भेदभाव से जन्मा एक नया अफ्रीकी देश अजावद
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
पश्चिम अफ्रीकी देश ‘माली गणराज्य' में गत दिनों उत्तरी भाग में तुआरेग नस्ल के आतंकवादियों की जातीय हिंसा को रोक पाने में सरकार की शिथिलता और विफलता से हुआ सैन्य विद्रोह मुल्क के विभाजन में तब्दील हो गया। इस सैन्य विद्रोह का फायदा उठाकर तुआरेग नस्ल के लोगों के लड़ाकों ने अपने साथ भेदभाव की आड़ लेकर ‘अजावद' नाम से स्वतंत्र नये मुल्क का ऐलान कर दिया है। अब उसे दुनिया विशेष रूप पड़ोसी अफ्रीकी देशों द्वारा मान्यता दिये जाने की दरकार है इसके बिना उनके घोषित द्वारा इस नवोदित स्वतंत्र ‘अजावद' नामक मुल्क का दुनिया की राजनीति में कोई वजूद नहीं है।
गत २१मार्च को माली के उत्तरी इलाके में लम्बे समय से चली आ रही तुआरेग आतंकवादियों की जातीय हिंसा रोक पाने में उदासीनता बरतने से उत्पन्न असन्तोष और आक्रोश से विद्रोही बने सैनिकों ने गुरुवार,२२मार्च को सरकार को अपदस्थ कर राष्ट्रपति आवास पर कब्जा कर लिया ,लेकिन राष्ट्रपति अमादोउ तोउमानी तुरे के अज्ञात स्थान पर चले जाने से वह उनके हाथ नहीं आये। हालाँकि अप्रैल माह में ही उनका कार्यकाल समाप्त होने वाला था और २९अप्रैल को राष्ट्रपति का चुनाव होने जा रहा है। विद्रोही सैनिकों ने पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया है। राजधानी बमाको के हवाई अड्डे को बन्द कर दिया गया। इस वजह से एक उड़ान को बैरंग वापस लौटना पड़ा। विद्रोही सैनिकों का आरोप है कि राष्ट्रपति अमीदोउ तोउमानी तुरे की सरकार पूरे देश को गुमराह करती आयी है उसने इस समस्या से निपटने के लिए विशेष प्रयास नहीं किए। इसलिए वे सरकार को अपदस्थ करने को मजबूर हुए हैं।
इधर मौके के ताक में बैठे तुआरेग विद्रोहियों ने ६ अप्रैल को माली के उत्तरी क्षेत्र को अपने नियंत्रण में लेते हुए इस क्षेत्र की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी है। इससे यह देश अब दो भाग में बँट गया है। माली के उत्तरी क्षेत्र की अधिकांश आबादी ‘तुआरेग'नस्ल के लोगों की है। इस क्षेत्र को ‘अजावद' के नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र काफी समय से हिंसा ग्रस्त है। ये लोग देश में पिछले ५० साल से खराब शासन और अपनी नस्ल के साथ सरकारी भेदभाव को लेकर बगावत करने पर मजबूर हुए हैं। तुआरेग विद्रोहियों ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह ‘तुआरेग'नस्ल का अस्तित्व मिटाने पर आमादा है। उसने देश में कई बार अकाल पड़ने पर तुआरेगों के भोजन की व्यवस्था नहीं की और उन्हें भूखा मरने को छोड़ा दिया। इससे बड़ी संख्या में ये लोग मारे गए। अपने इन आरोपों की पुष्टि में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के लेखों का उल्लेख किया है। उनका कहना है कि अपने साथ हुए लगातार हुए भेदभाव से पैदा असन्तोष ने उन्हें हथियार उठाने और देश के विभाजन के लिए विवश होना पड़ा है। इसी कारण तुआरेगो को ‘नेशनल मूवमेण्ट फॉर द लिबरेशन अजावद'(+एन.एम.एल.ए.) का गठन करना पड़ा। वैसे एनएमएलए को इस संघर्ष में एक कट्टरपन्थी इस्लामी संगठन ‘अंसार दाड़न' भी साथ मिला हुआ है। उसने यह ऐलान किया हुआ कि वह प्राचीन ‘टिम्बकटू' नगर में शरीयत कानून लागू करने के लिए ही लड़ाई लड़ रहा है। इससे देर सवेर यह नगर के इस्लामी के कट्टरपन्थियों की चपेट में आये और उनका अड्डा बने बिना नहीं रहेगा ,जो विश्व शान्ति के लिए खतरनाक होगा।
फिलहाल ,माली में तख्ता पलट करने वाले नेता इकोवास ने कहा कि वे नागरिक सत्ता के लिए पद छोड़ने को तैयार हैं।
