पाकिस्तान में कैसे रुकें हिन्दू युवतियों के अपहरण ?

 डॉ.बचन सिंह सिकरवार 
पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त से  एक 17 वर्षीय युवती का एक दबंग शख्स ने अपहरण कर उसका धर्म परिवर्तन कराके निकाह  किये जाने की फिर से खबर आने पर शायद ही किसी को हैरानी हुई होगी, क्यों कि वहाँ तो एक तरह से ऐसी घटनाएँ आए दिन की होकर कर जो रह गई हैं। ऐसा लगता है कि  इस मुल्क में सरकार से लेकर मजहबी रहनुमाओं, पुलिस, अदालतें भी तो एक ही मकसद लेकर चल रही हैं।इन सभी का एक ही मकसद है कि  किसी भी तरह से गैर मुसलमान को अपने ईमान पर लाना यानी उसे मुसलमान बनाना है,तभी अल्पसंख्यकों की समस्याओं पर पुलिस,प्रशासन,सरकार, नेता कोई भी ध्यान नहीं देता।
एक तरह से इस्लामिक कट्टरपन्थियों को इन्हें निशाना बनाने की छूट दे रखी।इसी प्रवृत्ति के चलते पाकिस्तान में आतंकवाद के साथ-साथ अल्पसंख्यकों को सताना,जलील करना,जुल्म ढहना और जरूरत पर मार डालने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। हिन्दू किशोरियों-युवतियों का अपहरण कर उनका जबरदस्ती मजहब बदलवाकर निकाह कर लेना। फिर उन्हें तलाक देकर वेश्यावृत्ति के लिए बेच देना आम हो गया है। इसमें सरकार के सभी अंग मूक दर्शक की भूमिका निभाते आए हैं। यह देखकर यही लगता है कि उनकी निगाह में मजहब बदलवाना एक मजहबी कार्य है।
 इसकी ताजा मिसाल इस्लामाबाद हाईकोर्ट का फैसला है। इसी होली की पूर्व संध्या पर सिन्ध प्रान्त के घोटकी जिले में जिन दो सगी बहनों रवीना 13साल तथा रीना 15वर्ष का अपहरण कर मजहब बदल कर निकाह कराया गया था, उसमें इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने गत 11अप्रैल को दिये अपने फैसले में कहा कि इन दोनों हिन्दू बहनों को इस्लाम जबरदस्ती कबूल नहीं कराया गया है, बल्कि इस्लामी शिक्षा से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी मर्जी से इस्लाम कबूल कर मुसलमानों से निकाह किया है। इसके बाद उसने इन दोनों बहनों को अपने शौहरों के साथ रहने का फरमान सुनाया दिया। हालाँकि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अख्तर मिन्नाल्लाह ने  इन हिन्दू बहनों के जबरदस्ती या मनमर्जी से इस्लाम कबूल करने की असलियत जानने के लिए एक पाँच सदस्यीय जाँच आयोग  गठित किया था, जिसमें  मानवाधिकार मंत्री शिरीन मजारी, मशहूर मुस्लिम विद्वान मुफ्ती तकी उस्मानी, मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष डॉ. मेहंदी हसन, महिला आयोग की अध्यक्ष ख्वार मुमताज और पत्रकार आइ.ए.रहमान थे। ये सभी  अपनी जाँच में इस नतीजे पर पहुँचे कि इनसे जबरदस्त इस्लाम कबूल नहीं कराया गया है। यहाँ प्रश्न यह है कि आखिर  इतने विशिष्ट लोग सच पता लगाने में विफल कैसे रहे? फिर उसने नाबालिग लड़कियों के निकाह पर एतराज क्यों नहीं जताया? इसके विपरीत इन नाबालिग किशोरियों के परिजनों का आरोप है कि इन्हें अपहृत कर बलपूर्वक इस्लाम कबूल कराया गया है। उसके बाद उनका निकाह कराया दिया गया। उस समय पीड़ित किशोरियों के भाई ने एफ.