भ्रष्टाचार के राक्षस से देश बचाने को आगे आयें


डॉ.बचन सिंह सिकरवार

अपने देश के कथित विकास , उसकी ऊँची दरें ,गगन चुम्बी इमारतों, सड़कों पर महँगी गाड़ियों की कतारें देख और लगातार तेजी से बढ़ती आर्थिक समृद्धि को लेकर हम कितनी ही डीगें मारें और इतराते फिरें ,लेकिन आज जीवन के हर क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार के दानव पर विचार करते ही ; सब कुछ व्यर्थ दिखायी देता है। आज देश को चीन-पाकिस्तान सरीखे शत्रु भाव रखने वाले मुल्कों के साथ-साथ इस्लामी और माओवादी आतंकवाद से भी बढ़कर भ्रष्टाचारियों से कहीं ज्यादा खतरा है ,क्यों कि दूसरे मुल्कों की सेनाएँ और आतंकवादी तो सरहद के बाहर से कभी-कभी हमला करते हैं जहाँ  तैनात हमारे जवान उन्हें देखते ही अक्सर मार गिराते हैं , किन्तु ये रिश्वतखोर तो हर जगह  देश के संसाधनों तथा लोगों के लहू को रात-दिन जोंक की तरह पी रहे हैं  इन्हें मारना तो दूर ,पकड़ा भी नहीं जाता।  इस कारण न तो देश  सुरक्षित है और न यहाँ के बाशिन्दे।
वैसे यह भी सच है कि आज भ्रष्टाचार के इस राक्षस के चुंगल से न सेना बची है और न पुलिस-प्रशासन। जिन पर देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी है वे ही मुल्क को  बेचने पर आमादा बने हुए हैं। यहाँ तक कि ये लोग सैन्य हथियारों की खरीद-फरोख्त में भी दलाली लेने से बाज नहीं आ रहे हैं। कटु सच यह  है कि आज बाड़ ही खेत को  खाए जा रही है तभी तो चन्द रुपयों के लालच में सुरक्षा में लगे सीमा प्रहरी ही सरहद पार कराने के साथ-साथ गुप्त सूचनाएँ तक दुश्मन मुल्कों को पहुँचा देते हैं।
कुछ लोग भ्रष्टाचार' का मतलब कोई काम करने के लिए रिश्वत लेने-देने और सामान की खरीद-फरोख्त और ठेकों में दलाली खाने को ही समझते हैं। लेकिन भ्रष्टाचार' एक व्यापक अर्थ रखने वाला शब्द है इसमें वेतन या मजदूरी लेकर भी काम न करना भी भ्रष्टाचार है। इसमें अपने दायित्त्व के निर्वहन में कोताही बरतना भी शामिल है। आज हमारे देश के नेता जिस लोकशाही की शान में कसीदे पढ़ रहे हैंं उसमें देश के किसी आम जन को यह भरोसा नहीं हैं कि किसी भी सरकारी कार्यालय में उसका छोटे से छोटा काम बगैर रिश्वत के हो जाएगा। रियायती दर पर खाद्यान्न के लिए राशन कार्ड बनवाना तो दूर रहा ,देश के लिए मर मिटने के लिए पुलिस और सेना में भर्ती होने के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है। फिर भी इस स्थिति पर आज तक किसी भी राजनीतिक दल के विधायक और सांसद समेत किसी भी नेता ने पीड़ा व्यक्त नहीं की। देश में आम जन के विद्यालय में न तो इमारत है और न पढ़ाने वाले ही। यदि हैं तो उन्हें पढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। अगर है तो सरकार उन्हें ऐसा नहीं करने देती। कभी उन्हें जनगणना  में लगा देती है तो कभी पल्स पोलियों में या किन्हीं दूसरे सरकारी कार्यों में। प्राथमिक विद्यालयों में विशिष्ट बी.