डॉ.बचन सिंह सिकरवार

हाल में बागपत की जिला जेल में पूर्वांचल के माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी उर्फ प्रेमप्रकाश सिंह को दुर्दान्त अपराधी सुनील राठी द्वारा गोलियों की बौझार कर मार डालने की घटना ने देश की जेलों की उस हकीकत को उजागर कर दिया है जिसे जानकर भी शासन-सत्ता में बैठे सभी लोग अनजान होने का ढोंग करते आए हैं। इस हत्याकाण्ड से स्पष्ट है कि राज्य में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की सरकार के दौर में भी अपराधियों, जेल अधिकारियों-जेल कर्मियों, पुलिसकर्मियों का गठजोड़ यथावत बना हुआ है। इसकी बदौलत जेलों में जेलअधिकारियों का नहीं, अपराधियों के सरगनाओं का राज चलता आया है। बागपत जेल में पिस्तौल समेत बड़ी संख्या में कारतूसों का पहुँचना उसकी निगरानी और सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल देता है। बागपत में जो कुछ हुआ,वह बगैर जेलकर्मियों की मदद के सम्भव नहीं था जिसके लिए कोई और नहीं,वरन् जेलों में व्याप्त अपरिमित भ्रष्टाचार जिम्मेदार है।इसके लिए आजादी के बाद सत्ता में आने वाली सभी राजनीतिक पार्टियों की सरकारें बराबर की दोषी हैं। भ्रष्टाचार के चलते जहाँ जेलें दुर्दान्त और धनी अपराधियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह ही नहीं, एक तरह से पिकनिक स्पॉट‘ भी बने हुई हैं, क्यों कि उन्हें यहाँ घर या होटलों के मनपसन्द स्वादिष्ट खाना,,स्मार्ट फोन,टी.वी.मादक पदार्थों, दूसरे भोग-विलास के साथ-साथ चेले-चपाटों से मिलने और चौथ वसूली, खनन, शराब, सड़क, पुल आदि के ठेके/पट्टे लेने, अपने विरोधियों से निपटने की साजिश, तिजारत और सियासत करने की पूरी छूट तथा सुविधा है,वहीं घूस न दे पाने वाले गरीब मामूली अपराधों में सजा काट रहे बन्दियों के लिए ये जेलें जुल्मगाह/साक्षात नर्क हैं। इन जेलों में अपराधियों को वे सभी वस्तुएँ और सुख-सुविधाएँ उपलब्ध हैं, जो जेलों में निषिद्ध/प्रतिबन्धित हैं। वहीं भ्रष्टाचार के चलते बन्दियों को घटिया खुराक और दूसरी सुविधाएँ भी नहीं मिलती, जिसके लिए ये हकदार होते हैं। इस सच्चाई/जमीन हकीकत से मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ और देश के सभी छोटे-बड़े नेता परिचित न हो,ऐसा नहीं है,क्यों कि इनमें से अधिकतर को किसी न किसी का आन्दोलनों या दूसरे कारणों से जेल से वास्ता जरूर पड़ा हुआ होगा। ये हालात केवल उत्तर प्रदेश की जेलों के ही नहीं, कमोबेश रूप में पूरे देश की जेलों के है। अब बागपत जेल में इस गोलीबारी पर सपा के प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी योगी सरकार पर कानून व्यवस्था ने सम्हालने का आरोप लगा रहे हैं,जैसे पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव की सरकारों के रहते जैसे जेलों में ऐसा कुछ नहीं होता था। जहाँ तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार का प्रश्न है तो अपने पूर्ववर्तियों की तरह उनकी नियत और नीति में कोई खोट नहीं है। शासन की ओर से हर जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एस.एस.पी.)को निर्देश हैं कि वे एक महीने में जेलों का निरीक्षण जरूर करें। इन्हें कुछ जेलों में कुछ आपत्तिजनक सामग्रियाँ भी मिली थीं।लेकिन जेलों के जैसे भयावह हालात हैं,उनका जिक्र इन अधिकारियों ने पता नहीं,क्यों नहीं किया?ये वे ही बता सकते हैं।

