अब आतंकवाद के रंग पर चुप्पी क्यों ?
डॉ. बचन
सिंह सिकरवार
हाल में
बिहार की राजधानी
पटना में आयोजित
गुजरात के मुख्यमंत्री
नरेन्द्र मोदी की
जनसभा और उससे
पहले बोध गया
के बम धमाकों
में ‘इण्डियन
मुजाहिदीन'(आइ.एम.)
का हाथ बताया
जा रहा है।
इसके साथ ही
अब ‘केन्द्रीय खुफिया एजेन्सी
'(इण्टेलीजेन्स
ब्यूरो) के अनुसार
झारखण्ड और बिहार
में इण्डियन मुजाहिदीन
के १८६सदस्य होने
की बात कही
हैं जो अपने
आका के एक
इशारे पर कोहराम
मचा सकते हैं।
इनके साथ अल्पसंख्यक
वर्ग की एक
सौ के लगभग
युवतियाँ भी जुड़ी
हुई हैं। फिर
भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ(आर.एस.एस.), उसके
अनुषांगिक संगठनों समेत
भाजपा पर ‘साम्प्रदायिक' होने
का दोषारोपण करते
हुए रात-दिन ‘भगवा आतंकवाद'का ढिंढोरा
पीटने वालों की
अब बोलती बन्द
क्यों हैं ? वे इस
आतंकवाद के रंग
पर क्यों कुछ
नहीं बोलते? इससे
स्पष्ट है कि
सशाई बयान करने
का उनका कभी
कोई इरादा ही
नहीं था या
फिर हकीकत बयां
करने की उनकी
औकात नहीं है।
उनकी सियासत का
सारा का सारा
दारोमदार ही कथित
अल्पसंख्यकों के अन्ध
तुष्टीकरण पर टिका
है, जबकि
इसी तुष्टीकरण के
कारण देश एक
बड़े विभाजन और
लाखों लोगों का
खून बहाने से
लेकर घर-द्वार ,बहू-बेटियों के
बलात्कार, अपहरण
का दंश झेल
चुका है। यहाँ
लोगों ने आपसी
फूट, अदूरदर्च्चिता
, छोटे-छोटे
स्वार्थों के कारण
सैकड़ों साल की
गुलामी और अपनी
बर्बादी भी
सही है। फिर
भी यहाँ के
लोगों ने उससे
कोई सबक नहीं
लिया। कमोबेश रूप
में देश के
लगभग सभी राजनीतिक
दल सत्ता पाने
और उस पर
बने रहने के
लिए बड़े से
बड़ा राष्ट्रघात करने
और सहने को
हमेशा तैयार रहते
हैं। सत्ता के
भूखे इन नेताओं
को देशभर में
फैले राष्ट्रद्रोही अलगाववादियों
और आतंकवादियों की
बेजा हरकतों से
कोई सरोकार नहीं
है। वे चाहे
राष्ट्रीय ध्वज ,राष्ट्रगान ,राष्ट्रगीत समेत
दूसरे राष्ट्रीय प्रतीकों
का खुले आम
कश्मीर से संसद
तक अपमान करें।
सारे आम ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद', ‘हिन्दुस्तान मुर्दाबाद' के
साथ राष्ट्रीय ध्वजा
तिरंगा जलायें ,पाकिस्तानी झण्डा
फहरायें। बगैर किसी
उकसावे के सुरक्षा
बलों तथा सेना
पर पत्थरबाजी करें
या गोलियाँ बरसायें।
उन पर जलील
से जलील , औछी , झूठी तोहमतें
लगायें , लेकिन
मजाल है कि
धर्मनिरपेक्षता की ठेकेदारी
कर रहे इन
नेताओं की जुबान
से उनकी मुखाफत
में एक भी
अल्फाज निकले। आतंकवाद
के रंग का
बार-बार बखान करने
वालों को आधा
दर्जन से ज्यादा
राज्यों में आतंक
फैलाये साम्यवादियों के
मुखौटे नक्सलियोंंंं के
आतंक का रंग
दिखायी नहीं देता।
देश के उत्तरी-पूर्वी
राज्यों के अलगाववादियों
और आतंकवादियों के
मजहब का रंग
