विश्व का सबसे नवीनतम देश दक्षिणी सूडान



डॉ.बचन सिंह सिकरवार
अन्धेरा महाद्वीप' के नाम से मशहूर अफ्रीका के देश सूडान में  दशकों के खूनखराबे के बाद गत ९जुलाई को विश्व  के मानचित्र पर  एक नये देश दक्षिणी सूडान' का उदय हुआ है जिससे अब  संयुक्त राष्ट्र संघ में सदस्य देशों की संख्या १९३ तथा अफ्रीकी देशों की संख्या बढ़कर  ५४ हो गयी है। इस नवोदित राष्ट्र का जन्म  सूडान के उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों के लोगों के बीच सालों से चले गृहयुद्ध का परिणाम है जिसमें कोई २० लाख से अधिक लोगों की जानें गयीं। तब अमरीका के तत्कालीन विदेशमंत्री कोलिन पावेल की पहल पर सन्‌ २००५ में संघर्षरत दोनों पक्षों के बीच समग्र शान्ति समझौता' हुआ ,तब भारत ने उस समझौते का खुलकर समर्थन किया था। उसी के अन्तर्गत ९जनवरी ,२०११ को सूडान को विभाजित कर दक्षिणी सूडान के गठन के मुद्दे पर एक जनमत संग्रह कराया गया। इसमें दक्षिणी सूडान के लगभग ९९.७७ प्रतिशत लोगों ने नए राष्ट्र दक्षिणी सूडान के गठन के पक्ष में मतदान किया।
तमाम अभावों ,घोर गरीबी और अनेक समस्याओं से ग्रस्त दक्षिणी सूडान के लोगों  के लिए अपने मूल देश सूडान से अलग होना किसी आजीवन बन्दी के कारागार से मुक्ति से कम नहीं था , तभी तो वे इस नवोदित राष्ट्र दक्षिणी सूडान  की राजधानी जुबा में अपनी कष्ट-कठिनाइयों को भूलाकर ड्रम बजाते हुए हाथों में दक्षिणी सूडान का झण्डा लेकर इस नए राष्ट्र  के राष्ट्रपति सल्वा कीर मायार्डिट के पक्ष में नारे  लगा रहे थे। शनिवार ,९जुलाई को राजधानी जुबा में आजादी के जश्न की शुरुआत में आधी रात (९बजे) से हुई। शहर के मध्य में उल्टी गिनती के लिए लगी घड़ी जैसे ही शून्य पर पहुँची , वैसे ही नया राष्ट्रगान टेलीविजन पर बजने लगा। समारोह में दक्षिणी सूडान असम्बेली के अध्यक्ष जेम्स वानी ड्ग्गा ने एक बयान पढ़ कर आजादी की घोषणा की। उसके पश्चात उपस्थिति जनसमूह खुशी से झूम उठा। इसके बाद सूडान का राष्ट्रीय ध्वज उतार कर दक्षिणी सूडान का नया ध्वज फहराया गया।
आजादी के इस समारोह में सूडान के राष्ट्रपति उमर अल बशीर ,संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान मून की,अमरीका के पूर्व विदेशमंत्री कोलिन पावेल, भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, संयुक्त राष्ट्र संघ में अमरीका के स्थायी प्रतिनिधि सुखन राइस और अफ्रीकी कमान के अमरीकी सैन्य प्रमुख जनरल कार्टर हैम सम्मिलित थे। भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा, ’’यह एक ऐतिहासिक मौका है। एक नए देश का उदय हो रहा है। स्वतंत्रता के इस जश्न में भारत की मौजूदगी महत्त्वपूर्ण है।''
इससे पहले ८ जुलाई को सूडान के राष्ट्रपति से जुड़े मामले के मंत्री बक्री हसन सालेह ने कहा,’’सूडान सरकार इस बात की घोषणा करती है कि दक्षिणी सूडान को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी जाती है।
यद्यपि दक्षिणी सूडान की गणना विश्व के निर्धन देशों में की जाएगी ,तथापि वहँ तेल के अपार भण्डार हैं। दक्षिणी सूडान एक ऐसा अल्पविकसित देश है जहाँ सात में से एक बच्चा पाँच वर्ष का होने से भूख और दूसरे अभावों से मर जाता है।