टी.सी.में भर्ती शिक्षक जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय में कुछ हजार रुपए देकर घर बैठकर तनखा ले रहे है। इतना ही नहीं ,विद्यार्थियों को सरकार की  ओर से निःशुल्क वितरित होने वाली पुस्तकों को पुस्तक विक्रेताओं को बेच देते है। दोपहर के भोजन(मिड डे मील) के फर्जीवाडे को अब हर कोई जानता है। इण्टर और डिग्री कॉलेजों में शिक्षकों को नेतागिरी से ही फुर्सत नहीं है। उनका सारा समय अपने निजी स्कूल ,कॉलेज चलाने और  उनके लिए सरकारी विभागों से धन बटोरने में गुजरता है। अब भ्रष्टाचार के कारण छात्रा-छात्राओं के रुचि  पढ़ाई-लिखायी में नहीं रही है। वे भी  बगैर पढ़े-लिखे यहाँ तक कि बिना परीक्षा दिये अधिक से अधिक अंक पाने और डिग्री लेना चाहते हैं। पीएच.डी. की डिग्रियाँ भी अब बिक रही हैं। अब ज्यादातर छात्रा-छात्राएँ  मनोविनोद के लिए ही महाविद्यालय ,विश्वविद्यालय आते हैं जहाँ उनका अधिकांश समय मोबाइलों और कम्प्यूटरों के इण्टरनेट पर बतियाते-गप्पियाते-चुहलबाजी करते गुजर जाता है। उन्हें देखकर भी नहीं लगता कि वे पढ़ने-लिखने को आये हैं।
अब विश्वविद्यालयों में कुलपति भी अपनी शैक्षिक योग्यता और प्रशासनिक क्षमता से नहीं बनते ,बल्कि नेताओं की चाटुकारिता और थैली के बल पर बनते हैं। फिर पद ग्रहण करते ही नियुक्तियों , कॉलेजों की मान्यताओं , नकल की  छूट विवरण-पुस्तिका (ब्रोशर) ,प्रश्न पत्राों ,उत्तर पुस्तिकाओं आदि की छपाई ,स्टेशनरी की खरीद , इमारतों के निर्माण ,उनकी मरम्मत इत्यादि में दलाली से रकम बटोरने में लग जाते हैं। ऐसे कुलपतियों से बेहतर प्रशासन और कामकाज में शुचिता की आशा करना ही व्यर्थ है।
 देश जिन वैज्ञानिकों पर इस उम्मीद से मोटी रकम खर्च करता है कि  वे अपने मुल्क की तरक्की के लिए कुछ नयी-नयी खोजें करेंगे , उनका सारा समय इण्टरनेट पर फर्जी आंकड़े भर कर जाली रिपोर्टें तैयार करने में गुजरता है।
सरकारी अस्पतालों में चिकित्सक आते ही नहीं हैं। गाँवों के प्राथमिक चिकित्सालय कम्पाउण्डरों तथा नर्सों के भरोसे चल रहे हैं जहाँ वे मरीजों से रिश्वत लेकर छोटा-मोटा इलाज कर देते हैं। रिश्वत न मिलने पर वे प्रसूताओं को अस्पताल के दरवाजे या  सड़क पर ही बच्चा जनने को मजबूर कर देते हैं। सरकारी दवाएँ मेडीकल स्टारों पर बेच दी जाती हैं। कुछ सरकारी डॉक्टर तो अस्पताल सिर्फ इसलिए आते हैं ताकि मरीजों को भयभीत कर अपने निजी क्लीनिक या नर्सिंग होमों में ला सकें। यहाँ भी मरीजों की जाँच के नाम पर जाँच केन्द्रों और दवा बनाने वाली कम्पनियों समेत  इनकी हर किसी से दलाली बँधी हुई है। इसके सिवाय वे बगैर जरूरत के गहन चिकित्सा इकाई (आई.