अब इस्लामिक आतंकवाद से परेशान है चीन
डॉ.बचनसिंह सिकरवार
चीन के पाकिस्तान अधिकृत गुलाम कश्मीर की सीमा से लगे शिनजियांग प्रान्त में गत जुलार्ई माह में घटी दो हिंसक घटनाओं को लेकर अब वह अपने परम मित्र पाक से बेहद नाराज है। कुछ समय पहले ही चीन ने पाकिस्तान के एबटाबाद में आतंकवादी ‘अलकायदा ' संगठन के सरगना ओसामा बिन लादेन के खिलाफ अमरीकी सैन्य कार्रवाई के समय इस महाशक्तिशाली देश के खफा होने की परवाह न करते हुए उसे चेतावनी भरे अन्दाज में कहा था कि भविष्य में पाक के विरुद्ध हुई किसी भी सैन्य कार्रवाई को वह अपने खिलाफ हमला समझेगा। इन हिसंक वारदातों में कोई २२ लोग मारे गए हैं। चीनी सेना शिनजियांग प्रान्त के पश्चिमी क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक प्रदर्शनकारियों को गोली से उड़ा या घायल कर चुकी है। फिर इस इलाके में विद्रोह जारी है। चीन ने इन हमलों के लिए पाकिस्तान प्रशिक्षित ‘ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेण्ट'-(ई.टी.आइ.एम.) को दोषी ठहराया है जिसका समर्थन यहाँ के प्रमुख समाचार पत्र ‘चाइना डेली' ने भी अपने सम्पादकीय में किया है। उसने स्पष्ट लिखा है कि इन आतंकवादियों ने शिनजियांग में हमले से पहले ई.टी.आइ.एम.के नेताओं ने पाक के शिविरों में आतंकवादियों घटनाओं को अंजाम देने के लिए प्रशिक्षण लिया है। ऐसे हमले आगे भी चीन में हो सकते हैं इनसे सतर्क-सावधान रहने की जरूरत है। अब जहाँ चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से दूरभाष पर शिनजियांग में बढ़ते इस्लामी आतंकवाद के खतरे पर चिन्ता व्यक्त की है, वहीं पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों की ओर अंगुली उठने के बाद चीन के जनसंचार माध्यमों (मीडिया) ने भी पाकिस्तान को आड़े हाथ लिया है। चीन ने पाकिस्तान पर यह आरोप ऐन उस वक्त लगाया ,जब पाक गुप्तचर एजेंसी आइ.एस.आइ.के प्रमुख अहमद शुजा पाशा शिनजियांग के दौरे के बाद राजधानी बीजिंग में थे। वहाँ वह चीन सरकार से अपने देश पर बढ़ते अमरीका दबाव को खत्म कराने के प्रयास में जुटे थे।
पिछले वर्ष भी चीन के शिनजियांग प्रान्त में हान समुदाय और उइगर मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक हिंसा की आग भड़क उठी थी, तब चीनी सरकार को उइगर मुसलमानों को अलगाववादी ठहराते हुए उनका भारी दमन किया । उसके इस कदम की अमरीका-यूरोपीय देशों समेत दुनिया भर के ज्यादातर लोगों ने निंदा की थी। उससे चीन को बहुत परेशानी हुई थी। उस समय शिनजियांग की राजधानी ‘उरुमकी ' में हान समुदाय के उग्र प्रदर्शन के बाद में तनाव बेहद बढ़ गया था। शहर में पुलिस बल ने प्रदर्शनकारियों पर आँसू गैस के गोले छोड़े और कर्फ्यू लगाया। उइगर मुसलमानों की हिंसा के जवाब में हान समुदाय ने भी उग्र प्रदर्शनों के साथ-साथ उइगरों की सम्पत्ति को भी भारी क्षति पहुँचायी । उरुमकी में भड़की हिंसा के दौरान हान समुदाय के लोग चिल्ला कर कह रहे थे,’’उइगरों को खलास करो-खलास करो''। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार उन साम्प्रदायिक दंगों में मरने वालों की संख्या १८४ हो गयी थी। इनमें १३७ हान समुदाय के थे। इस समुदाय के मरने वाले १११ पुरुष और ४५ स्त्रिायाँ हैं। उइगरों में मरने वाले ४५ पुरुष एवं एक महिला थी।एक मृतक ‘हुडो'जाति की थी।
