क्या वे अल्ताफ हुसैन के कहें पर गौर फरमाएँगे ?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

हाल में 'पाकिस्तान के गणतंत्र दिवस' पर राष्ट्रपति ममनून हुसैन और भारत में उसी के उच्चायुक्त अब्दुल बासित हमेशा की तरह कश्मीर राग का अलाप करते हुए कश्मीर समस्या का हल वहाँ के लोगों की इच्छानुसार करने की बात कही है जिस पर भारत ने पाकिस्तान को भारत के आन्तरिक
मामलों में हस्तक्षेप करने की आदत से बाज आने की चेतावनी दी है। वैसे भी यह कोई नयी बात नहीं है, लेकिन गौर फरमाने की लायक बात तो, उसी दिन यानी 23 मार्च को  'मुत्ताहिदा कौमी मूवमेण्ट' (एम.क्यू.एम.) के नेता अल्ताफ हुसैन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से कहा है कि जब वह बलूचिस्तान के लोगों की आवाज उठा रहे है, तो वह हम लोगों को क्यों भूल रहे हैं ? हम तो उनके अपने लोग है जो सदियों से भारत में रहे हैं। उन्होंने भारत से जुड़ाव का वास्ता देते हुए अल्ताफ हुसैन ने प्रधानमंत्री मोदी से मुहाजिरों के साथ हो रही ज्यादातियों के खिलाफ बोलने की अपील की है। सबसे बड़ी बात जो पाकिस्तान के बारे में अल्ताफ हुसैन ने  कही है उससे अब कश्मीर के अलगाववादियों समेत भारत में रह रहे पाकिस्तान के हमदर्दों की आँखें खुल जानी चाहिए। जो लोग पाकिस्तान को 'जन्नत' समझ कर सिर्फ कश्मीर ही नहीं, पूरे के पूरे हिन्दुस्तान को पाकिस्तान बनने के खवाब और रात-दिन उसे पूरे करने की दुआ माँगते रहते हैं।  अल्ताफ हुसैन ने यह याद भी दिलायी कि उनके पुरखों ने हिन्दुस्तान छोड़कर बहुत बड़ी गलती की। जो लोग पाकिस्तान आकर बसे, उन्हें ही नहीं, उनका बच्चों तक को पाकिस्तानी नहीं माना जाता। सेना और अर्द्ध सैनिक बल उनके साथ बुरा और बर्बर बर्ताव करते हैं।
अब सवाल यह है कि अल्ताफ हुसैन के इस बयान से क्या जे.एन.यू., हैदराबाद, जादवपुर विश्वविद्यायल में भारत तेरे टुकड़े होंगे, कश्मीर माँगे आजादी आदि नारे लगाने वाले कन्हैया कुमार सरीखे कथित नेताओं को सबक लेंगे ? इसमें सन्देह ही है, क्यों कि इनका हिन्दुस्तान पाकिस्तान का गुणवत्ता के आधार पर मूल्यांकन करना ही नहीं है। इस्लामिक कट्‌टरपन्थियों का एक ही मकसद है। वह है पूरी दुनिया का 'दारुल हरब' से 'दारुल इस्लाम' में तब्दील करना है। देश के बँटवारे के समय पाकिस्तान को अपने लिए 'जन्नत' समझ कर जो मुसलमान भारत के तत्कालीन कई प्रान्तों यथा संयुक्त प्रान्त, मध्य प्रान्त, बिहार, दिल्ली, पंजाब (पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश) राजपूताना, बड़ौदा, हैदराबाद, पंजाबी आदि छोड़ कर गए थे इनमें से ज्यादातर उर्दू, दक्खिनी, खारबोली, खड़ी भाषा, अवधी, भोजपुरी आदि बोलते थे। इनमें अधिकतर सुन्नी मुसलमान, कुछ शिया और दूसरे फिरकों के मुसलमान भी थे। वहाँ जाकर उन्हें और सत्तर साल गुजरने के बाद भी उनके वारिसों को जो  कुछ भुगतना पड़ रहा है, वह किसी 'जहन्नुम' से कम नहीं है। इनमें से ज्यादातर लोग सिन्ध या पंजाब प्रान्त के क्रमश: कराची, हैदराबाद, सुक्कुर, मीरपुरखा, रावलपिण्डी, लाहौर आदि नगरों में बसे हैं, क्योंकि वहाँ से अधिसंख्यक सिन्धी और पंजाबी हिन्दू अपना सब कुछ छोड़ कर हिन्दुस्तान आ बसे है, इसमें उन्हें अपनी जमीन जायदाद, अपनों को खोने के साथ साथ उनकी बहू बेटियाँ भी छीन लीं, या फिर उन्हें अपनी अस्मत गंवानी पड़ी।
सन्‌ 1947 का हिन्दुस्तान का वह विभाजन अत्यन्त त्रासद था। इसमें दुनिया का मनुष्यों का  सबसे बड़ा पलायन हुआ था। उस दौरान एक करोड़़ से अधिक लोगों को अपना घरबार छोड़कर दूसरी जगह बसाने को मजबूर होना पड़ा था। उस वक्त हुए साम्प्रदायिक दंगों में दस लाख से ज्यादा लोगों की हत्याएँ हुईं। मजहबी नफरत की बिना पर हुए  बँटवारे की कीमत  महिलाओं को अपनी जान के साथ-साथ अस्मत देकर भी चुकानी पड़ी थी। इसके बाद भी ये लोग भारत सरकार  और दूसरे लोगों के सहयोग, समर्थन के साथ- साथ अपनी कठोर मेहनत से वह सब पाने में कामयाब हो गए हैं, जो वह गंवाकर आए थे। इसमें मान सम्मान, हर मामले में बराबरी दर्जा भी शामिल है। अब उन्हें कोई शरणार्थी नहीं कहता।
