बांग्लादेश में बेगमों की जंग का खामियाजा भुगतता हिन्दू
डॉ.बचन
सिंह सिकरवार
बांग्लादेश में
अशान्ति, बन्द
,हड़ताल
,उपद्रव, आगजनी
, हिंसा
,बहिष्कार के बीच
हाल में हुए
दसवें आम चुनाव
में एकतरफा भारी
जीत हासिल कर
अवामी लीग की
नेता शेख हसीन
वाजेद ने तीसरी
बार प्रधानमंत्री बन
करं एक नया
इतिहास जरूर रचा
है लेकिन इसकी
बहुत बड़ी कीमत
जनसाधारण विशेष रूप
से यहाँ के
८०लाख के करीब
अल्पसंख्यक हिन्दुओं तथा
उदारवादी मुसलमानों को
चुकानी पड़ी है।
उन्हें अपने घरों
,दुकानों, पूजा
स्थलों का तबाह
कराने से लेकर
मारपीट तथा जानें
भी गंवानी पड़ी
हैं। यहाँ के
अनेक जिलों के
हिन्दू बड़ी सख्या
में अपने घर-द्वार
छोड़ कर राहत
च्चिविरों में शरण
लेने को मजबूर
होना पड़ा है
,जिसे
पंथनिरपेक्ष समझी जाने
वाली लीग का
समर्थक समझा जाता
है। इससे स्थिति
से नाराज पूर्व
रेलमंत्री सुरनजीत सेनगुप्ता
ने अपनी ही
सरकार पर हिन्दुओं
की सुरक्षा में
विफल रहने का
आरोप लगाया है।
उनका कहना है
कि यदि सरकार
हिन्दुओं पर हमला
करने वालों के
खिलाफ त्वरित कार्रवाई
करती ,तो
कई जगह लोगों
को बचाया जा
सकता था।
इस देश
के संविधान के
अनुसार स्वतंत्र एवं
निष्पक्ष आम चुनाव
कराने के लिए
गैरदलीय कार्यवाहक सरकार
के गठन प्रावधान
है ,किन्तु
प्रधानमंत्री शेख हसीन
वाजेद ने संविधान
में संच्चोधन कर
इस प्रावधान को
बदल दिया और
इसके स्थान पर
सर्वदलीय सरकार की
देखरेख में आम
चुनाव कराने की
व्यवस्था कर दी।
इसका मुख्य विपक्षी
दल ‘बांग्लादेश
नेशनललिस्ट पार्टी (बीएनपी ) की नेता
पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा
जिया और उनकी
पार्टी की अगुवाई
वाले १८राजनीतिक दलों
के गठबन्धन ने
घोर विरोध किया, पर
प्रधानमंत्री वाजेद ने
अपने किये पर
डाटी रहीं। इसके
बाद बीएनपी तथा
उसके सहयोगी १८दलों
ने भी चुनाव
का बहिष्कार करने
का ऐलान कर
दिया।
नतीजा
यह है कि
गत नवम्बर माह
से उग्र प्रदर्च्चनों, बन्द
, हड़ताल
,उपद्रवों, आन्दोलनों
का दौर शुरू
हो गया। इस
बीच देश में
राजनीतिक अस्थिरता बनी
रही है। हड़तालों
के कारण बड़ी
संख्या में मजदूर
बेरोजगार हो गए
हैं तथा अधिकतर
कल-कारखानों में उत्पादन
नहीं हो रहा
है। दुकानें बन्द
रहने तथा यातायात
व्यवस्था में बाधा
बनी रही है।
इससे खाने-पीने की
वस्तुओं का अभाव
होने से महँगाई
बेतहाशा बढ़ी हुई
है। देश में
जनजीवन अस्त-व्यस्त तथा
हर तरफ असुरक्षा
का माहौल है।
यहाँ भड़की हिंसा
में १४० से
अधिक लोग मारे
जा चुके हैैंं।
मानवाधिकारों के उल्लंघन
की घटनाएँ बहुत
ज्यादा बड़ी हैं।
हालाँकि इसके पीछे
सबसे बड़ा कारण
सन् १९७१ के
स्वतन्त्रता संग्राम में
नरसंहार के दोषियों
को दण्डित कराने
के लिए गठित
अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संख्या
एमनेस्टी द्वारा के
पाकिस्तान समर्थक तथा
कट्टर पन्थी इस्लामिक
संगठन ‘ जमात-ए-इस्लामी
' के
वरिष्ठ नेता अब्दुल
कादिर मुल्ला को
गत १३ दिसम्बर
को फाँसी दिया
जाना भी रहा
है। इसी संस्था
ने ‘जमात-
ए-इस्लामी' पर
चुनाव लड़ने पर
पाबन्दी लगा दी
है इस के
नेताओं और समर्थकों
पर १९७१ स्वतन्त्रता
संग्राम के दौरान
पाकिस्तानी सैनिकों की
मदद से देश
के लाखों लोगों
की हत्या, बलात्कार
,लूटमार
किये जाने के
आरोप हैं। इनके
द्वारा मारे और
सताये गए लोगों
ज्यादातर हिन्दू और
बाकी उदारवादी तथा
राष्ट्रवादी मुसलमान ही
थे । दुर्भाग्य की
बात यह है
कि इसके बावजूद इन कट्टरपन्थियों
और इन्सानियत के
दुच्च्मनों के
इस दल क
समर्थन पर दो
बार खालिदा जिया
की पार्टी का
सहयोगी बनाकर अपनी
सरकार में भी
शामिल कर चुकी
है। वे कट्टरपन्थी
जमात -ए-इस्लामी
के समर्थकों के
कन्धे पर सवार
होकर अपनी जानी
दुच्च्मन शेख हसीन
वाजेद को सत्ता
में आने से
रोकना चाहती थीं
और अब वे
उन्हें सत्ता से
बेदखल करने में
जुटी हैं। खालिदा
जिया पर तो
शेख हसीना वाजेद
को जान से
मरवाने की कोच्चिश
का भी आरोप
है जब हसीना
सत्ता में नहीं
थीं।
इस बार
चुनाव में प्रमुख
विपक्षी दल बीएनपी
तथा उसकी सहयोगी
१८ दलों के
चुनाव में भाग
न लेने से
बांग्लादेश की ३५०सदस्यी
जातीय संसद के
३००स्थानों पर हुए
चुनावों में बांग्लादेश
अवामी लीग के
१५३ उम्मीदवार निर्विरोध
जीत गए। बाकी
१४७ स्थानों पर
हुए चुनाव में
भी उसे १०७ सीटों पर
सफलता मिली है
और १२ सीटों
अन्य दलों ने
जीती हैं। यहाँ
५०स्थान महिलाओं के
लिए आरक्षित हैं।
इसके अलावा पूर्व
राष्ट्रपति हुसैन मोहम्मद
इरशाद की जातीय
पार्टी के १६
प्रत्याच्चियों को कामयाबी
मिली है जो
इस मुल्क की
तीसरी बड़+ी पार्टी
है। इसने भी
अपने बार-बार रुख
बदलने से राजनीतिक
अस्थिरता को बढ़ावा
दिया। इरशाद की
इस पार्टी ने
अक्टूबर में ऐलान
किया कि वह
चुनाव में भाग
नहीं लेगी। फिर
नवम्बर में कहा
कि वह सर्वदलीय
कार्यवाहक सरकार में
शमिल होगी। इसके
बाद चुनाव बष्किार
की घोषणा कर
दी। जहाँ बीएनपी
नेता खालिदा जिया
ने इस चुनाव
को कलंकित करने
वाला तमाशा बताया
है ,वहीं
शेख हसीना वाजेद
ने कहा,’‘ मैं
सम्म्मानित नेता(खालिदा जिया
)से
आतंकवाद और हिंसा
का रास्ता छोड़कर
तथा युद्ध अपराधियों
और आतंकवादी जमात
से नाता तोड़कर
बातचीत के लिए
आगे आने का
अनुरोध करती हूँ।
बातचीत के जरिए
ही चुनाव के
लिए कोई रास्ता
निकला जा सकता
है।''मतदान
से पहले विपक्षी
ने दो दिवसीय
राष्ट्रीय बन्द का
आह्वान किया था।
इस बार भारी
सुरक्षा बलों के
तैनाती के बावजूद
मतदान के समय
दो सौ से
अधिक मतदान केन्द्रों
को आग लगा
दी तथा १६०मतदान