चीन के पश्चिमोत्तर में स्थित पूर्वी तुर्किस्तान वर्तमान में शिनजियांग है जिसकी अब सीमाएँ रूस,कजाकिस्तान ,किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान ,पाक अधिकृत कश्मीर (भारत),अफगानिस्तान से जुड़ी हैं। शिनजियांग इलाका तेल और प्राकृतिक गैस के भण्डारों से मालामाल है।
जहाँ तक इस क्षेत्र के इतिहास का सम्बन्ध है तो ११वीं शताब्दी तक बौद्ध धर्म के प्रभाव में रहा। इस इलाके में हजारों की संख्या में बौद्ध स्तूप ,मठ, मन्दिर तथा अनुवाद शालाएँ बनायीं गयी थीं। यहाँ पर कश्मीर से पहुँचे युवा भिक्षु करुणा ने बौद्ध धर्म प्रसार किया। इस क्षेत्र का सांस्कृतिक तथा सामाजिक
राजधानी काशगर को आज भी ‘काशी' पुकारते हैं। यह आज भी ‘लेह' से ‘काशगर'तक प्राचीन ‘रेशमी मार्ग' का हिस्सा है। लेकिन दशवीं शताब्दी के मध्य में चंगेज खान की सेनाओं ने बौद्ध मन्दिरों को नष्ट-भ्रष्ट करने के साथ-साथ यहाँ के लोगों को इस्लाम कबूल करने पर मजबूर कर दिया।शिनजियांग के लुयान,कुशा के बौद्ध शिल्प तुरपान की बौद्ध गुफाएँ अब भी सुरक्षित हैं। ये उस समय का स्मरण कराती है कि जब यह इलाके चीन में बौद्ध धर्म के प्रवेश द्वार था यहाँ तथा शान्ति और अहिंसा के मंत्रों से गुंजायमान होते थे। यह क्षेत्र विश्व को सर्वश्रेष्ठ कला एवं साहित्य के सृजन का गढ़ बना था।
इस्लामी आक्रान्ताओं ने उस समय के समाज को पूर्णतः नष्ट कर दिया। इस बीच चीन के शासकों का हस्तक्षेप होता रहा। बौद्ध विद्वान कुमार जीव को चीन के सम्राट ने अपने दरबार में बुलाकर ‘राजगुरु' बनाया। अब चीन इस क्षेत्र में अपने उसी हस्तक्षेप तथा सम्बन्धों का उल्लेख कर शिनजियांग पर अपना पुराना नियंत्रण होना सिद्ध करने की कोशिश कर रहा है।
‘उरुमकी' शब्द की व्युत्पत्ति से उर्वशी हुई है। शिनजियांग के नामकरण से पहले भारतीय शास्त्रों और बौद्ध धर्म ग्रन्थों में यह इलाका’रत्न भूमि' के नाम से विख्यात था। इस क्षेत्र की स्त्रिायाँ उर्वशी की भाँति अत्यन्त सुन्दर ,मोहक और तीखे नाक-नक्श वाली होती हैं। यहाँ के पुरुष कद्दावर तथा बलिष्ठ और धरती रत्नगर्भा मानी गयी है। यह क्षेत्र भारतीय सामरिक रणनीति और भू-राजनीतिक व्यूह रचना के लिए बहुत ही संवेदनशील तथा महत्त्वपूर्ण रहा है। अगर भारत स्वतंत्र होता तथा महाराजा रणजीत सिंह और सेनापति जोरावर सिंह जैसे पराक्रम प्रभावी रह पाते तो काशगर एवं उरुमकी लेह और स्कार्दू के साथ भारतीय मानचित्र में होते।
चीन शिनजियांग के तालिबानों पर नियंत्रण हेतु पाकिस्तान पर विश्वास किया । कहा जाता है कि ओसामा बिन लादेन ने चीन सरकार को संदेश भिजवाया था कि इस इलाके को अमरीकी हस्तक्षेप से मुक्त रखने के लिए वह चीन की मदद को तैयार है। शिनजियांग की प्रान्तीय सरकार ने अफगानिस्तान के तालिबानों को नब्बे अरब डॉलर की सहायता की थी। यह शिनजियांग ईयर बुक १९९९ में उल्लिखित है। शिनजियांग में किसी न किसी रूप में मुसलमान असन्तोष पनपता है। इसमें अमरीका और ब्रिटेन के उन रणनीतिकारों की गहरी दिलचस्पी है जो मध्य एशिया में चीन के वर्चस्व को कम करते हुए अमरीका प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं। चीन में ओलम्पिक खेलों के समय भी उइगर मुसलमानों ने एक ट्रक का अपहरण कर चार चीनी सैनिकों को कुचल कर मार