रूस में भ्रष्ट ,निरंकुश शासन के खिलाफ बगावत की बयार
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
आमतौर पर दुनिया के किसी भी मुल्क में चुनावी नतीजे आने पर लोग अपनी पसन्द के राजनीतिक दल की जीत पर खुशियाँ मनाने सड़कों पर निकल पड़ते हैं लेकिन रूस में इसका ठीक उल्टा देखने को मिला। यहाँ गत ४दिसम्बर को हुए संसद के निचले सदन ड्यूमा के चुनाव के जैसे ही चुनावी परिणाम आने लगे, वैसे ही बड़ी संख्या में हर आयु-वर्ग के लोग राजधानी मास्को समेत देश के कई नगरों में ‘युनाइटेड रसिया पार्टी' की जीत के विरोध में सड़क पर उतर आये। उनका आरोप है कि प्रधानमंत्री ब्लादिमीर पुतिन की पार्टी ने यह जीत तमाम तरह की धांधलियाँ करके हासिल की है जो उन्हें बर्दाश्त नहीं है। वे नारे लगा रहे थे कि ‘हम दुबारा चुनाव चाहते हैं',’पुतिन इस्तीफा दें'। वे चिल्ला कह रहे थे ,’’हमने इन चोरों को वोट नहीं दिया। हमें मतों की पुनर्मतगणना चाहिए।' रूस के शासक इतने भ्रष्ट हैं कि यह आपके वोट तक चुरा लेते हैं।
गत १०दिसम्बर को सिर्फ मास्को में ही ५०,००० प्रदर्शनकारियों का सड़क उतर आना कोई साधारण घटना नहीं थी। इतनी बड़ी संख्या में लोग दिसम्बर,१९९१ के बाद जुटे थे। पुतिन के भ्रष्ट ,निरंकुश ,अकुशल शासन के खिलाफ उठी बगावत की आंधी केवल मास्को तक ही नहीं चल रही है,वरन् सुदूर ब्लादिवोस्तक से लेकर कजाखस्तान सीमा पर स्थित कुर्गन पर भी पहुँच चुकी है।
इन प्रदर्शनकारियों में युवा शिक्षित और इण्टरनेट से जुड़े अधिक संख्या में थे। सबसे बड़ी बात यह रही कि इनमें हर तरह की विचारधारा के लोग थे जिनमें वामपंथियों से लेकर उग्र राष्ट्रवादियों समेत पश्चिम यूरोपीय देशों की तरफ रूझान रखने वाले उदारवादी भी शामिल थे। दरअसल, गत ४दिसम्बर को रूसी संसद के निचले सदन डूयमा के चुनाव हुए। इस सदन की ४५०स्थानों के लिए सात राजनीतिक दलों ने चुनाव में भाग लिया। चुनाव से पहले और उसके दौरान यहाँ किसी को विश्वास नहीं था कि प्रधानमंत्री पुतिन की पार्टी की दुबारा वापसी होगी। लेकिन उनकी आशा के विपरीत जब चुनावी नतीज आने लगे ,तो उन्हें लगा कि जरूर इन चुनाव में कोई गड़बड़ी की गयी है,वरन पुतिन की पार्टी की हार निश्चित थी। उनके खिलाफ प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इण्टरनेट पर दिखाए गए वीडियो में मतपेटियों को भरा जाना,वोटों की चोरी और अधिकारिक परिणामों में की गयी खुलेआम धांधली को देखकर वे पागल हो चुके हैं
लेकिन इन चुनावी परिणामों मेंप्रधानमंत्री ब्लादिरमीर पुतिन की पार्टी युनाइटेड रसिया को २३८,कम्युनिस्ट पार्टी को ९२, ए जस्ट रसिया ६४,लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ५६ स्थानों पर सफलता मिली। बाकी राजनीति दलों यथा-याबलोको, पैट्रियॉटस ऑफ रसिया,राइट कॉज का सफाया हो गया।
