थाईलैण्ड में जन विजय
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
थाईलैण्ड में कोई साल भर चली भारी राजनीतिक उथल-पुथल के बाद हाल में हुए संसदीय चुनाव में 'फ्यू थाई पार्टी' की नेता ४४वर्षीय महिला उद्योगपति यिंगलुक शिनवात्रा विजयी रही हैं जो यहाँ के अपदस्थ प्रधानमंत्री थैक्सिन शिनवात्रा की छोटी बहन हैं। वे पाँच साल पूर्व हुए तख्ता पलट के बाद से ही दुबई में स्वनिर्वासित जीवन बिता रहे हैं। इस जीत के बाद यिंगलुक थाईलैण्ड की पहली महिला और अट्ठाइसवीं प्रधानमंत्री बनेंगी। इनकी सरकार पाँच दलों का गठबन्धन वाली होगी। हालाँकि यिंगलुक शिनवात्रा को अपदस्थ प्रधानमंत्री थैक्सिन शिनवात्रा का राजनीतिक मुखौटा बताया जा रहा था ,किन्तु इस चुनाव में मिली अभूतपूर्व विजय ने यह सिद्ध कर दिया कि उनकी थाईलैण्ड में अपनी भी लोकप्रियता है जिसके बल पर लोगों ने उनमें अपना भरोसा जताया है। इधर थैक्सिन शिनवात्रा ने भी कहा कि थाईलैण्ड की राजनीति में लौटने की उनकी कोई इच्छा नहीं है। वे संन्यास लेने को तैयार हैं। उनका कहना है कि थाई नागरिकों ने बदलाव के लिए अपने मतों का उपयोग किया है। उधर कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यिंगलुक शिनवात्रा राजनीति में नई हैं और उनको मिली लोकप्रियता में उनके भाई थैक्सिन शिनवात्रा की नीतियों का बड़ा योगदान है जिसके आधार पर उन्होंने चुनाव प्रचार किया था। बहुत से लोग मानते हैं कि ‘ फ्यू थाई पार्टी' के असली नेता तो थैक्सिन शिनवात्रा ही है।
यद्यपि इस देश की ५०० सदस्यीय संसद में यिंगलुक शिनवात्रा की पार्टी को २६५ सीटें जीतने में सफल रही है जबकि सत्तारूढ़ डेमोक्रेट पार्टी को केवल १५९ सीटें ही मिलीं हैं , तथापि यिंगलुक शिनवात्रा ने अपनी पार्टी की शानदार जीत के एक दिन बाद ही चार अन्य राजनीतिक दलों के साथ गठबन्धन करने के समझौते की घोषणा कर दी है। इससे संसद में उन्हें २९९ सदस्यों का समर्थन मिल जाएगा। निःसन्देह इससे उनकी सरकार को मजबूती मिलेगी और उनकी सरकार बगैर किसी सशक्त राजनीतिक विरोध आसानी से अपना काम कर सकेगी,जो इस देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए बहुत जरूरी भी है।
इधर इन चुनावी परिणाम आने से पहले ही प्रधानमंत्री अभिसित वेज्जजीवा ने अपनी हार स्वीकार कर ली और यिंगलुक को बधाई दे दी। इतना ही नहीं , ४ जुलाई को उन्होंने आम चुनावों में डेमोक्रेट पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए उसके अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
अब यिंगलुक शिनवात्रा की जीत थाईलैण्ड की शक्तिशाली सेना ने मंजूर कर ली है। रक्षामंत्री जनरल प्रवित वोंगसुवन ने भी उन्हें विश्वास दिलाते हुए कहा कि सेना यिंगलुक शिनवात्रा के नेतृत्व वाली सरकार को स्वीकार करेगी और उसके खिलाफ बगावत नहीं किरेगी। जनरल वांगस्वान ने कहा,’ ‘हम राजनीतिज्ञों को काम करने का मौका देंगे। जनता ने अपना मत स्पष्ट कर दिया है इसलिए सेना कुछ भी नहीं कर सकती। इसके बावजूद
