अफगानिस्तान की नयी दुविधा

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हमीद करजाई ने हाल में अपनी द्विदिवसीय भारत यात्रा के दौरान अपने देश के हित में जिस तरह भारत के साथ सामरिक और दूसरे करार करना जरूरी समझा था, कुछ वैसे ही इन करारों को लेकर  पाकिस्तान की चिन्ता दूर करना भी आवश्यक लगा। यही कारण है  कि उन्होंने जहाँ पाकिस्तान को जुड़वा भाई ' कहा ,वहीं भारत को महान मित्रा'। अफगानिस्तान की नयी दुविधा यह है  कि अपने इन दो पड़ोसी मुल्कों में से किस पर भरोसा करें? उसकी मजबूरी यह है कि वह हकीकत बयान करने की हालत में नहीं हैं। पाकिस्तान उसका कैसा जुड़वा भाई' है ,अफगानिस्तान भली भाँति जानता है। भारत की उसके लिए कितनी अहमियत है,उसका ज्यादा बखान करना उसके लिए हितकर नहीं हैं।
वैसे भी उनकी यह भारत यात्रा  अनायास नहीं हुई है, बल्कि वह अमरीकी  और नाटो सेना की वापसी के बाद अपने देश की सुरक्षा-व्यवस्था समेत दूसरी जरूरतों को दृष्टिगत रखते हुए खूब सोच -विचार कर ही भारत आये थे। इसकी तात्कालिक वजह यह है कि शान्ति प्रक्रिया से जुड़े  पूर्व राष्ट्रपति प्रो. रब्बानी की आत्मघाती पाकिस्तानी तालिबानी द्वारा अपनी पगड़ी में छुपा कर लाए बम से विस्फोट कर  हत्या किया जाना तथा अमरीका के ज्वाइण्ट चीफ ऑफ स्टाफ माइक मुलेन का अमरीकी  सीनेट में खुलासा। जिसमें उन्होंने पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कियानी  पर  स्पष्ट शब्दों में यह आरोप लगाया कि अफगानिस्तान में उपद्रव पाक की गुप्तचर एजेंसी आइ.एस.आइ. समर्थित हक्कानी गुट के आतंकवादी ही कर रहे हैं। इसके उनके पास ठोस सुबूत भी हैं। वह आतंकवाद के खिलाफ जंग में उसके साथी होने को दिखावा भर कर रहा है। असल में, वह हक्कानी गुट के दुर्दान्त तालिबानों की सहायता अफगानिस्तान स्थित अमरीकी दूतावास पर हमला कराने के साथ-साथ शान्ति वार्ता में शामिल तालिबान के उदारवादी गुट के नेताओं को मरवा कर उसके साथ दुश्मनों सरीखा बर्ताव कर रहा है ।
इससे अब राष्ट्रपति करजई का यह भ्रम टूट गया है कि  शान्ति वार्ता के जरिए देर सबेर तालिबानों में से उदार गुट को साथ लेकर इस संगठन को दो फाड़ करने में कामयाब होंगे। इस तरह वह अपने मुल्क में अमन-चैन की वापसी कायम कर लेंगे।  लेकिन वह अच्छी तरह  जान गए हैं कि उनके इस इरादे में कोई और नहीं ,पाकिस्तान आड़े आ रहा है। यह उसकी नीति की नतीजा है कि आइ.एस.आइ. समर्थित हक्कानी गुट के तालिबानी उदारवादी तालिबानों की लगातार हत्याएँ कर रहे हैं। इन्होंने सबसे पहले राष्ट्रपति करजई के सौतले भाई वली अहमद करजई को मारा। इसके पश्चात जनरल दाऊद को निशाना बनाया। विगत में भी ये तालिबान कई बार राष्ट्रपति हमीद करजई की जान लेने की कोशिशें कर चुके हैं।
अमरीकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स' की नया तालिबान'शीर्षक से प्रकाशित रपट में लिखा कि अफगानिस्तान से अमरीकी फौजों की वापसी को देखते हुए तालिबान  फिर से सत्ता हथियाना चाहता है। वह अपनी रणनीति को बदलते हुए सीमित ,पर बड़े हमला करना चाहता है। इसी नीति के   तहत वह आम लोगों को न मार कर सत्तासीन उच्च पदस्थ और उन से जुड़े लोगों की जान लेना चाहता है ताकि उसकी सत्ता पर पकड़ मजबूत हो। वह अपनी ताकत नाटो सेना से लड़ने में भी जाया न करते हुए अपने सहयोगी आतंकवादी संगठन हक्कानी गुट की सहायता से करजई और उनकी   शान्ति वार्ता के प्रयासों पर रोक लगाना चाहता है।
वस्तुतः पाकिस्तान की हमेशा से यह  कोशिश रही है  इस पड़ोसी मुल्क में  उसकी मर्जी वाली ही हुकूमत रहे। इसी कारण उसने अफगानिस्तान में यहाँ रूस समर्थित राष्ट्रपति नूर मोहम्मद तराकी की साम्यवादी सरकार को नापसन्द किया। फिर जब अमरीका ने अफगानिस्तान में रूस समर्थित सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए अभियान चलाया, तब पाकिस्तान सरकार खुलकर उसकी मुखालफत में लग गयी।