डाला था। यह घटना अन्तरराष्ट्रीय सुर्खियों में रही थी। चीन सरकार ने तब भी अमरीकी प्रभाव की तरफ इशारा किया था। पिछले साल के दंगे की शुरुआत उरुमकी की एक खिलौना कारखाने में हान चीनियों द्वारा उइगर मुसलमान युवतियों से बलात्कार करने की खबर फैलने से हुई। इस घटना की तफ्तीश के बाद यह महज अफवाह साबित हुई। लेकिन इस वजह से उइगर मुसलमानों में हान के खिलाफ आक्रोश भड़का दिया। इस पर भड़के दंगे में ६०० उइगर मुसलमान मारे गये थे।
चीन अपनी सरहदों में किसी भी प्रकार के आतंकवाद या अलगाववाद को तनिक भी सहन नहीं करता । काशगर को सबसे बड़ी ईदगाह है जो बहुत छोटी है। शिनजियांग में हर स्कूल में चीनी भाषा ही शिक्षा का माध्यम है। चाहे वह मदरसा हो या सरकारी स्कूल हो। वहाँ के छात्रों को प्राप्तांकों के आधार पर चीन के विभिन्न कॉलेजों या विश्वविद्यालयों में प्रवेश मिलता है और शिनजियांग में शेष चीन से जनसंख्या का सैलाब लाकर हान जनसंख्या प्रतिशत बढ़ा दिया गया है।
काशगर चीन में शिनजियांग मुसलमान बहुल राज्य है जिसकी कोई आधी जनसंख्या उइगर मूल की मुसलमान है जो तुर्की मूल के हैं। इनके शक्ल-सूरत, भाषा-भूषा, खान-पान इस देश के बहुसंख्यक हान समुदाय से पूरी तरह अलग है। इनकी भाषा तुर्की परिवार की है जो अरबी लिपि में लिखी जाती है। यह बात अलग है कि वर्तमान में चीन सरकार ने उइगर भाषा ही नहीं, कुरान को भी चीनी लिपि पढ़वाना शुरू कर दिया है। इस क्षेत्र पर सन १९४४ में द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सोवियत संघ के नेता जोसेफ स्टालिन के समर्थक विद्रोही मुसलमानों ने शिनजियांग में ‘पूर्वी तुर्कीस्तान रिपब्लिक' का गठन कर लिया था।
चीन ने ‘पूर्वी तुर्कीस्तान' पर सन् १९४९ में बलात कब्जा कर लिया और इसका नाम ‘शिनजियांग' रख दिया। इसका शब्दिक अर्थ ‘ नया सीमान्त' है। इसके बाद सन् १९५० में तिब्बत को भी हड़प लिया। इन दोनों ही क्षेत्रों की जनता में आज भी अपने को चीन का हिस्सा मानने को तैयार नहीं है। यहाँ के लोगों में चीन द्वारा अपने क्षेत्र की प्राकृतिक सम्पदा के दोहन तथा भेदभाव को लेकर गहरा आक्रोश और असन्तोष व्याप्त है। उन्हें यह अपनी भाषा संस्कृति को नष्ट करने के साथ-साथ हान समुदाय के लोगों को बसाये जाने पर भी आपत्ति है। इस कारण ये तिब्बती बौद्ध और उइगर मुसलमान अपने ही इलाके में अल्पसंख्यक होते जा रहे हैं । उन्हें डर है कि एक दिन चीनी सरकार उनका सब कुछ बदल कर रख देगी। यहाँ तक कि उन्हें अपने समूचे समुदाय के अस्तित्व को खतरा दिखायी दे रहा है। वे अब भी अपने को चीन का हिस्सा मानने को तैयार नहीं हैं।
यह सच भी है। वस्तुतः चीन ने शिनजियांग और तिब्बत पर कब्जा मात्से तुंग के शासन के दौरान किया। इन हड़पे इलाके को जोड़ने के लिए सन् १९६२ में चीन ने भारत हमला कर उसके अक्षय चीन (अक्साईचिन) क्षेत्र में ३८०००वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर लिया। वर्तमान में तिब्बत और शिनजियांग के मध्य अक्साई चिन के कुनकुन पहाड़ों से लेकर एकमात्र मार्ग है। हकीकत में चीनी गणराज्य का कोई ६०प्रतिशत भू-भाग पर सीधे हान शासन नहीं चलता है। आज शिनजियांग और तिब्बत का क्षेत्रफल चीन का करीब-करीब आधा है।
