रोहिंग्याओं को लेकर क्यों संशकित है भारत?


डॉ.बचन सिंह सिकरवार
पिछले कई सालों से देश में म्यांमार से निष्कासित रोहिंग्या मुसलमानों की देश में लगातार बढ़ती संख्या से राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर जो गम्भीर खतरा उत्पन्न होने की आशंका व्यक्त की जा रही है, वह अकारण नहीं, बल्कि अनुभवजन्य है। देश के कई शहरों विशेष रूप से कश्मीर घाटी में पाकिस्तान समर्थक हुर्रियत कान्फेस समेत यहाँ के विभिन्न अलगाववादी और इस्लामिक संगठनों के साझा मंच ‘मुत्ताहिदा मजलिस-उलेमा‘ के झण्डे तले गत 8 अगस्त, को ‘नमाज-ए- जुम्मा‘ के बाद रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थन में कश्मीर में सॉलिडेरिटी डे‘ मनाते हुए देशविरोधी नारेबाजी के साथ हिंसक प्रदर्शन किया, जिसमें पुलिस उपाधीक्षक समेत कई और सिपाहियों की पिटाई के साथ-साथ वाहनों को जला दिया।वैसे ये उनके समर्थन पहले से ही धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। पहले भी रोहिंग्याओं को लेकर देश के कुछ हिस्सों में उग्र प्रदर्शन होते रहे हैं। इस्लाम के नाम पर आतंकवादी संगठन इनमें अपनी पैठ आसानी से बना सकते हैं,इसे लेकर गृहमंत्रालय ने सभी राज्यों को एडवाइजरी जारी की है कि वे अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या की पहचान कर उन्हें वापस भेजंे, क्यों कि वे ये लोग राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हैं। इस कारण दो रोहिगा मुसलमान शरणार्थियों ने प्रशान्त भूषण के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर केन्द्र सरकार के उन्हें वापस भेजे जाने के आदेश पर रोक लगाने के साथ-साथ स्वयं को शरणार्थी बताते हुए वापस भेजने को अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार नियमों का उल्लंघन बताया की माँग की है। इस याचिका के विरोध में राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन के प्रणेता के.एन.गोविन्दाचार्य तथा चैन्नई के एक गैर सरकारी संगठन ‘इण्डिक कलेक्टिव ‘ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है जिसमें उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों को राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा बताते हुए उन्हें वापस भेजने की माँग की है। इधर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति के प्रमुख जैद राएद अल-हुसैन ने कहा कि रोहिंग्या मुसलमानों को अत्याचार सहने के लिए म्यांमार भेजकर भारत अन्तर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करेगा। उधर ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामनेई ने म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की निन्दा की है। उनका कहना है कि म्यांमार की स्टेट काउन्सलर आंग सन सू को दिये नोबेल शान्ति पुरस्कार की मौत है। अब जहाँ अपने देश के कुछ मुसलमान हममजहबी होने की वजह से, तो दूसरे मानवीय आधार पर रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने के पक्ष में हैं,वहीं पूर्व सैन्य अधिकारी सैयद अता हसनन का विचार है कि रोहिंग्या मुसलमान भारत की सुरक्षा के लिए गम्भीर खतरा बन सकते हैं,क्योंकि राज्यविहीन लोग आसानी से कट्टरपन्थी विचारधारा के प्रभाव में आ सकते हैं। छद्म युद्ध का उपयोगी तंत्र बन जाते हैं। केन्द्रीय गृहराज्यमंत्री किरण रिजिजू रोहिंग्या मुसलमानों को अवैध शरणार्थी मानते हैं।फिर देशभर में इस्लामी कट्टरपंथियों की दहशतगर्दी की वारदातों को देखते हुए केन्द्र सरकार रोहिंग्याओं को अपने शरण देकर अब कोई नया खतरा मोल नहीं लेना चाहती है।
वर्तमान में देश के कई राज्यों यथा- जम्मू, हैदराबाद, दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में कोई 40हजार रोहिंग्या शरणार्थी रह रहे हैं इनमें से कई हजार शरणार्थी जम्मू जैसे संवेदनशील इलाके में हैं। कुछ सूत्रों के अनुसार इन्हें यहाँ हिन्दुओं की बहुलता देखते हुए राज्य सरकार ने जानबूझकर बसाया है।
