संदेश

जून, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भगवा से आजादी के माने

चित्र
डॉ.बचन सिंह सिकरवार गत दिनों अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय(ए.एम.यू.)में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के चित्र को हटाये जाने की माँग के विरोध में बाब-ए-सैयद दरवाजे पर धरने पर बैठे हजारों की संख्या में यहाँ के छात्र-छात्राओं तथा दूसरे मुस्लिमों ने दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय(जे.एन.यू.)की तर्ज पर आर.एस.एस., भाजपा, मोदी और योगी से चाहिए आजादी के लगाये गए नारों को तो एक बार राजनीतिक  विरोध के रूप में  सही मान भी लें, किन्तु ‘भगवा से चाहिए आजादी‘ और ‘भारत से लेकर रहेंगे‘ जैसे जो  नारे लगाये गए ,उनका कोई औचित्य समझ नहीं आता। आखिर ‘भगवा‘ और ‘भारत‘ से आजादी के उनके माने क्या हैं? ‘भगवा‘ रंग किसी राजनीति दल के झण्डे का रंग भर नहीं है,वरन् ज्ञान, त्याग, बलिदान, शुद्धता, सेवा और शौर्य का प्रतीक है। इसीलिए देश के नीति नियन्ताओं ने इसे भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में सबसे ऊपर रखा है।  आदिकाल से ‘भगवा‘ रंग इस देश में बसने वालों की धार्मिक, आध्यात्मिक ,सांस्कृतिक पहचान रहा  है। यह भारतीय संस्कृति का शाश्वत सर्वमान्य प्रतीक है। यह सूर्योदय ,सूर्यास्...

आखिर माँग मनवा कर ही मानीं महबूबा

चित्र
डॉ.बचन सिंह सिकरवार अन्ततः केन्द्र सरकार ने  जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती रमजान के पाक माह में आतंकवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों के अभियान बन्द कराने की माँग मंजूर कर उसने एक बार फिर साबित कर दिया कि सत्ता पाने और उसमें बने रहने के लिए वह कोई भी जोखिम उठाने तथा इतिहास से सबक न लेने को हमेशा तैयार है। तभी तो इस मुद्दे पर महबूबा मुफ्ती द्वारा बार-बार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा रमजान माह में  संघर्ष विराम किये जाने के याद दिलाये जाने पर जवाब में उन्हें उसके दुष्परिणाम क्यों नहीं बताये? उस समय न केवल आतंकवादियों  की हिंसक वारदातें जारी रहीं, बल्कि पहले से कहीं अधिक संख्या में सुरक्षा बलों के जवान भी मारे गए थे। अब जहाँ केन्द्र सरकार के इस फैसले का प्रश्न है तो इसका महबूबा मुफ्ती ही नहीं, उनकी प्रतिद्वन्द्वी  नेशनल कान्फ्रेंस के अध्यक्ष तथा पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुला और दूसरे कश्मीरी नेताओं ने भी खैरमखदम(स्वागत)किया है, लेकिन इसी राज्य की पैंथर पार्टी ने इस निर्णय को  न केवल गलत बताया है, बल्कि इसका फायदा उठाकर आतंकवादियों क...

अमन के पैरोकार अब खामोश क्यों हैं?

चित्र
डॉ बचन सिंह सिकरवार  गत दिनों इस्लामिक पाक महीना रमजान को लेकर जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने केन्द्र सरकार से सुरक्षा बलों के आतंकवादियों के खिलाफ चलाये जा रहे अभियान बन्द करने की अपील मंजूर कर ली ,लेकिन इसे न इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान  ने माना और न हममजहबी आतंकवादियों तथा अलगावादियों ने ही। नतीजा यह है कि रमजान के पहले दिन से ही जहाँ पाकिस्तानी सेना द्वारा युद्ध विराम का उल्लंघन करते हुए भारत से जुड़ी अन्तर्राष्ट्रीय और नियंत्रण रेखा पर लगातार गोलीबारी और तोप के गोले बरसाती आ रही है, वहीं आतंकवादी भीे सुरक्षा बलों पर जहाँ-तहाँ हमले करने से बाज नहीं आ रहे हैं।                                                  यहाँ तक अलगाववादी भी फलस्तीनियों के समर्थन में जुलूस-प्रदर्शन को करने को निकल पड़े,जिन्हें रोकने मंे पुलिस-प्रशासन को भारी मशक्कत करनी पड़ी। जिस भारतीय सेना पर अलगाववादी और दूसरे सियासी नेता कश्मीरियों पर जुल्म-सितम ढहाने को आरोप ल...

कब बन्द होगा लोगों को मारने वाला कथित विकास ?

चित्र
डॉ.बचन सिंह सिकरवार   तमिलनाडु के तूतीकोरिन में वेदान्ता ग्रुप की स्टरलाइट कम्पनी के तांबा संयंत्र(कॉपर प्लाण्ट) के विस्तार के विरोध में आन्दोलित स्थानीय लोगों पर पुलिस के गोली चलाने से एक दर्जन से अधिक लोगों के मरने और बड़ी संख्या में घायल होने की घटना अत्यन्त दुःखद और क्षोभकारी है, जो सालों से इससे निकलने वाली विषाक्त गैसों और जहरीले पानी  से बिगड़े वातावरण के कारण तरह से तरह के गम्भीर रोगों से पीड़ित और परेशान हैं। फिर  भी शासन-प्रशासन और प्रदूषण की रोकथाम से सम्बन्धित विभिन्न एजेन्सियाँ इन आमजनों के दुःख-दर्द और रोगों की बराबर अनदेखी कर इस उद्यम के स्वामियों का हित सम्वर्द्धन करती आयी है। अब यहाँ के लोग इस संयंत्र के विस्तार का विगत कोई तीन माह से अधिक समय से शान्ति पूर्ण तरीके से विरोध कर रहे थे, किन्तु उनके इस आन्दोलन की भी शासन-प्रशासन पूर्व भाँति उपेक्षा और अनदेखी कर रहा था। वह उनकी भावनाओं और कष्ट-कठिनाइयों को जाने बगैर हठीधर्मिता दिखाते हुए  इस संयंत्र के विस्तार करने पर आरूढ़ बना  हुआ है। शासन-सत्ता के इस क्रूर और संवेदनहीन रवैये से आक्रोशित होकर ...