नजर नहीं आता।
कश्मीर के अलगाववादियों-आतंकवादियों
की मजहबी हिंसा
और आतंक का
रंग नजर नहीं
आता। कश्मीर घाटी
के विस्थापित कश्मीरी
पण्डितों की पीड़ा
उन्हें सुनायी-दिखायी नहीं
देती, उन्हें
तो बस ‘मालेगाँव बमकाण्ड
,’समझौता
एक्सप्रेस विस्फोट' के
बम काण्ड में
संलिप्त बताये जा
रहे चन्द हिन्दुओं
की बिना पर
‘भगवा
आतंक'का
भूत हर जगह
और हरदम दिखायी
देता, जिनके
खिलाफ भी अभी
तक इन प्रकरणों
में हाथ होने
के सुबूत नहीं
मिले हैं। इसके
विपरीत कुछ समय
पहले आतंकवादी सरगना
यासीन भटकल के
साथियों की गिरफ्तारी
में बिहार की
पुलिस अनाकानी कर
रही थी। जम्मू-कश्मीर
में पाकिस्तानी सेना
के संघर्ष विराम
के उल्लंघन के
दौरान गोलीबारी में
शहीद जवानों के
शवोंंं के हवाई
अड्डे पर उतरते
और अन्त्येष्टि के
समय बिहार के
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
समेत कोई भी
मन्त्री उन्हें श्रद्धांजलि
देने नहीं पहुँचा।
इसके विपरीत बिहार
के एक मंत्री
का बयान था
कि लोग पैसों
के लिए मरने
को ही सेना
में भर्ती होते
हैं। पंथ निरपेक्षता
के इन तथाकथित
पैरोकार नीतीश कुमार
सरीखे नेताओं को
हमेशा यह डर
सताता रहता है
कि पाकिस्तान और
आतंकवादियों के विरोध
से कहीं उन्हें
मुसलमान अपना विरोधी
न समझ लें।
इन नेताओं का
यह कदाचारण अल्पसंख्यक
वर्ग का भी
अपमान है जो
उन सभी की
राष्ट्र निष्ठा तथा
राष्ट्र भक्ति पर
सन्देह जताते हैं।
वैसे भी जिन्हें
‘भगवा
रंग' त्याग
और बलिदान' के
पर्याय के स्थान
पर आतंकवाद का
प्रतीक दिखायी देता
है। वे कभी सन् ७११
में मुहम्मद बिन
कासिम के सिन्ध
पर हमले से
लेकर सन् १०२६
में मुहम्मद गजनवी, सन्
११९१ के मुहम्मद
गौरी , सन्
१२२१ में चंगेज
खान ,सन्
१३९८ में तैमूर
लंग ,सन्
१५१०में पुर्तगालियों , सन् १५२६
में बाबर ,सन् १७३९
में नादिरशाह, सन्
१७६१ में अहमदशाह
अब्दाली , फ्रान्ससियों
,सन्
१८५७ के प्रथम
स्वतंत्रता संग्राम से
पहले और बाद
में अँग्रेजों , सन् १९४७में
कश्मीर पर कबाइलियों
की आड़ में
आक्रान्ता पाकिस्तानियों, सन्
१९६२ के चीनियों, फिर
पाकिस्तानियों के ही
सन् १९६५, सन्
१९७१, सन्
१९९९ के कारगिल
हमले ,२००१
में संसद पर
, २६नवम्बर, २००८
में मुम्बई पर
हमले के आतंक
के रंग का
भूले से भी
कभी उल्लेख नहीं
करते। अगर याद
करते हैं तो
सन् १९९१के अयोध्या
के विवादित ढाँचे
के विध्वंस को।
इससे अल्पसंख्यक वर्ग
की भावना जरूर
आहत हुई होंगी
,जबकि यह ढाँचा
हिन्दुओं के आराध्य
देव श्रीराम की
जन्मभूमि मन्दिर को
ढहा कर बाबर
के सेनापति मीर
बकी ने बनवाया
था और वहाँ
अनेक वर्षों से
कोई मजहबी कार्य
नहीं किया जा
रहा था। ध्वंस
के दौरान अयोध्या
में किसी भी
अल्पसंख्यक को छुआ
तक नहीं गया
था। फिर भी
उसका बदला पड़ोसी
