अब बेहद जरूरी है चीन से सतर्क रहना


डॉ बचन सिंह सिकरवार  
अन्ततः कोई पौने तीन माह के बाद भारत के रुख में परिवर्तन न देख चीन को भूटान के डोकलाम इलाके पर सड़क बनाने की जिद छोड़कर विभिन्न कारणों से अपनी सैनिक वापस बुलाने पर मजबूर होना पड़ा है। निश्चय ही यह भारत की बहुत बड़ी कूटनीति जीत है। इस घटना से भारत ने अपना खोया हुआ आत्मसम्मान फिर से पाया है, जिसे उसने सन् 1962में चीन के अचानक हमले में मिली पराजय में गंवाया था। अब भारत ने चीन को जताता दिया कि वह उससे हर तरह के मुकाबले को तैयार है। इस विवाद की सबसे बड़ी बात यह रही है कि अपने को महाबली बताने वाला चीन ने भारत पर अपनी सीमा का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए स्वयं को पीड़ित बताने की कोशिश की।
 डोकलाम विवाद से जहाँ चीन को अपने को एशिया का एकमात्र दादा दर्शाने की कोशिश को गहरा आघात लगा है, वहीं उसे महाशक्तिशाली समझ का उससे भयभीत पड़ोसियों का हौसला बढ़ेगा।उनका यह भ्रम भी टूट गया कि भारत चीन के हमले की दशा में उनकी रक्षा नहीं कर पाएगा। इसलिए अपनी सुरक्षा के लिए न चाहते हुए चीन से बेहतर रिश्ता रखना उनकी मजबूरी है। वैसे  इस घटना से उसके परम सहयोगी पाकिस्तान को सबसे ज्यादा निराशा हुई होगी, जो उसके दम पर भारत को हराने-थकाने के ख्वाब  देख रहा था। पर चीनियों की फितरत और उनके इतिहास को देखते हुए चीन के इस कदम पर भारत को भी बहुत खुशी मानने की भी जरूरत नहीं है, क्यों कि चीनी डेªगन(अजदह)के कहे और करे पर भरोसा नहीं किया जा सकता,वह  अपनी मांद से निकल कर कब फूँकरने और डसने लगे कहा नहीं जा सकता। इसकी वजह यह है कि चीन का पड़ोसी देशों पर मामूली विवादों में हमला करने, उनके सीमा में घुसना, उनकी जमीन हथियाना, अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों को नकारना, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसलों को न मानने का लम्बा इतिहास रहा है। वह अपने मनगढ़न्त इतिहास के सहारे पड़ोसी मुल्कों की जमीन और पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा जाता रहा है तो ‘सिल्क रुट‘ और दूसरे देशों में बन्दरगाह स्थापित करने की आड़ में दुनियाभर में घुसपैठ की फिराक में है।
    अब भारत को समझना चाहिए कि  डोकलाम के मुद्दे पर चीन की दुनियाभर में तो भारी किरकिरी हुई ही है,इसके साथ ही राष्ट्रपति शी चिनफिंग की छवि पर  अपनी पार्टी और देश के लोगों में भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा होगा,जिसे सहन कर पाना उनके लिए सहज नहीं है। इस कारण वह बदला लेने को भारत के खिलाफ कुछ भी कर गुजर सकते हैं। इसलिए भारत को अब  उससे पहले की तुलना में हर तरह से ज्यादा सतर्क-सावधान  रहने के बेहद जरूरत है।उसे समय रहते चीन से लगी सीमा पर सड़कें और दूसरी सुविधाएँ विकसित कर लेनी चाहिए,ताकि सेना और रसद पहुँचाने में बाधा न आए। इसके साथ उसे अपने बढ़ते व्यापार घाटे को पाटने के साथ-साथ उस पर किसी भी तरह की निर्भरता नहीं रखनी चाहिए। भारत का विश्व मंचों पर  किसी भी मुद्दे पर चीन से सहयोग पाने की अपेक्षा रखने का भी कोई मतलब नहीं है।
वैसे डोकलाम विवाद पर भारत की इस सफलता के पीछे उसका चीन के हर पहलू का बेहतर आकलन रहा है। भारत जानता है कि चीन सैन्य शक्ति और आर्थिक मामले में उससे भले ही कुछ आगे हैं, लेकिन चीन की भी कई  विवशताएँ हैं। इनमें आर्थिक हित और आन्तरिक अशान्ति भी सम्मिलित है,जहाँ उसके बड़ी संख्या में सुरक्षा बल तैनात हैं। भारत से जंग करने में चीन का ही ज्यादा नुकसान होता । उसका न केवल भारत से अरबों रुपया का व्यापार चौपट हो जाता, वरन् उसका दुनिया भर में ‘वन बेल्ट वन रोड‘(आबोर )के जरिए दुनिया में आर्थिक साम्राज्य कायम करने का सपना भी बिखर जाता। भारत के इस परियोजना में सहयोग करने से इन्कार भर से ही कुछ मुल्कों ने इसमें निवेश करने से अपने हाथ खींच लिए हैं। जंग की स्थिति में कुछ दूसरे देश भी चीन