आरोपों-प्रत्यारोपों से किसका का भला होगा?
-डॉ.बचन सिंह सिकरवार
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री एवं बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती का यह आरोप कि काँग्रेस के महामंत्राी राहुल गाँधी विदेशी विचाराधारा के होने के साथ-साथ वह सैर-सपाटे के लिए उ.प्र.में आते हैं। वह उनके विदेशी मित्रों को आर्थिक लाभ पहुँचाने के लिए ही केन्द्र सरकार ने खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का निर्णय लिया है। उनका यह आरोप भले ही अक्षरशः सही नहीं हो , किन्तु किसी सीमा तक उचित ही प्रतीत होता है।
उत्तर प्रदेश के हर बार अपने दौरे के समय राहुल गाँधी जो बोलते और दिखाने की कोशिश करते हैं। उससे लगता है कि देशभर में सबसे बुरी स्थिति उत्तर प्रदेश की है जिसके लिए वर्तमान बसपा सरकार और अन्य गैर काँग्रेसी सरकारें जिम्मेदार रही हैं। जैसे कि काँगे्रसी शासित पूर्व और वर्तमान सरकारें अत्यन्त कार्यकुशल और जनहितकारी रही हैं और हैं। उनके रहते उन राज्यों में राम राज्य की भाँति सब कुछ अच्छा चलता रहा है और अब भी चल रहा है। उन राज्यों के लोग न तो किसी दूसरे राज्यों में मेहनत-मजदूरी करने जाते हैं और न उनमें किसी तरह का अभाव है। उनकी पार्टी की केन्द्र और राज्य सरकारें से जनता को कतई कोई शिकवा-शिकायत नहीं है। इस सच्चाई से शायद की कोई इन्कार करे कि काँग्रेस की सरकारों की कार्यशैली से केन्द्र समेत किसी भी राज्य की जनता पूर्णतः तो क्या आंशिक रूप से भी संतुष्ट नहीं है।
अब प्र्रश्न यह है कि राहुल गाँधी केवल उत्तर प्रदेश की ही चिन्ता में दुबले क्यों हुए जा रहे हैं उन्हें केन्द्र सरकार के निकम्मेपन से परेशानी क्यों नहीं हो रही ?जो न महँगाई और न भ्रष्टाचार पर रोक लगा पा रही है और न ही किसी और क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रदर्शन कर पा रही है।
जहाँ तक खुदरा क्षेत्रा में केन्द्र सरकार का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लाने में उतावली का प्रश्न है वह भी विचारणीय है। इसमें किसी अत्याधुनिक उच्चतम तकनीकी ज्ञान और बहुत अधिक पूँजी की आवश्यकता है और न उसके बिना देश की किसी तरह की सुरक्षा को खतरा है। न ही इससे जनता को कोई खास परेशानी है। लेकिन इस क्षेत्र में प्र्रत्यक्ष विदेशी निवेश के रूप में ये बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ खुदरा क्षेत्र में आने से जरूर लाखों की संख्या में छोटे-छोटे दुकानदारों की दुकानें बन्द कराके उन्हें बेरोजगार बना देंगी।यही नहीं, वे चीन और दुनिया के दूसरे देशों से सस्ता माल खरीद कर अपने देश के उद्योगों में बने माल की माँग कम उन्हें भी बन्द करा देंगी। इसका नतीजा बेरोजगारी और भुखमरी के रूप में सामने आएगा। इसके साथ ही ये भारतीय कृषकों से जमीन किराये पर लेकर अपने हिसाब से खेती करायेंगी और उनमें अपने ही हिसाब से संकर बीज ,उर्वरक और कीटनाशकों का इस्तेमाल करेंगी। इस कारण भारतीय कृषि खेती की हालत अँग्रेजों के जमाने सरीखी हो जाएगी,जब उन्होंने नील की खेती कराके जमीन को बंजर बना दिया था। उस दौरान भारत को कई बार भुखमरी झेलनी पड़ी थी।
खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेशक के पैरोकारों का मत है इससे अन्न और सब्जियों की बरबादी रुकेगी ,क्यों कि ये विदेशी कम्पनियों अपने शीतगृह और प्रसंस्करण इकाइयाँ स्थापित करेंगी। साथ ही इनके आने से बिचौलिया कम होंगे और उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं को फायदा होगा। यहाँ प्रश्न यह है कि जब देश के करोड़ों लोग बेरोजगार हो जाएँगे,तो सस्ता समान खरीदने को उनके पास धन ही कहाँ होगा? इसके साथ ही देश की पूरी अर्थव्यवस्था ही उन विदेशी कम्पनियों के हाथ में चली जाएगी ,जिनके अब तक कार्यकलापों से दुनिया के किसी देश का भला नहीं हुआ है।
अब जहाँ तक मायावती और राहुल गाँधी के विचाराधारा का सवाल है तो इन दोनों को ही देश की जनता की प्राथमिकताओं से कोई सरोकार नहीं है। मायावती प्रदेश के विकास के नाम पर अपनी विचाराधारा के नेताओं और अपने बुत बनवाने में हजारों करोड़ खर्च करने को सही ठहराती हैं, जबकि केवल बुन्देलखण्ड में उनके कार्यकाल में कोई दो हजार किसान कर्ज के बोझ के कारण आत्महत्या करने पर मजबूर हुए हैं। अपने को किसानों की मसीहा बताने वाली मायावती ने उद्योगपतियों को फायदा पहुँचाने के लाखों किसानों की उपजाऊ जमीन जबरदस्ती छीनने का पाप किया है। राहुल गाँधी की पार्टी केन्द्र और राज्य सरकारें कमोबेश रूप में मायावती सरीखा बर्ताव अपने राज्यों की जनता से कर रही हैं। ऐसे में एके- दूसरे पर लांछन लगाने से देश और जनता का भला नहीं होना है,यह अब देश के लोगों को भी अच्छी तरह पता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें