श्रीलंका के आतंकवादी हमले से सबक जरूरी
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
अपने देश में काँग्रेस,जम्मू-कश्मीर की सियासी पार्टियाँ नेशनल कॉन्फ्रेंस,पी.डी.पी.,पीपुल्स कॉन्फ्रेंस आदि समेत तथाकथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दल खुले आम दहशतगर्दो की गतिविधियों की अनदेखी ही नहीं,कुछ खुलकर मदद और तरफदारी करते रहते हैं। अब काँग्रेस ने दहशतगर्दों के बचाव के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में जम्मू-कश्मीर में सैन्य तथा सुरक्षा बलों को प्राप्त ‘सशस्त्र बल विशेषाधिकार सुरक्षा अधिनियम (अफस्पा ) को हटाने और ‘देशद्रोह अधिनियम‘ को खत्म करने की ऐलान किया है। क्या इसके माने यह नहीं है,उसे पाकिस्तान समर्थक दहशतगर्दो और उनके हिमायतियों की तो परवाह है,पर अपने देश की सुरक्षा,उसकी एकता, अखण्डता को अक्षुण्ण रखने को अपने प्राणों की बाजी लगा रहे सुरक्षा बलों की नहीं। इसके बाद जम्मू-कश्मीर, जे.एन.यू., जाधवपुर विश्वविद्यालय कोलकाता ,हैदराबाद विश्वविद्यालय, अलीगढ मुस्लिम यूनीवर्सिटी, पाकिस्तान की क्रिकेट की टीम की जीत पर ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद, हिन्दुस्तान मुर्दाबाद, भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह,इंशा अल्लाह,भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी,जंग चलेगी जैसे नारों के साथ पाकिस्तानी और आइ.एस.के झण्डे लहराने वाले देश के दुश्मन नहीं,तो कौन हैं? इन्हें खिलाफ देशद्रोह की कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए? फिर उन्हें इन देशद्रोहियों में नहीं,देशद्रोह अधिनियम में ही खोट दिखायी दे रहा है। यह सियासी नेताओं का यह दोगलापन और सत्ता की उनकी भूख देश के लिए बहुत घातक सिद्ध होगी,इसकी यहाँ के लोगों कितनी और कैसी पीड़ा झेलनी होगी,सोचकर दिल दहल उठता है। श्रीलंका के एक के बाद एक हुए आठ धमाकों की वजह भी राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरीसेन और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के आपसी मतभेद/मनमुटाव रही है।इसके कारण राष्ट्रपति सिरीसेन ने हमले की खुफिया जानकारी से प्रधानमंत्री का अवगत नहीं कराया। कमोबेश यही स्थिति हमारे देश की सियासी पार्टियों की है।
पिछले दिनों श्रीलंका में ईसाइयों के पवित्र त्योहार ईस्टर पर तीन गिरजाघरों तथा इतने ही पाँच सितारा होटलों पर इस्लामिक कट्टरपंथियों ने श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के जरिए कोई एक दशक से शान्त बने हुए इस द्वीप राष्ट्र को ही नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया समेत पूरी दुनिया को दहला दिया,जिनमें ढाई सौ से अधिक लोगों के मारे जाने के साथ-साथ कोई 500से ज्यादा घायल हुए हैं। इस वीभत्स नरसंहार को स्थानीय आतंकवादी संगठन ‘नेशनल तौहीद जमात’(एन.टी.जे.)के आत्मघाती हमलावरों ने अंजाम दिया,जो दुनिया के सबसे खंूखार इस्लामिक संगठन‘इस्लामिक स्टेट’से सम्बद्ध है, क्योंकि बाद में इसी आतंकवादी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी कबूल की है। इन आतंकवादियों द्वारा गिरजाघरों में ईसाई समुदाय और होटलों मंे ठहरे पश्चिम यूरोपीय नागरिकों को अपना निशाने बनाने की वजह कुछ समय पहले न्यूजीलैण्ड के क्राइस्ट चर्च में जुमे को दो मस्जिदों में एक श्वेत चरमपंथी द्वारा अंधाधुंध गोलियों बरसा कर 49 मुस्लिमों की जान से मार डालने का बदला लेना बतायी जा रही है। साथ ही अमेरिका द्वारा सीरिया में आइ.एस.के सफाये के ऐलान के बाद यह दहशतगर्द संगठन अपनी मौजूदगी को दिखाना चाहता था, इसलिए उसने श्रीलंका को इस बदले के लिए चुना है। वैसे यह इस्लामिक कट्टरपन्थी संगठन पाकिस्तान, मालदीव, बांग्लादेश और भारत में भी सक्रिय हैं। इसके कुछ आतंकवादी तमिलनाडु और केरल में पकड़े जा चुके हैं,
