सोनिया गाँधी बताएँ अब अपनी देशभक्ति की परिभाषा
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में स्ंायुक्त प्रगतिशील गठबन्धन(यूपीए) की अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने कहा कि हमें आज ‘देशभक्ति’ की नयी परिभाषा सिखायी जा रही है। विविधता को अस्वीकार करने वालों को ‘देशभक्त ‘कहा बताया जा रहा है। जाति, धर्म और विचारधारा के आधार पर अपने ही नागरिकों के साथ भेदभाव किये जाने को सही ठहराए जाने के जो अत्यन्त गम्भीर आरोप प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा पर लगाए हैं क्या वे वास्तव में सच हैं ? उनके इन आरोपों की पड़ताल करना जरूरी है। सामान्यतः देशभक्त के माने अपने देश/मातृभूमि से प्रेम, श्रद्धा, अनुराग करना/रखना है जिसे देश के चन्द जनों को छोड़ कर ज्यादातर लोग सदियों से मानते आए हैं, इनमें नरेन्द्र मोदी और भाजपाई भी सम्मिलित हैं। भारत के स्वतंत्र होने से पहले काँग्रेस भी इसी परिभाषा को मानती थी। उस समय वह न तो ‘भारत माता की जय’,‘वन्देमातरम‘् के नारे लगाने से परहेज करने वालों, राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को सम्मान न देने वालों की आज की तरह तरफदारी करती थी और न उसे धार्मिक/ अभिव्यक्ति स्वतंत्रता बताती/साबित ही करती थी। वैसे यह सच है कि देशप्रेम/देशभक्ति किसी कानून का विषय नहीं है। कानून में राष्ट्रीयता(नेशनलिटी)से मतलब सिर्फ नागरिकता(सिटीजनशिप)से है जिसका जन्म भारत में हुआ है या जिसने भारत की नागरिकता प्राप्त कर ली है। इसी बहाने वर्तमान में काँग्रेसी/वामपंथी सत्ता के लिए उन सभी लोगों की तरफदारी या उनके ªबेजा इस्तेमाल कर रही है। काँग्रेसी और वामपन्थी राष्ट्रवाद को देश के लोगों और उनके आपसी रिश्तों के लिए खतरा सिद्ध करने में जुटे हैं,जबकि अँग्रेजों की गुलामी को खत्म करने की जंग में ‘राष्ट्रवाद‘ की भावना ही प्रबल थी। इसे लेकर ही देश के करोड़ों लोगों समेत काँग्रेस ने भी यही लड़ाई लड़ी थी।
राष्ट्रवाद को लेकर महात्मा गाँधी का विचार था कि राष्ट्रवाद बुरी चीज नहीं है,बुरी है संकुचित वृत्ति, स्वार्थपरता और एकान्तिकता जो आधुनिक राष्ट्रों के विनाश के लिए उत्तरदायी है। इनमें से प्रत्येक राष्ट्र दूसरे की कीमत पर,उसे नष्ट करके उन्नति करना चाहता है। भारतीय राष्ट्रवाद ने एक भिन्न मार्ग चुना है। यह समूची मानवता के हित तथा उसकी सेवा के लिए स्वयं को संगठित करना है यानी पूर्ण आत्माभिव्यक्ति की स्थिति को प्राप्त करना है। उनका यह भी कहना था कि जो व्यक्ति राष्ट्रवादी नहीं,वह अन्तर्राष्ट्रवादी नहीं हो सकता। अन्तर्राष्ट्रवाद तभी सम्भव है,जब राष्ट्रवाद अस्तित्व में आ जाए,अर्थात जब भिन्न-भिन्न देशों के लोग संगठित हो चुकें और वे एक व्यक्ति की तरह काम करने के योग्य बन जाएँ। वस्तुतः वामपन्थियों को राष्ट्रवाद कभी नहीं सुहाया,क्यों कि इससे देश के लोग एकजुट होते हैं,जो वे या भारत के दुश्मन कभी नहीं चाहते। इसलिए विभिन्न बहानों से देश के राष्ट्रीयता के प्रतीक चिह्नांे-राष्ट्रीय ध्वज,राष्ट्रगान,राष्ट्रगीत,स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े तराने, नारों, प्राचीन इतिहास, धार्मिक, सांस्कृतिक एकता के सूत्रों को कमजोर करने और उनके प्रति विश्वास, निष्ठा को कम करने में जुटे हैं।