आजकल म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमानों के बड़ी सख्या में पलायन की शुरुआत गत 25 अगस्त को मुस्लिम आतंकवादी संगठन‘ अराकन रोहिंग्या मुक्ति सेना‘(ए.आर.एस.ए.) के सैकड़ों आतंकवादियों द्वारा 30 पुलिस चौकियों और दर्जनों सरकारी अधिकारियों के कार्यालयों पर हमला किये जाने से हुई है। उसके बाद सैनिकों ने अन्धाधुन्ध गोलीबारी कर आतंक फैलाया। फिर हिंसा पर आमादा भीड़ ने लोगों के घरों में आग लगाने के साथ लूटपाट शुरू कर दी। परिणामतः कोई तीन लाख से अधिक रोहिंग्या अपनी जान बचाकर, भूखे-प्यासे तमाम कष्ट-कठिनाइयों झेलते पैदल और नौकाओं के जरिए बांग्लादेश के सीमा में दाखिल हुए हैं। इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है,जिन्हें मानवीय आधार पर हर तरह के सहयोग-सहायता और शरण दिये जाने की अत्यन्त आवश्यकता है, पर रोहिंग्याओं के संगठन ए.आर.एस.ए. द्वारा अपने ही देश म्यांमार के विरुद्ध हथियार उठाने और उसके मुस्लिम जेहादी संगठनों से सम्बन्ध होने के पड़ोसी मुस्लिम मुल्क मलेशिया और इण्डोनेशिया भी अपने यहाँ पनाह नहीं दे रहे हैं।
बौद्ध धर्म बहुल पड़ोसी देश म्यांमार (बर्मा) के रखाइन प्रान्त में रोहिंग्या मुसलमानों की जनसंख्या 10 लाख है, जो इस देश की कुल आबादी का 4.3प्रतिशत है। ये लोग वर्तमान में वहाँ जर्जर शिविरों में रह रहे हैं। जहाँ तक ‘रोहिंग्या मुसलमानों‘के इतिहास का प्रश्न है तो इन्हें भारत उपमहाद्वीप पर काबिज तत्कालीन अँग्रेज सरकार ने यहाँ बसाया था। म्यांमार (बर्मा )के अराकान के उपजाऊ और कम आबादी इलाके जिसे वर्तमान में रखाइन कहा जाता है।इसमें खेती कराने के लिए वे इन्हें बंगाल से लेकर गए थे। रोहिंग्या शब्द का सबसे पहले प्रयोग सन् 1799 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने किया, जिन्हें वह ‘अराकानीस‘ भी कहते थे। इस तरह म्यांमार के रोहिंग्या अल्पसंख्यक समुदाय से है। सन् 1948 में म्यांमार के स्वतंत्र होने के बाद से रोहिंग्याओं ने अपनी नागरिकता के लिए माँग करनी शुरू कर दी।लेकिन उन्हें उत्पीड़न और उपेक्षा के सिवाय कुछ नहीं मिला। इस बीच कई शासक बदले पर किसी ने भी इनकी नागरिकता देने की माँग को स्वीकार नहीं किया। फलतः जहाँ कुछ रोहिंग्या पलायन कर पाकिस्तान, बांग्लादेश, भारत समेत दूसरे देशों में बसने लगे,तो कुछ ने अपनी माँग मनवाने को हिंसा का रास्ता अपनाया। इसके पश्चात् म्यांमार ने सन् 1982 के ‘नागरिक कानून‘ के तहत 135 जातियों में से इन्हें अपना नागरिक नहीं माना है। इन्हें अब ‘बंगाली‘ कहा जाता है। इस देश की सरकार रोहिंग्याओं को ‘बांग्लादेशी प्रवासी‘ मानती है। यहाँ ‘रोहिंग्या‘शब्द पर प्रतिबन्ध है। वह इन्हें अपना नागरिक नहीं मानती। इनके विपरीत म्यांमार में कोई डेढ़ सौ साल पहले चीन से आकर बसे मुसलमानों से सरकार अपना नागरिक मानती है जिन्हें ‘पंथय मुस्लिम‘ कहा जाता है। यह मूलतः कारोबारी समुदाय है,इनका म्यांमार की प्रगति बहुत अधिक योगदान है। इस समुदाय के अपने शिक्षण एवं धार्मिक स्थल भी हैं। म्यांमार सरकार को इनसे शिकायत नहीं है,किन्तु रोहिंग्याओं से उनमें से कुछ की हिंसक गतिविधियों से उसे शिकायत है। इसका खामियाजा सभी रोहिंग्याओं को उठाना पड़ रहा है।
अब जहाँ दुनियाभर के इस्लामिक मुल्क और मुसलमान रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ म्यांमार सरकार द्वारा की जा रही सैन्य कार्रवाई की निन्दा/आलोचना कर रहे हैं और उनसे हमदर्दी भी जता रहे हैं,वहीं कुछ मानवाधिकार संगठन भी भारत के उन्हें गैरकानूनी शरणार्थी बताते हुए निष्कासित करने के कदम को गलत बता रहे हैं। लेकिन अफसोस की बात यह है कि इनमें से कोई भी इस्लामिक मुल्क उन्हें अपनाने को तैयार नहीं है।ऐसे में भारत के लिए मानवीयता के आधार पर रोहिंग्याओं को शरण देकर सम्भावित खतरे से बचने में गलत क्या है? उसे बांग्लादेश की मदद करके ही क्या हासिल हुआ है? कमोबेश यही स्थिति कई यूरोपी देशों की है जहाँ के अपने ही नागरिकों ने कट्टरपंथी मजहबी विचारधारा के कारण अपने मुल्क के लोगों का खून बहाने से गुरेज नहीं किया।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरार-282003 मो.नम्बर-9411684054

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