आई.आर. भी दर्ज करायी थी, जिसमें उसने कहा था कि कुछ दिन पहले उसके पिता का आरोपितों से झगड़ा हो गया था। उसके बाद होली से एक दिन पहले हथियार लेकर उसके घर में घुसे और उसकी दोनों बहनों को साथ ले गए। तब इन किशोरियों के पिता ने सड़क पर बैठकर धरना देते हुए कहा था कि या तो उसकी लड़कियों को ढूँढ़कर लाओं या फिर उसे भी गोली मार दो। उस समय हिन्दू समुदाय के लोगों ने भी बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किये थे। 
अब पंजाब प्रान्त के रहीमयार खान से हिन्दू किशोरी का अपहरण करने के बाद उसे कराची ले जाकर मजहब बदलवा कर निकाह करा दिया। इसके विरोध में 18अप्रैल को हिन्दुओं ने हाथ में तख्तियाँ और बैनर लेकर धरने पर बैठ गए और उसकी सुरक्षित रिहाई की माँग करते हुए सड़क को अवरुद्ध कर दिया और धर्मान्तरण के खिलाफ भी नारे लगाये। बाद में  पुलिस के आला अधिकारियों की उसे ढूँढ़ कर लाने का भरोसा दिलाने के बाद धरना खत्म कर दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री इमरान खान को भी अल्पसंख्यकों से किये वायदों को पूरा करने की भी याद दिलायी। 
पाकिस्तान में अकलियत यानी अल्पसंख्यक रहते हैं इसे दर्शाने के लिए चाँद सितारे वाले हरे रंग के पाकिस्तानी  परचम(झण्डे)में  अल्पसंख्यकों की मौजूदगी जाहिर करने के लिए सफेद रंग रखा गया है। इस मुल्क के आईन(संविधान)में भी लिखा है कि सभी नागरिक बराबर हैं। न कोई खास है और न कोई आम। इन प्रावधानों के रहते हुए भी यहाँ बसने वाले हिन्दुओं, बौद्धों, सिखों, ईसाइयों के लिए ‘गैर मुस्लिम’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। यही ‘गैर’अल्पसंख्यकों को इस मुल्क का प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने से रोकता है। पाकिस्तान की असलियत उसके संविधान के प्रावधानों से पूरी तरह जुदा है,तभी तो यहाँ का अल्पसंख्यक हर वक्त खौफ में जीता है और हर तरह के जोर-जुल्म सहन करता आया है। उक्त अल्पसंख्यक समूहों के अलावा इस्लाम मानने वाले अल्पसंख्यक भी पाकिस्तान सरकार के भेदभाव और जुल्म के शिकार हैं और उससे आजादी चाहते हैं। यही कारण है कि इसी 8अप्रैल को वाशिंगटन स्थित अमरीका के राष्ट्रपति भवन (ह्नाइट हाउस)  के सामने पाकिस्तान के  अल्पसंख्यक समुदाय ने प्रदर्शन करते हुए कहा कि उनके मुल्क में उन्हें नरसंहार का सामना करना पड़ रहा है। वहाँ  सफाये के लिए अल्पसंख्यकों की पहचान का अभियान चल रहा है। इस विरोध प्रदर्शन के प्रमुख आयोजक ‘मुत्ताहिदा कौमी मूवमेण्ट‘  अमरीका के रेहान इबादत ने कहा,‘‘ अन्तर्राष्ट्रीय  समुदाय का कर्Ÿाव्य बनता है कि वह हमारी दशा को  समझे और स्वतंत्रता का अधिकार पाने में मदद करे।‘‘ इन्होंने संयुक्त बयान में कहा था कि पाकिस्तान में जुल्म के शिकार अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिनिधित्व करने के लिए हम सामूहिक प्रयास के तौर पर यहाँ एकत्र हुए हैं। हम मुहाजिर, बलूच, गिलगिट-बाल्टिस्तान, पश्तून और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लोग  अपनी स्वतंत्रता के अधिकार  के लिए पृथक क्षेत्र की माँग करते हैं। 
       