इसके विपरीत हिन्दुस्तान से पाकिस्तान के मुसलमानों को शुरू से ही हर मामले में भेदभाव ही नहीं झेलना पड़ता, बल्कि उन्हें हिकारत से अपने लिए 'मुहाजिर' (शरणार्थी) सम्बोधन भी सुनना  पड़ता है, जो अरबी भाषा का शब्द है। कराची आदि दूसरे शहरों में पहले मुहाजिरों और सिन्धियों के बीच आए दिन हिंसक दंगे होते रहते थे। सन्‌ 1998 में पाकिस्तान में मुहाजिरों की आबादी करीब 9,939,656 थी। इसलिए अपने प्रतिकार के लिए मुहाजिरों ने 'मुहाजिर कौमी मूवमेण्ट' नामक राजनीतिक संगठन भी बनाया, जिसका पाकिस्तान सरकार ने बुरी तरह दमन कर दिया। अब इस संगठन को 'मुत्ताहिदा कौमी मूवमेण्ट' कहा जाने लगा है। इसके नेता अल्ताफ हुसैन पर पाकिस्तान सरकार के जुल्मों से आजिज आकर अपनी जान  बचाकर लन्दन में रह रहे हैं। पाकिस्तान में मुहाजिरों के साथ हर जगह और हर स्तर पर भेदभाव होता है। उन्हें जहाँ सभी सरकारी सेवाओं से यथासम्भव दूर रखा जाता है, वहीं सरकारी सुविधाओं से वंचित। उनकी निष्ठा पर शक किया जाता है। इससे आजिज होकर अब काफी बड़ी तादाद में ये लोग ब्रिटेन में 5 लाख, अमरीका में 1 लाख 70 हजार, कनाडा में 90 हजार, संयुक्त अरब अमीरत (यू.ए.इ.) में 80 हजार, मध्यपूर्व आदि मुल्कों में बस गए हैं जो अपनी योग्यता और क्षमता के मुताबिक अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं। उनकी इस हालात से हिन्दुस्तान के मुसलमान के वाकिफ न हों, ऐसी भी कोई बात नहीं है, क्योंकि उनका भारत में और भारत के मुसलमानों का पाकिस्तान आना-जाना ही नहीं, आपस में शादी- ब्याह भी  बराबर होते आए हैं। इस्लाम के नाम पर बने इस मुल्क पाकिस्तान में मुहाजिर ही नहीं, सिन्धी, पठान, बलूच, शिया मुसलमान भी अपने साथ हो रहे जुल्म, गैरबराबरी से नाखुश बने हुए हैं और अपनी आजादी के लिए लड़ भी रहे हैं।                        
वर्तमान में पूरा बलूचिस्तान जंग का मैदान बना हुआ है, जहाँ 20 हजार से अधिक लोगों को पाकिस्तानी सेना और गुप्तचरों द्वारा गायब किया जा चुका है। इतना ही नहीं, अहमदिया, कादयानी, बोरा समेत कई फिरके के मुसलमानों को इस्लाम से बेदखल किया जा चुका है । सन्‌ 1971 में बंगाली मुसलमानों ने पाकिस्तानी सरकार के जुल्मों से परेशान होकर अलग 'बांग्लादेश' बनाया लिया है उसके लिए हुई जंग में लाखों लोगों की जानें गई, हजारों में औरतों के साथ बलात्कार हुए थे। तब एक करोड़ के करीब लोगों को अपनी जान बचाकर भारत में शरण लेनी पड़ी थी। विभाजन के समय पाकिस्तान की आबादी 15 फीसद से अधिक थी, जो अब घटकर 4 प्रतिशत रह गयी है। कमोबेश यही हालत ईसाई आदि की है । गैर मुसलमानों पर ईशनिंदा कानून की तलवार हमेशा लटकी रहती है जिसके आधार पर कोई भी मुसलमान  गैर मुसलमान पर झूठा आरोप लगाकर उसे मनमानी सजा दिला सकता है। गुलाम कश्मीर और गिलगित -बाल्टिस्तान में लोगों पाकिस्तान की नीतियों को लेकर भारी असन्तो हैं और वे उसके शासन से छुटकारा चाहते हैं।
       अफसोस की बात यह है कि इस हकीकत को जानने के बाद भी कश्मीरी  अलगाववादियों समेत ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो पाकिस्तान को अपने और हममजहबियों के लिए 'जन्नत' समझते हैं। क्या ऐसे लोग 'मुत्ताहिद कौमी मूवमेण्ट' के नेता अल्ताफ हुसैन के बयान से सबक लेंगे ? जिन्हें 'पाकिस्तान जिन्दाबाद'और 'हिन्दुस्तान मुर्दाबाद' कहने तथा उसका झण्डा लहराने से गुरेज नहीं। वैसे भी इन लोगों को 'कश्मीर बनेगा पाकिस्तान' कहने में संकोच नहीं है, क्यों कि ऐसा कहकर गैरमुल्कों से इमदाद मिलती है। लेकिन यह भी सच है कि देरसबेर ये लोग मजहब की बिना पर बने पाकिस्तान का राग अलापना बन्द करेंगे ? ऐसी हमें उम्मीद करनी चाहिए। 
सम्पर्कः डॉ.बचन सिंह सिकरवार

63ब,गाँधी नगर,आगरा 282003 ,मोबाइल नम्बर 9411684054

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