की इस परियोजना से पूरी तरह किनारा ही कर लेते। फिर भारत अब सन् 1962 का नहीं, 2017 का भारत है जिसे अब तेजी से बढ़ती अर्थ व्यवस्था के लिए जाना जा रहा है। भारत यह भी जानता है कि युद्ध केवल हथियारों से नहीं लड़े जाते,उसके लिए जिस तरह के सैन्य तैयारियाँ, अस्त्र-शस्त्र, उसके सैनिकों के मनोबल(हौसले), जंग के अनुभव, विषम परिस्थितियों को झेलने की उनकी क्षमता,बलिदान की भावना में कोई कमी नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि  पूरा देश चीन के खिलाफ एकजुट है,वह उससे न केवल सन् 1962 के विश्वासघात का बदला लेना चाहता है,बल्कि समय -समय पर लद्दाख, उत्तराखण्ड, अरुणाचल में उसके सैनिकों की घुसपैठ और भूमि पर उसके दावों को लेकर कड़ा सबक भी सिखाना चाहता है।
अब गत 8जून को चीन सैनिकों ने भारत और भूटान के सम्मिलन स्थल ‘डोका ला‘ पर भारतीय सेना के दो बंकरों का ढहा कर विवाद की शुरुआत की। भूटानी सेना का प्रतिरोध विफल होने पर 18जून को भारतीय सेना उसे सहयोग देने को पहुँची और सड़क निर्माण को रोका। चीन ‘डोकलाम‘ से ‘डोका ला‘ तक सड़क बनाना चाहता है। इन दोनों से लगी घाटी को ‘चुम्बी घाटी‘ कहा जाता है। इस घाटी में चीनी सेना की गतिविधियों से भारत की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती, क्यों कि इसके ठीक नीचे ‘सिलीगुड़ी गलियारा‘ है, जो पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से जोड़ता है। इस घाटी में नई सड़क के निर्माण से चीन पूर्वात्तर के राज्यों को समूचे भारत से अलग-थलग करने में सफल हो जाता। डोकालाम क्षेत्र भूटान का है, जिसे चीन अपना बताता है। इसे लेकर चीन और भूटान के मध्य सन् 1988 में समझौता हो चुका है जिसके अनुसार इस क्षेत्र में यथास्थिति बनी रहेगी।
इस बार  चीन ने भारत को हर तरह से डराने-धमकाने की पूरी कोशिश की। उसने भारत के खिलाफ अपने सरकारी समाचार पत्रों से लेकर दूसरे जनसंचार माध्यामों के जरिए भारी दुष्प्रचार किया, जिसमें अशिष्टता की सारी सीमाएँ लांघ दीं। उसे सन् 1962 की हार की बार-बार याद दिलायी। अपनी सैन्य शाक्ति का बढ़चढ़ कर बखान करते हुए अपने आगे भारत की सैन्य शक्ति को बहुत कमजोर बताया। लद्दाख और उत्तराखण्ड में घुसने की धमकी ही नहीं दी,बल्कि इस दौरान उसके सैनिकों ने इन राज्यों में घुसपैठ भी की। भारत को डराने 29जून को नाथू ला के पास 35 टन वजनी सैन्य टैंक का परीक्षण किया। इसके अलावा दूसरा युद्धाभ्यास कर दहशत फैलायी। यहाँ तक चीन ने भारत को बर्बाद करने का डर दिखाया, पर  उसके इन हथकण्डे का भारत पर कोई असर नहीं पड़ा।  हाँ, इस बीच बिना कोई शोर मचाये भारत ने भी अमरीका और जापान के साथ दक्षिण चीन सागर में नौसैनिक युद्धाम्यास किया,जिससे चीन आतंकित हो गया। लेकिन इस दौरान भारत इस विवाद को शान्तिपूर्ण तरीके से बातचीत से सुलझाने की बात ही करता रहा है जिसका परोक्ष रूप से दुनिया के कई देशों ने समर्थन किया। इसके विपरीत चीन अलग-थलग पड़ गया। जहाँ अमरीकी रक्षा विशेषज्ञ ने डोकलाम विवाद में दृढ़ता से अपना पक्ष रखने के लिए भारत की प्रशंसा की,वहीं जापान ने खुले तौर पर भारत का पक्ष लेते हुए कहा कि चीन डोकलाम की वास्तविक स्थिति को एकतरफा बदलने की कोशिश का रहा है,जो गलत है। 
   यह सही है कि डोकलाम विवाद में चीन के विरुद्ध सीना तान कर  खड़े रहने से भारत को एशिया और विश्वभर के देशों में एक नई पहचान का मिली है, जिसे बनाये रखने बहुत आवश्यक है,क्यों कि वर्तमान सरकार ने जिस संयम, धैर्य,कूटनीति का परिचय देते हुए चीनी सेना को डोकलाम से वापस लौटने को विवश किया है,उसकी उम्मीद अपने देश के कुछ वामपंथियों और उनके पिछलग्गुओं को भी नहीं थी। अब जरूरत चीन डेªगन की अगली चाल पर नजर रखने की है,ताकि अपनी कमाई इस साख को बरकरार रखा जा सके। 
सम्पर्क- डॉ. बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.न.9411684054

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