 वैसे तो पाकिस्तान में सभी अल्पसंख्यक समुदाय हर समय भय तथा हर क्षेत्र में भेदभाव सहते हुए जैसे-तैसे जिन्दा रहने को मजबूर है। इनमें हिन्दुओं के साथ जोर-जुल्म कुछ ज्यादा ही हैं। उन्हें ‘काफिर‘ कह कर नफरत/हिकारत भरी नजरों से देखा जाता है। उनके साथ होने वाले जुल्मों की दस्तां इतनी लम्बी है,जिसे लिख पाना किसी के लिए सम्भव नहीं है। यहाँ तक कि अदालतों में भी उन्हें इन्साफ नहीं मिलता।  यहाँ सबसे ज्यादा अगवा और फिरौती कर भारी रकम वसूल कर रिहाई या फिर निकाह करने की वारदातें सिन्ध प्रान्त में होती हैं। इस मुल्क के सभी अल्पसंख्यक समुदाय के लोग हमेशा दहशत के साये में जीते हैं,पता नहीं कब उनके साथ क्या हो जाए। इसी कारण  हिन्दू अपनी बेटियों को छिपा कर रखने के साथ-साथ उनका कम उम्र ही विवाह कर देते हैं। 14 अगस्त, सन् 1947 को  पाकिस्तान के गठन के बाद से इस मुल्क  में सरकारें भले ही किसी भी सियासी पार्टी की रही हों,पर वह अकलियतों(अल्पसंख्यकों)को सुरक्षा का भरोसा दिलाने में नाकाम ही रही हैं। नतीजा यह है कि  पाकिस्तान के बनने के बाद यहाँ की कुल आबादी में कोई 20प्रतिशत हिन्दू थे,जो अब महज डेढ़ फीसदी ही बचे हैं। पाकिस्तान में जिन लोगों ने अल्पसंख्यकों के पक्ष में अपनी आवाज उठायी है,उन्हें अपनी जान ही गंवानी पड़ी है। इनमें अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी तथा पंजाब प्रान्त के गवर्नर सलमान तासीर प्रमुख हैं। पाकिस्तान में ईश निन्दा कानून अल्पसंख्यकों के लिए फाँसी का फन्दा बना हुआ है। इसके तहत उनके खिलाफ किसी भी मुसलमान को यह शिकायत करनी होती है कि  इस शख्स ने अमुक तरीके से इस्लाम या अल्लाह की तौहीन की है। उसके बाद यह कानून उस शख्स पर कहर बन कर टूट पड़ता है। इसी कानून में सुधार की वकालत करने वाले ईसाई समुदाय के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री 42 वर्षीय शहबाज भट्टी की  2 मार्च, सन् 2011 का राजधानी इस्लामाबाद में इस्लामिक कट्टरपन्थियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। उस घटना स्थल पर हत्यारे कुछ पर्चे छोड़ गए थे, जिन पर लिखा था-‘‘‘ऐ अल्लाह के दुश्मन, इस्लाम में गुस्ताख-ए-रसूल के लिए हुक्म सिर्फ  और सिर्फ कत्ल का है....’। ईशनिन्दा कानून का विरोध करने पर 4जनवरी,सन् 2011में पंजाब प्रान्त के गवर्नर सलमान तासीर को उनके अंग रक्षकों ने  ही गोलियाँ बरसा कर मार डाला। इससे पहले 7 नवम्बर, सन् 2010को पंजाब प्रान्त की ईसाई महिला आसिया बीबी को ईशनिन्दा कानून का विरोध करने पर मौत की सजा सुनायी गयी थी।  यहाँ के मुसलमान हिन्दुओं से कितनी नफरत करते हैं,इसे खैबर पख्तूनख्वा प्रान्तीय विधानसभा में पीपुल्स पार्टी (पी.पी.पी.) के विधायक शेर आजम वजीर  ने गत 20मार्च के बयान से समझा  जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा,‘‘ हिन्दू हमारे दुश्मन है।‘‘ जब अल्पसंख्यक हिन्दुओं ने उनके इस बयान पर  विरोध व्यक्त किया,तो उन्होंने माफी माँगते हुए कहा,‘‘ उन्हें ‘हिन्दुस्तान ‘कहना चाहिए था,पर जुबान से हिन्दू निकल गया।