मांचू समुदाय के हान समाज में घुलमिल जाने तथा स्थानीय लोग पलायन कर जाने के पश्चात् चीन में अब केवल तिब्बती बौद्ध और शिनजियांग के उइगर मुसलमान ही गैर हान समुदाय बचा है। इन दोनों इलाकों में चीन की नीतियों को बहुत अधिक असन्तोष है इसकी वजह चीनी सरकार द्वारा किया जा रहा आर्थिक विकास केवल उनके प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को दृष्टिगत रखते हुए किया जा रहा है इससे उपेक्षित तिब्बती और उइगर मुसलमान कोई फायदा नहीं हो रहा है। सच्चाई यह है कि जहाँ ये लोग मजदूर हैं,वहीं हान समुदाय के लोग बहुत ज्यादा वेतन पाने वाले निरीक्षक तथा अधिकारी हैं। इस तरह तिब्बती बौद्ध और उइगर मुसलमान दोयाम दर्जे के नागरिक बने हुए हैं।
शिनजियांग में पिछले २०सालों से ‘पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक' आन्दोलन चल रहा है जो इस्लामिक आतंकवादी संगठन ‘अल कायदा'के सरगना ओसामा बिन लादेन से जुड़ा हुआ है। २१ जनवरी ,१९४७ में एक निर्धन परिवार में जन्मी रेबिया कदीर अपने परिश्रम से एक व्यवसायी से राजनेता बनी है। उनके ११बच्चे हैं जिनमें दो चीन जेल में कैद हैं। लेकिन हर उइगर उन्हें अपनी माँ समझता है। उइगरों की हर चिन्ता उनकी अपनी है। ६२ वर्षीय रेबिया को चीन की कम्युनिस्ट सरकार उग्रवादी मानती है। वे चीनी संसद की सांसद रह चुकी हैं। चीन की महिलाओं के प्रतिनिधि मण्डलों का अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करती थीं। चीन की महिलाओं के प्रतिनिधि मण्डलों का अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करती थीं। उन्होंने १९७७ में शिनजियांग के गुलजा उइगर नरसंहार के बाद चीनी सरकार का विरोध शुरू किया। १९९९ आते-आते तक रेबिया चीनी सरकार की सबसे बड़ी दुश्मन बन गयीं और उन्हें देशद्रोह के नाम पर में जेल में डाल दिया। २००५ में तत्कालीन अमरीकी विदेशी मंत्री कोंडालिजा राइस के हस्तक्षेप के बाद उन्हें रिहा किया। २००६ से रबिया को नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया। इसी वर्ष म्युनिख में हुई विश्व उइगर काँग्रेस में उन्हें चेयरमैन चुना गया। चीन उनके बारे में कुछ भी कहता और सोचता हो , किन्तु वे उइगर मुसलमानों की आशा किरण हैं जो उन्हें चीन दसता से मुक्ति दिला सकती हैं।
कुछ भारतीय विद्वानों का विचार है कि शिनजियांग में हाल के दंगों से उत्पन्न स्थिति भारत के लिए अनुकूल हो सकती है। इनकी वजह से चीन का पाकिस्तान पर से भरोसा कम हुआ है। इसका उसे लाभ उठाते हुए चीन की शिनजियांग में तालिबानों पर कठोर कार्रवाई को उचित ठहराना चाहिए। इधर चीन को भी समय रहते यह समझ लेना चाहिए कि पाकिस्तान अपने मजहबी तालिबानी आतंकवादियों के दमन और उनके खात्मा के लिए दिल से कभी भी कार्रवाई नहीं करेगा। इसके विपरीत दूसरे भारतीय कूटनीतिज्ञों का मानना है कि भारत को शिनजियांग के उइगर मुसलमानों और तिब्बत के बौद्धों के स्वातंत्रय आन्दोलनों का समर्थन करना चाहिए ,ताकि इन सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण स्थलों से चीन को बेदखल करने में मदद मिले। इससे भारत की स्थिति हर तरह से मजबूत होगी ,उस दशा में चीन अरुणाचल आदि भारतीय क्षेत्रों पर अपना दावा करने से बचेगा।
सम्पर्क - डॉ.बचनसिंह सिकरवार
६३ब,गाँधी नगर, आगरा - २८२००३
मोबाइल- ९४११६८४०५४
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