मध्यस्थों के अनुसार इसके बदले आर्थिक प्रतिबन्ध हटाये जाएँगे। साथ ही सैन्य शासकों को आम माफी दी जाएगी। ये निर्णय देश के उत्तरी भाग तुआरेग विद्रोहियों की ओर से आजादी की घोषणा के साथ के बाद लिया गया है। विद्रोहियों ने तख्ता पलट के बाद इलाके को घेर लिया था जिससे पश्चिमी अफ्रीका का यह देश राजनीतिक संकट में फँस गया। इस घटनाक्रम के सम्बन्ध में फ्रान्स ने कहा है कि इस नए देश का तब तक कोई मतलब नहीं है जब तक अफ्रीकी देश इसे मान्यता न दे दें। फ्रान्स विदेशमंत्री ऐलन जुपे ने माली में तख्ता पलट के बाद दखल की सम्भावनाओं से इन्कार किया है। उन्होंने फ्रान्सीसी नागरिकों से माली छोड़ देने के लिए कहा है। उन्होंने कहा कि फ्रान्सीसी सैनिकों को माली भेजने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है।
पश्चिम अफ्रीकी देश ‘माली गणराज्य' अफ्रीका महाद्वीप का सातवाँ सबसे बड़ा मुल्क है। इसकी सीमाएँ समुद्रविहीन हैं अर्थात यह ‘लैण्डलाक नेशन' है जिसके चारों ओर कहीं भी समुद्र नहीं है। इसके उत्तर में अल्जीरिया ,पूर्व में नाइजर ,दक्षिण में बुर्किनो फासो और कोड द आइवोर ,दक्षिण-पश्चिम में गिनी और पश्चिम में सेनेगल मरितुअन्ना से मिलती है। इसका क्षेत्रफल १२,४०,००वर्ग किलोमीटर से अधिक है। आठ क्षेत्रों में बँटे माली की उत्तरी सीमा सहारा के मध्य तक जाती है ,वहीं देश के दक्षिणी क्षेत्र में नाइजर और सेनेगल नदियाँ हैं। माली के अधिकांश लोग इसी इलाके में रहते हैं। इस देश की जनसंख्या १,३०००,००० है। यहाँ के लोग ईसाई और कबायली धर्म मानते है। इसकी राजधानी बमाको और मुद्रा माली फ्रैंक है। इसकी देश की शासकीय भाषा फ्रान्सीसी है लेकिन लोग बम्बारा तथा अन्य अफ्रीकी भाषाएँ भी बोलते हैं। यहाँ साक्षरता ३१ प्रतिशत और प्रति व्यक्ति आय-२५०डालर है।
माली कभी ट्रान्स सहारा व्यापार पर नियत्रण रखने वाली तीन साम्राज्यों घाना साम्राज्य , सोनघाई साम्राज्य, माली साम्राज्य का एक अंग था। इसी से इस मुल्क का नाम ‘माली' पड़ा है। सन्१८०० के अन्त में इस क्षेत्रा पर फ्रान्स ने कब्जा कर लिया। इस कारण यह फ्रान्सीसी-सूडान का एक हिस्सा बन गया। सन् १९५९ में माली सेनेगल से ‘माली संघ' के रूप में फ्रान्स की अधीनता से स्वतंत्रा हो गया। फिर एक वर्ष बाद यह सन् १९६० में स्वतंत्र राष्ट्र माली बन गया। इस देश में स्वतंत्रता से लेकर सन् १९९१ में हुए तख्ता पलट तक एक दलीय शासन बना रहा। इसके पश्चात माली गणतंत्र और बहुदलीय शासन व्यवस्था के साथ नये संविधान तथा सत्ता का गठन हुआ। स्वाधीन गणराज्य घोषित किया।
प्राकृतिक सम्पदा की दृष्टि से माली ज्यादा सम्पन्न नहीं है। यहाँ पर कुछ ही प्राकृतिक संसाधन सोना , यूरेनियम ,नमक आदि ही पाये जाते हैं। देश की अर्थव्यवस्था कृषि तथा मत्स्य व्यापार पर आधारित है। इसकी केवल २० प्रतिशत भूमि पर ही खेती होती है। यहाँ की मुख्य फसल चावल, ज्वार, बाजरा और मूंगफली हैं। इस देश में पशु पालन मुख्य उद्यम है। यहाँ चमड़ा, खालों का प्रमुख उद्योग है। नदियों में से मछलियों को पकड़ने का कार्य बड़े पैमाने पर किया जाता है । इस देश से सूखी मछलियों का निर्यात किया जाता है। माली की गणना विश्व के निर्धनतम देशों में होती है।इस देश की लगभग आधी से अधिक जनसंख्या गरीबी रेखा १.२५ अमरीकी डॉलर से प्रतिदिन कम आय पर गुजर बसर करती है।
इस देश के घटनाक्रम पर दुनिया खास कर अफ्रीकी देशों की विशेष दिलचस्पी न होने का कारण इस मुल्क में प्राकृतिक संसाधनों के अभाव के साथ-साथ इसका कोई विशेष सामरिक महत्त्व न होना है। फिर भी अब देखना यह है कि दुनिया भर माली के मामले में कब तक उदासीन बने रहते हैं?
१०.४.२०१२ सम्पर्क- डॉ.बचन सिंह सिकरवार ६३ब,गाँधी नगर,आगरा-२८२००३ मोबाइल नम्बर-९४११६८४०५४
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