अब खुद डर रहे हैं औरों को डराने वाले
डॉ बचन सिंह सिकरवार

अब
इमाम-ए-जुम्मा कल्बे जवाद ने लोकतंत्र की कथित बदहाली पर टसूए बहा रहे पूर्व मंत्री
और अब सिर्फ विधायक आजम खाँ पर करोड़ों रुपए की वक्फ बोर्ड की भूमि बेचने, वक्फ की जमीन पर नाजायज तरीके से दुकाने बनवाने, रामपुर के जौहर विश्वविद्यालय में वक्फ की जबरन वक्फ की जमीन शामिल कराने के
साथ-साथ शिया कब्रिस्तान को खुदवाकर अपने जौहर विश्वविद्यालय के लिए सड़क बनवाने का आरोप लगाते हुए उ.प्र.सरकार
से सी.बी.आई से जाँच कराने की माँग की है। यह सब तब आजम
खाँ सूबे का बादशाह समझ कर किया था। ऐसा करते वक्त उन्हें कहाँ खयाल नहीं आया कि यह
लोकतंत्र (जम्हूरियत) है इसमें किसी की गद्दी मुस्तकिल नहीं हैं।
अब आजम खाँ का कहना है कि अगर हम कहें क्या अब योगी जी नमाज पढ़ेंगे, तो जाने क्या हो जाता ? अगर यह बात हमने कही होती, तो हमें हथकड़ी लग जाती है। वैसे आजम खाँ को 'भारत माता' को 'डायन' कहना या यू.एन.ओ.में
भारत सरकार की च्चिकायत करने में डर नहीं लगता।
वैसे आजम खाँ का लोकतांत्रिक व्यवस्था में कितना
भरोसा है उसका सुबूत हाल में विधानसभा के चुनाव के परिणामों के बाद जब उनसे कार से
उतर कर पैदल चल कर अपनी जीत का प्रमाण पत्र लेने के लिए कह दिया, तो इसमें उन्हें अपनी
इतनी भारी तौहीन नजर आयी कि तब वे सारे आम उपजिलाधिकारी धमकाने से बाज नहीं आए। उनका
उस एस.डी.एम. से कहना था कि वह उनकी इस हिमाकत की सजा फिर कभी वजीर बनने पर देने से
नहीं चूकेंगे। क्या आजमा खाँ बताएँगे कि जनप्रनिधि आमजन से कैसे अलग हैं ? जो उसी जनसाधारण के
वोट से शक्ति पाकर आजम खाँ जैसे शख्स खुद को खुदा समझने
लगते हैं। cccc
इस मामले में अपने मुल्क में आजम खाँ अनोखे प्रतिनिधि नहीं हैं, हाल में शिवसेना के उस्मानबाद महाराष्ट्र के सांसद रवीन्द्र गायकवाड़
भी उन जैसे ही साबित हो रहे हैं, जिन्होंने एयर इण्डिया के 60 वर्षीय अधिकारी में पcccccccccccच्चीcccccccccccccccccस बार सैण्डिल मारे। अपनी इस शर्मनाक और आपराधिक हरकत पर
बेशर्मी यह भी कहा कि वह शिवसेना के सांसद
हैं, भाजपा के नहीं, जो उससे क्षमा
माँगेंगे। अब जब एयर इण्डिया समेत दूसरी विमान सेवाओं ने उनके आने -जाने पर रोक लगा
दी, तो शिवसेना ही नहीं, सपा के नरेश अग्रवाल, काँग्रेस की रेणुका चौधरी, भाजपा के मुम्बई से
एक सांसद आदि को रवीन्द्र गायकवाड़ के सांसद के विशेषाधिकारी की याद और विमान सेवाओं प्रदाता कम्पनियाँ के प्रतिबन्ध
में अतिवाद नजर आने लगा। क्या सांसद / विधायक देश के कानून से ऊपर है ? उसे देश के नागरिकों के साथ कुछ भी करने की छूट है जिसकी
बदौलत वह संसद या विधानसभा में दाखिल होने का अधिकार पाता है।
पहले
केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली 'राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन (राजग) बनने और अब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व
में भाजपा सरकार की बनने के बाद से लोकतंत्र पर खतरे का रोना रोने वाले अकेले आजम खाँ
ही नहीं हैं, देश में विभिन्न प्रान्तों में 'ऑल इण्डिया मजलिसे इत्तेहाद-ए- मुसलमीन'के
सांसद असैद्दीन औवेसी तथा इन्हीं जैसे कई
दूसरे नेता भी उनके सुर में सुर मिलाकर देश लोकतंत्र पर खतरे का रोना रहे हैं, जबकि अभी तक प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने
न ऐसा कुछ कहा या किया है, जिससे देश के लोग भयभीत हुए हों या फिर लोकतंत्र पर रंचमात्र
भी आँच आयी हो। कमोबेश यही स्थिति उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री
