किसके हित में है ये जाति विद्वेष की राजनीति ?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में पुणे के पास स्थित भीमा-कोरेगाँव युद्ध की 200वीं बरसी की पूर्व सन्ध्या पर शनिवारवाड़ा में गत 31दिसम्बर को आयोजित ‘यलगार परिषद्‘ में गुजरात के दलित नेता तथा नवनिर्वाचित विधायक जिग्नेश मेवाणी और जे.एन.यू. के छात्र उमर खालिद के उत्तेजिक भाषणों और उनकी प्रतिक्रिया मंे स्थानीय लोगों से झ़ड़पों के पश्चात् महाराष्ट्र तथा गुजरात के कई नगरों में भड़की जाति विद्वेष की हिंसा में दो लोगों की जानें जाने के साथ सैकड़ों वाहन जलाने, उनमें तोड़फोड़ की गई, रेलें रोकी गई, सड़कों पर जाम लगाये और उसके बाद मुम्बई बन्द के कारण , जो करोड़ रुपए की आर्थिक क्षति और सामाजिक समरसता में बिगाड़ हुआ है, उससे देश के अन्दुरूनी हालात की भयावहता का पता चलता है। इस घटना ने उन विघटनकारी शक्तियों ने अपनी विनाशक शक्ति का भान (अहसास) करा दिया, वे जाति विद्वेष और मजहबी जज्बातों को भड़का क्या नहीं कर सकते ? दुर्भाग्य की बात यह कि सत्ता के भूखे भेड़ियों को ऐसी राष्ट्र घातक शक्तियों की इन विघटनकारी दुष्कृत्यों में कुछ भी गलत दिखायी नहीं देता, बल्कि वे बेशर्मी से उनका ही पक्ष लेते आये हैं और इस मामले में भी उनकी खुलकर तरफदारी करने से बाज नहीं आए। वस्तुतः देशभर में कथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों की अल्पसंख्यक तुष्टीकरण और जातिवादी दलों की संकीर्ण राजनीति की निरर्थकता से आमजन ऊब चुके हैं। इसका फायदा अब भाजपा हो रहा है। इससे ये दल बहुत ज्यादा हताश-निराश हैं। इस कारण अब वह दलित और मराठों के बीच जाति विद्वेष की भड़क आग पर अपनी राजनीतिक रोटी सेकने की फिराक में हैं। हाल में गुजरात में हुए विधानसभा के चुनाव में काँग्रेस को जातिवादी नेताओं के सहयोग से जो आंशिक सफलता भी मिली है उससे वह और दूसरे जातिवादी नेता कुछ ज्यादा ही उत्साहित हैं। इसीलिए भीमा- कोरगाँव में इन जातिवादी नेताओं द्वारा भाजपा, आर.एस.एस.,महाराष्ट्र की मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस तथा प्रधानमंत्री मोदी की केन्द्र सरकार को ‘नया पेशवा‘(ब्राह्मणवादी) मानते हुए सभी राजनीतिक पार्टियों को उनकी सत्ता उखाड़ फेंकने के लिए यलगार (जंग छेड़ने) का आवाह्न किया गया।
अब जहाँ हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा जाति विद्वेष फैलाने के लिए जिग्नेश मेवाणी तथा उमर खालिद के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी है,वहीं दलित नेताओं ने दो हिन्दूवादी नेताओं सम्भाजी भिड़े एवं मिलिन्द एकबोटे के विरुद्ध। भीमा-कोरेगाँव से सुलगी जाति विद्वेष की आग को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने एक छात्र संगठन द्वारा आयोजित सभा को भी रद्द कर दिया, जिसमें जिग्नेश मेवाणी और उमर खालिद शामिल होने वाले थे।
विडम्बना यह है कि अब दलित नेता जिग्नेश मेवाणी अपने को निर्दोष बताते हुए ऐसे किसी आयोजन में शामिल न होने की बात कह रहे हैं,वहीं हिन्दूवादी नेता भी कुछ ऐसा ही कह कर अपना बचाव कर रहे हैं। लेकिन यह प्रश्न अनुत्तरित है कि आखिर देश में अपनी राजनीति चमकाने को जाति विद्वेष फैलाने की इतनी छूट क्यों है? 1जनवरी, सन् 1818 के‘ भीमा-कोरेगाँव के युद्ध‘ में तत्काली ईस्ट इण्डिया की सेना द्वारा तत्कालीन बाजीराव पेशवा द्वितीय की सेना को हराया था। उस स्थान पर अँग्रेजों विजय स्मारक बनवाया। ईस्ट इण्डिया की सेना में कोई 600 महार जाति के सैनिक थे। इस कारण महार जाति के लोग इस दिन को शौर्य/गौरव दिवस के रूप में सालों से समारोहपूर्वक मनाते आए हैं,क्यों कि वे इसे दलितों (महारों) की पेशवा(ब्राह्मणों) पर जीत मानते हैं। फिर भी ऐसे आयोजन को जिससे जाति विद्वेष पनपाया और फैलाया जाता रहा है उसकी गम्भीरता को देखते हुए भी छूट क्यों दी जाती रही है? फिर इस बार 31दिसम्बर को ऐन पुणे के पेशवाओं के ऐतिहासिक निवास शनिवारवाड़ा के बाहर ‘शनिवारवाड़ा