कौन वापस करेगा अब यमुना की पावनता को ?
डॉ.बचनसिंह सिकरवार
हिमालय के अंचल में स्थित यमुनोत्री से निकली भगवान सूर्य (रवि) की बेटी और यम(काल) की बहन यमुना आदि काल से इस धरा के लोगों को हर तरह से तारती आयी है। अब उन्हीं के वंशजों के स्वार्थपूर्ण कार्यकलापों ने इस मोक्षदायनी की न केवल पावनता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है,बल्कि इतना विषाक्त कर दिया है कि वे लाख चाहने पर इसके जल का आचमन तो दूर ,इसमें नहाने का साहस भी नहीं कर पा रहे हैं।
वस्तुतः हिमालय की चोटियों से निकल कर रवि सुता यमुना देश के कई राज्यों की सीमाओं में बहती हुई अन्ततः इलाहाबाद(प्रयाग) में संगम पर गंगा में विलीन हो जाती है। अब यमुना के प्रदूषण का खतरा अपने उद्गम स्थल यमुनोत्री पर भी उत्पन्न हो गया है जहाँ मानवीय गतिविधियों के बढ़ने तथा उनके हस्तक्षेप से यमुना की पवित्राता और अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगने प्रारम्भ हो गये हैं। अमरीका की ‘नेशनल एयरोनोटिक स्पेस एजेन्सी' (नासा) की एक रपट के अनुसार वैश्विक उष्णता (ग्लोबल वार्मिंग) के कारण गढ़वाल हिमालय के समस्त ‘हिमखण्ड' या ‘हिम नदी' (ग्लेशियरों) को आसन्न संकट उत्पन्न हो गया है। यमुना को जल से भरने वाले अनेक ज्ञात-अज्ञात ग्लेशियर भी पीछे खिसक रहे हैं। हर वर्ष देश भर से अप्रैल से अक्टूबर के मध्य उत्तराखण्ड स्थित यमुनोत्री में लाखों तीर्थयात्राी तथा पर्यटक आते हैं। गत एक दशक में यमुनोत्री में होटल तथा भवनों की संख्या में चार गुना बढ़ोत्तरी हुई है। पर्वतारोहियों और टै्रकिंग दलों द्वारा छोड़े गये कूड़े-करकट ने भी प्रदूषण की समस्या को और भी गम्भीर बना दिया है। अगर यह सब समय रहते रोका नहीं गया तो भविष्य में यमुना का मुख्य स्रोत ही संकुचित या फिर विलुप्त ही हो जाएगा।
यमुनोत्री से १७२ किलोमीटर की दूरी पर बने ताजेवाला बाँध तक इसका जल स्वच्छ और पीने योग्य है। इसके बाद से यमुना के जल का रंग परिवर्तित होने लगता है। तत्पश्चात वजीराबाद बाँध तक यमुना का जल इतना ज्यादा प्रदूषित हो जाता है कि उसे न पीया जा सकता और न उसमें नहाया ही जा सकता है ।
यमुना जल सबसे अधिक प्रदूषित दिल्ली में है। यहाँ की भारी गन्दगी के कारण यमुना पूरी तरह से गन्दे नाले में बदल गयी है।
दिल्ली में यमुना को स्वच्छ बनाने के लिए सरकार ‘यमुना कार्य योजना (यमुना एक्शन प्लान)के कई चरणों के माध्यम से अभी तक १५०० करोड़ की विपुल धनराशि भी खर्च कर चुकी है।
फिर भी यमुना की सेहत पर रत्ती भर भी परिवर्तन नहीं आया है। वह अब भी जस की तस प्रदूषित बनी हुई है। इस तरह यमुना को स्वच्छ बनाने की सभी योजनाएँ निरर्थक सिद्ध हुई हैं। इसके अलावा जिन व्यवस्थाओं के आधार पर यमुना को स्वच्छ करने का व्यापक प्रचार किया जा रहा था उनके भी कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आये हैं। गत दिनों दिल्ली सरकार की मुखिया श्रीमती शीला दीक्षित ने भी यमुना को स्वच्छ करने के अपनी सरकार के सभी प्रयासों की विफलता को स्वीकार किया।