बनने के बाद की है। फिर भी अगर आजम खाँ को लोकतंत्र खतरे में दिखायी दे रहा है तो सम्भवतः
इसकी वजह राज्य में अवैध बचूड़खानों को बन्द किया जाना रहा है जो उनके सत्ता में आने
से पहले सर्वोccccccच्चc न्यायालय तथा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्णयों की अनदेखी
कर चलाये जा रहे थे। गोसेवक योगी जी के सत्ता सम्हलते ही पुलिस-प्रशासन स्वतः सक्रिय
हो गया, जो सपा सरकार की अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की
नीति को देखते हुए अपने नौकरी बचाने को कानून की धज्जियाँ उड़ते देख रहा था। वैसे आजम
खाँ को सपा सरकार में की तुष्टीकरण और जातिवादी नीतियों में कहीं कुछ अलोकतांत्रिक
दिखायी नहीं दिया। उन जैसे कथित पंथनिरपेक्ष नेताओं ने आज तक जम्मू-कश्मीर के कश्मीरी पण्डितों के साथ हुए जुल्मों पर कभी अफसोस जताने
की जरूरत महसूस नहीं हुई, जिन्हें ढाई दशक पहले
इस्लामिक कट्टरपन्थियों ने बन्दूक के जोर
उन्हें अपना सबकुछ छोड़कर अपने ही सूबे में खानबदोश सरीखी जिन्दगी जीने को मजबूर किया
हुआ है।
आजम
खाँ को जहाँ अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सूर्य नमस्कार और नमाज की कुछ क्रियाओं
में समानता बताने जैसी समन्वयपरक बातों में लोकतंत्र को खतरा दिखायी दे रहा, वहीं उन्होंने देश और समाज के विघटनकारी बयानों और कार्यों
पर कभी ऐतराज नहीं जताया। क्या इस देश के संविधान
में एक खास वर्ग को ही सारे हक-हकूक दिये हैं, लेकिन संविधान के अनुसार चलने की सारी जिम्मेदारी दूसरे वर्ग की है,क्यों कि
उनका मजहब तो मुल्क के आईन (संविधान) से ऊपर
जो हैं, दूसरे वर्गों के मजहब तो दोयम दर्जे के हैं। इनके लिए योगी
खतरनाक है, किन्तु हिन्दुओं का नरसंहार, उनके मन्दिरों का विध्वंस, नाथ सम्प्रदाय के योगियों को सूली पर चढ़ाने वाला वाला औरंगजेब
कट्टरपंथी नहीं, मुजाहिद है।
आजम खाँ जैसे नेताओं की नजर में लोकतंत्र के माने
उन जैसों को खुलकर मनमानी करने देने की छूट दिये जाने से है जिन्हें अकबरद्दीन औवेसी
के मुसलमानों के हिन्दुओं की बोटी -बोटी काटने के ऐलाने में या इकबाल मसूद के नरेन्द्र
मोदी के उत्तर प्रदेश में आने छोटे-छोट करने की धमकी देने, याकूब मेनन की फाँसी पर
कोहराम मचाने और उसके जनाजे में हजारों की तादाद में शामिल होने, अफजल हम शर्मिन्दा
हैं,तेरे कातिल जिन्दा हैं, भारत तेरे टुकड़े होंगे,
कश्मीर बनेगा पाकिस्तान, हिन्दुस्तान मुर्दाबाद, कोलकाता की टीपू
सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम मौलाना नूरूर रहमान बुरकती का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
के दाढ़ी और सिर के बाल मुड़वाने वाले को 50 लाख रुपए दिये जाने का फतवा देने वाले की बेजा हरकत लोकतांत्रिक
नजर आती हैं। ऐसों के लिए उनकी भारत माता की जय, वन्दे मातरम का गायन भी गैर जरूरी
और उनके मजहब के खिलाफ है। ये लोग अपने हक और मजहबी आजादी लिए तो संविधान की दुहाई देते है, किन्तु उसके दूसरे प्रावधानों के मामलों में शरीयत का खौफ
दिखाते हैं।
अब
जरूरत इस बात की है कि लोकतंत्र के इन फर्जी पहरूओं के बेनकाब करने की है जिन्हें अपना
गला फँसते ही लोकतंत्र और पंथनिरपेक्षता खतरे में दिखायी देने लगती है। वैसे देश के
लोग इन सभी के लोकतंत्र की दशा और दिशा को लेकर मिथ्या रूदन से भलीभाँति परिचित हैं।
वे अब उनके झांसे में आने वाले नहीं हैं।
सम्पर्कःडॉ.बचनसिंहसिकरवार
63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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