यद्यपि ‘युनाइटेड रसिया' को सभी राजनीतिक दलों से सबसे ज्यादा सफलता प्राप्त हुई ,तथापि पिछले चुनाव की तुलना में उसे मत काफी कम मिले हैं। इस पर भी विपक्षियों का आरोप है कि प्रधानमंत्री पुतिन की युनाइटेड रसिया पार्टी ने चुनाव धांधली करके जीता है। उनके खिलाफ प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इण्टरनेट पर दिखाए गए वीडियो में मतपेटियों को भरा जाना,वोटों की चोरी और अधिकारिक परिणामों में की गयी खुलेआम धांधली को देखकर वे पागल हो चुके हैं। कहा जाता है कि इतिहास अपने को दुहराता है। यह बात रूस के इतिहास पर भी बार-बार लागू होती है। यहाँ रूस में उग्र जन विरोध को ‘राजनीतिक पुनर्जागरण' बताया जा है। जब सन् १९१७ में ‘रूसी क्रान्ति'के समय मास्को में तत्कालीन शासक जार के अत्याचारी,अन्यायी शोषणपूर्ण शासन के खिलाफ भूखी ,नंगी जनता बगावत पर उतर आयी थी तब साम्यवादी शासन व्यवस्था लागू हुई। इसके पश्चात दिसम्बर,१९९१ में मास्को से सोवियत संघ का विघटन की शुरुआत हुई ।
वस्तुतः यहाँ के लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री पुतिन-राष्ट्रपति मेदवेदेव का शासन ‘प्रबन्धित लोकतांत्रिक'(मैनेज्ड डेमोक्रेसी) है जिस पर चन्द धनवान की मण्डली काबिज है।इसे पुतिन ‘सीधी सत्ता' (वार्टिक ऑफ पॉवर) कहते हैं। उन्होंने अपनी हार के डर से नौ विपक्षी दलों को चुनाव हिस्सा ही नहीं लेने दिया।
इस चुनाव को पुतिन की लोकप्रियता के जनमत संग्रह के रूप में देखा जा रहा था , जो तीन माह पश्चात पुनः राष्ट्रपति पद के लिए खड़े होने जा रहे हैं। पुतिन पूर्व में दो बार २००० एवं २००८ में राष्ट्रपति रह चुके हैं। लेकिन पुतिन लोगों के इस विरोध को अपने शासन की कमियों के खिलाफ मनाने के बजाय वे इसके पीछे विदेशी शक्तियों का हाथ बता रहे हैं जो चुनाव में हस्तक्षेप कर रही हैं। इसके विपरीत पूर्व राष्ट्रपति गोर्बाच्योव का कहना कि पुतिन शासन तो कम्युनिस्ट से भी बदतर है। सोवियत संघ के रहते यहाँ के लोग साम्यवादी व्यवस्था के निरंकुश शासन में पैदा हुए भ्रष्टाचार और दूसरी अव्यवस्थाओं से दुःखी थे। इसके बिखराव के बाद रूसी जनता खुली हवा में साँस लेना चाहती थी। लेकिन सोवियत संघ से रूस बनने के कोई दो दशक के पश्चात उत्पादन और वितरण के साधनों के निजीकरण के लोकतांत्रिाक व्यवस्था के बाद भी रूसी जनता को अपनी उम्मीदों पर खरी उतने वाली सरकार अभी तक नहीं मिली है। यही उसका दर्द बार-बार मुखाफलत के रूप में उभर कर आता रहता है।
रूस अब भी विश्व में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा देश है जो यूरोप और एशिया महाद्वीपों में फैला हुआ है। इसका विस्तार बाल्टिक सागर से प्रशान्त महासागर के बीच ९६००किलोमीटर और उत्तर से दक्षिण तक ४८००कि.मी.तक है। इसका क्षेत्रफल-१७,०७५,०००वर्ग किलोमीटर तथा इसकी राजधानी-मास्को है। यहाँ लोग ईसाई धर्म के अनुयायी हैं और रूसी तथा अन्य कई भाषाएँ बोलते हैं। यहाँ साक्षरता-९९प्रतिशत तथा मुद्रा-रूबल है। रूस में प्रति आय-२,३४०डॉलर है।
