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क्या उन्हीं को है अभिव्यक्ति स्वतंत्रता

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            डॉ.बचन सिंह सिकरवार देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता , असहमति , विश्वविद्यालय के वातावरण , राष्ट्रवाद , राष्ट्रप्रेम , राष्ट्रभक्ति को लेकर फिर से छिड़ी बहस में दखल देते हुए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का कोशि में आयोजित कार्यक्रम में यह कहना सर्वथा उचित है कि जो लोग विश्वविद्यालय में हैं वे तार्किक बहस को बढ़ावा दें , न कि अशान्ति फैलाने वाली संस्कृति को। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी को है , लेकिन असहिषणु भारतीयों के लिए देश में कोई स्थान नहीं हो सकता। तार्किक एवं न्यायसंगत असहमति के लिए स्थान अवश्य होना चाहिए , पर उनके लिए देश और उसके लोग सदैव पहली प्राथमिकता होने चाहिए। भले ही उन्होंने किसी भी पक्ष का उल्लेख नहीं किया हो , लेकिन उनका कथन सभी पक्षों के लिए था। अब प्रच्च्न यह है कि अपने-अपने आग्रह-दुराग्रह और मन्तव्यों को लेकर अपनी राजनीति करने वाले क्या इनके इस उद्‌बोधन से कोई सीख लेंगे ? शायद नहीं  ? इस सन्देह का कारण संविधान के अनुच्छेद 19(1)  में प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जो बढ़चढ़ कर चर्चा करते हैं , वे कभी अनुच...

सिर्फ उनकी नहीं है यह कामयाबी ?

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डॉ.बचन सिंह सिकरवार हाल में देश के पाँच राज्यों में हुए विधानसभाओं चुनावों में उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में मिली अपार और अप्रत्याशित सफलता का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को देने की होड़ लगी है , लेकिन विचार करें , तो यह कामयाबी सिर्फ इन दोनों की ही नहीं है इनमें समाजवादी पार्टी की सरकार के मुखयमंत्री अखिलेश यादव और उनकी पूर्ववर्ती बहुजन समाज पार्टी की मुखयमंत्री मायावती , उत्तरखण्ड में काँग्रेस के मुखयमंत्री हरीश रावत का अत्याधिक योगदान रहा है , जिसकी सारे भाजपाई ही नहीं , स्वयं सपाई , बसपाई , काँग्रेसी पूरी तरह अनदेखी कर रहे हैं। सच्चाई यह है कि इन सभी के बगैर ऐसी जीत की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अफसोस की बात यह है कि अपनी जीत-हार के असल कारणों पर विचार करने बजाय मायावती समेत सपाई और काँग्रेसी इसका सारा ठीकरा ' इलैक्ट्रिक वोटिंग मशीन '( इवीएम) पर फोड़ रहे हैं। वैसे भी अपने देश में अधिकांश मामलों में विकल्पहीनता की  जीत होती आयी है। लोग जब एक राजनीतिक दल की सरकार की अनुचित नीतियों-आचरण से ऊब जाते हैं , तब न चाहते हुए नए विकल्प...

क्या अब रुक पाएगी इलाज के नाम होने वाली लूट

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डॉ.बचन सिंह सिकरवार सलाम वीरेन्द सांगवान को करिये मोदी जी को नहीं …॥  हाल में केन्द्र सरकार के निर्णय के बाद ' राष्टीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण '( एन.पी.पी.ए.) ने स्पष्ट आदेश जारी किया कि यदि दिल की एन्जियोप्लास्टी ऑपरेशन में काम आने वाले स्टेण्ट को निर्धारत मूल्य से अधिक पर बेचा गया , तो सिर्फ बेचने वाले अस्पताल को , बल्कि साथ उसकी निर्माता कम्पनी को भी दण्डित किया जाएगा। उसने अपने आदेश इस तथ्य का भी उल्लेख किया है कि वह अपने हर विक्रेता को नर्ई संशोधित सूची उपलब्ध करायें। ऐसा सखत आदेश एन.पी.पी.ए.को अपनी हेल्पलाइन पर देश के विभिन्न जगहों से इस तरह की शिकायतें मिलने पर दिया , जहाँ कि केन्द्र सरकार के आदेश के बाद बडे़ और नामी-गिरामी  अस्पताल भी स्टेण्ट पर पहले जैसी ही मुनाफाखोरी कर रहे थे।उनकी इस मुनाफाखोरी के कारण आम आदमी के लिए एंन्जियोप्लास्टी ऑपरेशन सम्भव नहीं था। इस ऑपरेशन को कराने के लिए उसे अपना सबकुछ दांव पर लगाने को मजबूर होना पड़ता है , पर इससे मुनाफाखोरों का क्या मतलब ?        वस्तुतः आदमी के लालच की कोई सीमा नहीं , उसके...

