ऐसे नहीं बुझेगी पश्चिमेशिया की आग


- डॉ.बचनसिंह सिकरवार
गाजा पट्टी पर इजरायल के ताजा हमले में ६६० से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। इसमें हर रोज होने वाली जनहानि तथा घायलों की संख्या के समाचारों से सारी दुनिया चिन्तित और परेशान है लेकिन इनमें से कोई भी पक्ष हमलावर कार्रवाई  रोकने को तैयार नहीं है। गत २७ दिसम्बर को गाजा पट्टी पर इजरायल ने हमला फलस्तीनी आतंकवादी संगठन हमास' की हमलावर कार्रवाई के प्रत्युत्तर में किया है जिसका वर्त्तमान में फलस्तीन पर शासन है। इस हमले से पश्चिमेशिया की शान्ति भंग करने के लिए केवल इजरायल को  दोषी नहीं माना  जाना चाहिए, क्योंकि पिछले जून में मिस्र की मध्यस्थता में इजरायल तथा हमास के संघर्ष विराम कराया था। अब उसने ही उसे तोड़ा है।
वैसे पश्चिमेशिया की इस अशान्ति या खूनखराबे के लिए अकेले इजरायल को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसका कारण यह है कि इस्लामिक मुल्कों के साथ-साथ कट्टरपंथी इस्लामिक उग्रपंथी भी इजरायल के  वजूद को अब तक मंजूर करने को तैयार नहीं हैं और वे इसे हर हाल में नेस्तनाबूद करने पर उतारू हैं। ये मुल्क हैं- ईरान, सीरिया, सऊदी अरब ,लेबनान ,सीरिया, इराक हैं और कट्टरपंथी आतंकवादी संगठन हैं - फलस्तीनी हमास, लेबनानी हिजबुल्ला, इण्डोनेशिया का इस्लामिक आतंकवादी गुट आदि । अब इण्डोनेशिया के इस इस्लामी आतंकवादी समूह ने तो गाजा में अपने लड़ाके भेजने का ऐलन भी कर दिया है। इसके सिवाय आतंकवादी संगठन अल कायदा' के दूसरा स्थान रखने वाले नेता अयमान अल जवाहिरी ने गाजा पर इजरायली हमलों के जवाब में पूरी दुनिया के मुसलमानों से पश्चिमी देशों और इजरायल के हितों को निशाना बनाने का आह्नान किया है। हमास' के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री इस्माइल हानिया ने कहा कि गाजा  जमीनी हमले कर रही इजरायली सेना के सामने हथियार नहीं डालेगा। वैसे भी चाहे सीरिया हो या लेबनान अथवा ईरान सभी खुलकर इजरायल का खत्मा करने के अपने इरादे जाहिर कर चुके हैं। ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी फतवा जारी कर चुके हैं। इसी मुल्क ने अपनी बैलेस्टिक मिसाइलें इजरायल को मिटाने को तैनात की हुई हैं। कुछ अन्य संगठनों की तरफ से भी ऐसी ही खबरें आ रही हैं। कुछ दूसरे मुस्लिम मुल्कों में इजरायल और अमरीका के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन हुए हैं।
अब इस्लामिक मुल्कों के साथ-साथ दुनिया के कुछ दूसरे मुल्क भी इजरायल की हालात पर बगैर गौर फरमाये उसे गाजा पट्टी या पश्चिमेशिया में जंग की आग भड़काने के लिए मुजरिम या कसूरवार करार देने पर आमादा हैं। लेकिन ऐसा करने से पहले इजरायल की भौगोलिक स्थिति ,उसके विगत में झांकना, और पड़ोसी इस्लामिक मुल्कों के उसके प्रति अब तक रहे रवैये को देखना-परखना भी जरूरी है जो इसके जन्म से बैरी बने हुए हैं। पश्चिम एशिया(मध्य पूर्व) का देश इजरायल तीन ओर से अरब मुल्कों-संयुक्त अरब गणराज्य, लेबनान, जोर्डन और सीरिया से घिरा हुआ है। सन्‌ १९४८ में श्वेत देशों की क्रूरता और अमानवीयता के शिकार यूरोपीय यहूदियों को इजरायल में बसाने का निश्चय किया गया था- यानी उस भूमि पर बसाने का निश्चय किया गया, जिसे वे दो हजार साल पहले छोड़ चुके थे।


