कब छोड़ेंगे ऐसी अन्ध श्रद्धा?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार

क्या धर्म और राजनीति का चोला ओढ़ लेने से किसी को जघन्य से जघन्य अपराध करने की छूट मिल जानी चाहिए?क्या ऐसे लोगों के बड़ी संख्या में अनुयायी या समर्थक होने या चुनावी सफलता पाने से उनके अपराधों को अपराध नहीं माना जाना चाहिए? अपने देश में इन प्रश्नों का उत्तर सहज नहीं है । इसका कारण यह है कि ऐसे लोगों ने कभी धर्म/मजहब, देवी-देवताओं, पैगम्बरों ,सन्त/महन्त, बाबा, सम्प्रदाय, जाति, राजनीतिक दलों ,उनकी विचारधारा और उनके राजनेताओं के प्रति अन्ध श्रद्धा/निष्ठा के रहते कानून अपने हाथ में लेने या कुछ भी कर गुजरने से जरा भी संकोच नहीं किया। यही वजह है कि अपने देश में ऐसी अन्ध श्रद्धा/भक्ति, आस्था, निष्ठा रखने वालों का लम्बा इतिहास होना है। परिणामतः इनके दम पर ही एक से कम ढोंगी, पाखण्डी, व्यभिचारी सन्त, महन्त, महाभ्रष्टाचारी, कुकर्मी राजनेता सत्ता पर काबिज हैं।
फिर भी सन्तोष की बात यह है कि समय-समय पर देश में कुछ लोग अपने प्राणों की परवाह न कर धर्म और राजनीति की आड़ में अपराध करने वालों के खिलाफ खड़े होते रहे हैं और न्यायपालिका ने भी देर-सबेर उन्हें दण्डित किया है। अफसोस की बात यह है कि देश की स्वतंत्रता के 70साल बाद भी ऐसे ढोंगी/पाखण्डी, धूर्त, मक्कार, भ्रष्ट,व्यभिचारी तथाकथित सन्त/महन्त/राजनेताओं की कमी नहीं रही है, क्यों कि इनके बीच सदैव से अटूट गठजोड़ बना रहा है। इसके माध्यम से ये लोगों को भ्रमित कर उनका सब कुछ लूटने के साथ-साथ सत्ता सुख भोगते रहे हैं। यह तथ्य सन् 2002में बलात्कार पीड़ित उस साध्वी का पत्र से प्रमाणित होता है जो उसने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय को लिखा था। उस पत्र में उसने बाबा गुरुमीत राम रहीम की काली कारतूतों का जिक्र करते हुए अपने साथ हुए जुल्म के लिए उसे सजा दिलाने की माँग की थी। उसमें लिखा था कि उस पितातुल्य बाबा ने डराते हुए कहा था कि देख तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी कि मेरा यहाँ बड़े-बड़े नेता, मंत्री, मुख्यमंत्री शीश नवाते हैं। मैं पैसे हर किसी को खरीद लूँगा। तेरी बात पर तेरे ही माता-पिता भी विश्वास नहीं करेंगे। सच में ऐसा ही था। तभी तो वोट के लालच में पहले काँग्रेस, इण्डियन नेशनल लोकदल (इनलो) और भाजपा की सरकारें उसकी हर तरह से मदद करती रहीं,ताकि ये ढोंगी बाबा अपने अनुयायियों से उन्हें वोट दिलवाता रहे। वह तो धन्य है पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय जिसने साध्वी के पत्र का स्वतः संज्ञान लेकर इसकी सी.बी.आई.से जाँच करायी। इस जाँच एजेन्सी के निर्भीक और
ईमानदार अधिकारियों ने तमाम प्रलोभन और अधिकारियों तथा नेताओं के दबाव, सिफारिशों को दरकिनार कर अनेक पुख्ता सुबूत इकट्ठे किये। फिर सी.बी.आई. न्यायालय के न्यायाघीश ने हर तरह के खतरों से बेपरवाह होकर ऐसी सख्त सजा सुनायी कि धरती का यह कथित भगवान न्यायालय में ही दया की भीख माँगते-माँगते रो पड़ा। हर तरह के भोग विलास भोगने और नित नई साध्वियों से यौनाचार करने वाला यह व्यभिचारी अब जेल में एकान्त कोठरी में अपने कुकर्मों को रो रहा है। क्षोभ की बात यह है कि इतने सब के बाद भी वोट बैंके के फेर में किसी भी राजनीतिक दल ने बाबा गुरुमीत राम रहीम के दुष्कर्मों की अभी तक खुल कर निन्दा नहीं की है। इससे यही लगता है कि हर नेता को समाज तथा देश की नहीं, सिर्फ अपनी कुर्सी की फिक्र है। इससे पहले कथित संत आसाराम बापू औैर उनका बेटा भी नाबालिग के साथ कुकर्म के आरोप जेल में पड़े हैं,पर उनके अनुयायी अब भी उन्हंे निर्दोष मानते हुए उस बालिका और सरकार को कोस रहे हैं। यहाँ तक कि इन पाखण्डियों को बचाने को उनके कुछ दुष्ट अनुयायी एक-एक कर गवाहों की हत्या पर हत्या कर रहे हैं। इनसे पहले कुछ कथित शंकराचार्य और दूसरे सन्तों पर इसी तरह के घृणित आरोप लग चुके हैं।