यूँ तो यमुना को प्रदूषित करने के लिए कई शहर उत्तरदायी हैं लेकिन इस मामले में दिल्ली सबसे ज्यादा दोषी है। इसके पश्चात यमुना का यह क्षेत्र ऊपरी हिस्सा २२४ किलोमीटर में हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के छोटे नगरों में तक फैला हुआ है। यहाँ कुछ सीमा तक यमुना स्वच्छ है, किन्तु अब प्रदूषित होना शुरू हो गया है। इसमें यमुना उत्तर प्रदेश के आगरा, गाजियाबाद, फिर हरियाणा के शहर फरीदाबाद में बहती है।
हालाँकि दिल्ली में यमुना २२ केवल किलोमीटर बहती है जो इसकी कुल लम्बाई की केवल २ प्रतिशत है। लेकिन आपको हैरानी होगी कि यमुना के कुल प्रदूषण में ७० प्रतिशत भाग केवल दिल्ली का है। यद्यपि दिल्ली में पूरे देश के नगरों की कुल जनसंख्या का केवल ५ प्रतिशत हिस्सा रहता है,तथापि देश के कुल नलियों के ‘जल-मल शोधन'(सीवेज ट्रीटमेण्ट) का ४०प्रतिशत है फिर भी यमुना जल पूरी तरह काला बना हुआ है।
इसका मुख्य कारण दिल्ली में यहाँ के छोटे-बड़े २२ नालों का गिरना और इनके कूड़ा-करकट को साफ करने के लिए यमुना में पर्याप्त जल का न होना है। परिणामतः दिल्ली में यमुना के प्रदूषण में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। सन् १९८० से २००५ के दौरान ‘बायोकैमीकल ऑक्सीजन डिमाण्ड' (बीओडी) का स्तर भी ढाई गुना बढ़ गया है। दिल्ली में शोधन क्षमता से कई गुना अधिक कचरा (सीवेज) उत्पन्न हो रहा है। यही नहीं, जितनी क्षमता शोधन संयंत्रा की है विभिन्न कारणों से वह उतने सीवेज का शोधन भी नहीं कर पा रहा है।
सन् २००१ में दिल्ली की ‘जल-मल निस्तारण'(सीवेज) व्यवस्था का केवल १५ प्रतिशत हिस्सा ही चालू हालत में था। जल-मल निस्तारण (सीवेज ट्रीटमेण्ट) के बाद जो अशुद्ध जल निकलता है उसे पुनः निकट के नाले में छोड़ दिया जाता है। वह फिर से बह कर यमुना में पहुँच जाता है। महानगर में उत्पन्न होने वाले कचरे तथा प्रदूषण की अपेक्षा ‘शोधन संयंत्रा' (सीवेज ट्रीटमेण्ट) क्षमता में बढ़ोत्तरी नहीं की गई है। विगत चार दशकों में शोधन क्षमता लगभग ८ गुना बढ़ गयी है,पर इस बीच कचरा भी १२ गुना बढ़ा है। गन्दगी या कचरे का सही-सही अनुमान या आकलन न होने पाने का एक बड़ा कारण यह भी है कि दिल्ली की ४५प्रतिशत जनसंख्या अनियोजित /अनधिकृत कॉलोनियों में निवास करती है जिनमें से निकलने वाले कचरे का अनुमान लगा पाना सम्भव नहीं है।
इधर सरकार के पास भी उसके निस्तारण की कोई ठोस योजना नहीं है। कुछ तथाकथित विशेषज्ञों का भ्रम है कि यमुना के किनारे बसे लोग ही यमुना को अधिक प्रदूषित करने के लिए दोषी हैं। इसी कारण सन् २००४ में प्रदूषण मुक्ति के नाम पर यमुना किनारों से उन्हें बेदखल किया गया था,किन्तु दो साल के बाद भी यमुना की हालत में कतई बदलाव नहीं आया। इसी तरह कुछ लोगों का मानना है कि दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ियों के निवासी यमुना तथा उसके निकटवर्ती इलाके को मैला करने के लिए जिम्मेदार हैं,पर हकीकत यह है कि दिल्ली जितना कूड़ा-करकट पैदा होता है उसमें मलिन बस्तियों का हिस्सा 1 प्रतिशत भी नहीं है।