केन्द्रों पर मतदान
रोकना पड़ा और
११जिलों के ४१
मतदान केन्द्रों पर
एक भी मत
नहीं पड़ा और
कुछ मतदान केन्द्रों
पर देसी बम
फेंके गए। कई
स्थानों पर मतपेटिकाएँ
लूट ली गयीं।
मतदान के दौरान
२१ लोग मारे
गए। हिंसा के
डर से अधिकतर
लोग घरों से
नहीं निकले। चुनाव
के बाद अवामी
लीग को समर्थन
देने के कारण
विपक्षी बीएनपी तथा
जमात-ए’-इस्लामी
के समर्थक हिन्दुओं
पर हमले कर
रहे हैं। उन्होंने
३२जिलों विशेष रूप
से दिनाजपुर ,लालमोनीरहाट ,ठाकुरगाँव परिचमी
जसोर जिले का
नाओपारा इलका में
हिन्दुओं के ४८५
घरों ,५७८
दुकानों को नष्ट
कर दिया है।
१५२ मन्दिरों में
भी तोड़फोड़ की
है। उत्तरी नाटौर
जिले में ५०साल
के किसान हरिपद
मण्डल की नकाबपोश
ने चाकू घोंप
कर हत्या कर
दी। जिलों में
हिन्दुओं ।८ जनवरी
को नेत्रकोना जिले
के काली मन्दिर
में अज्ञात लोगों
ने आग लगा।
बांग्लादेश की हिन्दू-बौद्ध-क्रिच्च्िचयन
ओइक्या परिषद् के
उपाध्यक्ष काजल देवनाथ
ने कहा कि
यहाँ से ४००
हिन्दुओं को जबरन
पलायन करने के
मजबूर किया गया।
ये लोग गाँव
खाली कर भैरव
नदी के पर
शरण लिए हुए
हैैं। वैसे हकीकत
में देश के
विभाजन के बाद
पूर्वी पाकिस्तान ,फिर १६दिसम्बर, १९७१को
बांग्लादेश के उदय
के पच्च्चात भी
यहाँ का हिन्दू
इस्लामी कट्टरपन्थियों की
हिंसा च्चिकार बनता
ही आया है
।पुलिस ने विभिन्न
क्षेत्रों में तोड़फोड़
में शामिल जमात-ए-इस्लामी
के एक नेता
तथा राष्ट्रविरोधी गतिविधियों
में ११जमात कार्यकर्ताओं
को गिरफ्तार किया
है। बांग्लादेश राष्ट्रीय
मानवाधिकार आयोग ने
कहा है कि
सरकार ५जनवरी को
सम्पन्न हुए चुनाव
के देश में
अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर
हमले रोकने में
नाकाम रही है।
हालाँकि प्रधानमंत्री शेख
हसीना ने हिन्दुओं
पर बड़े पैमाने
पर हमले के
मामले की सुनवायी
के लिए बांग्लादेश विशेष न्यायाधिकरण का गठन
करेगा। फिलहाल, यह
सच है कि
ऐसे माहौल में
हुए चुनावों को
कोई भी स्वतन्त्र
और निष्पक्ष साबित
करने की हालत
में नहीं है।
यह भी पता
नही ं,किन
हालात और इरादे
से शेख हसीना
को संविधान में
संच्चोधन करा कर
गैरदलीय सरकार के
स्थान पर सर्वदलीय
सरकार के अधीन
आम चुनाव कराना
क्यों बेहतर नजर
आया? यही
कारण है कि
अमरीका ,यूरोपीय
संघ ,रूस
द्वारा चुनावी पर्यवेक्षकों
को भेजने ने
मना कर दिया
था। इस कारण
बांग्लादेश की छवि
को आघात लगा
है और इन
चुनावों की निष्पक्षता
तथा स्वतन्त्रता पर
प्रच्च्नचिह्न लगा है।अब
सवाल यह है
कि इन बेगमों
के जंग का
खामियाजा हिन्दू कब
तक यों ही
भुगतते रहेंगे?
सम्पर्क-
डॉ. बचन सिंह सिकरवार ६३ ब,गाँधी नगर, आगरा-२८२००३ मो.नम्बर-९४११६८४०५४
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