राष्ट्रवाद को लेकर महात्मा गाँधी का विचार था कि राष्ट्रवाद बुरी चीज नहीं है,बुरी है संकुचित वृत्ति, स्वार्थपरता और एकान्तिकता जो आधुनिक राष्ट्रों के विनाश के लिए उत्तरदायी है। इनमें से प्रत्येक राष्ट्र दूसरे की कीमत पर,उसे नष्ट करके उन्नति करना चाहता है। भारतीय राष्ट्रवाद ने एक भिन्न मार्ग चुना है। यह समूची मानवता के हित तथा उसकी सेवा के लिए स्वयं को संगठित करना है यानी पूर्ण आत्माभिव्यक्ति की स्थिति को प्राप्त करना है। उनका यह भी कहना था कि जो व्यक्ति राष्ट्रवादी नहीं,वह अन्तर्राष्ट्रवादी नहीं हो सकता। अन्तर्राष्ट्रवाद तभी सम्भव है,जब राष्ट्रवाद अस्तित्व में आ जाए,अर्थात जब भिन्न-भिन्न देशों के लोग संगठित हो चुकें और वे एक व्यक्ति की तरह काम करने के योग्य बन जाएँ। वस्तुतः वामपन्थियों को राष्ट्रवाद कभी नहीं सुहाया,क्यों कि इससे देश के लोग एकजुट होते हैं,जो वे या भारत के दुश्मन कभी नहीं चाहते। इसलिए विभिन्न बहानों से देश के राष्ट्रीयता के प्रतीक चिह्नांे-राष्ट्रीय ध्वज,राष्ट्रगान,राष्ट्रगीत,स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े तराने, नारों, प्राचीन इतिहास, धार्मिक, सांस्कृतिक एकता के सूत्रों को कमजोर करने और उनके प्रति विश्वास, निष्ठा को कम करने में जुटे हैं।
वैसे सोनिया गाँधी देश के लोगों को बताएँ कि क्या भारत तेरे टुकड़े होंगे,इंशा अल्लाह, इंशा अल्लाह, कश्मीर माँगे आजादी, अफजल हम शर्मिन्दा हैं,तेरे कातिल जिन्दा हैं सरीखे नारे लगाने वाले कन्हैया कुमार और उसके साथियों का खुलकर समर्थन करना, पाकिस्तानी झण्डा लहराते हुए हिन्दुस्तान मुर्दाबाद, पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाने वाले अलगाववादियों से हमदर्दी तथा उनके राष्ट्र विरोधी कार्यों पर चुप्पी, आतंकवादियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने पर थल सेनाध्यक्ष को गली का गुण्डा कहकर गरियाना, अब पी.ओ.के.क्या तुम्हारे बाप का है,जो तुम उसे ले लोगो?की ललकार लगाने वाले नेशनल कॉन्फ्रेंस(नेका) के अध्यक्ष डॉ.फारुक अब्दुल्ला की पार्टी से चुनावी गठबन्धन करना देशभक्ति की उनकी पुरानी परिभाषा है?।हालाँकि भाजपा ने भी सत्ता के लालच में डॉ.फारुक अब्दुल्ला से कहीं बड़ी अलगाववादियों/पाक समर्थकों की हमदर्द महबूबा मुफ्ती की पार्टी के साझा सरकार बनाकर यही पाप किया है।
अब जहाँ तक सोनिया गाँधी का विविधता को अस्वीकार करने वाले को ‘देशभक्त‘ बताने के आरोप की बात है तो भाजपा समेत सभी भारतीय अपने देश की विविधता में एकता को हृदय से स्वीकारते आएँ हैं, पर विविधता के माने इस मुल्क का अन्न-पानी खा-पीकर पले-बढ़े होकर मुल्क से गद्दारी और पराये मुल्क से हमदर्दी रखने वालों से राहुल गाँधी, दिग्विजय सिंह आदि की तरह मुहब्बत रखना ही शायद किसी हिन्दुस्तानी को मंजूर हो।
अब जहाँ तक सोनिया गाँधी के जाति, धर्म और विचारधारा के आधार पर अपने नागरिकों के साथ भेदभाव किये जाने का आरोप प्रश्न है तो इसमें काँग्रेस न केवल निष्णात है,बल्कि इस तरह के भेदभाव का उसका पिछले सत्तर साल का इतिहास गवाह है। वह देश के लोगांे को जाति, मजहब, अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक, आरक्षण की आड़ में जातिभेद पैदा कर उन्हें वोट बैंक बनाकर सत्ता सुख भोगती आयी है।वैसे इस मामले में भाजपा भी यही सब कर रही है। यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना था कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। ऐसा उन्होंने क्यों कहा? क्या यह काँग्रेस का मजहब के आधार पर यह भेदभाव नहीं है? भारतीय संविधान में निर्धन दलितों के लिए आरक्षण की व्यवस्था केवल 10वर्ष के लिए थी, उसे संविधान में हर दस साल बाद संशोधन कर किसने आगे बढ़ाया,यह जाति आधारित भेदभाव नहीं,तो क्या है?क्या इसके लिए काँग्रेस सबसे ज्यादा जिम्मेदार नहीं है।
सोनिया गाँधी ने यह आरोप भी लगाया है कि पिछले कुछ समय से हमारे देश की मूल आत्मा को सोच-समझी साजिश के तहत कुचला जा रहा है,जो चिन्ताजनक है। इस मामले में सोनिया जी से पूछा जाना चाहिए इस देश की मूल आत्मा क्या है,जो सिर्फ पाँच साल में नरेन्द्र मोदी सरकार ने कुचल दिया है। अगर उनकी समझ से इस्लामिक कट्टरपन्थियों और ईसाई मिशनरियों को तरह-तरह के प्रलोभन तथा हिन्दू/आदिवासी धर्म में कमियाँ बताकर खुल कर मतान्तरण और इस मुल्क के लोगों को अपने ही मुल्क के खिलाफ खड़ा करने की छूट पर पाबन्दी को ही, वे इस देश की मूल आत्मा को कुचला जाना समझ रही है,तो उनका यह आरोप सौ फीसदी सही है। इस कारण यह है कि केन्द्र सरकार ने अब समाज सेवा के नाम पर इस देश के हितों के विरुद्ध कार्य करने वाले हजारों गैर सरकारी संगठनों(एन.