सी.यू.) में मरीज को भर्ती रखने से लेकर ऑपरेशन तक कर डालते हैं। बिना रिश्वत के समय से शव परीक्षण भी नहीं होता। ऐसे में उसकी सही रिपोर्ट के बारे में सोचना ही फिजूल है। किसी भी शस्त्रा का लाइसेन्स लेने के लिए उसकी कीमत से कहीं ज्यादा तो आपको उससे बनवाने के लिए चौथ देनी पडे+गी है। वृद्धावस्था ,विकलांग ,निराश्रित पेंशन या किसी अन्य सरकारी योजना का लाभ लेने ,सूखा-बाढ़ ,मृतक का मुआवजा पाने को भी सरकारी कर्मचारियों को रिश्वत देने के साथ कार्यालय के चक्कर लगा-लगा कर अपने जूते-चप्पल भी घिसने पड़ते हैं। आयकर ,वाणिज्य कर, आबकारी ,परिवहन विभाग के अधिकारियों को तो वैसे ही लूट की पूरी छूट है। आयकर विभाग से आयकर के रूप में  जमा अतिरिक्त धनराशि (रिफण्ड)वापस पाने के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है।  तहसीलों पर लेखपाल ,कानूनगो ,तहसीलदार ,उपजिलाधिकारी किसानों को नाना बहानों से लूट रहे हैं। कुछ नहीं, तो जाति प्रमाणपत्र और आय प्रमाण पत्रा बनवाने और दाखिल खारिज कराने पर ही आम जन को अपनी अण्टी ढीली करनी पड़ती है। किसान को खाद ,बीज ,बिजली ,बैंक के कर्ज के लिए भी अच्छी खासी चौथ देनी पड़ती है। लोगों को जन्म प्रमाणपत्र से लेकर मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए अनगिनत चक्कर लगाने के साथ-साथ अच्छी खासी रिश्वत देनी पड़ती है। शादी के पंजीकरण के लिए तो हजार रुपए से भी ज्यादा खर्च करने पड़ते हैं। जमीन का बैनामा कराने से लेकर नक्शा पास कराने ,नल,बिजली का कनेक्शन लेने के लिए न जाने कितने पापड़ बेलने के साथ-साथ हर जगह चौथ देनी पड़ती है। समाज सेवी संस्था चलाने के लिए भी उप निबन्धक फर्म्स ,सोसाइटीज एण्ड चिट्स' को हजारों रुपए चढ़ावे के बगैर न पंजीकरण होता और न नवीनीकरण ही। इसके कर्मचारियों को उनके मनमाफिक रिश्वत देने में जरा भी हिलहुज्जत की ,तो आप की संस्था किसी और को बेच  दी जाए, तो यह शिकायत मत करना कि हमें मालूम नहीं था। पुलिस का तो और भी बुरा हाल है लेकिन पुलिस के बगैर भी गुजारा नहीं है। आप पर चाहे जितने जुल्म-सितम ढाये गए हों ,पुलिस में उन्हीं की ही बात सुनी जाती है जो उन्हें अच्छा चढ़ावा चढ़ाने की सामर्थ्य रखते हों। मारपीट ,लूट ,डकैती ,हत्या ,बलात्कार कुछ भी हो ,आम जन की रिपोर्ट तभी लिखी जाएगी ,जब ढंग से पुलिसकर्मियों की मुट्ठी गरम कर दी गयी हो। पुलिसकर्मियों को लूट की छूट देने के लिए अब बकायदा थाने बिकते हैं,जो ज्यादा बोली लगाता है वही उसका थानेदार बना दिया जाता है ऐसे में इन थानेदारों से ईमानदारी से काम करने की उम्मीद कैसे कर सकते है?