अब जहाँ तक भारतीय जेलों का सवाल है तो देशभर की जेलें वैसी नहीं है,जैसा कुछ समाजशास्त्री चाहते हैं यानी सुधारगृह के रूप में।लेकिन असलियत यह है कि ये जेलें अपराधशाला बनी हुई हैं, जहाँ छोटे-मोटे अपराधी या फर्जी शिकायत पर जेल आए बेकसूर, रिश्वत न दे पाने वाले गरीब बन्दियों को क्रूर और दुर्दान्त अपराधियों से अपराध सीखने का पूरा मौका और उनकी शार्गिद हासिल होती है। उन्हें भ्रष्टाचार का प्रशिक्षण जेलकर्मियों से मिलता है जिन्हें हर काम के लिए घूस चाहिए। जेल में अपने परिजनों /मित्रों से मिलाई के बदले बन्दियों को नियत धनराशि घूस के रूप में देनी पड़ती है। परिजनों द्वारा बन्दियों के लिए लाए खाने-पीने की वस्तुओं में आध बँटाई के साथ रिश्वत भी देनी पड़ती है। जो बन्दी अपनी खराब आर्थिक स्थिति या अन्य किसी कारण से रिश्वत देने में असमर्थता जताते हैं उन्हें न केवल तरह -तरह से अपमानित और प्रताड़ित किया जाता है,बल्कि उन्हें भयानक यातनाएँ दी जाती हैं,जिन्हें बर्दाश्त कर पाना हर किसी के लिए सम्भव नहीं होता। इसलिए बन्दी के परिजन घर,जमीन गिरवीं रखकर/ बेचकर जेल टैक्स देने को मजबूर होते हैं। बन्दियों को मशक्कत कटवाने/अस्पताल में भर्ती होकर आराम करने की अलग रिश्वत देनी पड़ती हैं। बीड़ी,सिगरेट,तम्बाकू, गुटखा,शराब,गांजा,चरस आदि के लिए जेल कर्मी बन्दियों से असल कीमत से कई-कई गुना अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। स्मार्ट फोन, टी.वी., विदेशी शराब,होटल से खाना मँगा कर लाने के महीनेदारी देनी होती है। जेल के अस्पताल और उससे बाहर आकर अस्पताल में भर्ती होने की अलग फीस चुकानी होती है।कहना यह है कि जेब में पैसा है तो जेल फिर जेल नहीं है। यहाँ तक जेल में अपने दुश्मनों से बदला लेने या हमेशा को खत्म करने का मौका भी जेलअधिकारी ही उपलब्ध करा देते है। बागपत की वारदात भी कुछ ऐसा ही इशारा कर रही है जहाँ दुर्दान्त अपराधी सुनील राठी मुन्ना बजरंगी को गोली मारने में इस्तेमाल पिस्तौल को उसी की बताते हुए इस घटना को अब आत्मरक्षा में गोली चलाना साबित करने की कोशिश कर रहा है,लेकिन मुन्ना बजरंगी या फिर सुनील राठी तक हथियार पहुँचना और इस घटना से पहले वीडियो बनाया जाना तथा उसका वायरल होना,जो कुछ बयां कर रहा है,उसे बताने की जरूरत नहीं। वैसे राज्य सरकार ने जेलों की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाने के इरादे से इनमें सी.सी.टी.वी. कैमरे लगाने के निर्देश जारी किये थे,किन्तु अभी तक 71जेलों में से 47में ही ये कैमरे लग पाए हैं। इन जेलों में जैमर लगाने के आदेश भी जारी किये गए ,ताकि बन्दी मोबाइल फोन का इस्तेमाल आपराधिक गतिविधियों में न कर पाएँ। लेकिन इस आदेश पर भी अमल नहीं हुआ है। लेकिन यहाँ प्रश्न सुरक्षा व्यवस्था से कहीं ज्यादा जेलों में फैले भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह को तोड़ने का है। शासन-प्रशासन,राजनीति में बैठे कौरव किसी भी हालत में किसी भी अभिमन्यु को इस चक्रव्यूह को तोड़ने नहीं दे रहे हैं।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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