ऐसे में आम आदमी की कौन सुनेगा?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों मथुरा के बल्देव विधानसभा क्षेत्र से राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा के विधायक पूरन प्रकाश का अपने इलाके के महावन के थानाध्यक्ष के भ्रष्टाचार की शिकायत पर पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा उसके खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई न करने से दुःखी होकर यह कहना माने रखता है कि लानत है ऐसी विधायकी को, जो अपने क्षेत्र के लोगों को भ्रष्टाचारी से मुक्ति दिलाने में लाचार हैं। कुछ ऐसा ही आक्रोश भाजपा विधायक साधना सिंह ने चन्दौली के प्रभारी मंत्री जयप्रकाश निषाद द्वारा शिकायतें की सुनवायी न करने पर यह कहकर व्यक्त किया कि आपके द्वारा आहूत बैठक में क्यों आयंे ?,जब आप हमारी बात सुनना ही नहीं चाहते। ऐसे में आम जनता की पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी कितनी सुनवायी करते होंगे, यह समझना मुश्किल नहीं है।
वैसे यह स्थिति वर्तमान राज्य सरकार के साथ-साथ देशभर की केन्द्र तथा राज्य सरकारों की हैं। पहले तो जनप्रतिनिधि के रूप में चुनने जाने वाले सांसद और विधायक अपना, अपने परिजनों, रिश्तेदारों के साथ-साथ आर्थिक रूप से सहयोग करने वालों के अलावा किसी के और के हित में कुछ बोलते-करते ही नहीं है, अगर इसके अपवादस्वरूप इनमें से कुछ करना भी चाहे, तो उसे करने नहीं दिया जाता है। केन्द्र और राज्यों में राजनीतिक पार्टियों की सत्ता बदलती है,पर नौकरशाहीं या प्रशासनिक तंत्र का रवैया तथा कार्यशैली नहीं बदलती। इसका प्रमुख कारण राजनेताओं, नौकरशाही, सत्ता के दलालों के बीच अटूट गठजोड़ और जनता के विरुद्ध दुरभि सन्धि है, जो अलग-अलग तरीकों से जनता तथा देश के प्राकृतिक संसाधनों की लूट करता आया है। ये राजनेता आमजन को भरमाने को एक-दूसरे पर आरोप तो लगाते हैं कि लेकिन सत्ता में आने पर उनके खिलाफ न केवल कार्रवाई करने से बचते हैं, बल्कि आरोपी को बचाने के लिए उनकी हर सम्भव मदद भी करते हैं, ताकि भविष्य में उनके विरुद्ध भी कोई कार्रवाई न करे।
यही कारण है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में राज्य में भाजपा की सरकार बनने पर लोगों को उससे अधिक अपेक्षाएॅ थीं कि यह सरकार सपा और बसपा सरकारों की अपेक्षा जनहित में बेहतर कार्य करेगी और विभिन्न सरकारी विभागांे में व्याप्त भ्रष्टाचार से छुटकारा भी दिलायेगी, लेकिन पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों, सरकारी कर्मचारियों के व्यवहार में कोई बदलाव देखने में नहीं आ रहा है यहाँ तक कि भाजपा के विधायक /सांसदों का बर्ताव दूसरी पार्टियों से कतई अलग नहीं है। गत नौ जुलाई को बागपत जेल में माफिया मुन्ना बजरंगी की गोली मार कर हत्या की। इससे राज्य की जेलों में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार और उससे पैदा अराजकता उजागर हुई। अब इसकी पुष्टि मुख्यमंत्री योगी जी के जेलों में सुधारों के लिए पूर्व पुलिस महानिरीक्षक सुलखान सिंह के नेतृत्व में गठित समिति ने करते हुए कहा है कि राज्य की कई जेलें बारूद के मुहाने पर हैं, जहाँ बन्द बाहुबली अपनी हुकूमत चलाते हैं। इन जेलों में कई स्तर पर सुरक्षा व्यवस्था में बड़ी खामियाँ भी हैं। राज्य की जेलों के बारे में इस समिति ने और क्या लिखा है,उसका पता नहीं है, वैसे उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे देश की जेलें रिश्वत न देने वालों के लिए नर्क से बदतर और जेल अधिकारियों तथा प्रहरियों को उनके द्वारा माँगी घूस देने पर हर मनमर्जी करने की छूट है। लेकिन आज तक किसी भी विधायक/सांसद ने जेलों के सम्बन्ध में कभी किसी तरह का बयान नहीं दिया है। ऐसा लगता है कि देश के ज्यादातर जनप्रतिनिधियों का एकमात्र मकसद अपने लिए हर तरह से अधिकाधिक धन और सुविधाएँ अर्जित करना है। यही कारण है कि उन्हें जनता की तकलीफों से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि जेल मंत्री तो जेलों में बन्दियों से होने वाली लूट में शामिल होते हैं।