 
इस निश्चय के पीछे तमाम बड़ी पश्चिमी शक्तियों का हाथ था। देश का बँटवारा हुआ, इजरायल जन्मा ,यूरोपीय तथा अन्य पश्चिमी देशों के यहूदी वहाँ जाकर बसे। इस देश में प्राचीन फलस्तीन का थोड़ा-सा भाग है। २९नवम्बर,१९४७ को राष्ट्र संघ ने फलस्तीन का विभाजन करके एक भाग यहूदियों  और एक भाग अरबों को दे दिया। १५मई ,१९४८ को यहूदियों ने अपने भाग को इजरायल राज्य नाम घोषित कर दिया। पड़ोसी अरब देशों ने इजरायल पर आक्रमण कर दिया। सन्‌ १९४९ में युद्ध विराम इजरायल के क्षेत्र में एक तिहाई वृद्धि हो चुकी थी मिस्र के साथ इजरायल की अनेक लड़ाइयाँ हुईं। १९५६ में स्वेज नहर संकट ,१९६७ में ६ दिवसीय युद्ध में गाजा पट्टी ,पश्चिमी किनारा (जार्डन नदी) और सिनाई प्रायद्वीप पर इजरायल का कब्जा हो गया। १९७३ में फिर युद्ध हुआ। १९७८में मिस्र और इजरायल में समझौता वार्त्ता संयुक्त राज्य अमरीका के कैम्प डेविड' में शुरू हुई। मार्च ,१९७९ में शान्ति समझौते पर हस्ताक्षर हुए। अपै्ल, १९९२ में इजरायल सिनाई पट्टी से हट गया।
३०अगस्त,१९९३ में इजरायल ने सीमित फलस्तीनी स्वायत्ता को सहमति दी। यह २६वर्षों साथ के क्षेत्रों से सेना के आधिपत्य  की समाप्ति का पहला कदम है। फलस्तीन मुक्ति मोर्चे और इजरायल के मध्य १३सितम्बर को ऐतिहासिक समझौता हुआ। इजरायल और जार्डन ने जुलाई, १९९४में एक घोषणापत्रा पर हस्ताक्षर करके ४६ वर्षीय युद्ध की समाप्ति करदी। अगस्त, १९९५ इजरायल तथा फलस्तीन मुक्ति मोर्चे के मध्य समझौते से पश्चिमी किनारा (वेस्ट बैंक)में फलस्तीनी स्वशासन की स्थापना हुई।
जून १९९६ में इजरायल के दक्षिण पंथी गुट लिकुड पार्टी' के नये नेता नेतानयाहु ने कहा कि वे कभी भी अलग फलस्तीनियों के राज्य को समर्थन नहीं देंगे। इजरायल ने जून, १९९७ को येरुशलम में फलस्तीनियों द्वारा आत्मघाती बमबारी किये जाने के बाद शान्ति वार्त्ता बन्द कर दी।