इन्हें तब ऐतराज क्यों नहीं होता?

चित्र
डॉ.बचन सिंह सिकरवार गत दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.)के नागपुर में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के भाग लेने को लेकर काँग्रेसी,वामपन्थी नेताओं समेत देश के कथित बुद्धिजीवी वर्ग ने जिस तरह विरोध और उनकी मंशा पर सन्देह जताया है,उससे इन सहिष्णुता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के स्वम्भू प्रबल पक्षधरों को दोगलापन उजागर हो गया। एक ओर तो इन सभी के लिए राष्ट्रीय स्वयं संघ और भाजपा घोर कट्टरपन्थी, साम्प्रदायिक,सामाजिक सौहार्द्र विरोधी दिखायी देती हैं,लेकिन दूसरी ओर काँग्रेसियों को देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार मुस्लिम लीग जैसी साम्प्रदायिक,ईसाइयों की केरल काँग्रेस के साथ केरल में सरकार बनाने तथा केन्द्र या राज्य में उनका समर्थन लेने, कश्मीर के अलगाववादी, पाकिस्तान समर्थक नेताओं, मुल्ला-मौलवियों, जामा मस्जिद के शाही इमाम, पादरियों से अपने पक्ष में फतवा जारी कराने, भारत तेरे टुकड़े, कश्मीर माँगे आजादी जैसे नारे लगाने वाले रोहित वेमुला,कन्हैया कुमार का समर्थन करने , घोर जातिवादी पाटियों और उनके भ्रष्टाचार के आरोप में जेल काट रहे नेताओं से मिलने ...

तब कहाँ थे भाजपा के राष्ट्रहित?

चित्र
  डॉ.बचन सिंह सिकरवार   हाल में जम्मू-कश्मीर में  भाजपा के अचानक कश्मीर और राष्ट्रहित  में समर्थन वापसी पर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का इस्तीफा और उसके बाद यहाँ आठवीं बार राज्यपाल शासन लागू किया जाना कुछ लोगों को अप्रत्याशित लगा है,क्यों कि उसने यही सब कहते हुए तीन साल पहले अलगाववादियों तथा पाक समर्थकों की  पैरोकार पी.डी.पी. के साथ बेमेल साझा सरकार बनायी थी। लोग अब क्यास लगा रहे हैं कि आखिर यकायक ऐसा क्या हुआ,जो बीच में ही गठबन्धन तोड़ने की नौबत आ गई ?वैसे भाजपा गठबन्धन से अलग होने के अब जो कारण बता रही है,उन कोई भी विश्वास करने को सहज तैयार नहीं है। इसके एक नहीं,अनेक कारण भी हैं। फिर सत्ता हथियाने और उसमें बने रहने के लिए भाजपा ने भी दूसरे राजनीतिक दलों की तरह  हर तरह के हथकण्डे अपनाने में कभी परहेज नहीं दिखाया है। यह अलग बात है कि हमेशा की तरह जम्मू-कश्मीर में पी.डी.पी.के साथ गठबन्धन सरकार बनाना उसके लिए घाटे का सौदा साबित हुआ है।उसने अपने समर्थकों को निराश किया है,जिन्होंने उसे सत्ता में पहुँचा कर उससे बहुत अपेक्षाएँ की हुई थीं।   ...

तब कहाँ थे भाजपा के राष्ट्रहित?

  डॉ.बचन सिंह सिकरवार   हाल में जम्मू-कश्मीर में  भाजपा के अचानक कश्मीर और राष्ट्रहित  में समर्थन वापसी पर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का इस्तीफा और उसके बाद यहाँ आठवीं बार राज्यपाल शासन लागू किया जाना कुछ लोगों को अप्रत्याशित लगा है,क्यों कि उसने यही सब कहते हुए तीन साल पहले अलगाववादियों तथा पाक समर्थकों की  पैरोकार पी.डी.पी. के साथ बेमेल साझा सरकार बनायी थी। लोग अब क्यास लगा रहे हैं कि आखिर यकायक ऐसा क्या हुआ,जो बीच में ही गठबन्धन तोड़ने की नौबत आ गई ?वैसे भाजपा गठबन्धन से अलग होने के अब जो कारण बता रही है,उन कोई भी विश्वास करने को सहज तैयार नहीं है। इसके एक नहीं,अनेक कारण भी हैं। फिर सत्ता हथियाने और उसमें बने रहने के लिए भाजपा ने भी दूसरे राजनीतिक दलों की तरह  हर तरह के हथकण्डे अपनाने में कभी परहेज नहीं दिखाया है। यह अलग बात है कि हमेशा की तरह जम्मू-कश्मीर में पी.डी.पी.के साथ गठबन्धन सरकार बनाना उसके लिए घाटे का सौदा साबित हुआ है।उसने अपने समर्थकों को निराश किया है,जिन्होंने उसे सत्ता में पहुँचा कर उससे बहुत अपेक्षाएँ की हुई थीं।   ...