सूडान उत्तर-पूर्वी अफ्रीका एक गणतांत्रिक है जो देश क्षेत्रफल की दृष्टि से अफ्रीका महाद्वीप का सबसे बड़ा देश रहा है। नील नदी और उनकी सहायक नादियाँ सारे देश को उत्तर से दक्षिण की ओर विभाजित करती हैं। ऊँची-नीची पर्वत मालाओं ने मैदानों को छोटे-छोटे भूखण्डों में बाँट रखा है। श्वेत नील नदी देश के बीच से गुजरती है और सूडान की राजधानी खारतूम के निकट नीली नील नदी से मिलती है। नील नदी इस देश के मध्य उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है। इसके आसपास कृषि-भूमि है। यहाँ की मुख्य कृषि फसल ज्वार है जो देश के लोगों का मुख्य भोजन है।  अन्य कृषि- पदार्थों लम्बे रेशे की कपास ,मूंगफली ,तिल ,खजूर ,खाल और चमड़ा ,लाल मिर्च ,फलियां और मक्का शामिल है। सूडान संसार में अरबी गोंद का मुख्य निर्यातक है। चावल, मूंगफली, कॉफी, गन्ना और तम्बाकू आदि का उत्पादन के नई उपज हैं। सूडान की खनिज सम्पदा में तांबा ,सोना, लोहा , मैंगनीज और मैगनेसाइट है। सूडान की आबादी में अरबों, नीग्रो तथा अरब एवं नीग्रो के समिश्रण से न्यूबिनों की है। सूडान १ जनवरी, सन्‌ १९५६ को ब्रिटेन की दासता से स्वतंत्र देश बना है।
इस देश क्षेत्राफल - २५,०५,८१३ वर्ग किलोमीटर और राजधानी खारतूम है। दक्षिणी सूडान की जनसंख्या कोई २.७९ करोड़ है। यहाँ के निवासी अरबी, अँग्रेजी, नुबियन, दिनका भाषाएँ बोलते हैं और इस्लाम, ईसाई और कबायली धर्मों को मानते हैं। यहाँ साक्षरता का ४६ प्रतिशत से अधिक है और मुद्रा दीनार है। अरब संस्कृति सारे देश पर छाई हुई। यद्यपि नीग्रो संस्कृति का भी अस्तित्व हैं। उत्तरी सूडान की जनसंख्या मुस्लिम बहुल है तथापि दक्षिणी सूडान में नीग्रो अधिक हैं। यही वजह से सूडान में गृहयुद्ध और विभाजन कारण बनी है।भारत की तरह सूडान भी कृषि प्र्रधान देश है और कोई ८०प्रतिशत जनसंख्या कृषि में लगी हुई है।
अधिकतर अफ्रीकी देशों की तरह सूडान की राजनीति पर भी कबीले हावी हैं। यहाँ कभी नागरिक क्रान्ति होती है तो कभी सैनिक क्रान्ति। १७ नवम्बर,१९५८ को सूडान में पहली सैनिक क्रान्ति हुई। किन्तु  नवम्बर, १९७३ में यहाँ सैनिक शासन स्थापित हो गया। लम्बे रेशे वाली विश्व विख्यात रूई के उत्पादन में सूडान अग्रणी है। सूडान के प्रमुख नगर-ओम डुरमान, एलओबिद ,वाडमेहदनी,पोर्ट सूडान।
अफ्रीका महाद्वीप में चीन व्यापक स्थिति को दृष्टि से भारत का दक्षिणी सूडान के उदय पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। भारत  सदैव ही सूडान को विशेष महत्त्व देता आया है। यही कारण भारत ने दक्षिणी सूडान की राजधानी जुबा में सन्‌ २००७ में ही उच्चायोग की स्थापना कर दी थी। यहाँ तक कि दोनों देशों के मंत्रीगणों ने एक-दूसरे के मुल्कों के दौरे किये। भारत के विदेश राज्यमंत्री ई.अहमद ने जून,२०११ में जुबा का दौरा किया। इन्होंने दोनों देशों के मध्य नये सहयोग का प्रारूप तैयार किया। मई,२०११ में दक्षिणी सूडान के राष्ट्रपति कार्यालय में नियुक्त डॉ.प्रिसिलिया कुच ने उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी तथा विदेशमंत्राी  एस.एम.