 
दरअसल, हकीकत में मजबूरी हमास' तथा इजरायल ने संघर्ष विराम मंजूर जरूर कर लिया था हकीकत में दिल से दोनों ने इसे नहीं माना। इसका खामियाजा गाजा पट्टी के कोई १५ लाख की आबादी भुगत रही है। इजरायल का हाल का हमला पिछले छह दशक से सबसे भीषण है। इजरायल के रक्षामंत्री एहुद बराक बराबर यह चेतावनी दे रहे हैं कि  इस बार के युद्ध के जरिए हमास' का पूरी तरह खत्मा करके ही दम लेंगे। हालाँकि दुनिया भर के देश इजरायल से सैन्य कार्रवाई बन्द करने की अनुरोध कर रहे हैं और कुछ उस पर दबाव भी डाल रहे हैं।
 अब इजरायल ने ऐसा कुछ नया नहीं किया,जो उसने पहले न किया हो। उसकी  नीति में भी कोई परिवर्तन नहीं आया है। जब लेबनान के शिया हिजबुल्ला ने उसके ८ सैनिकों को मार दिया और उसके दो सैनिकों का अगवा कर लिया था इसके जवाब में जुलाई,२००६ में इजरायल ने  लेबनान पर  हमला दिया। इसमें ८४५ नागरिक की जानें गयीं और ४०५१ लोग घायल हुए थे। इसके सिवाय ९ लाख से ज्यादा लोग बेघरबार हो गये थे। जब लेबनान ने इजरायली हमले में अपने निर्दोष नागरिकों के मारे जाने का रोना रोया, तो उसके जवाब में इजरायल का कहना था कि हिजबुल्ला नागरिक आबादी में ही छिपे हुए हैं। ऐसे में लेबनानी नागरिक बेकसूर कैसे हो गये ?
गाजा पट्टी पर हमले को लेकर इजरायल की दुनिया के बड़ी संख्या में देश निन्दा और  आलोचना कर रहे हैं। भारत भी इसका अपवाद नहीं है जब कि वह स्वयं इस्लामिक आतंकवाद की दंश झेल रहा है। भारत समेत दुनिया भर के दश का इजरायल  के प्रति यह एकपक्षीय नजरिया उचित है? जो इजरायल को ही बार- बार कसूरवार में साबित करने की कोशिश करते आये हैं वे शायद इजरायल की स्थिति और उसके अनुभवों को देखने की बिलकुल कोशिश नहीं करते। आज इजरायल जिस प्रकार की कार्रवाई गाजा पट्टी पर कर रहा है उनके लिए वास्तव में जिम्मेदार कौन है? निश्चय ही  हमास' ही जिम्मेदार है। एक सवाल यह है कि कुछ मुल्क इजरायल पर अपनी ताकत का अनुचित इस्तेमाल का आरोप लगा रहे हैं लेकिन यह प्रश्न भी विचारणीय है कि अगर हमास' भी इजरायल के बराबर या उससे ज्यादा शक्तिशाली होता तो क्या वह इजरायल को यों ही बख्श देता। जब हमास' इजरायल का नाम दुनिया के नक्शे पर हमेशा-हमेशा के लिए नामोनिशा मिटाने को कैसी भी हिंसा को नाजायज नहीं मानता, उस दशा में इजरायल से सहिष्णुता की बरतने की अपेक्षा की जा रही है ? अब इसे फलस्तीनियों का दुर्भाग्य कहें या या फिर उनका अपना फैसला कि हमास' उनका नेतृत्व कर रहा है। यासर अराफत सरीखे मध्यमार्गी या उदारपंथी नेता का उनके बीच से जाना उनका दुर्भाग्य माना जा सकता है, लेकिन हमास' का चुनाव तो उनका अपना निर्णय है। क्या इस विषय पर गम्भीरता से विचार नहीं किया जाना चाहिए कि पश्चिमेशिया के लोग आखिर कट्टरपंथी संगठनों को अपना नेतृत्व सौंपना  क्यों बेहतर मानते हैं ?  
इजरायल की स्थिति का आकलन करते समय एक पक्ष देखा जा रहा है कि वहाँ पर आगामी फरवरी माह में संसदीय चुनाव होने वाले हैं और चुनाव से पूर्व सर्वेक्षण दक्षिणपंथी लिकुड पार्टी' के सत्ता में आने के संकेत दे रही है। अब इजरायल के गाजा पर हमले के विरोध का सिलसिला थम नहीं रहा है। वेनेजुएला ने फलस्तीन के गाजा पट्टी क्षेत्र में इजरायली हमलों के विरोध में इजरायल के राजदूत को निष्कासित कर दिया है। मिस्र के राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक ने भी तत्काल युद्धविराम की बात कही है जिससे गाजा में राहत पहुँचायी जा सके। इस बीच अमरीकी विदेशमंत्री कोंडालिजा राइस ने श्री बान की मून और विश्व के अन्य नेताओं के साथ इस मामले को सुलझाने के लिए अमरीका की ओर से प्रस्तावित तीन सूत्रीय एजेण्डे पर विचार विमर्श किया। अमरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ओबामा बराक ने कहा भी गाजा की स्थिति पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है। लेकिन उन्होंने कहा कि मुझे सारी परिस्थितियों से अवगत कराया जा रहा है और हर दिन होने वाली गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं। मुझे गाजा और इजरायल में मारे रहे नागरिकों की मौत पर बेहद अफसोस है। फ्रांस राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी ने मिस्र के राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक से मुलाकात के बाद कहा कि मिस्र ने गाजा सीमा पर सुरक्षा के मसले पर बात करने के लिए इजरायल आमंत्रिात  किया है। इजरायल का आरोप है कि फलस्तीनी उग्रवादियों को मिस्र के रास्ते सुरंग बनाकर गाजा में प्रवेश किया और गोलीबारी की। वैसे सच्चाई यह है कि इजरायल कभी नहीं चाहेगा कि उसे घेरने वाली शक्तियों समेत गाजा पट्टी में हमास शक्तिशाली बन सके। इसके सिवाय यह भी जरूरी है कि इजरायल के पड़ोसी इस्लामिक मुल्क उसकी सुरक्षा का पूर्ण आश्वासन दें तथा हमास' समेत सभी उग्रवादी संगठन उसे धमकाना छोड़ें। इस क्षेत्र के लोग भी अपना मुल्क का नेतृत्व कट्टरपंथियों को सौंपने से बचें,ताकि उनके मुल्क के खिलाफ इजरायल बदले की कार्रवाई करने को मजबूर न हो। ऐसा किये बगैर पश्चिमेशिया की आग बुझने वाली नहीं।
सम्पर्क - डॉ.बचनसिंह सिकरवार
                                   ६३ब,गाँधी नगर,आगरा-२८२००३

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कोई आजम खाँ से यह सवाल क्यों नहीं करता ?

अफगानिस्तान में संकट बढ़ने के आसार

कौन हैं अनुच्छेद 370 को बरकरार रखने के हिमायती?