  यही सब देखते हुए  इस दौरे में राष्ट्रपति हमीद करजई ने भारत से किये रणनीतिक समझौते में यह करार किया कि भारत अपने यहाँ उसके सैनिकों और पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित करेगा, ताकि वे अमरीकी और नाटो देशों के सैनिकों की वापसी के बाद अपनी देश की सुरक्षा का दायित्व अच्छी तरह निभा सकें।
यद्यपि इस समय भी भारत अफगानिस्तान में अनेक आर्थिक विकास योजनाओं-पुल, सड़क, संसद भवन, विद्यालयों के निर्माण आदि कर सहायता कर रहा, तथापि  अब अफगानिस्तान ने भारत के साथ खनिज तथा प्राकृतिक गैस के विपुल भण्डारों के दोहन और उसके साथ दुनिया के दूसरे मुल्कों को निर्यात करने का करार किया है जो कोई एक खरब डॉलर मूल्य का होने का अनुमान है। निश्चय ही इससे अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी, किन्तु इसमें मुख्य बाधा इस मुल्क के पास समुद्री मार्ग का न होना है। इस कारण अन्य देशों को गैस और खनिजों के निर्यात में कठिनाइयाँ आएँगीं। आशा यह  जतायी जा रही है कि अमरीका अपने प्रभाव से अफगानिस्तान को समुद्री रास्ता दिलवाने मदद कर रहा है। चीन ने भी भारत से अफगानिस्तान में खनिज एवं प्राकृतिक गैस के दोहन का प्रस्ताव रखा था। उसने भारत को यह भरोसा दिलाया था कि वह इनके निर्यात के लिए पाकिस्तान से समुद्री  रास्ता भी दिला देगा। भारत सरकार जब तक चीन के प्रस्ताव पर अपने रजामन्दी देती, विपक्षी राजनीतिक दलों ने इसका विरोध कर दिया।
अफगानिस्तान मध्य एशिया का एक पहाड़ी मुस्लिम देश है जो पाकिस्तान, ईरान तथा रूस के मध्य स्थित है। ईरान से पूर्व की ओर चीन तक यह देश फैला हुआ है। रूस और पाकिस्तान के बीच यह एक बड़ा अवरोध है। काबुल के सिर पर हिन्दुकुश पर्वत है। इसकी द्यशासन-प्रणाली  संवैधानिक राजतंत्रा थी। १७ जुलाई, १९७३ को एक सैन्य क्रान्ति के पश्चात ४० वर्षों से चले आ रहे राजतंत्रा का अन्त हो गया और यहाँ गणराज्य की स्थापना की गई। इसके बाद यहाँ नूर मोहम्मद तराकी के नेतृत्व में रूस समर्थित साम्यवादी सरकार ने सत्ता सम्हाली। इसका अमरीका और पाकिस्तान समेत मुस्लिम देशों ने विरोध किया। इसके खिलाफ अमरीका की सहायता से  कट्टरपन्थी इस्लामिक आतंकवादी गुट तालिबान ने जंग लड़ी और रूस को अफगानिस्तान छोड़ने पर मजबूर करते हुए साम्यवादी सरकार को उखाड़ फेंका। राष्ट्रपति नूर मोहम्मद तराकी की हत्या कर दी। इसके तालिबानों ने इस्लामिक मजहबी तौर-तरीकों से शासन चलाया ,जो अमरीका को भी रास नहीं आया। सन्‌ १९९६ में अफगानिस्तान पर पाकिस्तान समर्थित तालिबानों का कब्जा जमा लिया। इसके अलावा अफगानिस्तान के कानूनों का आधार शरीयत या इस्लामी कानून और कबायली रीति-रिवाज हैं। अमरीका ने तालिबानी शासन के खिलाफ जंग छेड़ कर अमरीका ने हमीद करजई को सत्ता सौंप दी।
    पाकिस्तान को जाने वाले मुख्य मार्ग खैबर के दर्रे, काबुल, बोलन और कंधार से होकर जाते हैं। पर्वतीय देश होने के कारण इसमें पहुँचने के एकमात्रा मार्ग दर्रें हैं। परिवहन के साधन बहुत कम हैं। देश सात प्रान्तों  विभक्त है। हर एक प्रान्त का एक गवर्नर होता है। अफगानिस्तान की निर्यात की मुख्यतः वस्तुएँ हैं: ऊन ,मेवा, हींग और चमड़ा। पश्तो यहाँ की भाषा है। फारसी भी यहाँ बोली जाती है, परन्तु उच्च शिक्षा और इंजीनियरिंग का भी माध्यम पश्तो है। इसकी राजधानी काबुल है। क्षेत्राफल-२५०,०००वर्गमील ,जनसंख्या -एक करोड़ ३६ लाख से अधिक है। मुख्य शहर - काबुल, कन्धार , हिरात। अब तालिबान हमीद करजई की सत्ता से हटाने के लिए संघर्षरत हैं लेकिन अमरीका किसी भी सूरत में  अफगानिस्तान में कट्टरपंथी तालिबानों को फिर से सत्ता पर बैठते देखना नहीं चाहता है। इसलिए उसकी चिन्ता यह है कि इस मुल्क की सत्ता उसके ही समर्थक लोगों के पास रहे हैं। कमोबेश यही स्थिति भारत की है,क्यों कि इस पड़ोसी मुल्क से लगी उसकी सीमा की सुरक्षा के साथ-साथ बड़े पैमाने पर उसके द्वारा वहाँ चली परियोजनाओं की सुरक्षा का सवाल भी जुड़ा है। 
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 
६३ब,गाँधी नगर,
आगरा-२८२००३ मो.न.-९४११६८४०५४
 

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