"कलम से कोर्ट तक "............................................... दो दशक की लड़ाई, अखबार मालिकों को औकात बताई

वर्तमान संदर्भ में बात की जाये तो शायद ही कोई मीडिया संस्थान होगा जिसके कर्मचारी यानी तथाकथित पत्रकार नौकरी के लिए मालिकों के आगे पूंछ हिलाते न दिखें। नौकरी बचाने के दबाव में कलम का सिपाही को खुलेआम दलाल की भूमिका निभाते देखना आम बात हो गयी है। एक दौर ऐसा भी था जब सम्पादक की बात तो दूर छोटे से पत्रकार को भी सीधे आदेश देने में अखबार मालिक या प्रबंधकों के पसीने छूट जाते थे। दौर बदला कलम के सिपाही की भूमिका बदली और मिशन के इरादे शुरू हुआ काम धंधा बन गया लेकिन कुछ लोग अभी बिकने को तैयार नहीं चाहे उसके लिए उन्हें कितने भी दबाव झेलने पड़ें या कष्टमयी जीवन संघर्ष क्यों न करना पड़े। इसी की एक बानगी है डॉ. बचन सिंह सिकरवार जिन्होंने देश के प्रमुख हिन्दी अखबार अमर उजाला के मालिकों के आगे घुटने टेकने से न सिर्फ साफ इन्कार कर दिया बल्कि सम्पादकीय प्रभारी रहते हुए जन हित की खबरों को नित नयी ऊंचाई देना शुरू कर दिया। मालिकों ने बिना कारण बताये उन्हें कई अन्य कलमकारों के साथ नौकरी से बाहर निकाल फेंका लेकिन पत्रकारों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाने वाले इस सिपाही ने मालिकों के खिलाफ स...