महबूबा जी! इतना कमजोर नहीं है,हिन्दुस्तान


             डॉ.बचन सिंह सिकरवार
यूँ तो जम्मू-कष्मीर के लगभग सभी राजनीतिक दलों के नेता समेत अलगावादी भारत सरकार को कुछ न कुछ चेतावनी/धमकी देते ही रहते हैं,पर अब कुछ दिनों से मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी उन्हीं राह पर चलने को बेताव नजर आ रही हैं। उन्होंने केन्द्र सरकार को चेतावनी भरे  लहजे में  उसे यह अगाह किया है कि अगर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 35ए और 370 से छेड़छाड़ की गयी, तो उनके राज्य में उसके झण्डे (तिरंगे) को उठाने वाले नहीं रहेंग,े जिसे उनके दल पी.डी.पी.और डॉ.फारुक अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के लोग कश्मीर के अपने झण्डे के साथ उठाते आए हैं। उसका जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करना गलत होगा। 

हालाँकि भाजपा समेत देश की किसी भी सियासी पार्टी ने हमेशा की तरह अपने वोट बैंक को खतरे को देखते हुए जुबान बन्द रखी है, किन्तु क्या महबूबा मुफ्ती इस सच्चाई से अनभिज्ञ हैं कि इस  राज्य के सभी लोग उन जैसी विचारधारा के नहीं हैं। क्या उन्होंने यह बयान जम्मू, लद्दाख या फिर कश्मीर घाटी के कुछ खास जिलों के मुस्लिमों के एक खास फिरके  के कुछ लोगों को छोड़ कर उनसे पूछ कर दिया है। वैसे उन्हें यह ध्यान दिलाना जरूरी है कि आज जम्मू-कश्मीर अगर भारत के साथ है तो वहाँ के और शेष भारत के लोगों की इच्छा/आकांक्षा और हिन्दुस्तानी सैन्य बल कारण है,उन जैसों कि मेहरबानी से नहीं। पाकिस्तान समेत इस राज्य के सियासी और गैर सियासी अलगावादी  कई बार खुलेआम जंग,तो लगातार छदम युद्ध के बाद भी इसे भारत से अलग करने में विफल रहे हैं। 

      आज हिन्दुस्तान इतना कमजोर नहीं है,जो दुनिया की कोई भी ताकत उससे जम्मू-कश्मीर को जंग कर छीन ले। वैसे वह ऐसे ख्वाब देखना बन्द कर दें, तो अच्छा होगा कि यह राज्य उनके या अब्दुल्ला खानदान के भरोसे हिन्दुस्तान के साथ है। सही बात तो यह है कि असली खतरा है तो इन दोनों खानदानों को, जो  हिन्दुस्तान में रहकर उसे ही गरियाते हुए बारी-बारी से सत्ता के सुख भोगते आए हैं। किसी ने आज तक उनसे यह कहने हिम्मत नहीं दिखायी है कि अगर उन्हें शरीयत और पाकिस्तान से इतनी ही मुहब्बत है तो वे अपने समर्थक अलगावादियों के साथ वहाँ ही तशरीफ क्यों नहीं ले जाते?
        क्या महबूबा मुफ्ती को भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत का हालिया बयान याद नहीं, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारतीय सेना अपने ढाई दुश्मन (पाकिस्तान, चीन और नक्सलवादियों, अलगाववादियों, चरमपंथियों आदि) से निपटने में सक्षम है। फिर भारतीय सेना भूटान के डोकलाम क्षेत्र की सुरक्षा के लिए चीन की तमाम धमकियों के बाद भी उसकी सेना के सामने तन कर खड़ी हुई है। 
    वस्तुतः इन दिनों उच्चतम न्यायालय कश्मीरी पण्डित महिलाओं द्वारा  लिंग के आधार अपने साथ हो रहे भेदभाव को लेकर दायर की गई याचिका  पर सुनवाई कर रहा है। उसमें महिलाओं ने माँग की है कि भारतीय संविधान के अनुच्देद 35ए और जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 6 को असंवैधानिक घोषित किया जाए,क्यों कि इनके कारण उन्हें जम्मू-कश्मीर में जन्म लेने और जन्मजात पुश्तैनी निवासी होने पर भी  कश्मीर के बाहर के पुरुष के साथ विवाह करने पर उनके इस राज्य में सम्पत्ति रखने, नौकरी करने से लेकर दूसरे अधिकार समाप्त हो जाते है, जबकि यहाँ के पुरुषों को अन्य राज्यों या विदेशी महिला से विवाह करने पर उस महिला को भी ये अधिकार मिल जाते हैं। वैसे महिला होने के नाते महबूबा को इस मुद्दे पर उनका साथ देना चाहिए ,पर सियासती फायदे उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं। 
वैसे भी जम्मू-कश्मीर की उन जैसी पार्टियों और अलगाववादियों का एक ही मकसद है कि किसी भी तरह इस राज्य को हिन्दू विहीन करना और शरीयत की हुकूमत कायम करना। चूँकि कोई ढाई दशक पहले इस्लामिक दहशतगर्दाें द्वारा बन्दूक की नोंक पर कश्मीर घाटी से खदेड़े गए ज्यादा कश्मीरी पण्डित अपनी सुरक्षा और रोजी-रोटी की तलाश में जम्मू या देश के दूसरे शहरों में बस गए हैं, ऐसे में उनकी बेटियों के विवाह भी अलग -अलग राज्य के लोगों के साथ हो गए। इस कारण वह उक्त अनुच्छेदों के कारण वह इस राज्य की नागरिकता से वंचित हो गयी हैं। परिणामतः वे अब न तो अपने राज्य में सम्पत्ति खरीद सकतीं और न ही सरकारी नौकरी पाने की अधिकारी रह गई हैं।
 उक्त चेतावनी को देने के बाद  दूसरे दिन महबूबा मुफ्ती ने ‘राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण‘(एन.आई.ए.)के सुझाव पर नियंत्रण रेखा से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के.) से व्यापार बन्द करने के सुझाव पर राज्य में हालात खराब होने का अन्देशा जताने के साथ-साथ कश्मीरियों को कैद करके रखने का आरोप लगाने पर उतर आयीं,जो  हुर्रियत नेताओं को अवैध रूप से धन पहुुँचाने एक बड़ा जरिया बना हुआ है। इसके साथ ही उन्होंने पाकिस्तान के साथ बातचीत शुरू करने की जरूरत भी बतायी,क्या  अब विदेश नीति भी उनसे पूछ कर बनायी जाएगी?  इससे पहले  उन्होंने  केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से उन हुर्रियत नेताओं के गिरफ्तारी पर ऐतराज जताया था, जिन्हें एन.आई.ए. ने जाँच-पड़ताल के बाद पाकिस्तान समेत दूसरे मुल्कों से अलगाववादी गतिविधियों विषेश रूप से आतंकवादियों को बचाने को पत्थरबाजों, आई.एस., पाकिस्तानी झण्डे लेकर भारत विरोधी और पाकिस्तान के समर्थन मेंनारे लगाने, स्कूल-कॉलेज बन्द कराने तथा जलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। तब राजनाथ सिंह ने स्पश्ट षब्दों में उन्हें समझा दिया था कि आप कानून को अपना काम करने दंे, इसके जो भी परिणाम होंगे,उससे निपटने को सरकार तैयार है। फिर भी महबूबा मुफ्ती ने उनके संकेत को समझने की आवष्यकता अनुभव नहीं की। इनमें से कुछ बातें उन्होंने बन्द कमरे में ,तो कुछ खुलेआम जनसभा में कही  हैं,इससे यही लगता है कि इस राज्य में पी.डी.पी. और भाजपा की साझा सरकार जरूर है,लेकिन उनकी राहें अलग-अलग हैं।

इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी अनुव्छेद 370समेत पाकिस्तान से बातचीत करने को लेकर महबूबा के स्वर में स्वर मिलना षुरू कर दिया। उनका कहना कि इस अनुच्छेद के आधार पर ही जम्मू-कष्मीर हिन्दुस्तान के साथ है। स्पश्ट है कि वह यही कहना चाहते हैं कि अनुच्छेद 370के बगैर जम्मू-कष्मीर भारत में नहीं रहेगा। इससे पहले उनके पिता पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.फारुक अब्दुल्ला पत्थरबाजों को कष्मीर का असली वारिस और स्वतंत्रता सेनानी बताते आए हैं। यहाँ तक कहा कि पी.ओ.के.क्या तुम्हारे बाप का है?भारतीय सेना में इतना दम नहीं,जो उससे लड़कर ले ले। अपने ऐसे ही अलगाववादी तेवरों की बदौलत नाममात्र के मतदान के बाद पी.डी.पी.के उम्मीदवार को हरा कर लोकसभा को चुनाव जीतने में कामयाब हो गए। दरअसल,आजादी के बाद से ही षेख अब्दुल्ला का खानदान और बाद में मुफ्ती मुहम्मद सईद खानदान काँग्रेस की मदद से अलगाववाद का पनपाते आए हैं। सत्ता में आने पर इनके अलगाववादी रवैये थोड़ी -बहुत नरमी आती है,पर सत्ता जाते ही  सियासत की चादर में पूरी तरह अलगाववादी हो जाते हैं।इस समय दोनों में अलगावादियों की हमदर्दी हासिल करने की होड़ लगी है। लेकिन सत्ता के मोह में पहले काँग्रेस और अब भाजपा सब कुछ जानते हुए भी महबूबा से साफ -साफ कहने से बच रही हैं। इधर सीमा पर पाकिस्तानी सेना के  युद्ध विराम के उल्लंघन तथा घुसपैठ के साथ-साथ आतंकवादियों से मुठभेड़ , अलगाववादियों की षह पर युवकों की पत्थरबाजी के लिए काँग्रेस पाकिस्तान के बजाय पीडीपी और भाजपा की साझा सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है,जैसे उसके कार्यकाल में सबकुछ ठीकठाक था। सही बात यह है कि वह ऐसा कह कर अपनी रही सही साख और विष्वसनीयता भी गंवा रही है। अफसोस की बात यह है कि  जब केन्द्र सरकार  जम्मू-कष्मीर के अलगावादियों की विदेषों से  मिल रहे धन पर रोक लगाने के साथ-साथ उन्हें गिरफ्तार कर दण्डित करने जा रही है तब उसकी कार्रवाई करने का समर्थन के बजाय वह हतोत्साहित करने में लगी। यहाँ पर आये दिन सैन्य बलों की मुठभेड़ों में आतंकवादियों के मारे जाने और अलगाववादियों के आर्थिक स्रोतों के बन्द होने से हौसलेपस्त हैं। इससे कष्मीरी नेताओं को अपने मंसूबों पर पानी फिरता दिखायी दे रहा है इसलिए वे अपने -अपने तरीकों से हायतौबा मचा रहे हैं, उनकी इस चाल को देष के लोगों को समझना चाहिए।  
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

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