फिरकापरस्ती की सियासत की इन्तिहा
डॉ.बचन सिंह
सिकरवार
‘‘लड़के
गलती से बलात्कार
कर बैठते हैं
लेकिन इसके लिए
फाँसी की सजा
देना गलत है।
अगर हम सरकार
में आए तो
ऐसे कानून की
समीक्षा करेंगे। झूठी
रिपोर्ट कराने वालों
के खिलाफ भी
कार्रवाई करेंगे।'' महिलाओं
के आबरू से
जुड़ा यह बयान समाजवादी पार्टी
के मुखिया मुलायम
सिंह यादव ने
रामपुर की जनसभा
में अनजाने या
रहमदिली की वजह
से नहीं दिया
है, बल्कि
मुम्बई के महालक्ष्मी
स्थित शक्ति मिल
परिसर में सामूहिक
बलात्कार की दो
लगातार हुई वारदातों
के तीन आरोपियों
में से दो
आरापियों का मुसलमान
होना है, जिन्हें
गत ४ अपै्रल को
अदालत द्वारा फाँसी
सुनायी है, उनकी
हमदर्दी और हिमायत
में दिया है, ताकि
मुसलमानों के एकमुच्च्त
वोट हासिल किये
जा सकें। यहाँ
इस मामले का
थोड़ा जिक्र जरूरी
है। २२ अगस्त
,२०१३
को शक्ति मिल
के सुनसान खण्डहर
में एक महिला
फोटो पत्रकार से
पाँच लोगों विजय
जाधव ,कासिम
बगाली, सलीम
अंसारी, सिराज
रहमान तथा एक
आरोपी नाबालिग ने
सामूहिक बलात्कार किया
है। इससे पहले
भी ३१ जुलाई, २०१३
इसी परिसर में
एक कॉल सेण्टर
कर्मी युवती के
साथ विजय जाधव, कासिम
बंगाली ,सलीम
अंसारी ने सामूहिक
बलात्कार किया था।
इस कारण उक्त
तीन आरोपियों को
आदतन बलात्कारियों के
लिए जोड़ी गयी
आइ.पी.सी.की संच्चोधित धारा
३७६ ई के तहत
फाँसी दी गयी
है।
अब सवाल
यह है कि
क्या ऐसा शख्स
राजनेता और प्रधानमंत्री
बनने लायक है
जो सत्ता हासिल
करने के लिए
अपने को इस
हद तक गिरा
ले? जिसे
मुल्क की आधी
आबादी की इज्जत-आबरू
की कतई परवाह
न हो। उससे
देश की स्वाभिमान
की रक्षा की
उम्मीद करना क्या
बेमानी नहीं है
?उन्हीं
के नक्च्चेकदम पर
चलते हुए मुसलमानों
के हक-हकूक के
सबसे लड़ाके साबित
करने के लिए
सपा के राष्ट्रीय
महासचिव और शहरी
विकास मंत्री मोहम्मद
आजम खाँ ने
यह कह कर
सेना को ही
साम्प्रदायिक रग दे
दिया, ‘‘किसी के कारगिल की
लड़ाई हिन्दू जवानों
ने नही लडीं, वास्तव
में जिन्होंने पहाड़ी
पर विजय दिलायी
वे मुसलमान सैनिक
थे।'' यह
बात आजम खाँ
ने मुसलमानों की
हौसला अफजाई या
देशभक्ति जज्बा जगाने
के लिए नहीं, वरन्
मुसलमानों को हिन्दुओं
के मुकाबले खड़े
करने के नजरिये
से दिया है।
वैसे भी मुलायम
सिंह यादव मुस्लिम
तुष्टीकरण के लिए
किसी भी हद
तक जा सकते
हैं तभी तो
पिछले विधानसभा के
चुनाव के समय
मुसलमानों को खुश
करने के लिए
सिलेसिलेवार बम धमाकों
के आरोपियों के
मुकदमे वापस लेने
की घोषणा की
थी। बाद में
सत्ता में आने
के बाद उत्तर
प्रदेश की सपा
सरकार ने १९
आतंकवादियों के मुकदमे
वापस लेने की
कार्रवाई शुरू की
, लेकिन
उश न्यायालय ने
उसके इस मन्सूबे
पर पानी फेर
दिया। उनके देश
की सुरक्षा का
खतरे में डालने
