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"कलम से कोर्ट तक "............................................... दो दशक की लड़ाई, अखबार मालिकों को औकात बताई

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वर्तमान संदर्भ में बात की जाये तो शायद ही कोई मीडिया संस्थान होगा जिसके कर्मचारी यानी तथाकथित पत्रकार नौकरी के लिए मालिकों के आगे पूंछ हिलाते न दिखें। नौकरी बचाने के दबाव में कलम का सिपाही को खुलेआम दलाल की भूमिका निभाते देखना आम बात हो गयी है।  एक दौर ऐसा भी था जब सम्पादक की बात तो दूर छोटे से पत्रकार को भी सीधे आदेश देने में अखबार मालिक या प्रबंधकों के पसीने छूट जाते थे। दौर बदला कलम के सिपाही की भूमिका बदली और मिशन के इरादे शुरू हुआ काम धंधा बन गया लेकिन कुछ लोग अभी बिकने को तैयार नहीं चाहे उसके लिए उन्हें कितने भी दबाव झेलने पड़ें या कष्टमयी जीवन संघर्ष क्यों न करना पड़े। इसी की एक बानगी है डॉ. बचन सिंह सिकरवार जिन्होंने देश के प्रमुख हिन्दी अखबार अमर उजाला के मालिकों के आगे घुटने टेकने से न सिर्फ साफ इन्कार कर दिया बल्कि सम्पादकीय प्रभारी रहते हुए जन हित की खबरों को नित नयी ऊंचाई देना शुरू कर दिया। मालिकों ने बिना कारण बताये उन्हें कई अन्य कलमकारों के साथ नौकरी से बाहर निकाल फेंका लेकिन पत्रकारों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाने वाले इस सिपाही ने मालिकों के खिलाफ स...

आखिर कब तक ऐसे डरते रहेंगे?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार   भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के छब्बीस सौ वर्ष पूरे होने पर नयी दिल्ली में   आयोजित ‘ वैश्विक बौद्ध सम्मेलन ' ( जी.बी.सी.) में आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा के भाषण के कार्यक्रम से चीन बेहद नाराज है इसे देखते हुए सम्भवतः राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उद्घाट्न और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सम्मानित अतिथि के रूप में   सम्मिलित न होना ही जरूरी नहीं समझा। फिर भी चीन ने अपनी नाराजगी का इजहार करते हुए भारत के साथ २८-२९नवम्बर    को होने वाली १५वें दौर की सीमा वार्त्ता टाल दी है , जबकि गत वर्ष जनवरी के बाद नयी दिल्ली में प्रस्तावित इस वार्षिक रक्षा वार्त्ता के एजेण्डा में साझा सैन्य अभ्यास का मार्ग प्रशस्त करना भी है। हमारी इसी भीरुता के कारण दुनिया का हर छोटा-बड़ा मुल्क हमें आँखें दिखाता रहता है। पाकिस्तान भारत के खिलाफ कई दशक से अपनी आतंकवादी गतिविधियों के जरिये ' छद्म युद्ध ' लड़ रहा है। फिर भी हम उसे आतंकवादी मुल्क नहीं कह पा रहे हैं जब तब अमरीका तथा दूसरे देशों से हम यह गुहार लगाते रहते हैं कि वे उसे ‘ आतंकवादी...

आरोपों-प्रत्यारोपों से किसका का भला होगा?

- डॉ.बचन सिंह सिकरवार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री एवं बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष   मायावती का यह आरोप कि काँग्रेस के महामंत्राी राहुल गाँधी विदेशी विचाराधारा के होने के साथ-साथ वह सैर-सपाटे के लिए उ.प्र.में आते हैं। वह उनके विदेशी मित्रों को आर्थिक लाभ पहुँचाने के लिए ही केन्द्र सरकार ने खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का निर्णय लिया है। उनका यह आरोप भले ही अक्षरशः   सही नहीं हो , किन्तु किसी सीमा तक उचित ही प्रतीत होता है। उत्तर प्रदेश के हर बार अपने दौरे के समय राहुल गाँधी जो बोलते और दिखाने की कोशिश करते हैं। उससे लगता है कि देशभर में सबसे बुरी स्थिति उत्तर प्रदेश की है जिसके लिए वर्तमान बसपा सरकार और अन्य गैर काँग्रेसी सरकारें जिम्मेदार रही हैं। जैसे कि काँगे्रसी शासित पूर्व और वर्तमान सरकारें अत्यन्त कार्यकुशल और जनहितकारी रही हैं और हैं। उनके रहते उन राज्यों में राम राज्य की भाँति सब कुछ अच्छा चलता रहा है और अब भी चल रहा है। उन राज्यों के लोग न तो किसी दूसरे राज्यों में मेहनत-मजदूरी करने जाते हैं और न उनमें किसी तरह का अ...