‘केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड' ( सीपीसीबी) मॉनिटरिंग रपट (२००५) के अनुसार गुणवत्ता की दृष्टि से यमुना के जल में थोड़ा-सा भी सुधार नहीं हुआ है। अब जहाँ तक आगरा में यमुना के प्रदूषण की समस्या पर भी चर्चा कर लेते है -उत्तर प्रदेश के आठ शहर यमुना के किनारे बसे हैं जैसे-सहारनपुर, नोएडा, गाजियाबाद, वृन्दावन, मथुरा, आगरा,इटावा, इलाहाबाद। इनमें आगरा से पहले ही यमुना पर चार बाँध बने हुए हैं जिनके कारण उसमें यमुना जल होता ही नहीं। उसमें केवल हरियाणा के फरीदाबाद, उत्तर प्रदेश के नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गजियाबाद के औद्योगिक तथा घरों का प्रदूषित जल होता है। इसे समेटे यमुना भगवान कृष्ण की जन्म भूमि और क्रीड़ास्थली वृन्दावन एवं मथुरा पहुँचती है यहाँ भी घरों के गन्दे पानी के साथ-साथ यहाँ के साड़ियों के रंगने के तमाम कारखाने हैं जिनसे रसायन युक्त रंगीन पानी बड़े पैमाने पर सीधे यमुना आकर गिरता है जिससे यहाँ पर यमुना जल एकदम रंगीन हो जाता है।
परिणामतः आगरा शहर में प्रवेश से पूर्व ही यमुना कचरे तथा गन्दगी से लबालब भरे होने के कारण नाले की शक्ल अख्तियार कर लेती है जिसके जल को प्रदूषण विभाग समेत दूसरी स्वयंसेवी संगठन विषाक्त बताते रहे हैं। सन् १९८५ में केन्द्र सरकार के ‘पर्यावरण एवं वन मंत्रालय' ने नदियों के स्वच्छ बनाने के लिए योजना बनायी। सन् १९९३ में ‘यमुना कार्ययोजना (‘यमुना एक्शन प्लान'-वाई.ए.पी.) की बनायी गयी। आगरा में यमुना कार्य योजना प्रथम चरण(वाई.ए.पी.) - १९९८ से २००२ तक चली। इस योजना ७५.६९ करोड़ रुपए की धनराशि स्वीकृति हुई थी। इसके अन्तर्गत ७३.२३ करोड़ रुपए खर्च हुए। इसके अन्तर्गत यमुना में सीधे गिरने वालों को २० नालों के मुँहाने मोडे गये , ९ पम्पिंग स्टेशन तथा ३ शोधन संयंत्रा स्थापित किये गये। उस समय आगरा में २१ नालों का गन्दा पानी सीधे यमुना में गिर रहे थे। यमुना के प्रथम चरण में शहर के २० नालों जैसे - (१) नगला बूढ़ी (२) अनुराग नगर (३) रजवाह (४) बल्केश्वर (५)जलसंस्थान, (६) कृष्णा कॉलोनी(७) पालीवाल पार्क का नाला (८) भैरों नाला (९) बेलनगंज(१०) खोजा की हवेली नाला (११) पीपल मण्डी(१२) मण्टोला, (१३) पश्चिमी द्वार ताजमहल वाला नाला (यमुना इस पर) (१४)इस्पात उद्योग नगर नाला (१५) फाउण्ड्री नगरी की नाला (१६) नरायच का नाला(१७)रामबाग- नाला(१८) एत्माद्दौला का नाला(१९) पीला खार-नाला (२०) नुनिहाई औद्योगिक क्षेत्र का नाला (यमुना पार) का मुहाँने मोड़े (टे्प) गये हैं। इनमें से केवल ताजगंज स्थित एक नाला संरक्षित इमारती क्षेत्र में पड़ने के कारण योंही छोड़ दिया गया,क्यों कि उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार इस इलाके में नए निर्माण पर रोक है। यमुना कार्य योजना के प्रथम चरण में ‘जल-मल शोधन संयंत्र (एस.टी.पी.-सीवेज ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट) यथा-बूढ़ी का नगला में , पीला खार (नुनिहाई), धांधूपुरा स्थापित किये गए हैं जिनकी शोधन क्षमता क्रमशः२.२५ मिलियन लीटर, १० मिलियन लीटर, ७८ मिलियन लीटर की है। इसके सिवाय ९पम्पिंग स्टेशन जैसे (१)नगला बूढ़ी (२) रजवाहा (३) बल्केश्वर (४) जल संस्थान (५) खोजा की हवेली (६) नरायच (७) एत्माद्दौला(८) पीला खार (९) खैराती टोला स्थापित गये हैं। आगरा शहर में ८४ सुलभ शौचालयों का निर्माण कराया गया है। आगरा में हर रोज २५० एम.