दिसम्बर,१९९१ से स्वतंत्र देश रूस में पूर्व सोवियत संघ के ७५प्रतिशत क्षेत्रफल और ५०प्रतिशत जनसंख्या है। पूर्व सोवियत संघ का ७० प्रतिशत औद्योगिक एवं कृषि उत्पादन रूस में है।
रूस ने अब अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में पूर्व सोवियत संघ का स्थान ले लिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता एवं सुरक्षा परिषद् में इसे सोवियत संघ का स्थान प्राप्त हुआ। ८दिसम्बर ,१९९१ में रूस ,बाइलोरशिया और उक्रेन ने ‘कॉमनवेल्थ ऑफ इण्डिपेडेण्ट स्टेट (सी.आई.एस.)की स्थापना पर सहमति दी। इसका मुख्यालय-मिंसेक में है। इसके सदस्य देश तीन संस्थापक और आठ अन्य अलग हुए देश जैसे- आर्मीनिया , अजरबैजान,मोल्दाविया ,कजाकस्तान ,किरगिजिया ,ताजिकिस्तान ,तुर्कमेनिस्तान ,उजबेक्सितान , जार्जिया हैं। सी.आई.एस.एक राज्य नहीं है ,बल्कि स्वतंत्र राष्ट्रों का समूल है जो अन्तर्राष्ट्रीय मामलों एवं विधि में सोवियत संघ का उत्तराधिकारी है।
सी.आई.एस. के संस्थापक रूस ने अपना नाम ‘रशियन फेडरेशन' रखा है।
सन् १९९३ में बड़े पैमाने पर बड़े और लघु सरकार नियंत्रित उद्योगों के निजीकरण का अभियान शुरू किया गया। राष्ट्रपति बोरिस यल्तसिन को मार्च ,१९९४ में काँग्रेस ऑफ डेपुटीज द्वारा रखे गए अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था। जुलाई ,१९९४ रूस पूर्व साम्यवादी देशों के साथ शान्ति हेतु सैन्य सहयोग के लिए ‘उत्तर अण्टलाण्टिक सन्धि संगठन' (नाटो) में सम्मिलित हो गया।
यहाँ के प्राकृतिक स्रोतः लौह खदान ,तेल ,स्वर्ण ,प्लेटिनम ,तांबा , जस्ता ,सीसा, टिन हैं। रूस का स्वर्ण उद्योग विश्व में दूसरे स्थान पर है । इस देश के इस्पात मिल ,बड़े बाँध ,तेल एवं गैस उद्योग और विद्युत ,रेल, सड़कें साइबेरिया तक हैं।
रूस में राष्ट्रपति ही राष्ट्राध्यक्ष होता है। इसका चुनाव केन्द्रीय स्तर होता है। लोगों द्वारा छह साल के लिए चुने जाने वाला राष्ट्रपति अधिकतम दो बार अपना कार्यकाल पूरा कर सकता है। दिसम्बर,२००८ से पहले यह कार्यकाल चार साल का था। फेडरल असेम्बली -इसमें दो सदन होते हैं । स्टेट ड्यूमा दूसरे शब्दों में निचले सदन के ४५०सदस्य हर पाँचवें साल पर चुने जाते हैं।
उच्च सदन फेडरल कौंसिल के सदस्यों का सीधे चुनाव नहीं किया जाता है। प्रत्येक ८३ संघीय क्षेत्रों से दो-दो प्रतिनिधि यहाँ भेजे जाते हैं। इनकी सदस्य संख्या १६६ है। देश में पुतिन शासन के खिलाफ बड़े पैमाने व्याप्त असन्तोष और गुस्से को शान्त करने के इरादे से राष्ट्रपति मेदवेदेव चुनाव प्रक्रिया की जाँच कराने का भरोसा दिला रहे हैं।
लेकिन रूसी जनता अब देश में सच्चे लोकतंत्र ,पारदर्शी एवं भ्रष्टाचार मुक्त शासन से कम पर राजी नहीं है।
फिलहाल, प्रधानमंत्री ब्लादिमीर पुतिन की शासन के खिलाफ उठी बगावत की यह आंधी कब तक थमेगी और क्या-क्या उड़ा ले जाएगी ; अभी कुछ कह पाना सम्भव नहीं है।
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