मानवाधिकार संगठनों के अनुसार सन् 2009-2010 के दौरान इस्लामिक कट्टरपन्थियों के  अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर  हमले बहुत तेजी से बढ़े थे। उस वक्त उनके मन्दिरों और पुजारियों को निशाना बनाया गया। ऐसी घटनाएँ सबसे अधिक सिन्ध प्रान्त में हुईं थीं।  पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग भी मानता है कि सिन्ध में हिन्दू खतरे में हैं। यहाँ से बड़ी तादाद में हिन्दू अपना घर-बार छोड़ कर भारत के अलग-अलग नगरों में शरण लेने को मजबूर हुआ है। उन्हें डरा-धमका कर मुसलमान बनाने का सिलसिला लगातार जा रही है। इस वजह से ये अल्पसंख्यक धर्मपरिर्वतन करने के साथ-साथ देश छोड़कर दूसरे मुल्कों में बसने को विवश हैं। 
अल्पसंख्यकों के हितों पर नजर रखने वाले एक अन्तर्राष्टीªय संगठन ‘माइनॉरिटी ग्रुप इण्टरनेशनल‘  के अनुसार अल्पसंख्यकों के लिए खतरनाक दस देशों की सूची में पाकिस्तान सातवें स्थान पर है। सन् 2007 से अल्पसंख्यकों पर खतरों मंे ज्यादा वृद्धि वाले देशों में पाकिस्तान पहले स्थान पर है। वर्तमान में पाकिस्तान में मुसलमानों की जनसंख्या 17.3करोड़, हिन्दुओं की 28.0लाख, ईसाइयों की 28.0लाख, सिखों की 20हजार है। इनके अलावा कुछ आबादी पारसी, बौद्ध,यहूदी, बहावी आदि की भी है। हिन्दुओं की सबसे अधिक आबादी सिन्ध प्रान्त में हैं जहाँ 6.51 प्रतिशत हिन्दू हैं। यहाँ के 80 प्रतिशत हिन्दू परिवार अत्यन्त निर्धनता में जीवन बसर कर रहे हैं। ऐसे में ये लोग देश छोड़कर दूसरे मुल्क में बसने की सोच भी नहीं सकते। जिन हिन्दुओं की थोड़ी भी आर्थिक हालत सही है,वे पाकिस्तान छोड़ रहे हैं।  इसके बाद बलूचिस्तान में हिन्दुओं की जनसंख्या का प्रतिशत 0.49 है। पंजाब प्रान्त में 0.13फीसदी और हिन्दुओं की सबसे कम जनसंख्या 0,03 उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त(एनडब्लूएफपी-फाटा) मंे है। अल्पसंख्यकों की हालत का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी अपनी सुरक्षा के लिए गृहमंत्री से कह कर थक गए,पर उन्हें सुरक्षा नहीं मिली। बाद में उन्हें दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया गया। सिन्ध की मीठी विधानसभा से मुस्लिम लीग(क्यू)के हिन्दू विधायक रहे रामसिंह साधौ का पलायन कर भारत में शरण लेनी पड़ी है। एक बडा मसला अल्पसंख्यक महिलाओं का  निकाह के जरिए मजहब बदलने का है। इसके लिए अल्पसंख्यक विशेष रूप से हिन्दू युवतियों को बलपूर्वक मुसलमानों से निकाह कर दिया जाता है। मुसलमान से निकाह का मतलब  है कि महिला निकाह से मना नहीं कर सकती। हाल ही में इस तरह के कई मामले सामने  आए हैं।ं हिन्दू किशोरियों/युवतियों के अपहरण का भी दूसरा बड़ा मुद्दा है। इस समुदाय  के लोगों और बच्चों का अपहरण कर बाद में भारी भरकम रकम  वसूल कर उन्हें रिहा कर किया जाता है। इस समय कई लोग अपहृत हैं। कई लोगों और बच्चों को आजादी के लिए बात चल रही है। 