तथा सुरक्षाकर्मियों को
हतोत्साहित करने वाले
इस कदम की
किसी भी राजनीतिक
ने भी निन्दा
या आलोचना नहीं
की, इससे
कहीं उनके मुसलमान
वोट न कट जाएँ।
मुसलमानों के एक
मुच्च्त वोट पाने
के लिए देश
के सारे राजनीतिक
दल उन पर
अपनी जान न्योछावर
करते आये हैं।
इसकी असल वजह
विभिन्न चुनावों में
मुसलमानों के वोटों
की चुनावी गणित में अहम
भूमिका है। अपने
देश की ५४३
सदस्यों वाली लोकसभा
की ३५स्थानों पर
मुस्लिम समुदाय की
३० प्रतिशत से
अधिक है। ३८सीटों
पर इनकी उपस्थिति
२०से ३० फीसदी
,१४५
स्थानों पर १०से
२०प्रतिशत और १८३
सीटों पर ५से१०फीसदी
है। लगभग दो
सौ सीटों पर
जीत-हार तय करने
में मुसलमान खास
भूमिका निभाते है।
इस कारण कथित
धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल
इनके मुच्च्त वोटों
के लिए हिन्दू
संगठनों और भाजपा
का डर दिखा
कर उन्हें अपने
पक्ष में एकजुट
करने की एक
से एक तिकड़म
भिड़ाते रहते हैं।
यही कारण है
कि प्रधानमंत्री मनमोहन
सिंह कहना था
कि देश के
संसाधनों पर पहला
हक मुसलमानों का
है। काँग्रेस की
अध्यक्ष सोनिया गाँधी
भी दिल्ली की
जामा मस्जिद के
शाही इमाम अहमद
बुखारी का समर्थन
पाने के लिए
उनसे मुलाकात करना
जरूरी समझती है
जो हर आम
चुनाव में अपनी
कीमत वसूल कर
मुसलमानों के लिए
किसी खास सियासी
दल के पक्ष
में फतवा जारी
करते आये हैं।
यह अलग बात
है कि उनकी
हैसियत अपने दामाद
को जीतने की
भी नहीं है।
अब मुसलमानों को
प्रसन्न करने के
लिए ज्यादातर राजनीतिक
दल गुजरात के
मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी
को २००२के उनके
राज्य में हुए
दंगे को लेकर
तरह के आरोप
लगा रहे हैं।
जहाँ राजद नेता
लालू प्रसाद यादव
नरेन्द मोदी को
राक्षस सेना का
सेनापति बता रहे
हैं, वहीं
काँगे्रस के नेता
अभिषेक मनु सिंघवी
मोदी को डै्रकूला
साबित करने पर
तुले हैं। सोनिया
गाँधी नरेन्द्र मोदी
को पहले ही
‘मौत
का सौदागार' कह
चुकी हैं। बिहार
के मुख्यमंत्री नीतीश
कुमार ने मुसलमानों
के वोटों के
खातिर अपनी पार्टी
जदयू के १७साल
पुराने राजग से
सम्बन्ध तोड़ दिया
है। उन्हें डर
सता रहा था
कि इनके सारे
वोट कहीं उनके
प्रबल प्रतिद्वन्द्वी लालू
प्रसाद यादव ने
ले उड़े, जिन्होंने
धर्मनिरपेक्षता का चैम्पियन
बनने के लिए
एक समय भाजपा
नेता लालकृष्ण आडवाणी
के रथ को
रोका था। उनकी
सारी राजनीति ही
एमवाइ( मुसलमान यादव) समीकरण तथा
जाति नफरत के
नारे ‘‘भूरा
बाल साफ करो'' पर
टिकी है। इस
समय पश्चिम बंगाल
में मुख्यमंत्री ममता
बनर्जी भी मुसलमानों
की दीवानी बनी
हुई हैं। इस
मामले में दलितों
की कथित एकमात्र
नयी मसीहा मायावती
भी पीछे नहीं
हैं।उत्तर प्रदेश में
प्रभाव रखने वाले
तौकीर रजा बरेलवी को साथ
ले लिया है
ताकि दलितों के
साथ मुस्लिम समुदाय के वोट