एल.डी. प्रदूषित जल तमाम घरों और कारखानों से निकलता है जबकि यहाँ लगे शोधन संयंत्रों की क्षमता केवल ९० एम.एल.डी.प्रदूषित जल को शोधित (साफ) करने की है इस तरह १६० एमएलडी प्रदूषित जल नाले-नालियों में बहकर यमुना में गिरता है। इसके सिवाय विद्युत आपूर्ति के निर्बाध न होने तथा धन के अभाव में ये शोधन संयंत्रा भी अपनी क्षमता के अनुरूप लगातार कार्य नहीं कर पा रहे हैं। जनरेटर चलाने के लिए डीजल की जरूरत होती है, जिसके लिए अपेक्षित धन नहीं है। इसके अलावा अभी मनोहर पुर का नाला, सीताराम कॉलोनी (बल्केश्वर), राधानगर (बल्केश्वर), जवाहर पुल के पास रामबाग का नाला सीधे यमुना में गिर कर यमुना को प्रदूषित कर रहे हैं। लेकिन जन सहभागिता के अभाव में इसके वांछित परिणाम नहीं आये। अब आगरा में यमुना को स्वच्छ बनाने के लिए यमुना कार्य योजना का द्वितीय चरण चल रहा है।
यमुना कार्य योजना-२- यह पंचवर्षीय परियोजना लगभग १४०करोड़ रुपए की है जिसके के लिए यह धनराशि ऋण के रूप में जापान सरकार ने उपलब्ध कर दी है। इसमें ६० करोड़ रुपए एसटीपी और पम्पिंग स्टेशन निर्माण पर खर्च होने हैं, तो करीब ८० करोड़ जन सुविधाएँ उपलब्ध कराने पर खर्च किये जाने का प्रावधान हैं। यमुना कार्य योजना-२ में दो ‘जल-मल शोधन संयंत्रा'(सीवेज ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट) और एक पम्पिंग स्टेशन बनने हैं,जिसके लिए दयालबाग, बिचपुरी और पंचकुइयाँ पर भूखण्ड चिन्हित किये गये , लेकिन उनका अधिग्रहण नहीं हुआ है।
‘उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्राण बोर्ड' की रपट के अनुसार वर्तमान में यमुना जल की ‘बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमाण्ड' (बीओडी) १२ और रंग में हल्का पीलापन है। इसके सेवन से नई -नई बीमारियाँ पैदा हो रही हैं। इससे यमुना में गत दो वर्ष में चार बार मछलियाँ मरी मिली हैं। इससे धनी वर्ग ने तो नालों में आने वाले यमुना जल का सेवन ही छोड़ दिया है बाकी ज्यादातर लोग जो बोतल का पानी खरीद कर पीने की स्थिति में नहीं है। वे ही इसे मजबूरी में पी रहे हैं तथा कई तरह की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। आजकल यमुना जल के प्रदूषण के कारण आगरा का ‘जल संस्थान' का ‘वाटर ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट' (जलशोधन संयंत्र) ‘सीवेज ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट' (जल-मल शोधन संयंत्र) में बदल गया है। यमुना का जो जल मथुरा से आ रहा है। इसमें शैवाल तथा रंगाई उद्योग में प्रयोग होने वाले रंग की प्रचुरता है। यही कारण है कि इस पानी को साफ करने में जल संस्थान के अधिकारियों के बहुत अधिक परेशानी हो रही है। गत दिनों जल की मात्रा यमुना में बढ़ाने के लिए गोकुल बाँध तक गए जल संस्थान के महाप्रबन्धक बाँध पर पानी की गुणवत्ता को देख कर हैरान रह गए। वहाँ यमुना जल का रंग पूरी तरह काला था। बाँधच्च् के अधिकारियों ने कहा कि मथुरा के रंगाई