प्रधानमंत्री के रूप में यिंगलुक शिनवात्रा के लिए राजनीतिक रूप से विभाजित देश में आम सहमति स्थापित करना कोई आसान काम नहीं है। पिछले साल प्रधानमंत्राी अभिसित वेज्जाजीवा की सरकार के विरुद्ध हुए हिंसक प्रदर्शनों में से ९० से अधिक लोगों की जानें गयीं थीं और कोई २००से घायल हुए थे।
उधर, यिंगलुक शिनवात्रा ने कहा है कि उनकी प्राथमिकता देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना ,जो देश में राजनीतिक अस्थिरता के कारण अस्त-व्यस्त हो गयी है न कि अपने भाई को देश की। वह देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की समस्या से भी भली भाँति परिचित है। यही कारण है कि उन्होंने देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने की भी घोषणा की है। साथ ही वे देश को राष्ट्रीय मेल -मिलाप के लिए हर सम्भव प्रयास करेंगी। उनके भाई पूर्व
प्रधानमंत्री थैक्सिन शिनवात्रा ने भी बी.बी.सी.के न्यूज आवर कार्यक्रम में कहा है कि लोग सामजंस्य चाहते हैं और हम भी सामजंस्य चाहते हैं। वह हल का हिस्सा बनना चाहते हैं किसी समस्या का नहीं।
‘ सफेद हाथियों का देश' यानी ‘थाईलैण्ड' जिसे पहले ‘श्याम' नाम से जाना जाता था। इस देश में पिछले छह सालों में अक्सर हिंसक राजनीतिक प्रदर्शन हुए हैं। इस कारण इस बार मतदान के समय देश भर में सुरक्षा के कड़े इन्तजाम किये गए थे। मतदान केन्द्रों के बाहर कोई १७०,००० पुलिस अधिकारियों को तैनात किया गया था।
गत वर्ष अपदस्थ प्रधानमंत्री थैक्सिन शिनवात्रा के समर्थक ‘ लाल कुर्ताधारियों' और सेना के बीच हुए संघर्ष में बहुत खून बहा था। उस समय थाईलैण्ड के सम्राट भूमिबोल अदुलयादेज अबुलदेट ने सर्वोच्च न्यायालय को आदेश दिया था कि वह पूर्व प्रधानमंत्री थैक्सिन शिनवात्रा के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा चलाये। अप्रैल,२०१० में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि अपदस्थ प्रधानमंत्री थैक्सिन शिनवात्रा द्वारा अवैध रूप से कमाये अपार धन को तुरन्त जब्त कर जन कल्याण के कार्यों पर खर्च कर देना चाहिए , जो थाईलैण्ड की बैंकों में जमा है। इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय ने थैक्सिन शिनवात्रा को दो वर्ष के कठोर कारावास का दण्ड दिया भी दिया।
सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद अपदस्थ प्रधानमंत्री थैक्सिन शिनवात्रा देश छोड़ कर भाग गए। तत्पश्चात वे अपने समर्थकों को राजा भूमिबोल तथा थाईलैण्ड की तत्कालीन वर्तमान सरकार के विरुद्ध लोगों को बगावत के लिए भड़काते रहे । इसके लिए उन्होंने प्रदर्शनकारियों को भारी धनराशि भी दी। पूर्व प्रधानमंत्री के समर्थक लाल कुर्ताधारी ने बैंकाक समेत कई दूसरे शहरों मे लगातार प्रदर्शन करने के साथ हिंसक वारदातों को अन्जाम देते रहे । तब इस थैक्सिन शिनवात्रा समर्थकों की माँग थी कि प्रधानमंत्री अभिसीत वेज्जजीवा इस्तीफा देकर देश में आम चुनाव कराये। उस समय इन प्रदर्शनकारियों ने सरकारी तथा गैर सरकारी प्रतिष्ठानों का काम-काज ठप्प कर दिया। थाईलैण्ड की अर्थव्यवस्था में पर्यटन से प्राप्त आय का बहुत अधिक हिस्सा है। लेकिन इसकी परवाह न करते हुए उपद्रवियों ने होटलों का घेराव कर पर्यटकों को बहुत परेशान किया ,ताकि सरकार पर दबाव बनाया जा सके। इस कारण पर्यटन उद्योग को बहुत अधिक क्षति हुई । उस समय लाल कुर्ताधारियों अपने आन्दोलन को अहिंसक कहते थे ,किन्तु वे थाई सैनिकों पर राकेट लांचर से गोले तक दागने से बाज नहीं आये थे । उस दौरान इन प्रदर्शनकारियों से सेना के एक जनरल खातिया सावासिपोल भी विद्रोह कर जुड़ गए। उनकी सैनिकों तथा प्रदर्शनकारियों की मुठभेड़ में गोली लगने से जान चली गयी थी। तब आक्रोशित प्रदर्शनकारियों ने सरकारी और निजी संस्थानों में आग लगा कर भारी तबाही मचा दी थी।
कई दूसरे एशियाई देशों की तरह थाईलैण्ड की राजनीति भी दो भागों में बँटी हुई है।
जहाँ इस देश की शहरी जनता विशेष रूप से राजधानी बैंकाक में निवास करने वाले लोग पूर्व प्रधानमंत्री थैक्सिन शिनवात्रा को महाभ्रष्ट राजनेता मानती आयी है ,वहीं थाईलैण्ड की ग्रामीण उन्हें उनकी भलाई करना वाला। यह अपने देश की तरह ही है जहाँ दलितों या पिछड़े वर्गों को अपने भ्रष्ट से भ्रष्ट मुख्यमंत्री और दूसरे मंत्रिायों में कोई दोष दिखायी नहीं देता। कमोबेश यही स्थिति थाईलैण्ड की है।
यही कारण है कि इस बार भी जहाँ पूर्व प्रधानमंत्री थैक्सिन शिनवात्रा की ‘ फ्यू थाई पार्टी' को विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में विजय मिली है, वहीं ‘डेमोक्रेट पार्टी' के प्रत्याशियों को बैंकाक के मध्य वर्ग का भारी समर्थन प्राप्त हुआ है।
थाईलैण्ड में लोकतांत्रिक-शासन व्यवस्था है। भारत की तरह ही थाईलैण्ड के पूर्व प्रधानमंत्री थैक्सिन शिनवात्रा ने ग्रामीण जनता को अपना बनाने का निर्णय लिया। उन्होंने देखा कि उनके देश की अधिकांश जनता गाँवों में रहती है और वह मूलभूत सुविधाओं जैसे शिक्षा ,सड़क , पेयजल ,स्वास्थ्य आदि वंचित है। इस स्थिति में उसे कुछ सरकारी सुविधाएँ दे दी जाएँ तो उनकी अन्ध समर्थक बन जाएगी। इसके बाद उसके समर्थन से बड़ी आसानी से सत्ता में पहुँचा और बने रहा जा सकता है। ऐसे में वे कुछ गलत भी करें ,तो वह चुप रहेगी। सचमुच में ऐसा ही हुआ। तत्कालीन थैक्सिन शिनवात्रा ने ग्रामीण जनता को रिझाने को यह सुविधा दी थी कि कोई भी व्यक्ति मात्र २०’ बाहट' (थाइलैण्ड की मुद्रा) खर्च कर देश के किसी भी सरकारी या निजी अस्पताल में अपना इलाज करा सकता है। इलाज की बाकी धन राशि की भरपाई सरकार करेगी।