जी.ओ.) की विदेशी धन की आमद पर रोक लगा दी है,इससे इस्लामिक कट्टरपन्थी संगठन और ईसाई मिशनरी बेहद परेशान हैं। इतना ही नहीं, केन्द्र सरकार राष्ट्र जाँच एजेन्सी(एन.आइ.ए.)से जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों के संगठन हुर्रियत के नेताओं,जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रण्ट समेत कई नेताओं को विदेशों से मिलने वाले धन की जाँच करा रही है।इनमें कई जेल में हैं।इससे अब सोनिया गाँधी की विचारधारा वालों बहुत तकलीफ हो रही हैं।
सोनिया जी का आरोप है कि पैंसठ सालों में जिन संस्थाओं को हमने बुलन्दियों पर पहुँचाया उन सभी का जानबूझकर करीब-करीब खत्म कर दिया गया है। वह जिन संस्थाओं की ओर संकेत कर रही हैं,तो क्या न्यायपालिका, चुनाव आयोग, जाँच एजेन्सियाँ यथा-केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो(सी.बी.आई.),आई.बी., विश्वविद्यालयों आदि को वर्तमान सरकार ने बर्बाद कर दिया है,तो इस मामले में भीस देश की जनता से कहीं ज्यादा सोनिया गाँधी से बेहतर जानती हैं। इन संस्थाओं के साथ काँग्रेस ने जितना खिलवाड़ किया है,उतना शायद कोई उसका उतना दुरुपयोग करने का दुःसाहस भी करें। आपातकाल इसका सबसे निकृष्टतम उदाहरण है।
सोनिया गाँधी ने यह आरोप भी लगाया है कि वर्तमान सरकार असहमति के सम्मान करने को तैयार नहीं है। जब अपनी आस्था कायम रहने वालों पर हमले होते हैं तो केन्द्र सरकार मुँह मोड़ लेती है। यह आरोप लगाते हुए भी सोनिया जी भूल गई कि विगत में उनकी सरकारें ने अपने से असहमति रखने वालों के साथ कैसा बर्ताव करती आयी हैं? आपातकाल में हजारों की संख्या में विपक्षी दलों के नेता और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कराके उन पर कैसे जुल्म ढहाये थे,उसे देश के लोग भूले नहीं हैं। उनकी यूपीए सरकार ने भी हिन्दू संगठनों से जुड़े बेकसूर लोगों को आतंकवादी बताकर जेल में ठूँस दिया है,जिन्हें विभिन्न न्यायालयों ने सुबूतों के अभाव में छोड़ दिया है। इतना ही नहीं, अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए ‘भगवा आतंकवाद’का प्रचार कर हिन्दुओं की भावनाओं से खिलवाड़ किया। अब जहाँ तक अपनी आस्थओं कायम रहने वालों पर हमले किये जाने का सवाल है तो उनका इशारा किस ओर वे ही जानती होंगी। वैसे पाकिस्तान से हमदर्दी और अपने मुल्क से बैर रखने वालों पर सेना तथा सुरक्षा बल जरूर हमले कर रहे हैं, अगर इससे सोनिया जी और उन जैसे नेताओं को तकलीफ हो रही है,तो उनका यह आरोप बिल्कुुल सच है। जहाँ तक ऐसे मामलों में सरकार द्वारा मुँह मोड़ लेने का आरोप है तो सोनिया जी बताएँगी कि नब्बे के दशक में जब कश्मीर घाटी में इस्लामिक कट्टरपन्थी पाकिस्तान के इशारे पर बन्दूक की नोक पर कश्मीरी पण्डितों को घाटी छोड़ने को मजबूर कर रहे थे, तो उनकी सरकार क्यों मूकदर्शक बनी रही? यहाँ तक कि काँग्रेस ने मुस्लिम वोट बैंक के फेर में कभी खुल कर कश्मीर पण्डित की घर वापसी की चर्चा तक नहीं की। अब काँग्रेस ने मुसलमानों को भरोसा दिलाने को अनुच्छेद 370 को यथावत बनाये रखने की वादा अपने घोषणा पत्र में भी किया है।इसी तरह का भरोसा कश्मीरी पण्डित की घर वापसी के लिए क्यांे नहीं किया हैं? फिर भी वह भाजपा पर आस्था पर कायम रहने वालों पर हमले करने का बेशर्मी से झूठा आरोप लगा रही है। अब देशभक्ति सही परिभाषा क्या है?यह इस चुनाव में देश के लोगों को सोनिया गाँधी, काँग्रेस,पन्थियों, इनकी ही विचाराधारा रखने वाली दूसरी सियासी पार्टियों को हरा कर बताना है।
सम्पर्क- डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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