उद्योग और जगह-जगह यमुना में मिलने वाले नालों ने पानी की गुणवत्ता खराब कर दी है। जल संस्थान के अधिकारियों के अधिक जल यमुना में छोड़ जाने की माँग, जिससे पानी में कम से कम ऑक्सीजन का स्तर तो बढ़ सके। इस माँग पर २३ मई, २००७ को गोकुल बाँध से यमुना जल आगरा पहुँचा गया। इस पानी में शैवाल की मात्रा बहुत अधिक जा रही है। हालाँकि जल की मात्रा में वृद्धि होने से पानी में ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि हुई है, किन्तु जल संस्थान के पुराने उपकरण गहरे काले रंग के इस पानी को साफ करने में बहुत कठिनाई हो रही है। पानी में साड़ी रंगाई उद्योग में प्रयुक्त होने वाल रंग प्रचुरता से आ रहा है,इसे दूर करने के लिए जल संस्थान को मानक से कई गुना अधिक रसायनों का प्रयोग करना पड़ रहा है। आगरा में दयालबाग, बल्केश्वर, यमुना पार फाउण्ड्री नगर औद्योगिक इलाके में यमुना के दोनों किनारों पर अतिक्रमण कर लगातार नई कॉलोनियाँ बसायी जा रही हैं। इससे यमुना का पाट सकरा हो रहा है। इसके अलावा आगरा शहर में जब तक अनधिकृत कॉलोनियों का बसना और उनका प्रदूषित जल सीधे यमुना में गिरने से रोकने के साथ-साथ जल संस्थान से ऊपर के क्षेत्र के सभी नालों को मोड़ने (टे्प) तथा उनके प्रदूषित जल को शोधन संयंत्र में ले जाकर शोधित नहीं किया जाएगा, तब तक यहाँ न यमुना शुद्ध हो पायेगी और न जल संस्थान इस शहर के लोगों को अब से बेहतर पेय जल की आपूर्ति कर पायेगा। भले ही सरकार इस योजना पर कितना ही धन बहा ले। इटावा जनपद में ‘पचनद' में पाँच नदियाँ- चम्बल, पार्वती, खारी, सिन्ध यमुना में आकर मिलती हैं।
इलाहाबाद में गंगा के प्रदूषित होने के साथ-साथ उससे संगम पर मिलने वाली उससे यमुना भी पूरी तरह प्रदूषित होती है। इसका कारण शहर के दक्षिण-पश्चिम में यमुना में गिरने वाले छोटे-बड़े तेरह नाले हैं जिनसे हर रोज औसतन २४० एमएलडी गैर शोधित प्रदूषित जल यमुना में सीधे बहाया जा रहा है। इसके जल के ऊपरी सतह पर शैवाल(काई) उगी हुई है।
हाल में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वनस्पति शास्त्र विभाग में यमुना जल के प्रदूषण पर हुए एक शोध किया गया। इसके अनुसार वर्तमान में यमुना के जल में बीओडी (बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमाण्ड) का स्तर २६.१८ मिलीग्राम प्रति लीटर पर पहुँच चुका है,जबकि साधारण रूप में यह ५ से ८ मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए। प्रदूषण के कारण यमुना नदी में कछुए और दूसरे जलीय जीव नहीं रहे हैं। वस्तुतः, यमुना के तटों पर शवों को जलाने तथा शवों को विसर्जित करना प्रदूषण का एक बड़ा कारक है। विशेषज्ञों के अनुसार बालू की खुदाई भी यमुना की शक्ल को बिगाड़ने तथा प्रदूषण में बढ़ोत्तरी कर रहा है। बहुत ज्यादा बालू की खुदाई से यमुना का स्वाभाविक बहाव में बाधा आती है। इस कारण प्रदूषित तत्त्व बह जाने के बाद यमुना की तलहटी में एकत्र हो जाते हैं। यमुना में गिरने वाले नालों का प्रदूषित जल साफ करने के लिए प्रदूषित जल की सफाई के लिए ‘शोधन संयंत्रा' (ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट) लगाने का कार्य अभी पूर्ण नहीं हुआ है।
