फिर विभीषणों/जयचन्दों की तरफदारी
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में महाराष्ट्र के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था)परमवीर सिंह ने भीमा कोरेगाँव मामले में हिंसा फैलाने, नक्सलियों से सम्पर्क रखने के मामले में छह राज्यों से गिरफ्तार पाँचों माओवादी(नक्सलवादियों) देश-विदेश से धन जुटा करके रूस तथा चीन से हथियार खरीद कर घातक हथियार खरीदने, निर्वाचित सरकारों को गिराने के साथ-साथ राजीव गाँधी की तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या करने का षड्यंत्र रच रहे थे, जो अपने राष्ट्र/राज्य से युद्ध छेड़ने जैसा सरासर राष्ट्रद्रोही कृत्य है। इतना ही नहीं, ये लोग कश्मीर के इस्लामिक जेहादियों, अलगावदियों समेत देश के दूसरे हिस्से में समाज और देश विरोधी संगठनों के मददगार बने हुए थे। ये लोग कश्मीर समेत देश में चल रहे विभिन्न आन्दोलन में घुसपैठ कर लोगों को अपने देश के खिलाफ लड़ने और हिंसा को भड़काते आए हैं। फिर भी इस मामले में पुणे पुलिस द्वारा गिरफ्तार इन पाँचों माओवादियों को देश के विभिन्न नगरों के अलग-अलग क्षेत्रों में कार्यरत कुछ कथित बुद्धिजीवी, मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, साहित्यकार, इतिहासकार, कवि, समाजसेवी और अब काँग्रेसी नेता भी उन्हें न केवल बेकसूर बता रहे हैं, बल्कि केन्द्र सरकार को दोषी ठहराते हुए मुल्क में आपातकाल जैसे हालात पैदा करने का आरोप लगा रहे हैं। इनमें से कुछ इन्हें छुड़ाने को उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर गुहार लगाने पहुँच गए, जबकि कम से कम से काँग्रेसी तो इन माओवादियों की असलियत से अच्छी तरह वाकिफ भी थे और उसके कोई दो दर्जन से अधिक छोटे-बड़े नेता उनकी हिंसा के शिकार भी हो चुके हैं। उनकी संप्रग सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नक्सवाद को देश की आन्तरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया था और तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री पी.चिदम्बरम ने भी बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता तथा गैर सरकारी स्वयं सेवी संस्था(एन.जी.ओ.)का चोंगा पहने शहरी नक्सलियों को भूमिगत नक्सलियों को सुरक्षा कवच बताया था। नवम्बर,2013में संप्रग सरकार ने उच्चतम न्यायालय में शपथपत्र देकर कहा था कि माओवाद का मुखौटा बने हुए बुद्धिजीवी नगरों में सक्रिय हैं। इस शपथ पत्र के अनुसार ऐसे तत्त्व नक्सलियों की हथियारबद्ध गुरिल्ला टुकड़ी से भी अधिक खतरनाक हैं।
कैसे ये तथाकथित बुद्धिजीवी मानवाधिकार तथा असहमति की आड़ लेकर सुरक्षा बलों की कार्रवाई को कमजोर करने के लिए कानूनी प्रक्रिया का सहारा लेते हैं और मिथ्या प्रचार के सरकारी और सरकारी संस्थाओं को बदनाम करते हैं। ।उस दौरान में 2009 में नक्सलियों के सफाये को ‘ऑपरेशन ग्रीन हण्ट‘ चलाया था, जिसमें बड़ी संख्या में नक्सली मारे गए थे। इनमें कुछ माओवादी बन्दी बना कर जेल भी भेजे गए थे। वहाँ से सजा काट कर कुछ बाहर आ चुके थे। ये माओवादी/वामपंथी जिस नक्सलवादी संगठन से जुड़े हैं वह इस समय देश में होने वाली हिंसक वारदातों और उनमें होने वाली सबसे ज्यादा मौतों के लिए जिम्मेदार है।पिछले दो दशक में कोई 12हजार लोग मारे गए हैं,जिनमें 2,700सुरक्षा बलों के जवान सम्मिलित हैं। भारत का नक्सली संगठन इस्लामिक आतंकवादी संगठन आई.एस.,तालिबान के बाद दुनिया तीसरा सबसे बड़ा हिंसक आतंकवादी संगठन है। नक्सली भारतीय गणतंत्र तथा इसके बुर्जुआ संविधान को नष्ट कर माओववादी चीन के मॉडल का कम्युनिस्ट राज्य कायम करना चाहते हैं। यह किसी पार्टी विशेष के खिलाफ नहीं ,बल्कि भारत के विरुद्ध है जो इसकी स्वतंत्रता, एकता, सार्वभौमिकता ही नहीं, भारत के अस्तित्व को ही खत्म करना चाहते हैं, ताकि उनकी सत्ता स्थापित हो सके। ये लोग चीन और भारत के दूसरे शत्रुओं के सहयोग और सहायता से इसे बर्बाद करने में जुटे हैं। दशकों पहले पश्चिम बंगाल के नक्सबाड़ी गाँव से दलित, शोषित किसानों और मजदूरों को सामन्ती व्यवस्था से छुटकारा दिलाने को शुरू हुआ। यह हिंसक आन्दोलन प्रचुर खनिज एवं वन सम्पदा से सम्पन्न पश्चिम बंगाल से ओडिसा ,झारखण्ड, बिहार, छत्तीसगढ़, म.प्र., आन्ध्र, तेलंगाना,कर्नाटक, महाराष्ट्र यानी दस राज्यों के 68जिलों में फैल गया,जिसे ‘लाल गलियारा‘ कहा जाता है।ये नक्सलवादी स्थानीय लोगों को यह कहकर भड़काते की उनकी खनिज,वन सम्पदा को सरकार तथा पँूजीपति लूट रहे हैं।
