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जुलाई, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इल्जाम लगाने से पहले फर्क जान लें येचुरी

डॉ.बचन सिंह सिकरवार गत दिनों मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी(माकपा)के महासचिव सीताराम येचुरी के भोपाल में अपनी ही पार्टी द्वारा ‘संसदीय प्रणाली, चुनाव और जनतंत्र’ विषय पर  आयोजित परिचर्चा में ‘रामायण‘ और ‘महाभारत’ ग्रन्थों समेत हिन्दू शासकों के आपसी युद्धों का उदाहरण देते हुए हिन्दुओं के हिंसक होने की जो बात कही है उसका मकसद सिर्फ सियासी फायदे के लिए हिन्दुओं को एक समुदाय विशेष के समकक्ष ठहराना था,जिससे सम्बन्धित मजहबी दहशतगर्द दुनियाभर के मुल्कों में मजहबी नफरत को लेकर तबाही मचाए हुए हैं। उनकी दहशतगर्दी से गैरमजहबी ही नहीं,खुद हममजहबी भी बेहद खौफजदा हैं। इन्होंने अफगानिस्तान, इराक, सीरिया,यमन आदि कई मुल्कों को बर्बाद कर दिया है। अपने देश में भी ये दहशतगर्द जम्मू-कश्मीर में आए दिन दहशत फैलाते हुए सुरक्षा बलों और आम नागरिकों का खून बहाते रहते हैं। ऐसे में येचुरी की उस मजहब के मानने वालों से हिन्दुओं से तुलना बेमानी ही नहीं, शरारतपूर्ण भी है। वैसे तो उनकी पार्टी द्वारा उस विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई, जिससे उनकी पार्टी के कथित नीति-सिद्धान्तों से कोई नाता नहीं है। साम्यवादी अपने स...

ऐसे हुई हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत

                        डॉ.बचन सिंह सिकरवार  दुनियाभर में अखबार भले ही खबरों के लिए निकाले गए हों,पर  अपने देश में विशेष रूप से हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत और उसका विकास ‘राष्ट्रीयता’  की उद्बोधक, उसकी सम्पोषक तथा उसके दिग्दर्शन के महती उद्देश्य के रूप में हुआ है। अब नए युग के आधुनिक पत्रकार भले ही पत्रकारिता को व्यवसाय/रोजी-रोटी कमाने का जरिया मानते हांे और मानकर चल भी रहे हों, लेकिन देश का जनमानस अब भी हिन्दी पत्रकारिता को राष्ट्र तथा समाज के लिए कार्य करना ही मानता है। यही कारण है कि वह इन उद्देश्यों से तनिक विचलन भी स्वीकार नहीं करता है। आज हम लोग हिन्दी पत्रकारिता के जिस रूप-स्वरूप तथा विस्तार को देख रहे हैं,उसे इस स्तर/मुकाम तक पहुँचाने में अनगिनत त्यागी, तपस्यी पत्रकारों/साहित्यकारों का अथक परिश्रम लगा है, जिन्होंने हर तरह के खतरों का सामना करते  और अभावों को झेलते हुए भी हिन्दी पत्रकारिता के उद्देश्यों पर किसी तरह की आँच नहीं आने दी।इसके लिए उन्होंने ब्रिटिश शासन की यातनाएँ सहीं और जेलों  ...

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के एकतरफा पैरोकार

                      डॉ.बचन सिंह सिकरवार  हाल में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर आपत्तिजनक पोस्ट करने मामले में  कथित पत्रकार प्रशान्त जगदीश कन्नौजिया की गिरफ्तारी को प्रथम दृष्टया अनुचित मानते हुए उच्चतम न्यायालय ने उन्हें जमानत पर तत्काल रिहा करने का आदेश अवश्य दिया, किन्तु उसने  सोशल मीडिया पर  उनके पोस्ट या ट्वीट का समर्थन नहीं किया है। इस बारे में उच्च न्यायालय ने भी स्पष्ट कर किया है कि जो मामला कन्नौजिया के विरुद्ध न्यायालय में चल रहा है, वह चलता रहेगा। हालाँकि प्रशान्त कन्नौजिया जमानत पर रिहा होकर बाहर आ गए हैं,लेकिन उनकी गिरफ्तारी को लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तथाकथित पैरोकारों ने बगैर उनकी हकीकत जाने ऐसा हाहाकार/कोहराम मचाया, जैसे देश में अभिव्यक्ति स्वतंत्रता का गलाघोंट दिया गया हो। लेकिन देश में कोई भी ऐसा संगठन आगे नहीं आया,  जिसने  उनसे यह  प्रश्न किया हो कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी कहने-बोलने पर पाबन्दी क्यों नहीं होनी चाहिए, जिससे जातिगत, धा...