मुल्क पाकिस्तान से
लेकर बांग्लादेश के
अल्पसंख्यक हिन्दुओं की
बड़ी संख्या में
जानें लेने से
लेकर उनकी बहू-बेटियों
से बलात्कार करके
लिया। उनके हजारों
मन्दिरों को केवल
अपवित्र ही नहीं
किया, ढहाया भी
गया ,पर
किसी धर्मनिरपेक्ष के
मुँह से एक
बोल नहीं फूटा।
बांग्लादेश की लेखिका
तस्लीमा नसरीन ने
जब अपने मजहब
के कट्टरपन्थियों के
जुल्मों का कशा
चिट्टा अपनी पुस्तक’लज्जा'में खोला
,तो
इससे कुपित उनके
मुल्क के कट्टरपन्थियों
ने न केवल उन्हें
देश छोड़ने को
मजबूर कर दिया, बल्कि
भारत के साम्यवादियों
ने पच्च्िचम बंगाल
में, तो
काँग्रेसियों ने दूसरे
राज्यों उन्हें रहने
नहीं दिया। यहाँ
तक कि भाजपा
शासित राजस्थान की
तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुन्धरा
राजे ने उन्हें
रात में ही
जयपुर के हवाई
अड्डे से वापस
दिल्ली भेज दिया।
इस अयोध्या की
घटना के प्रतिच्चोध
लेने के लिए
मुम्बई में दिसम्बर-जनवरी
सन्१९९१-९२ भड़के साम्प्रदायिक
दंगों तथा बम
विस्फोटों में १.७८८लोगों
की जानें गईं
तथा करोड़ों की
सम्पत्ति नष्ट हुई।
हिन्दुओं को अपने
ही देश में
धार्मिक कार्य करने
में तरह-तरह की
बाधाएँ ही नहीं, उन्हें
फब्तियाँ सुनने, धर्मान्तरण
होते देखने ,विधर्मियों द्वारा
अपनी बेटियों को
बहला-फुसलाने से लेकर जोर- जबरदस्ती
भगा ले जाने
, गौवंश
का आये दिन
वध होते देखने
को मजबूर होना
पड़ता है। अब
सवाल यह है
कि जिन्हें भगवा
आतंकवाद नजर आता
है, उन्हें
दूसरे मजहबों के
आतंक के रंग
क्यों नहीं दिखायी
देते। इसकी वजह
कोई और नहीं
,कथित
बहुसंख्यक हिन्दू हैं
जो अपने-अपने निहित
स्वार्थों के कारण
पीड़ित होने पर
भी अपनी पीड़ा किसी को
नहीं बता पाते
, जो
कहते कि देश
के संसाधनों पर
पहला हक अल्पसंख्यकों
का है ,तो कोई
आतंकवादी गतिविधियों के
आरोपियों को बेकसूर
बताकर उन्हें छुड़ाने
पर आमादा है।
कोई संविधान को
धता बता कर
उन्हें आरक्षण देने
की घोषणा करता
फिरता है। ऐसे
नेताओं को देश
के सभी धर्मों
के विभिन्न वर्गों
की गरीबी, अच्चिक्षा, लाचारी, उनके
साथ होने वाले
तरह-तरह के अन्याय-अत्याचार
क्यों दिखायी नहीं
पड़ते ?इसका
कारण जातिवाद, क्षेत्रवाद
,भाषा
के नाम पर
बँटा हिन्दू है
जो निजी स्वार्थों
के चलते चुनावों
के समय इन
नेताओं के असली
चेहरे को पहचानते
हुए भी उन्हें
ही अपना नेता
चुनने की गलती
करता रहा है।ं
कब आएगा ? वह वक्त
, जब
क्षुद्र स्वार्थों और
सत्ता पाने के
लिए देश एकता, अखण्डता
,स्वतंत्रता
के इन दुच्च्मनों
को सबक सिखाने
को देश के
सभी मजहबों के
लोग आगे आएँगे।
-सम्पर्क-डॉ.
बचन सिंह सिकरवार
६३ ब,गाँधी
नगर, आगरा-२८२००३
मो.नम्बर-९४११६८४०५४
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