यलगार परिषद्‘ का इस आयोजन का मकसद मराठों को चिढ़ाना-खिजाना और ईस्ट इण्डिया की सेना हाथों मिली हार की याद दिला कर उन्हें अपमानित करना नहीं,तो क्या था ? क्या जाति विद्वेष फैलाने की यह पराकाष्ठा नहीं है? फिर भी आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने अपनी वोट बैंक की राजनीति के कारण इस आयोजन के औचित्य पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया। यदि ये इस आयोजन के औचित्य को उचित मानते हैं तो 711 ईस्वी से मोहम्मद बिन कासिम की सिन्ध विजय,तराईन के दूसरे युद्ध, तीनों पानीपत की लड़ाइयाँ, रणथम्मौर, हल्दी घाटी समेत तमाम युद्धों में हिन्दुओं,अफगानों की हार पर मुस्लिमों और प्लासी युद्ध, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, जलियावाला नरसंहार की पराजय पर ईसाइयों को शौर्य दिवस क्यों नहीं मानना चाहिए? क्या महारों/दलितों की जाति अस्मिता राष्ट्र अस्मिता से बढ़कर है, जिसकी कुछ सियासी दल खुलकर पैरोकारी करते आए हैं? क्या सारी सामाजिक समरसता की जिम्मेदारी सिर्फ एक वर्ग की है?क्या जाति व्यवस्था क्या केवल सवर्ण तक सीमित है?क्या पिछड़े/अन्य पिछड़े/दलित जातियों में जाति विषमता/भेदभाव नहीं है? भीमा-कोरेगाँव की इस दुर्भाग्य पूर्ण घटना के लिए दलित नेता समेत कथित सेक्यूलर राजनीतक काँग्रेस, बसपा, राजद, वामपंथी भाजपा ,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समेत दूसरे हिन्दू संगठनों को दोषी ठहरा रहे हैं।
इस बार उस युद्ध की 200वीं वर्षगाँठ पर इस बार तीन लाख से अधिक लोगों को जुटाने से लेकर गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणी, जे.एन.यू.के छात्र और कन्हैया कुुुमार के साथ उमर खालिद, रोहित वेमुला की माँ राधिका वेमुला की उपस्थिति क्या यह दर्शाने को काफी नहीं है, इसके आयोजक की असल इरादे क्या रहे होंगे?इस कारण यह है कि जहाँ रोहित वेमुला ‘महिषासुर दिवस‘मनाने से लेकर याकूब मेनन की फाँसी के विरोध करने वालों का सरगना था ,वहीं उमर खालिद उस कन्हैया कुमार का साथी तथा प्रतिबन्धित ‘सिमी‘सदस्य रहा है जो कश्मीर माँगे आजादी, भारत तेरे टुकड़े होंगे इंसा अल्लाह-इंसा अल्लाह आदि नारे लगाते आए हैं। क्या इन सभी का दलित उत्थान में योगदान रहा है या फिर इनसे उन्हें कैसी अपेक्षा है?
भीमा-कोरेगाँव से उठी जाति विद्वेष की आग को देश के विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने-अपने तरीके से फायदा उठाने की कोशिश की है। इस मुद्दे को काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने अपने लिए भाजपा पर हमले का सुनहरा मौका मानते हुए जहाँ यह कहा,‘‘भाजपा,संघ दलितों को समाज के निचले पायदान पर ही रखना चाहते हैं। ऊना, रोहित वेमुला और भीमा-कोरेगाँव की घटनाएँ यही दर्शाती हैं।‘‘वहीं बसपा अध्यक्ष मायावती ने इसके लिए भाजपा,संघ और जातिवादी शक्तियों को जिम्मेदार ठहराया।लेकिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द फड़नवीस ने इसे पूर्व नियोजित हिंसा बताया, क्योंकि पहले इस स्मारक पर पन्द्रह सौ के करीब लोग जुटते थे,वहाँ इतने लोग कैसे जुट गए ? दरअसल, महाराष्ट्र में सन् 2016 में एक मराठा नाबालिग बालिका से दुष्कर्म के बाद शुरू हुए मराठा समाज आन्दोलन कुछ माह पहले ही थमा था,जो इस राज्य में सामाजिक तनाव का बहुत बड़ा कारण बना हुआ था। इस आन्दोलन को 19 फरवरी से फिर से शुरू किये जाने की चेतावनी दी जा चुकी है। ऐसे में दलितों को भड़का कर कुछ राजनीतिक दल भाजपा को सियासी शिकस्त देने की साजिश कर हो, तो आश्चर्य नहीं। इस गभ्भीर मुद्दे पर सभी जातियों को सोचना होगा कि विगत के भेदभाव/उत्पीड़न/कटु स्मृतियों के आधार पर जाति विद्वेष भड़काना या लड़वाना किसी के हित में नहीं है?अपनी कमियों/खामियों को हमें ही दूर करना या सुधारना किसी बाहर के व्यक्ति को नहीं?
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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