अगर आप पुलिस को रिश्वत देना नहीं चाहते और सोचते हैं कि चलो न्याय के मन्दिर यानी अदालत की शरण ली जाए ; तो भी आप धोखे में हैं। अदालत में वकील की मदद से रिपोर्ट लिखाने पर बगैर दाम के आदेश नहीं लिखा जाएगा। यदि आप ने युगधर्म निभाया यानी चढ़ावा चढ़ा दिया , तो अदालत के आदेश पर रिपोर्ट तो थाने में दर्ज हो गयी ,लेकिन दरोगा जी को बिना कुछ दिये आप सही रिपोर्ट की उम्मीद न करें तो बेहतर है। यदि आपके विरोधी ने दरोगा जी को खुश कर दिया तो मामला उल्टा भी पड़ सकता है। अदालतों में गरीब को न्याय कैसे मिले ?जब सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर दाम लेकर रिपोर्ट गढ़ते हैं? अदालत में बिना रिश्वत के एक कागज भी आगे नहीं बढ़ता। पीढ़ियाँ गुजर जाती हैं ,किन्तु मामूली से मामूली मुकद्दमे का फैसला नहीं हो पाता। अपने मुल्क में आज दाम के बल पर आप किसी की भी जान लेकर  बड़ी आसानी से दण्ड से बचे रह सकते हैं।
देश की केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकारें उन्हें चलाने वालों का एक ही लक्ष्य है देसी-विदेशी पूँजीपतियों का हित साधना और उसके एवज में अपनी तिजौरियाँ भरना। इसके लिए वे किसानों से उनकी उपजाऊ जमीन छीन रहे हैं तो वनवासियों को वनों से खदेड़ रहे हैं। साथ ही देश के दूसरे प्राकृतिक साधनों को भी वे माटी के मोल बेचे जा रहे हैं। सरकार के बल पर कुछ घराने देखते ही देखते दुनिया के अरब और खरबपतियों की जमात में शामिल हो गए। अपनी इस लूट को वे देश का विकास बता रहे हैं और हम इतने मूर्ख हैं उस पर थू-थू करने के बजाय तालियाँ बजा रहे हैं।
 वर्तमान में आप उच्च अधिकारियों से अपना दुखड़ा सुना कर  न्याय की आशा कतई न करें ,वे तो सिर्फ अपनी मेज से आपका कागज हटा कर फिर उन्हीं के पास भेज देते हैं जिनसे आप पीड़ित हैं या जो आपकी सुनते नहीं हैं। ऐसे में चौथ देने के सिवाय दूसरा कोई उपाय हो तो बताएँ ?
पहले जहाँ गलत काम कराने के लिए रिश्वत देनी पड़ती थी अब आपको सही काम के लिए भेंट-पूजा करनी होती है। कुछ लोगों का कहना है कि आप रिश्वत देते हैं इसलिए रिश्वतखोरी को बढ़ावा मिलता है।
यह अर्द्धसत्य है। सच यह है कि आप बेकसूर हैं तो अपने को निर्दोष सिद्ध करने को पुलिस को रिश्वत देनी होगी ,अन्यथा कोई भी छोटा-बड़ा पुलिस अधिकारी किसी भी गम्भीर अपराध में आपको फँसा देगा और आपको स्वयं को बेकसूर साबित करने में उमर गुजर जाएगी। बिना मुट्ठी गरम किये पुलिसकर्मी आम जन से सीधे मुँह बात भी नहीं करते और रिश्वत के बाद आपके लिए किसी भी कानून को तोड़ने में उन्हें जरा भी संकोच नहीं होता।
इसी तरह विद्युत, परिवहन, आयकर, वाणिज्य कर, स्वास्थ्य अधिकारी अपने निहित स्वार्थों के लिए आपका कल्पना से भी अधिक नुकसान कर सकते हैं। इन्हें खुश न करने की कीमत आपको अपना काम-धन्धे से हाथ धो बैठ कर चुकानी पड़ सकती है।
सरकारी कर्मचारियों में यह नारा बहुत लोकप्रिय हो चुका है- रिश्वत लेते पकड़े जाओ और रिश्वत देकर छूट जाओ' सार्वजनिक निर्माण विभाग समेत न जाने कितने सरकारी विभाग हैं, जहाँ योजनाएँ केवल कागज बनी रह जाती हैं। जो सड़कें कभी बनी नहीं ,उनकी मरम्मत का भुगतान भी हो जाता है। जिस जगह कभी पेड़ लगाये गए नहीं ,उनके रखरखाव पर भुगतान होता रहता है। ऐसे ही उपकरणों, दवाओं, मशीनों, बीजों , उवर्रकों, कीटनाशकों की खरीद के भुगतान फर्जी तरीके से कर दिये जाते हैं।   
बगैर रिश्वत के जब मतदाता पत्रा नहीं बनता तो पासपोर्ट कैसे बन सकता है ?