इस योजना की वजह से थैक्सिन को ग्रामीण इलाकों में बहुत अधिक लोकप्रियता मिली। परिणामतः वे सरकारी कोष लूटते रहे ,लेकिन उनकी इस लूट से शहरी जनता में खासकर राजधानी बैंकाक में असन्तोष और आक्रोश व्याप्त हो गया। दरअसल,प्रबुद्ध लोग और सेना उनकी इस चाल को समझती थी।
सन् २००६ में जब थैक्सिन शिनवात्रा विदेश गए थे , थाईलैण्ड में एक सैनिक क्रान्ति हुई, जिसमें थैक्सिन का तख्ता पलट कर दिया गया। इस सैनिक क्रान्ति को राजा भूमिबोल का भी आशीर्वाद प्राप्त था।
राजा भूमिबोल पीला कुर्ता पहनते हैं। अतः उनके समर्थक जो अधिकतर शहरों में रहते हैं ‘ पीला कुर्ता' पहनने लगे हैं। इनके जवाब में थैक्सिन ने अपने समर्थकों को’ लाल कुर्ता' पहनने के लिए कहा। कुछ सप्ताह से ग्रामीण क्षेत्रों से आए हुए इन ‘ लाल कुर्ताधारियों' ने देश की राजधानी बैंकाक में कहर मचाया हुआ था। उस दौरान सेना और प्रदर्शनकारियों में झड़प होती थी।
गत वर्ष प्रदर्शनकारी माँग कर रहे थे कि प्रधानमंत्री अभिसीत वेज्जजीवा त्यागपत्र दे दें और देश में आम चुनाव हो। इस बीच यहाँ पर लाल कमीज धारियों का प्रदर्शन दिनोंदिन उग्र होता गया। बैंकाक में जिस तरह अराजकता फैल रही थी, उससे वहाँ के व्यापार और उद्योग को भारी घाटा हुआ। तब सैलानी थाईलैण्ड के बदले वियतनाम और मलेशिया जाने लगे थे। उस समय फोर्ड कम्पनी ने भी अपना कारोबार समेट कर किसी दूसरे एशियाई देश में जाने पर विचार करना शुरू कर दिया था।
यहाँ के घटनाक्रम को जानने के लिए जरूरी है कि थाईलैण्ड के बारे में भी हम कुछ जान लें ,तो थाईलैण्ड दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित है। इसके पूर्व में कम्बोडिया, उत्तर और पश्चिम में म्यांमार (बर्मा) तथा दक्षिण में मलेशिया है। इसका क्षेत्राफल- ५४२,३७३ वर्ग किलोमीटर तथा जनसंख्या-जनसंख्या-६०७२८ हजार से अधिक है। यहाँ के लोग ‘ थाई' भाषा बोलते हैं तथा बौद्ध और इस्लाम मजहबों के अनुयायी हैं। थाईलैण्ड की मुद्रा ‘ बाहट' है। इसके प्रमुख शहर-बैंकाक ,नखोन ,राट्चासीमा , सांगखला , चियांग माई चोन बुरी और मेकोंज,चाऔ पिहा,माए नाम मुन प्रमुख नदियाँ हैं। इसकी सर्वाच्च चोटी-डोई इंथानन-२.५९५मी.८,५१४ फीट है। थाईलैण्ड का राष्ट्रीय ध्वज-लाल,सफेद तथा बैंगनी रंग की पट्टियों पर आधारित है। पिछली दशाब्दी में थाईलैण्ड ने अपने राष्ट्र में निर्मित और संशोधित वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि की है। खनिजों में टिन,मैंगनीज ,टंगस्टन ,एण्टीमनी ,लिग्नाइट और सीसा शामिल हैं। थाईलैण्ड के प्रमुख उद्योग-कपड़े,तम्बाकू,सीमेण्ट,विद्युत उपकरण हैं। यहाँ से बड़े पैमाने पर मशीनरी,निर्माण सामग्री का निर्यात किया जाता है।