कुछ इस तरह ही बिहार के लोग ही नहीं, काँग्रेस,सपा, बसपा, जदयू के नेता शरद यादव यहाँ के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के चारा घोटाले में सजा पाये जाने और अब बेटे ,बेटी, दामाद,पत्नी समेत खुद भ्रष्टाचार के कई मामलों में फँसे हैं। फिर भी इन सभी दलों के नेता लालू प्रसाद यादव को बेकसूर साबित करने में जुट हैं जिनमें वे विधायक/ सांसद की टिकट या मंत्री पद देने के बदले उनसे जमीन-जायदाद लिखाकर कीमत वसूलते आये है। वैसे भी उनकी राजनीतिक का सारा दारोमदार सेक्यूलरवाद का झण्डा उठा जातिवाद की राजनीति करना रहा है। वह मुस्लिम और यादव गठजोड़ (एमवाई) के सहारे सत्ता पाकर अपने और पत्नी के साथ चारों हाथों से अपनी तिजोरियाँ भरते आए हैं। धन्य है कि बिहार के लोग जिन्हें अपने हितों से कहीं ज्यादा जाति प्यारी है। इससे पहले झारखण्ड में दाम लेकर समर्थन देने वाले ‘झारखण्ड मुक्ति मोर्चा‘के शिबू सोरन जैसे नेताओं को जीतते आये हैं। कमोबेश उत्तर प्रदेश में सपा नेता मुलायम सिंह यादव तथा उनके परिजनों और बसपा प्रमुख मायावती की यही स्थिति है। इनकी जातियों के लोग उनके पराभव को राजनीतिक षड्यंत्र समझ कर वे अपनी छाती फाड़ दहाड़े मार कर रो रहे हैं। कोई इनसे यही नहीं पूछता कि जब समाजवादी और दलित इतनी धन-सम्पत्ति के स्वामी होते हैं और इतना वैभवशाली जीवन जीते हैं,तो पूँजीवादी और सवर्ण कितने धनवान होते होंगे? कुछ ऐसे ही एडीएमके की नेता जयललिता कई बार तमिलनाडू की मुख्यमंत्री रहीं, जिन पर भ्रष्टाचार के बहुत से आरोप थे जिनमें सजा पाने के बाद वह कई बार जेल गईं और वहीं उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई। लेकिन इससे उनके आस्थावान समर्थकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। कई समर्थकों ने उनके निधन पर भी अपने प्राण दे दिये। कुछ लोग अपनी राजनीतिक वैचारिकता के कारण विरोधी की जान लेने से भी नहीं चूकते। पहले पश्चिम बंगाल में वामपंथियों द्वारा काँग्रेसियों पर हिंसक हमले किये जाते थे और अब केरल में वामपंथी राष्ट्रीय स्वयं संघ तथा भाजपा, काँग्रेस, मुस्लिम लीग समर्थकों के साथ खूनी खेल रहे हैं।इस राजनीतिक हिंसा में लोगों की जानें जा रही हैं। नक्सली भी विचारधारा के कारण अपने विचारधारा से असहमतों की जान लेते रहते हैं। पंजाब सिख भी निरंकारी आदि दूसरे सिख फिरकों का बर्दाश्त नहीं करते। ऐसे ही अपने मुल्क में मजहब के नाम पर वतन से गद्दारी करने वालों की कमी नहीं हैं। ये लोग देशभर में आतंकवादियों और अलगावादियों के जनाजे में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और आतंकवादियों द्वारा मारे जाने वाले सुरक्षाबलों तथा पुलिसकर्मियों के मौत पर खुश होते हैं। इस मानसिकता वाले किक्रेट मैच में भारत के पाकिस्तान से जीतने पर मातम और हिन्दुस्तान के उससे हारने पर ने पटाखे फोड़कर खुशियाँ मनाते हैं। इतना ही नहीं, देश में जहाँ -तहाँ बम फोड़ने, जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान और खूंखार आतंकवादी संगठन आइ.एस.के झण्डे उठाये पाकिस्तान जिन्दाबाद और हिन्दुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाते है। यहाँ तक कि वे थाने-पुलिस चौकियों को जलाने या आतंकवादियों को सुरक्षा बलों से मुठभेड़ के दौरान बचाने को पत्थर फेंकते मारे भी जाते हैं। इतने पर भी बहुत कम लोग ही इनकी निन्दा करने को आगे आते हैं।
हम सभी इक्कीसवीं सदी में रह रहे हैं, किन्तु अपने स्वार्थों से वशीभूत होकर कभी धार्मिक, जातिवाद तो कभी राजनीतिक कारणों से देश और समाज हित की परवाह न कर ऐसे ढोंगी, पाखण्डी, कुकर्मी, भ्रष्टाचारियों के प्रति सहानुभूति ही नहीं,उनके लिए लड़ने-मरने पर उतारू हो जाते हैं। अगर इस प्रवृत्ति को न बदला गया,तो उस दशा में लोगों की न तो धर्म में आस्था बचेगी और न लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही।
सम्पर्क - डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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