यूँ तो भारत से अलग हुए पाकिस्तान का जन्म ही मजहबी नफरत की इस बिना पर हुआ है कि हिन्दू और मुसलमान दो जुदा कौमे हैं,जो एक साथ एक मुल्क में नहीं रह सकतीं। फिर भी पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों का अलग मुल्क बन जाने पर इसे पंथ निरपेक्ष बनाने की कोशिश की, पर ऐसा हो नहीं पाया।  उस बँटवारे में लाखों लोगों का विस्थापन हुआ। उस दौर की मजहबी हिंसा में लाखों की संख्या में हिन्दू-मुसलमान मारे गए। फिर भी पाकिस्तान ने कोई सबक नहीं लिया। यहाँ के हुक्मरान अपने असल मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने को कश्मीर के बहाने हिन्दुस्तान के खिलाफ नफरत भड़काते आए हैं। जनरल जिया उल हक और जनरल परवेज मुशर्रफ के समय से पाकिस्तान में इस्लामिक कट्टरपन्थियों को जरूरत से ज्यादा बढ़ावा मिला,उस वक्त ये कट्टरपन्थी सामाजिक तथा आर्थिक रूप से मुसलमानांे में अपनी पैठ बनाने में कामयाब हो गए। परिणामतः ये धीरे-धीरे सियासत में की मुख्यधारा के अगुवा हो गए। यहाँ जिहादी लेखन बड़ी मात्रा में लिखा जा रहा है जिसमें अपने मजहब की तारीफ और दूसरे मजहबों को घटिया बताते हुए उनसे नफरत करने की नसीहत दी जाती है। जेहादी किताबों में शिया, अहमदी, आगा खानी समुदाय के खिलाफ बहुत जहर उगला जाता है। तालिबान ने अहमदी और शिया मुसलमानों को इस्लाम और आम लोगों का दुश्मन कहा है। वह इन पर हमला करने वालों को बधाई देता था। कट्टरपन्थी  संगठन जमात-उद-दावा की पत्रिका ‘मंजाला-अल-दावा की प्रत्येक माह दो प्रतियाँ बिकती है। यही आतंकवादी संगठन ‘लश्कर-ए-तैयबा’चलता है,जो जम्मू-कश्मीर में दहशतगर्दी वारदातों को अन्जाम देता रहता है। पाकिस्तान के दूसरा आतंकवादी संगठन‘ जैश-ए-मोहम्मद’ दहशतगर्दो ने ही गत 14फरवरी को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा पर सी.आर.पी.एफ.के वाहन पर आत्मघाती हमला किया था,जिसमें 40जवान शहीद हुए थे। पाकिस्तान सरकार अपने कार्यरत तमाम जिहादी संगठनों पर  रोक लगाने में नाकाम साबित हो रहा है या कहें वह चाहता ही नहीं है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदायों विशेष रूप से हिन्दुओं की समस्या को भारत को अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाकर उनकी  सुरक्षा के लिए उचित निगरानी व्यवस्था करने को कदम उठाने चाहिए,ताकि उन्हें खौफ की जिन्दगी जीने से छुटकारा मिल सके।
सम्पर्क- डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब, गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054 

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