अब जहाँ इनकी सुनवायी करते हुए उच्चतम न्यायालय ने इन वामपंथी माओवादियों को पुलिस हिरासत में रखने के बजाय उनके घरों पर नजरबन्द रखने का आदेश दिया है,वहीं विरोध/असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व बताया है। लेकिन विरोध/असहमति जताने के माने देश के टुकड़े करना/उसकी बर्बादी के कार्य करना नहीं होता, जैसा कि ये वामपंथी/नक्सलवादी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मेें आड़ में प्रचारित करते आए हैं। उधर पुलिस महानिदेशक का दावा है कि पहले जून, 2018 को गिरफ्तार पाँच माओवादियों से मिली जानकारी के आधार अब 28 अगस्त,मंगलवार को भी पाँच गिरफ्तार माओवादियों के पास से मिले हजारों पत्रों से इनके देश के कई हिस्सों में हुई हिंसक घटनाओं में अहम भूमिका का पता चला है। इन्हें गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम कानून(जिसे संप्रग सरकार ने ही सशक्त किया था) और आई.पी.सी.के विभिन्न धाराओं में गिरफ्तार किया है, लेकिन सियासी विरोध में अन्धे या जातिगत और मजहबी सियासत के जरिए एक मुश्त वोट हासिल कर सत्ता सुख भोगने की लालसा पाले /भोगते आए सियासी नेताओं के लिए सत्ता तथा धन मुल्क और उसके लोगों की हिफाजत से बढ़कर हैं। यही कारण है कि अपने देश के ये विभीषण कभी जे.एन.यू. में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे‘, ‘कश्मीर माँगे आजादी‘, ‘कितने अफजल मारोगे,घर-घर अफजल पैदा होंगे‘ के नारे लगाने वाले कन्हैया कुमार, उमर खालिद जैसों की हिमायत में आगे आते रहते हैं, तो कभी कश्मीर के पत्थरबाजों, अलगाववादियों के। अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के नाम पर देश विरोधी नारे लगाने, तो मजहबी आजादी के बहाने राष्ट्रगान जन गण मन,राष्ट्रीय ध्वज फहराने, राष्ट्रगीत वन्देमातरम के गायन, भारत माता की जय का नारा न लगाने की तरफदारी करते आए हैं। दलितों की विजय के उत्सव के नाम पर ये लोग हर साल भीमा कोरेगाँव में पेशवा के महल के सामने जलसा का आयोजन कर मराठों को चिढ़ाने का काम करते आए हैं, जहाँ जनवरी,1818में ईस्टकम्पनी की सेना ने पेशवा(मराठा) की सेना को हराया था। इनका कहना है कि कम्पनी की सेना में महार जाति के सैनिक बड़ी संख्या में थे,जो तब अछूत समझे जाते थे। इस वर्ष ‘यलगार परिषद्‘ने जिग्नेश मेवाणी, उमर खालिद को बुलाया,जिन्होंने मराठों/सवर्णओं के खिलाफ जमकर जहर उगला,तब इसकी प्रतिक्रिया हुई। इससे हिंसा भड़की और कªछ लोगों की जानें गई तथा बड़ी पैमाने पर सम्पत्ति भी नष्ट हुई।
अब पकड़े गए इन वामपंथी/माओवादियों के बारे में भी जान लें। इनमें हैदराबाद(तेलंगाना) के तेलुगू कवि वरवर राव वैरनान गोंजाल्विस ,ठाणे से के अरुण फरेरा(मुम्बई), फरीदाबाद की ट्रेड यूनियनिस्ट और वकील सुधा भारद्वाज, दिल्ली के मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा है इनमें से कई पहले भी जेल जा चुके हैं। वैसे ये सभी नक्सल समर्थक, प्रो.जे.एन.साईबाबा को छुड़ाना चाहते हैं जो इस समय जेल में उम्रकैद काट रहे हैं। तब इन नक्सलियों के पास घातक हथियार,विस्फोटक और नक्सली प्रचार सामग्री पकड़ी गई थी। लोकतांत्रिक व्यवस्था लोकतांत्रिक मूल्यों से चलती है,छद्म वामपंथी तरीकों से नहीं है। अब समय आ गया है जब अपने देश में जो लोग रातदिन मजहबी हुकूमत या वामपंथी तानाशाही लाने के लिए लोकतंत्र की आड़ में या उससे मिलीं हर तरह की स्वतंत्रताओं का लगातार दुरुपयोग करते आए है,पर पकड़े जाने पर लोकतंत्र तथा संविधान की दुहाई देते है। ऐसे नकाबधारियों को बेनकाब कर उन्हें कठोरतम सजा दिलाना बहुत जरूरी है। ऐसा किये बगैर देश और उसके लोगों की सुरक्षा सम्भव नहीं है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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