अब क्यों खामोश हैं गद्‌दारों के हिमायती ?

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डॉ.बचन सिंह सिकरवार जम्मू-कश्मीर में इसी 17 फरवरी को श्रीनगर के नौहट्‌टा स्थित ऐतिहासिक जामिया मस्जिद , दक्षिण कश्मीर के पुलवामा तथा उत्तरी कश्मीर के सोपोर में ' नमाज -ए-जुमा ' के बाद आतंकवादियों और अलगाववादियों के समर्थकों ने पाकिस्तान तथा इस्लामिक आतंकवादी संगठन ' आइ.एस. ' के झण्डे लहराते  ' जीवे-जीवे पाकिस्तान ', ' हम क्या चाहते आजादी ', ' गिलानी  का एक ही अरमान-कश्मीर बनेगा पाकिस्तान ' नारे लगाते आगे बढ़ने पर सुरक्षा बलों के रोकने जाने पर जिस तरह वे पथराव , हिंसा और आगजनी की , उससे लगता है कि उन पर थल सेनाध्यक्ष बिपिन रावत की उस चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ , जिसमें इन अलगावादियों तथा पाक परस्तों को ऐसी बेजा हरकतों से बाज आने का आग्रह किया था। आच्च्चर्य की बात यह है कि अब उनकी इस राष्ट्र विरोधी हरकतों पर काँग्रेस , नेशनल कान्फ्रेंस ंसमेत अलगावादी संगठनों के नेता हमेशा की तरह चुप्पी साधे हुए हैं जबकि इन्हें थल सेनाध्यक्ष की सही , सामयिक और अपरिहार्य चेतावनी अनुचित , अनावश्यक तथा कश्मीरियों के लिए दमनकारी नजर आ रही थी। जिस तरह इन लोगो...

सिर्फ उनका ही नहीं है कश्मीर

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डॉ.बचन सिंह सिकरवार '' कश्मीर में आतंकवादी बन रहे नौजवान विधायक या सांसद बनने के लिए नहीं , बल्कि इस कौम और वतन की आजादी के लिए अपनी जान कुर्बान कर रहे हैं , वे आजादी और हक के लिए लड़ रहे हैं। '' यह बयान किसी अलगाववादी या आतंकवादी संगठन के नेता का नहीं हैं , बल्कि गत 24 फरवरी को नेशनल काँन्फ्रेंस  के अध्यक्ष एवं पूर्व मुखयमंत्री डॉ.फारूक अब्दुल्ला का है। ऐसा कह कर उन्होंने कश्मीर के उन दहशतगर्दो और उनकी दहशतगर्दी को जायज ठहराया है , जो एक अर्से से न सिर्फ इस सूबे में खूनखराबा कर दहशत फैलाते हुए भारतीय सैन्य बलों पर लगातार हमला कर इस मुल्क के खिलाफ बकायदा जंग लड़ रहे हैं , बल्कि ये उसकी स्वतंत्रता , एकता , अखण्डता , सम्प्रभुता को दुश्मन मुल्क पाकिस्तान की मदद और उसकी शह पर उसे खण्डित तथा खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने यह सब अनजानें में या भावावेश में भी नहीं कहा है। अपने मुल्क के खिलाफ ऐसा जहर उन्होंने पहली बार नहीं उगला है , बल्कि सोची-समझी रणनीति के तहत उनकी तीन पीढ़ियाँ समय-समय पर ऐसा ही करती आयी हैं। खासकर जब वह सत्ता से बाहर होती हैं। कुछ स...