उनसे मिली जानकारियों के आधार पर भारत ने श्रीलंका सरकार को आतंकवादी हमलों को लेकर सर्तक-सावधान रहने को कहा था,पर श्रीलंका सरकार ने उस पर अपेक्षित सर्तकता और उस पर कार्रवाई नहीं की गई। जहाँ श्रीलंका में हुए इस आतंकवादी हमले को लेकर विश्व के अधिकतर देशों ने जिस तरह निन्दा/भर्त्सना, संवेदना, शोक ,दुःख प्रकट किया, वैसा इस्लामिक मुल्कों और उनके मजहबी रहनुमा ने नहीं। फिर ये ही लोग दूसरे मुल्कों और वहाँ के बाशिन्दों पर उन पर शक-शुबह और भेदभाव करने का इल्जाम लगाते हैं। क्या किसी एक सिरफिरे के जुल्म के लिए दूसरे मजहब के सैकड़ों बेकसूर लोगों का खून बहाना जायज ठहराया जा सकता है? लेकिन दुनिया में ऐसा ही हो रहा है,लोग अपने सियासी नुकसान और जान जाने के डर से इस हकीकत को बयान करने से डरते हैं। अपने देश में काँग्रेस,जम्मू-कश्मीर की सियासी पार्टियाँ नेशनल कॉन्फ्रेंस,पी.डी.पी.,पीपुल्स कॉन्फ्रेंस आदि समेत तथाकथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दल खुले आम दहशतगर्दो की गतिविधियों की अनदेखी ही नहीं,कुछ खुलकर मदद और तरफदारी करते रहते हैं। अब काँग्रेस ने दहशतगर्दों के बचाव के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में जम्मू-कश्मीर में सैन्य तथा सुरक्षा बलों को प्राप्त ‘सशस्त्र बल विशेषाधिकार सुरक्षा अधिनियम (अफस्पा ) को हटाने और ‘देशद्रोह अधिनियम‘ को खत्म करने की ऐलान किया है। क्या इसके माने यह नहीं है,उसे पाकिस्तान समर्थक दहशतगर्दो और उनके हिमायतियों की तो परवाह है,पर अपने देश की सुरक्षा,उसकी एकता, अखण्डता को अक्षुण्ण रखने को अपने प्राणों की बाजी लगा रहे सुरक्षा बलों की नहीं। इसके बाद जम्मू-कश्मीर, जे.एन.यू., जाधवपुर विश्वविद्यालय कोलकाता ,हैदराबाद विश्वविद्यालय, अलीगढ मुस्लिम यूनीवर्सिटी, पाकिस्तान की क्रिकेट की टीम की जीत पर ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद, हिन्दुस्तान मुर्दाबाद, भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह,इंशा अल्लाह,भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी,जंग चलेगी जैसे नारों के साथ पाकिस्तानी और आइ.एस.के झण्डे लहराने वाले देश के दुश्मन नहीं,तो कौन हैं? इन्हें खिलाफ देशद्रोह की कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए? फिर उन्हें इन देशद्रोहियों में नहीं,देशद्रोह अधिनियम में ही खोट दिखायी दे रहा है। यह सियासी नेताओं का यह दोगलापन और सत्ता की उनकी भूख देश के लिए बहुत घातक सिद्ध होगी,इसकी यहाँ के लोगों कितनी और कैसी पीड़ा झेलनी होगी,सोचकर दिल दहल उठता है। श्रीलंका के एक के बाद एक हुए आठ धमाकों की वजह भी राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरीसेन और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के आपसी मतभेद/मनमुटाव रही है।इसके कारण राष्ट्रपति सिरीसेन ने हमले की खुफिया जानकारी से प्रधानमंत्री का अवगत नहीं कराया। कमोबेश यही स्थिति हमारे देश की सियासी पार्टियों की है।