हाल में राज्य में राशन सॉफ्टवेयर में सेंध लगाकर कर किया जा रहा खाद्यान्न घोटाला उजागर हुआ, जिसके माध्यम से गरीबों का निवाला छीना जा रहा था। इसी 13 सितम्बर को एटा में आगरा की एण्टी करप्शन टीम ने खाद्य सुरक्षा अधिकारी से एक व्यापारी से 20 हजार रिश्वत लेते गिरफ्तार किया गया, जो उससे 50 हजार प्रति की महीनेदारी की माँग कर रहा था। इससे पहले 6 सितम्बर को आगरा में एबीएसए कार्यालय में तैनात सोबरन सिंह को विजिलेंस ने एक प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक से वेतन वृद्धि एवं एरियर बनाने के लिए 10हजार रुपए रिश्वत में लेते पकड़ा था। बरहन के इण्टर कॉलेज के शिक्षक के अनुसार विध्वित तरीके से तबादला कराने में पाँच लाख रुपए से अधिक घूस देनी पड़ती है। शिक्षा विभाग में शिक्षकों के तबादलों और विभिन्न मामलों मे होनेे वाली रिश्वतखोरी में अधिकारियों और शिक्षामंत्री की मिलीभगत होती है। इसलिए ये मंत्रिगण अनजान होने का ढोंग/दिखावा करते हैं।
इधर हाल में खनिजों की जमाखोरी, काला बाजारी के खिलाफ अभियान चला रही भूतत्त्व एवं खनिकर्म, महिला कल्याण और राजस्व की अपर मुख्य सचिव रेणुका कुमार चला रही थी, तो नखनन माफिया के उनके खिलाफ लामबद्ध हो गए तथा खनिज माफियांे के पैरोकार शासन स्तर पर उनके विरुद्ध खड़े गए। इसके साथ- ही वह ग्राम समाज की जमीनों जिलाधिकारियों द्वारा सर्किल रेट पर औद्योगिक विकास प्राधिकरणों को उपलब्ध कराने के निर्णय से भी नाराज थीं। बताया जाता है कि इस कारण वे तीन महीने की लम्बी छुट्टी पर चली गई हैं। इससे स्पष्ट है कि खनन माफिया पहले की तरह ही सक्रिय है। इससे पहले मिर्जापुर से भाजपा के सांसद ने भी खनन माफिया की शिकायत की थी, जो नदी का बहाव रोक कर खनन कर रहा था, किन्तु उन सांसद की कहीं सुनवायी नहीं हो रही थी। इससे स्पष्ट है कि राज्य में तरह-तरह के माफिया शासन-सत्ता में किस हद दखल रखते हैं जिनके आगे शासन-प्रशासन लाचार बना हुआ है। वैसे भी कोई भी खनन माफिया स्थानीय जनप्रतिनिधियों, पुलिस के संरक्षण के बगैर तो खनन करने से रहा है,पर कभी-कभी रिश्वत की रकम को लेकर जब तब तालमेल टूटता है, तब पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी उनके खिलाफ कार्रवाई का दिखावे जरूर करते रहते हैं।
देश से भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की वादा करके सत्ता में आए प्रधानमत्री नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत जहाँ पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों के भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के बजाय आम जनता को रिश्वत दोषी मानते हुए सात साल की सजा का प्रावधान किया है, वहीं उनका बचाव का। इससे स्पष्ट है कि मोदी जी जनता को ही भ्रष्टाचारी मानती हैं, जो बेचारे सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों को रिश्वत लेने को मजबूर करती है। इधर मोदी जी ने अपने बचाव के लिए अभी तक ‘लोकपाल‘को नियुक्त नहीं किया है,ताकि उनके सरकार के अनुचित कार्यों की जाँच कर सके।
राज्य में आगरा समेत शिक्षा विभागों में अपार भ्रष्टाचार व्याप्त है। आगरा के बी.एस.ए. कार्यालय में हर कार्य को कराने की रिश्वत की दर की तय है, जो स्थानीय समाचार पत्रों में भी प्रकाशित होती रहती है। इससे भ्रष्टाचारियों पर कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर शिक्षा विभाग में निर्धाति चढ़ावा न चढ़ावा, तो किसी भी स्तर का काम होना मुश्किल ही नहीं, असम्भव है। आगरा विजिलेंस द्वारा आधा दर्जन से भी अधिक अधिकारियों को घूस लेते पकड़े जाने पर भी यहाँ रिश्वत लेना बन्द नहीं हुआ है। एस.आई.टी.ने डॉ.भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय,आगरा से कोई पाँच हजार फर्जी अंक पत्रों तथा उपाधियों से शासकीय क्षिक्षक बने लोगों के खिलाफ रिर्पोट दर्ज करने का अनुरोध किया है, लेकिन कुलपति अज्ञात कारणों से उनके विरुद्ध कैसी भी कार्रवाई करने से बच रहे हैं, यहाँ तक कि उन्होंने तत्कालीन कुलसचिव द्वारा सम्बद्धता विभाग में वर्षों से जमी चर्चित महिलाकर्मी का तबादल रद्द करके सबको चौका दिया, जिससे अधिकांश काँलेज वाले विभिन्न कारणों से परेशान हैं। इस विश्वविद्यालय में विगत दो दशकों से कई कुलपति ऐसे आते रहे हैं, जिन्होंने इस विश्वविद्यालय की व्यवस्था को खराब करने और अपनी जेबे भरने में नये-नये प्रतिमान स्थापित किये हैं। उनके दौर में बगैर दाखिला लिए ही इंजीनियरिंग की डिग्रियाँ, बी.एड. और दूसरी परीक्षाओं में मनचाहे अंक बाँटे गए। पिछले दो कुलपतियों, एक कुलसचिव समेत और 19 कर्मचारियों पर हाल में विजीलेंस द्वारा मुकदमा दर्ज कराया गया है। हैरानी की बात यह है कोई दशक से भ्रष्टाचार और अव्यवस्था से छात्रों के परेशान होते देखने के बाद भी इस दौरान किसी भी जनप्रतिनिधि (केन्द्रीय शिक्षा राज्यमंत्री रहते हुए भी) ने भी संसद और विधानसभा में विश्वविद्यालय की अव्यवस्थाओं को लेकर आवाज नहीं उठायी, जिसके कारण लाखों छात्रों का भविष्य हो चुका है।
प्रदेश में भ्रष्टाचार के आरोप में परिवहन चार परिवहन अधिकारियों (आर.टी.ओ.) को निलम्बित किया जा चुका है, पर परिवहन विभाग में बगैर दलाल और दाम के कोई काम नहीं हो रहा है। हालाँकि परिवहन मंत्री रिश्वत की शिकायत पर सख्त कार्रवाई करने का भरोसा दिला रहे हैं। उनके रोडवेज में भारी घोटाला पकड़ा गया है जिसमें अधिकारियों की मिलीभगत से चालक-परिचालक मिलकर सरकारी बसों में फर्जी टिकट काट कर अपनी जेबें भर रहे थे। आगरा जनपद के निबोहरा थाने के पुलिस ने हत्या और आर्म्स एक्ट में न्यायालय से गैरजमानती वारण्ट जारी होने पर इसी 28 अगस्त को आरोपी महेश दिवाकर के स्थान पर निर्दोष महेश चन्द वर्मा को सुबूत देने पर भी 10,000 रुपए रिश्वत में न देने पर जेल भेज दिया, जबकि उसके दोनों के पिता के नाम और गाँव अलग-अलग थे। जमानतदारों द्वारा वास्तविक अपराधी महेश दिवाकर को ढँूढकर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के समक्ष करने के बाद तथा इस मामले में थाना पुलिस के दोषी पाए जाने पर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा रही है। इससे पुलिस अधिकारियों की भ्रष्टाचार पर रवैये का पता चलता है। कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों ने नरेन्द्र मोदी / योगी जी का डर दिखाकर रिश्वत की दरें बढ़ा दी हैं। राज्य भर के फर्म्स, सोसाइटीज एण्ड चिट्स के उपनिबन्धक कार्यालय हों या जमीन-जायदादा खरीदने-बेचने का पंजीकरण करने वाले निबन्धक कार्यालयों में घूस के बगैर कैसा भी काम नहीं होता, पर शायद ही किसी उपनिबन्धक को भ्रष्टाचार में पकड़ा गया हो। वैसे भी ज्यादातर विधायक /सांसद आम जन तथा कार्यकर्ताओं को झूठी दिलासा देकर टकरा देते है, ये लोग उन्हीं के काम करते है, जहाँ से धन मिलता है।
देशभर में जनता और उसके हितों की आवाज उठाने वालों की उपेक्षा, अनादर होने का मुख्य कारण राजनीति का धन केन्द्रित होना है जो भाजपा समेत सभी राजनीतिक दल आम जनता तथा देश हित के दुहाई देती है, लेकिन सभी पार्टियों और नेताओं को लक्ष्य जनता को जाति, धर्म, भाषा, आरक्षण के नाम पर समाज में नफरत फैलाकर उसे बाँटकर सत्ता हासिल करना है। उसके बाद सरकारी कोष से धन और प्राकृतिक संसाधनों को लूटना है। इस हकीकत से कोई भी अनजान नहीं है, लेकिन अधिकांश लोग अपने निजी फायदों की लालसा में चुप रहना ही बेहतर समझते हैं। यही कारण है कि राजनीति में आने वाले ज्यादातर लोग विभिन्न बहानों से जन धन की लूट, फिर उससे सत्ता हासिल करना। राजनेता और सरकारी अधिकारी आम जनता की नहीं, पूँजीपतियों की सुनाते तथा उनके हित में नीतियों-कार्यक्रम बनाते हैं जिनसे ये अपनी जेबें भरते हैं। जब तक जनता इस दुष्चक्र को नहीं तोड़ेगी, तब तक उसकी सुनवायी नहीं होगी, भले ही सरकार किसी भी राजनीतिक पार्टी की हो।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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