से कामयाबी हासिल
की जा सके।
वामपन्थी पार्टियाँ भी
अपनी जन्म से
मुसलमानों को धर्मनिरपेक्षता
का सर्टीफिकेट देती
आयी हैं। यही
कारण है कि
कश्मीर घाटी तथा
देश के किसी
भी हिस्से में
आतंकवादी बम विस्फोट
कर लोगों की
जानें लें, अलगाववादी
पाकिस्तान जिन्दाबाद के
नारे लगाएँ, तिरंगे
जलाये, सैनिकों
पर झूठे आरोप
लगाते हुए पत्थर
फेंके उनकी जुबान
हमेच्चा बन्द ही
रहती है। यहाँ
तक कि इस
समुदाय के कुछ
सांसद/विधायक संसद और
विधान सभा में
राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत
का अपमान करते
रहते हैं, किन्तु
ये पंथ निरपेक्ष
नेता उनकी अनदेखी
ही करते आये
हैं। इन लोगों
को अलगाववादियों द्वारा
कश्मीर घाटी के
खदेड़े गए कश्मीर
पण्डितों की तकलीफें
दिखायी नहीं देती
हैं। लेकिन विडम्बना
यह है कि
काँगे्रस शासित राज्यों
में देश के
आजाद होने से
अब तक न
जाने कितने साम्प्रदायिक
दंगे हुए हैं, पर
किसी ने उसे
दंगे का दोषी
ठहराने की जहमत
नहीं उठायी है।
सन् १९८४ के
दिल्ली के दंगे
में बड़ी संख्या
में सिखों को
जिन्दा जला कर
मार डाला गया, फिर
भी काँग्रेस अपने
को बेकसूर बताती
आयी है और
दूसरे कथित पंथनिरपेक्ष
दल इस मामले
में अपनी जुबान
नहीं खोलते। मुस्लिम
समुदाय के लिए
विच्चेष योजनाएँ देने
में कोई भी
राज्य पीछे नहीं
हैं। दिल्ली वक्फ
बोर्ड में नामांकित
इमाम और मोआज्जिनों
को ९०००से १०,०००रुपए तक
वेतन मिलता है।
उत्तर प्रदेश सरकार
विकास और कल्याण
योजनाओं में मुस्लिम
समुदाय को २०
प्रतिशत आरक्षण का
लाभ मिलता है
तो कब्रिस्तानों के
संरक्षण के लिए
३००करोड़ का बजट
है। बिहार में
७५ अल्पसंख्यक बाहुल्य
क्षेत्रों और आठ
कस्बों के विकास
के लिए ८००करोड़
रुपए खर्च किये
जा रहे हैं।
मध्य प्रदेश में
दो लाख अल्पसंख्यक
छात्रों को वजीफा
दिया जा रहा
है। राज्य सरकार
की योजना के
तहत अपै्रल, २०१२
से अब तक
१४५९ अल्पसंख्यक जोड़ों
की शादी हो
चुकी हैं। पश्चिम
बंगाल ३०हजार इमामों
को २५००रुपए वेतन
के रूप में
दिये जा रहे
हैं। आन्ध्र प्रदेश
में अल्पसंख्यकों के
लिए नौकरियों और
उश च्चिक्षा में
चार प्रतिशत का
आरक्षण है। आच्च्चर्य
की बात यह
है कि इसके
बाद भी देश
का कोई भी
अल्पसंख्यक समुदाय खुश
और सन्तुष्ट नजर
नहीं आता। देश
का साम्प्रदायिक आधार
पर एक बड़ा
विभाजन हो चुका
है इसके बावजूद
अपने मुल्क के
ज्यादातर राजनीतिक दल
और उनके अदूरदर्च्ची, सत्ता
लोभी ,खुदगर्ज
नेता फिरकापरस्तीे के
खतरों को जानते
हुए इस नीति
को ही बढ़ावा
दे रहे हैं।
इन सभी के
विरुद्ध देश के
लिए लोगों को
समय रहते उठ
खड़े हो जाना
चाहिए। सम्पर्क-
डॉ.बचन
सिंह सिकरवार ६३ब,गाँधी नगर, आगरा-२८२००३ मो.नम्बर-९४११६८४०५४
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