आखिर कब तक ऐसे डरते रहेंगे?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
 भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के छब्बीस सौ वर्ष पूरे होने पर नयी दिल्ली में  आयोजित वैश्विक बौद्ध सम्मेलन' (जी.बी.सी.) में आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा के भाषण के कार्यक्रम से चीन बेहद नाराज है इसे देखते हुए सम्भवतः राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उद्घाट्न और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सम्मानित अतिथि के रूप में  सम्मिलित न होना ही जरूरी नहीं समझा। फिर भी चीन ने अपनी नाराजगी का इजहार करते हुए भारत के साथ २८-२९नवम्बर   को होने वाली १५वें दौर की सीमा वार्त्ता टाल दी है ,जबकि गत वर्ष जनवरी के बाद नयी दिल्ली में प्रस्तावित इस वार्षिक रक्षा वार्त्ता के एजेण्डा में साझा सैन्य अभ्यास का मार्ग प्रशस्त करना भी है। हमारी इसी भीरुता के कारण दुनिया का हर छोटा-बड़ा मुल्क हमें आँखें दिखाता रहता है। पाकिस्तान भारत के खिलाफ कई दशक से अपनी आतंकवादी गतिविधियों के जरिये 'छद्म युद्ध' लड़ रहा है। फिर भी हम उसे आतंकवादी मुल्क नहीं कह पा रहे हैं जब तब अमरीका तथा दूसरे देशों से हम यह गुहार लगाते रहते हैं कि वे उसे आतंकवादी देश' घोषित करें। वे भला ऐसा क्यों करें? जब पाकिस्तान उनके ही एजेण्डे और नीतियों पर चल रहा है। पाकिस्तान विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत को बदनाम करने के इरादे से कश्मीर  की आजादी और वहाँ मानवाधिकारों के हनन का मुद्दा उठाने ने कभी-कहीं भी नहीं चूकता। लेकिन हम पाकिस्तान सरकार द्वारा बलूचिस्तान में सैन्य अभियान चला कर किये जा रहे अत्याचारों और नरसंहार की कहीं भी चर्चा नहीं करते। चीन जानबूझ कर अपने नक्शे में जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल को भारत का हिस्सा नहीं दर्शाता तो कभी इन राज्यों के निवासियों को नत्थी (स्टेपल) वीजा जारी करता है लेकिन हमने कायदे से कभी भी विरोध नहीं जताया। चीन की इस दुर्नीत का जवाब तो  यह होना था कि हम भी अपने नक्शे में  तिब्बत और पूर्वी तुर्कीस्तान को स्वतंत्रा देश दिखायें। चीन के इन राज्यों के रहने वालों को हम भी उसकी तर्ज पर स्टेपल वीजा देने की नीति अपनाते। अगस्त,२०१० में लेफ्टिनेण्ट जनरल  बी.एस.जसवाल को चीन ने वीजा देने से इन्कार कर दिया था उनका कसूर बस इतना था कि वे जम्मू-कश्मीर में तैनात थे। हालाँकि बाद में भारत ने नाराजगी व्यक्त  करते हुए चीन के साथ  लगभग आठ महीने तक अपने  सैन्य अभियान रिश्तों को ठण्डे बस्ते में डालने का फैसला ले लिया था। अमरीका भी कई बार दुनिया के नक्शे में जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग दर्शा चुका है। इतना ही नहीं, वह भारत के कई राजनेताओं (रक्षामंत्राी जॉर्ज फर्नाण्डीज ,महिला कूटनीतिक अधिकारी और अब पूर्व  राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम)की सुरक्षा कारणों के बहाने तलाशी लेकर उन्हें अपमानित कर चुका है ,किन्तु हम ने उसकी ही शैली में अमरीका को आज तक जवाब नहीं दिया। इस कारण वह बार-बार गलती दुहरा रहा है।
काँग्रेस के नेतृत्व वाली वर्तमान संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन'(संप्रग) वाली केन्द्र सरकार बात-बात पर संसद  की सर्वोच्चता की दुहाई देती है ,किन्तु इसी संसद पर १३दिसम्बर,२००१ को हमले की साजिश रचने के आरोप में उच्चतम न्यायालय के ४ अगस्त,२००५ को सजा-ए-मौत'सुनाये जाने के बाद भी एक समुदाय की नाराजगी और उससे अपने वोट बैंक पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव को देखते हुए उस सजा को अमलीजामा  नहीं  पहना पा रही है। ऐसे में उससे किसी मुल्क से अपनी जमीन वापस लेनी की उम्मीद कैसे करें?