कहीं ‘सूचना के अधिकार' को बेमानी न बना दें ये लोग

डॉ.बचन सिंह सिकरवार देश के विभिन्न सरकारी - गैर सरकारी संस्थानों/ कार्यालयों के कामकाज में पारदर्शिता लाने और उस पर निगरानी रखने के महती उद्देश्य से अनेकानेक लोगों के भारी   प्रयासों के बाद संसद में जन सूचना अधिकार अधिनियम-२००५ ' पारित किया गया , तब   आमजन ने इस अधिनियम से जितनी उम्मीदें पाली   थीं , वैसा अब तक कुछ नहीं हो पाया है। केन्द्र और राज्य सरकारें और उनके विभागों के मुखिया लगातार इस अधिनियम को भौंथरा और निरर्थक बनाने में जुटे हैं , ताकि उनकी हर तरह की मनमानी   चलती रहे और उन्हें   कोई रोकने-टोकने की हिम्मत न करें। इसलिए   कभी गोपनीयता का बहाने , तो कभी भारी शुल्क का डर दिखाकर आवेदक को उसकी माँगी गयी सूचनाएँ उपलब्ध नहीं करायी जा रही हैं। कुछ राजनेता , गुण्डा-माफिया , नौकरशाह आदि तो आर.टी.आई.कार्यकर्त्ताओं की जान के दुश्मन बने हुए हैं। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में कुछ लोग तो सूचना पाने की कीमत अपनी जान देकर चुका   चुके हैं। फिर उनके हौसलों में कमी नहीं आयी है। इस अधिनियम की बदौलत भ्रष्टाचार के कई बड़...

रूस में भ्रष्ट ,निरंकुश शासन के खिलाफ बगावत की बयार

डॉ.बचन सिंह सिकरवार    आमतौर पर दुनिया के किसी भी मुल्क में चुनावी नतीजे आने पर लोग अपनी पसन्द के राजनीतिक दल की जीत पर खुशियाँ मनाने सड़कों पर निकल पड़ते हैं लेकिन रूस में इसका ठीक उल्टा देखने को मिला। यहाँ गत ४दिसम्बर को हुए संसद के निचले सदन ड्यूमा के चुनाव के जैसे ही   चुनावी परिणाम   आने लगे , वैसे ही बड़ी संख्या में हर आयु-वर्ग के लोग राजधानी मास्को समेत देश के कई नगरों में ‘ युनाइटेड रसिया पार्टी ' की जीत के विरोध में सड़क पर उतर आये। उनका आरोप है कि प्रधानमंत्री ब्लादिमीर पुतिन की पार्टी ने यह जीत तमाम तरह की धांधलियाँ करके हासिल की है जो उन्हें   बर्दाश्त नहीं है। वे नारे लगा रहे थे कि ‘ हम दुबारा चुनाव चाहते हैं ',’ पुतिन इस्तीफा दें ' । वे चिल्ला कह रहे थे ,’’ हमने इन   चोरों को वोट नहीं दिया। हमें मतों की पुनर्मतगणना चाहिए। ' रूस के शासक इतने भ्रष्ट हैं कि यह आपके   वोट तक चुरा लेते हैं। गत १०दिसम्बर को सिर्फ मास्को में ही ५० , ००० प्रदर्शनकारियों का सड़क उतर आना कोई साधारण घटना नहीं थी। इतनी बड़ी संख्या मे...