आप को यह जानकर आश्चर्य होगा कि जनसाधारण की रक्षक समझी जाने वाली चौथी दुनिया' यानी जनसंचार माध्यमों (मीडिया)से सम्बन्धित कुछ लोगों को भी अपने काम कराने को सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने को विवश होना पड़ता है। देश में कैसी भी दुकान या कारखाना शुरू करने के लिए पंजीकरण से लेकर कोटा-परमिट ,लाइसेन्स , अनापत्ति आदि हेतु घूस देना अनिवार्य है। इसके सिवाय मार्केट, सेनेटरी, बाट-माप ,वाणिज्य कर आदि न जाने कितने निरीक्षकों(इन्सपेक्टरों)को चौथ देनी पड़ती है इनको खुश करने में कहीं चूक हुई तो आप अपना बेड़ा गर्क ही समझें।
सच कहें तो देश के लोगों की रक्षा कानून नहीं, भगवान के भय से हो रही है वरन्‌ ज्यादातर ज्यादातर राजनेता ,पुलिस-प्रशासनिक नौकरशाह, सरकार कर्मचारी अपने को तानाशाह समझ कर अपनी सामर्थ्य के अनुसार आम जन को स्वयं लूट रहे हैं उन्हें लूटने वालों को बचाने में जुटे हैं । भ्रष्टाचारियों के हौसला इतने बुलन्द हैं कि उनके खिलाफ आवाज उठाने वालों के  खिलाफ अपराधी साबित करने को पूरे दल बल से जुट जाते हैं। यहाँ तक ये लोग उन्हें जेल या उससे बाहर मरवाने से भी नहीं चूकते ,ताकि उनका कच्चा चिट्ठा  जनता के सामने न आ जाए। यथार्थ यह है कि आज देश में जिन्होंने लूटो' और लुटो'  के चलन से अपना नाता जोड़ लिया हैं वही आज कामयाब और फलफूल रहे हैं।
नेताओं, विधायकों ,सांसदों और मंत्रिायों का काम अब कानून बनाने और जनहित के मुद्दों पर बहस के लिए अपनी माथापच्ची करना नहीं, वरन विभिन्न सरकारी योजनाओं-परियोजनाओं में अपनों को ठेका  दिलाने और अपनी दलाली पक्की करना रह गया है। केन्द्र और राज्यों मंत्रिमण्डल के गठन के समय कमाई वाले मंत्रालय पाने के लिए होड़ मचती है। फिर  हजारों -लाखों रुपए लेकर अधिकारियों/इंजीनियरों के तबादले किये जाते हैं और लाइसेन्स, कोटा, परमिट, पट्टा दिये जाते हैं। वैसे जिस लोकतंत्रा की माँ कहीं जाने वाली संसद की सर्वोच्चता और पवित्राता की आज दुहाई दी जा रही है ,वहाँ दाम लेकर सवाल पूछे तथा सरकार बनवाने, बचाने और गिराने के लिए नोटों से भरे सूटकेस लिए एवं दिये जाते हैं इसमें उन्हें  कतई लाज नहीं आती। हमारे तथाकथित प्रतिनिधियों को विधायकों, सांसदों, मंत्रियों और नौकरशाहों के द्वारा भ्रष्टाचार से हजारों करोड़ रुपए लूटने और विदेशों में जमा करने की जरा भी चिन्ता नहीं। उन्हें अपने देश से लूटे धन को वापस लाने  में तो  संकोच होता है लेकिन उन्हे खंरजे ,नालियों, शौचालयों के लिए विदेशियों के आगे कर्ज  माँगते शर्म नहीं आती। इस देश में बैंक के कुछ हजार रुपए के कर्ज के लिए किसानों के आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ता है,वहीं पूँजीपतियों को तरह -तरह से करों में छूट देकर उन पर लाखों-करोड़ों रुपए लुटाये जाते हैं।  