चीनी सैनिक  लद्दाख क्षेत्र में अवैध रूप से कई-कई किलोमीटर घुस कर हमारे बंकरों को ध्वस्त करने के साथ-साथ अपने निशान छोड़ जाते हैं लेकिन हमारी सरकार चीन की इन नाजायज हरकतों का प्रतिकार करने के बजाय  उन्हें छुपाने की कोशिशें ही करती आयी है। अभी भी चीन तिब्बत से निकलने वाली कई नादियों के जल प्रवाह से सम्बन्धित अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के खिलाफ बाँध बना रहा है ,पर हम कायदे से अपना विरोध  भी जता नहीं  पा रहे हैं। इसी तरह वह गुलाम कश्मीर में  अपने दस हजार  से अधिक  सैनिक और दूसरे लोगों को भेज कर तमाम परियोजनाओं को पूरा करने में जुटा है ,पर हम एक तरह से मूक दर्शक बने हुए हैं।
चीन जम्मू-कश्मीर के आक्साई चिन इलाके को १९६२ की लड़ाई में हथियाने के बाद इसके सियाचिन क्षेत्र में  कराकोरम मार्ग भी बना चुका है जो सामरिक रूप अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है,जहाँ से वह पाकिस्तान के कराची के ग्वादर बन्दरगाह तक पहुँच सकता है। इसके बाद भी हम जब तब  अपने देश में रहे तिब्बतियों के चीन के खिलाफ होने वाले प्रदर्शनों का बर्बरता से दमन करने से बाज नहीं आते और उनके धर्मगुरु दलाई लामा की चीन के डर से उपेक्षा करते रहते हैं जिन्हें विश्व के अनेक देश राष्ट्राध्यक्ष सरीखा सम्मान देते हैं।
 अब हिन्द महासागर के सेशल्स द्वीप' में अपना सैनिक अड्डा बनने जा रहा है
ताकि इस महासागर से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन के साथ-साथ इस समुद्री मार्ग की निगरानी कर सके। इससे हमारी सुरक्षा को खतरा बढ़ जाएगा।
पाकिस्तान मुम्बई ,राजधानी नयी दिल्ली के संसद भवन ,उच्च न्यायालय समेत कई जगहों ं, पुणे ,हैदराबाद ,अक्षरधाम ,श्रीनगर ,लखनऊ आदि कई नगरों पर अपने आतंकवादियों के जरिये तबाही मचा चुका है किन्तु हम सिर्फ घुड़की देकर चुप बैठ गए। अगर हमने अमरीका की तरह  आतंकवादियों को सबक सिखाने का उसके प्रशिक्षण के अड्डों का निशाना बनाया होता, तोवह भूल कर भी फिर भारत में आतंकवादी न भेजता।
श्रीलंका, बांग्लादेश  और नेपाल जैसे पड़ोसी देश भी  गाहे-बगाहे हमें आँखें दिखाते रहते हैं ंऔर हम उनसे अनजाने कारणों से कुछ भी कह नहीं पाते हैं। जम्मू-कश्मीर  के अलगाववादी गुटों के नेताओं के  साथ-साथ मुख्यमंत्री तक जब तक भारत सरकार को आँखें दिखाते रहते हैं लेकिन कभी कायदे से उन्हीं की जुबान जवाब देने का हौसला भारत सरकार ने कभी नहीं दिखाया। हमारी भीरुता के कारण जहाँ अब पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के शेष हिस्से को हड़पने के साथ-साथ भारत के सरक्रीक क्षेत्रा में भी अपना दावा जता रहा है ,वहीं चीन बाकी लद्दाख और अरुणाचल तथा सिक्किम पर कब्जा करने की फिराक में है जबकि हम इनसे से व्यापारिक
सम्बन्ध बढ़ाने को ही अपनी भारी उपलब्धि बताने-जताने में ही मग्न हैं।
देश के स्वतंत्र होने के बाद से भारत सरकार जम्मू-कश्मीर के एक बड़े भू-भाग को पाकिस्तान और चीन को गंवा चुकी है। इसके साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के कथित फैसले के कारण  कच्छ रन के एक बड़ा हिस्सा भारत को पाकिस्तान को देना पड़ा। वह कच्चा तीबू' श्रीलंका और तीन बीघा' बांग्लादेश को भी दे चुकी है ,पर कहीं से एक इंच जमीन भी हासिल नहीं की है। हमारी विडम्बना यह रही है कि हम पाकिस्तान से चार युद्ध लड़ने के बाद भी खून बहाकर जीती उसकी जमीन बार-बार उसे को लौटाने को मजबूर होते रहे हैं। आखिर कब तक हम देसी-विदेशी देश के दुश्मनों की मनमानी और उनके प्रहारों को झेलते रहेंगे?

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