कृष्णा से मुलाकात की। इसके पश्चात इथियोपिया की राजधानी आदिसअबाबा में आयोजित भारत -अफ्रीका फोरम सम्मेलन के दौरान भारत ने दक्षिणी सूडान के नेतृत्व से सम्पर्क साधा । भारत ने इस नवोदित राष्ट्र के विकास के कार्यों में सहायता देने के लिए ५० लाख अमरीकी डालर देने की घोषणा की है। अफ्रीकी सहायता के अन्तर्गत भारत ने एक व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र और ग्रामीण प्रौद्योगिकी पार्क की स्थापना की जाएगी। भारत के तकनीकी और आर्थिक सहायता कार्यक्रम का सूडान प्रमुख लाभ पाने वाला मुल्क है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र मिशन  तथा दक्षिणी सूडान की सरकार में भारतीय पुलिस अधिकारियों का योगदान भी महत्त्वपूर्ण है। वस्तुतः भारत गत छह वर्षों से दक्षिणी सूडान के साथ  घनिष्ठ सम्बन्ध  बनाये हुए है। जनवरी,२००५ में सूडान तथा दक्षिणी  सूडान ने केन्या में एक व्यापक शान्ति समझौते पर हस्ताक्षर किये। उस समझौते के विदेश राज्यमंत्री ई.अहमद  के साक्षी दे थे। विशेषज्ञों का मानना है कि आजादी के जश्न समारोहों के खत्म होने के बाद दक्षिणी और उत्तरी सूडान के बीच कई अनसुलझे विवादों का विशेष रूप से सीमा के मुद्दे पर राजनीतिक संघर्ष शुरू हो सकता है। दोनों देशों के मध्य नयी सीमा बनाना ही चुनौती नहीं होगी ,बल्कि इससे बड़ी चुनौती तेल सम्पदा का बँटवारा होगा,क्यों कि समुद्र तक जाने वाली पाइप लाइनें उत्तरी सूडान में है। इस समय तेल से प्राप्त होने वाली आय का दोनों देशों में बराबर  बाँटी जाती है ,किन्तु भविष्य में शायद ही यह व्यवस्था चल पाए। उत्तरी सूडान और दक्षिणी सूडान के
मध्य विवाद का कारण सूडान पर अन्तर्राष्ट्रीय ऋण हो सकता है। इन दोनों मुद्दों पर उत्तरी और दक्षिणी सूडान के  बीच काफी समय से वार्ता चल रही है,किन्तु कोई हल अभी नहीं निकला है। इसमे मुख्य बाधा यह है कि सूडान के कुल तेल उत्पादन का तीन चौथाई भाग अर्थात पाँच लाख बैरल प्रतिदिन दक्षिणी सूडान से आता है जिसका अधिकांश  भाग निर्यात किया जाता है। अब प्रश्न यह है कि क्या सूडान इस तेल पर अपना सम्प्रभु अधिकार का दावा करेगा। क्या दक्षिणी सूडान की तरफ से उत्तरी सूडान को यह बता दिया जाएगा है कि तेल  सम्पदा विभाजन नहीं होगा। ऐसे ही कई दूसरे  कई जटिल प्रश्न है जिनका अब तक कोई उत्तर सामने नहीं आया है।दक्षिणी सूडान को यह अच्छी तरह पता होगा कि वह सूडान से अलग होकर नहीं रह सकता। दोनों को  इस कारण एक साथ रहना होगा,क्यों कि भले ही दक्षिणी सूडान में अधिकांश के स्रोत  हों ,किन्तु विश्व  के तेल बाजारों में यह तेल सूडान में बिछे पाइप लाइनों के संजाल (नेटवर्क) से गुजरकर ही पहुँच सकेगा। यह आशंका बनी हुई है कि जब दक्षिणी सूडान तेल सम्पदा पर अपना एकाधिकारी घोषित करेगा। उस हालत में सूडान अपनी पाइपलाइनों के उपयोग के लिए बहुत अधिक शुल्क की माँग कर सकता है। उस हालत में विवाद उत्पन्न होना स्वाभाविक है।  हालाँकि संयुक्त राष्ट्र संघ के सात हजार सैनिक अभी दक्षिणी सूडान में तैनात रहेंगे, ताकि शान्त बहाली में सहायता कर सकें। भारत का भी हित नवोदित राष्ट्र दक्षिणी सूडान में शान्ति और सुव्यवस्था बने रहने में ही है।
                               
              सम्पर्क - डॉ.बचन सिंह सिकरवार
                                               ६३ब,गाँधी नगर,आगरा-२८२००३
                                             मोबाइल नम्बर-९४११६८४०५४
 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कोई आजम खाँ से यह सवाल क्यों नहीं करता ?

अफगानिस्तान में संकट बढ़ने के आसार

कौन हैं अनुच्छेद 370 को बरकरार रखने के हिमायती?