कब तक मजबूरी में करते रहेंगे पलायन ?

            डॉ.बचन सिंह सिकरवार   हाल में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मेरठ के कई मुहल्लों से हिन्दुओं के पलायन के समाचारों से भले ही इन्कार कर रहे हों,  लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसा केवल मेरठ और शामली के कस्बा कैराना में ही नहीं  और न ही सिर्फ उत्तर प्रदेश और योगी आदित्यनाथ के राज में हो रहा है। हकीकत यह है कि ऐसा देशभर में हो रहा है और होता आया है। इसके लिए केवल एक खास मजहब के मानने वाले ही जिम्मेदार/दोषी नहीं हैं, बल्कि मजहब विशेष के साथ-साथ कुछ दबंग जातियों के लोग भी अपने धन बल, बाहुबल, संख्या बल, राजनीतिक बल से मजबूत अपने से कमजोर  लोगों को अपना घर-द्वार छोड़ने को मजबूर होते आए हैं। इसके लिए केवल राज्य और केन्द्र सरकारें ही उत्तरदायी नहीं हैं,वरन् वहाँ के रहने वाले भी बराबर के जिम्मेदार हैं, जो किसी खास मजहब  और जातियों के ज्यादातियों की शिकायत पुलिस-प्रशासन से शिकायत करने के स्थान पर चुपचाप अपना गाँव, बस्ती, शहर छोड़ कर किसी सुरक्षित जगह और नगर बस जाने में अपनी खैरियत समझते हैं।  वैसे भी हकीकत यह है...

मुखाफलत का यह कौन-सा तरीका?

              डॉ.बचन सिंह सिकरवार  हाल में गुजरात के सूरत और झारखण्ड की राजधानी रांची में इससे पहले मेरठ, अलीगढ़, आगरा समेत कई दूसरी जगहों पर  मुसलमानों द्वारा जून माह में झारखण्ड के सरायकेला- खरसवां जिले में मोटरसाइकिल चोरी के आरोपी तबरेज अंसारी की उन्मादी भीड़ (मॉब लिचिंग)में शामिल लोगों द्वारा बेरहमी से पिटाई तथा उससे जबरदस्ती  ‘जय श्रीराम‘ और ‘ जय हनुमान ‘ बुलवाने, फिर कुछ दिन बाद उसकी जेल में मौत की मुखालफत में  कथित मौन जुलूस निकाले गए जुलूसों में जिस तरह सोशल मीडिया के भड़काऊ संदेशों के जरिये हजारों की भीड़ जुटाई गई। फिर उसके सामने नफरतभरी तकरीरें  कर लोगों को पत्थरबाजी, आगजनी ,तोड़फोड़ और हिंसा के भड़काने की कोशिशें की गईं, उसे किसी भी रूप में अपना विरोध जताने को  उचित और  वैध नहीं माना जा सकता। यह भी तब जब स्वय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी झारखण्ड की उन्मादी भीड़ की हिंसा की घटना की खुलकर निन्दा कर चुके हैं।   झारखण्ड की उस उन्मादी भीड़ मेें सम्मिलित तबरेज अंसारी की पिटाई के पाँच दोषियों को गिरफ्तार कर जेल...

फिर भी सीनाजोरी

                     डॉ.बचन ंिसंह सिकरवार  हाल में आयकर विभाग की ओर से बहुजन समाज पार्टी(बसपा) की प्रमुख मायावती के भाई एवं पार्टी उपाध्यक्ष आनन्द कुमार की चार सौ करोड़ रुपए की बेनामी सम्पत्ति जब्त किये जाने  तथा समाजवादी पार्टी (सपा) वरिष्ठ नेता तथा सांसद मोहम्मद आजम खाँ  के खिलाफ जौहर विश्वविद्यालय के नाम पर भूमि कब्जा करने के आरोप में दो दर्जन से अधिक मुकदमे दर्ज होने के साथ प्रशासन द्वारा उन्हें ‘भूमाफिया‘ घोषित किये जाने को लेकर इन पार्टियों के नेता उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार पर भले ही राजनीतिक बदले की कार्रवाई बताते हुए न केवल स्वयं को निर्दोष बता रहे हैं, बल्कि अपने बचाव के लिए जाति और मजहब की दुहाई भी दे रहे हैं।  कुछ विपक्षी दल इस कार्रवाई को राज्य में जल्दी ही होने जा रहे कोई दर्जनभर विधानसभा के चुनावों को देखते हुए उनके खिलाफ पेशबन्दी साबित करने में जुटे हैं। वैसे एक सवाल इन राजनेताओं से है क्या इन्हें देश की उस न्यायिक व्यवस्था पर विश्वास नहीं है,जिस पर देश के बाकी लोग भरोसा करते हुए न्याय पाने की...