भारत के दक्षिण में हिन्द महासागर में स्थित द्वीप राष्ट्र श्रीलंका से हमारे सदियों पुराने धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक सम्बन्ध हैं। इसे कम गहरा पाक जलडमरूमध्य भारत से पृथक करता है। इसका क्षेत्रफल 65,610वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या-2,04,10,000है। इसमें 70प्रतिशत बौद्ध, 12 प्रतिशत तमिल हिन्दू ,10फीसदी मुसलमान तथा 7.5प्रतिशत ईसाई हैं, जो बौद्ध, हिन्दू, इस्लाम, ईसाई धर्मों के अनुयायी हैं। अतीत में सिंहली बौद्धों तथा तमिल हिन्दुओं और मुसलमानों से टकराव की घटनाएँ तो हुई है,पर ईसाइयों के साथ ऐसा कोई बड़ा विवाद कभी नहीं हुआ है। यहाँ सिंहली, तमिल, अँग्रेजी भाषाएँ बोली जाती हैं। इस देश की राजधानी कोलम्बो तथा मुद्रा रुपया है। जहाँ तक यहाँ सक्रिय इस्लामी जिहादी संगठन ‘नेशनल तौहीद जमात’ के नाम का प्रश्न है तो ‘तौहीद’अरबी भाषा शब्द है जिसका अर्थ है एक ही ईश्वर को मानना, अर्थात् ‘एकेश्वरवाद‘। ‘जमात-शब्द भी अरबी भाषा का है जिसके माने मनुष्यों का समूह, लोगों का गिरोह/जत्था,दर्जा,श्रेणी,कक्षा है। इस तरह एक ही ईश्वर को मानने वालों का समूह है।
अब भारत को श्रीलंका के आतंकवादी हमले से सबक लेते हुए दक्षिण एशिया में अपनी भौगोलिक एवं भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए इस्लामिक आतंकवाद की अनदेखी और ढिलाई बहुत महँगी पड़ सकती है।वह न केवल इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, मालदीव से घिरा हुआ है, बल्कि हिन्दू और सिंहली बौद्ध बहुल क्रमशः नेपाल तथा श्रीलंका में भी इस्लामिक जिहादी संगठन सक्रिय हैं। जहाँ पाकिस्तान में कट्टरपंथी जिहादी दहशतगर्द संगठनों ‘जमात-उद-दावा’, तालिबान, जैश-ए-मुहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, जमात-उर-अहरार, बलूची जिहादी संगठन- ‘जैश-अल-बदल, जैश-अल-नसर, अल फख्यान आदि के पनाहगाह, मददगार है, वहीं अफगानिस्तान में तालिबान, अलकायदा, आइ.एस. उसे हैरान-परेशान किये हुए हैं। इधर बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी, जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश(जे.एम.बी.) जिहाद फैलाने मंे लगे हैं, उधर श्रीलंका और मालदीव में नेशनल तौहीद जमात मुसलमानों में मजहबी कट्टरता भड़का रहा है। भारत में जम्मू-कश्मीर से लेकर देश के हर राज्य में ही नहीं,छोटे-बड़े नगरों मंे भी जिहादी संगठन सक्रिय हैं, जो पिछले पाँच सालों से केन्द्र सरकार के कठोर रवैये के कारण निष्क्रिय/सुप्त पड़े हुए हैं,जो विगत खुलकर में बम विस्फोटों के जरिये दहशत फैलाते हुए लोगों की जान ले रहे थे। इस्लाम को अपनी खास नजर से देखने वाले जिहाद के माने सिर्फ काफिर यानी गैर मजहब वालों का सफाया समझते और समझाते आए हैं। इनसे गुमराह हुए लोगों द्वारा जिहाद छेड़ा गया हैैै। जिहादी समूहों की एक रणनीति में एक खास पहलू देखने को मिलता है कि ये उस जगह /मुल्क को निशाना बनाते हैं,जहाँ उसके हमले के खतरे से लोग सबसे ज्यादा महफूज समझते हैं या ऐसी कोई उम्मीद ही नहीं रखते। इन जिहादियों का एक ही मकसद है जो उनके जिहाद के साथ नहीं ,वह उनका जानी दुश्मन है। ये अपनी पर आ जाएँ, तो अपने मददगारों की जान लेने से भी चूकते। इनके जिहाद से इराक, यमन, सीरिया, लीबिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान बर्बाद हो गए हैं या फिर इसके कगार पर पहुँचे चुके हैं। हैरानी-परेशानी की बात यह है कि इन जिहादियों ने सबसे ज्यादा खून हममजहबियों का ही बहाते हुए उनकी मस्जिदों तथा जियारत की जगहों को तबाह किया है, फिर भी इनके मजहबी मुल्कों के शासक और मजहबी रहनुमा खामोशी से इस खूनखराबे और एक-दूसरे को तबाह-बर्बाद करने के जुनून को खत्म करने को आगे नहीं आ रहे हैं,ऐसे में भारत जैसे गैर इस्लामी मुल्क की मदद को इनमें से कोई कुछ करेगा, यह सोचना ही फिजूल है। इसलिए भारत को इस जिहादी मानसिकता वाले गिरोहों से हमेशा सर्तक-सावधान रहने की जरूरत है,जो सदैव उस पर हमला करने की ताक में लगे हुए हैं। इनसे निपटने के लिए विशेष संगठन और खुफिया तंत्र भी खड़ा करना चाहिए,ताकि कोई चूक न हो।
सम्पर्क- 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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