्ध मुसलमानों से ली है,जबकि उन्होंने भारत के बहुत बड़े भू -भाग पर आधिपत्य सिखों, हिन्दू,मराठों आदि को पराजित कर किया था। मुसलमान, अँग्रेज,वामपंथी इतिहासकारों,विचारकों का एक ही प्रयास रहा है कि भारतीयों को किसी भी तरह से स्वाभिमान और गौरव विहीन बनाया जाए। इसके लिए उन्होंने भारतीय इतिहास, धार्मिक ग्रंथों, दूसरें ग्रंथों में वर्णित तथ्यों को इतना तोड़ा-मरोड़ा है कि भारतीयों को स्वयं ही उनके प्रति अविश्वास हो जाए या फिर दूसरे मतालम्बियों की तरह हिन्दू भी यह मान लें कि उनके पूर्वज भी इस देश के मूल निवासी नहीं थे। उनकी यह कोशिश बराबर जारी है। प्रणब दा के उक्त भाषण को सुनकर काँग्रेसियों ने यह सोचकर राहत की साँस ली,उन्होंने वही कहा,जो हर काँग्रेसी अब तक बयां करता आया है। उनके कथित राष्ट्रवाद से भारतीय राष्ट्रवाद या संघ के राष्ट्रवाद से दूर तक का कोई नाता नहीं है। इसलिए अब काँग्रेस से न मुसलमान नाराज होंगे और न ही वामपंथी सहयोगी। जिनका मकसद सिर्फ भारतीयता, हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद को कमजोर करना है, ताकि इस देश को विखण्डित किया जा सके। यही कारण है कि ये अपने को हिन्दू पूर्वज के वंशज न मनाने वालों, वन्देमातरम न बोलने, राष्ट्रगान केे समय सम्मान में खड़े न होने वालों, हिन्दी या संस्कृत/भारतीय भाषाओं का विरोध करने वाले, भारतीय परम्पराओं, रीति-रिवाजों, आस्था/विश्वासों का खण्डन करने वालों के साथ हैं। ये उस हर चीज के विरोधी हैं जो उन्हंे इस धरती से जोड़ती है। ये हिन्दुत्व से तो भयभीत है,लेकिन ईसायत, इस्लामिक जेहादी मानसिकता से नहीं, जिसके कारण पूर्वात्तर के कई राज्य न केवल ईसाई बहुल हो गए हैं,वरन् बन्दूक के जोर पर वे अलग देश बनाने के लिए संघर्षरत हैं,कश्मीर में जो कुछ हो रहा है,उस पर उनकी खामोशी बनी रहती है जहाँ की मस्जिदों से खुलेआम देश विरोधी कार्यो का अंजाम दिया जाता है। उन्हें पाकिस्तान और दहशतगर्द संगठन आई.एस.के लहराते झण्डे और उनके समर्थन में नारे दिखाई-सुनाई नहीं देते। इन्हें देश के विभिन्न क्षेत्रों में बम विस्फोट और यदाकदा पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारों में कुछ गलत नजर नहीं आाता। कोई इन्हें कैसे समझाए कि आज देश में मुसलमानों के 72 फिरके, कैथोलिक,प्रोटेस्टैण्ट,मैथाडिस्ट आदि र्इ्रसाइयों के फिरके, सिख, पारसी,यहूदी,जैन समेत तमाम धर्माें/सम्प्रदायों को मानने वाले शान्ति और प्रेम से रह रहे है, तो इसका कारण हिन्दुत्व ही है जो मानव,हर जीव के कल्याण और उसके सुख,निरोगी होने की कामना करता है। जो ‘जीयो और जीने दो‘ यानी सहअस्तित्व का पाठ पढ़ाता।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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