 आई.ए.एस.और आई.पी.एस. नौकरशाह जनता के हितों की देखरेख की जिम्मेदारी छोड़ अपने से उच्च अधिकारियों और मंत्रिायों के खुश कर अपना प्रमोशन और लूट की छूट पाने में जुटे रहते हैं। अपने देश में आम जन की सुरक्षा किसी कानून से नहीं , वरन भगवान के भय  से बची है। यदि ईश्वरी कोप का डर  न हो तो ये भ्रष्टाचारी शायद ही किसी को जीवित छोड़ें। अब रिश्वत या दलाली सैकड़ों ,हजारों ,लाखों की नहीं , हजारों करोड़ रुपयों की होती है उसे भी विदेशों जमा करने पर रोक नहीं , इसके बावजूद हमारे लोकतंत्रा के पुजारी नेताओं को इस स्थिति में कुछ भी गलत दिखायी नहीं देता। उन्हें भ्रष्टाचार खत्म करने की माँग करने वाले  लोकतंत्रा विरोधी के साथ-साथ देशद्रोहियों से भी ज्यादा खतरनाक दिखायी देते हैं। यही कारण है कि उन्हें देश की राजधानी दिल्ली में कश्मीरी अलगाववादियों के नेता सैयद अली शाह गिलानी के  कश्मीर को देश से अलग करने की माँग करने पर विचारों की स्वतंत्राता नजर आती है लेकिन भ्रष्टाचार रोकने- मिटाने और देश का विदेशों में जमा कालाधन वापस लाने की माँग करने वाले समाज सेवी अन्ना हजारे तथा बाबा रामदेव और उनके सहयोगी मुल्क तथा लोकशाही के लिए खतरनाक नजर आते हैं। अब आप ही बतायें ,क्या हम ऐसे भ्रष्टाचार के महारोग से पीड़ित देश पर  गर्व करें? भ्रष्टाचार  क्षय रोग अथवा दीमक की तरह पूरे देश को चट किये जा रहा है जिसने हर आम और खास आदमी को अपनी गिरफ्त में ले रखा है। इसकी चपेट में आये बिना उसका जीना दूभर कर दिया है। इन बेइमानों के अन्धी कमाई की चकाचौंध में आम आदमी का जीना तो बेमानी हो गया है। सच्चे -अच्छे और भले लोगों की न सरकार में कोई बूझ है और न निजी कम्पनियों में ही ,क्यों कि वे घूस देकर उनके गलत काम जो नहीं करा पाते हैं। आज जो रिश्वत देता-लेता नहीं ,उसे ये बेईमान मूर्ख समझते हैं। अब जहाँ मंत्री से लेकर संत्री तक इस देश को लूटने में लगा हो ,उसका देश ही तो ईश्वर ही मालिक है। इस अनैतिकता के अन्ध कूप में गिर रहे देश के लोगों को बचाने के लिए कुछ तो करिए।
आज भ्रष्टाचार के कारण अधिसंख्य जनता जीवन की मूलभूत सुविधाओं से वंचित होने के साथ-साथ अपने देश को लूटने वालों के हर तरह के अत्याचार ,अनाचार ,अन्याय ,शोषण को बर्दाश्त करने का मजबूर है। सर्वभक्षी इस भ्रष्टाचार के राक्षस को  मारे बगैर न यह मुल्क बचेगा  और न हम सब।                         

  सम्पर्क
                                                डॉ.बचन सिंह सिकरवार
                                            ६३ब,गाँधी नगर,आगरा-२८२००३

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