इस तरह यमुना को स्वच्छ करने की सरकार की अब तक की विभिन्न योजनाओं और व्यवस्थाओं पर बहुत अधिक धनराशि खर्च करने पर भी सफलता नहीं मिली है। इसके बाद क्या हमें यह सोच कर हताश-निराश होकर चुपचाप बैठ जाना चाहिए कि अब यमुना का कुछ होने वाला नहीं है और इसे अपने हाल पर ऐसे ही प्रदूषित छोड़ दिया जाए।
लेकिन हकीकत यह है कि केन्द्र और राज्य सरकारें अभी तक यमुना समेत देश की विभिन्न नदियों के प्रदूषण की समस्या की जो भयावह तस्वीर दिखा रही है वैसी भी नहीं है। शर्त यह है कि यदि इस देश के लोगों का अपनी नदियों जिन्हें सादियों से वे ‘जीवनदायिनी' ,’मोक्षदायिनी' ,’माँ' कह कर उनकी पूजा-अर्चना करते आये हैं,उन्हें अपना व्यवहार बदलना होगा,यानी उन्हें नदियों को साफ-सुथरा बनाये रखने के लिए सरकार के साथ हर तरह के सहायता और सहयोग के लिए तत्पर रहना होगा। इसके साथ ही सरकार की नीतियों में परिवर्तन होना जरूरी है। अगर समय रहते हुए ये दोनों नहीं चेते तो यमुना को विलुप्त होने से बचाया नहीं जा सकेगा । यदि वास्तव में यमुना को सदैव स्वच्छ जल से भरा और प्रवाहमय देखना चाहते हैं तो ऐसा करने के लिए अन्धाधुन्ध रुपया बहाने की आवश्यकता नहीं है,इससे यमुना के प्रदूषण का समाधान नहीं होने का । यमुना के प्रदूषण से मुक्त करने के लिए व्यावहारिक तथा वैज्ञानिक आधार पर नीतियाँ बनाने की आवश्यकता है। इस मामले में ‘सेण्टर फॉर साइन्स एण्ड एनवायरनमेण्ट' की हाल में जारी रपट में ‘सीवेज कनाल -हाउ टू क्लीन दि यमुना' न सिर्फ नदी को प्रदूषण मुक्त करने की आस बँधाती है, बल्कि उसकी एक व्यावहारिक एवं विश्वसनीय योजना का मार्ग भी सुझाती है।
इस रपट के अनुसार आवश्यकता इस बात की है कि वर्तमान शोधन सुविधाओं का अधिक से अधिक उपयोग सुनिश्चित किया जाए। शोधित जल को पुनः उपयोग में लाया जाए। यह भी आवश्यक है कि सभी तरह के कचरे वैध -अवैध जल-मल (सीवर) और जल-मल रहित (सीवर रहित) नाले को मोड़ना (ट्रैप) और शोधित (ट्रीट) किया जाए। दूसरे, केन्द्रीयकृत जल-मल शोधन संयंत्रा (एसटीपी- सीवेज ट्रीटमेण्ट संयंत्र) उपयुक्त विकल्प नहीं है। इसलिए शोधन (ट्रीटमेण्ट) सुविधाएँ वहीं हो, जहाँ जल-मल (सीवेज) पैदा होता है। वास्तविक चुनौती प्रतिमानों की खोजने और उन्हें जाँचने-परखने की है। साथ ही अगर हम नदियों और दूसरी जगहों की साफ-सफाई चाहते हैं तो हमें भी अपनी जहाँ-तहाँ प्रदूषण फैलाने की आदत का परित्याग करना होगा। अतः यमुना को स्वच्छ करने की तमाम योजनाएँ तैयार करने और लागू करने के साथ-साथ उसे मैली होने रोकने के उपायों पर विचार करना बहुत जरूरी है। हमें अपने उन सभी कृत्यों पर विचार करना चाहिए जिनसे हमारे जाने-अनजाने में इस मोक्षदायिनी की पावनता का क्षरण हो रहा है। हमें द्वापर के कैन्हया की आस छोड़ कर स्वयं ही प्रदूषण से विषाक्त हो रही यमुना को पुनः स्वच्छ करने के लिए हर हाल आगे आना होगा,अन्यथा इसके रोगी रहते हम भी रोगमुक्त नहीं रह पायेंगे। -
डॉ.बचनसिंह सिकरवार
-६३ब,गाँधी नगर,आगरा-२८२००३
मो.९८९७००९२३२
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