थाईलैण्ड में सन् १७८२ में चकरी शासक शासन करते थे। यह एक ऐसा देश है जिसमें विदेशियों द्वारा कभी हस्तक्षेप नहीं किया गया।
यहाँ एक संवैधानिक राजतंत्र है। प्राचीनकाल से यहाँ निरंकुश शासन था ,लेकिन १९३२ में संवैधानिक राजतंत्र बन गया। इसके बाद भी यहाँ १८बार सफल-असफल सैन्य विद्रोह हो चुके हैं । सन् १९४८ में देश ने अपना नाम ‘ थाईलैण्ड' ग्रहण किया। गत एक दशक से भी अधिक समय से थाईलैण्ड में सैन्य प्रमुख ,राजपरिवार, बैंकाक के विशिष्ट वर्ग के लोग जिन्हें सत्ता प्रतिष्ठान माना जाता है वह लगातार यह दिखाने की कोशिश करता आया है कि देश की जरूरतों को वह थाईलैण्ड की जनता से कहीं बेहतर समझता है। देश का मुख्य धंधा खेती है जिसमें ६० प्रतिशत जनसंख्या लगी है। यहाँ की मुख्य फसल चावल है, जिसका बड़ा भाग निर्यात कर दिया जाता है। अन्य कृषिजन्य निर्यात नारियल, तम्बाकू, कपास और टीक है। थाईलैण्ड की वार्षिक वृद्धि-१.२प्रतिशत तथा जापान ,अमरीका, सिंगापुर, मलेशिया, नीदरलैण्ड, ब्रिटेन, जर्मनी, हांगकांग, फ्रांस, चीन प्रमुख सहयोगी देश हैं।
अपने देश के कई नेताओं की तरह ही थाईलैण्ड के नेताओं ने अपने देश की जनता को शहरी और ग्रामीण जनता जा रहे हैं। १९ मई, २०१० को बैंकाक के उस इलाके पर सेना ने अचानक हमला कर दिया, जहाँ लाल कुर्ताधारियों का भारी जमाव था। इस हमले के लिए ये प्रदर्शनकारी तैयार नहीं थे। उनके पाँव उखड़ गए तथा बड़ी संख्या में वे आत्म समर्पण करने का मजबूर हो गए। लेकिन इनमें कुछ ने भागते हुए भारी तबाही मचायी। उन्होंने स्टॉक एक्सचेन्ज, बैंकों की इमारतों, सरकारी कार्यालयों, होटलों, मॉलों में तोड़फोड़ की। यहाँ तक कि थाईलैण्ड की बहुप्रसारित समाचार पत्रों ‘ नेशन' तथा ‘ बैंकाक पोस्ट'के सम्पादकों का चेतावनी दी कि अगर उन्होंने अपने समाचार पत्रों का प्रकाशन किया तो उनके कार्यालयों को जला कर खाक कर देंगे। नतीजा थाई तथा अँग्रेजी भाषा के सभी समाचार पत्रों का प्रकाशन बन्द कर दिया गया। ऐसे में थाई जनता को बगैर खबरों की जानकारी के रहने विवश होना पड़ा। हवाई अड्डों को बन्द करना पड़ा था।उस समय थाईलैण्ड की लोकतांत्रिाक व्यवस्था पर सवाल उठ रहे थे। अब इस चुनाव ने उन्हें बेमानी साबित कर दिया है। इस देश में लोकतंत्रा एक फिर पटरी पर लौट आया है और निर्वाचित सरकार के गठन का मार्ग भी प्रशस्त हो गया। थाईलैण्ड में लोकतांत्रिक सरकार के बनने के बाद आशा की जाने चाहिए कि भारत के उससे व्यापारिक तथा दूसरे सम्बन्ध पहले से भी अधिक सुद्ढ़ स्थापित होंगे।
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
६३ब,गाँधी नगर, आगरा-२८२००३
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