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अमेरिका का चीन को सही जवाब

कोई आजम खाँ से यह सवाल क्यों नहीं करता ?

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                    डॉ.बचन सिंह सिकरवार आजकल  समाजवादी पार्टी के सांसद और इसी पार्टी की उ.प्र. सरकार के नगर विकास मंत्री रहे  मुहम्मद आजम खाँ  द्वारा  रामपुर में बनायी मुहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी से सम्बन्धित  खबरें समाचार पत्रों और टी.वी.चैनलों में आती ही रहती हैं। इसका कारण मुहम्मद आजम खाँ द्वारा अपने राजनीतिक प्रभाव का बेजां इस्तेमाल कर गैरकानूनी तरीकों से इस यूनिवर्सिटी के लिए सरकारी और गैर सरकारी भूमि हथियाना है। सत्ता बदलने के बाद पीड़ितों द्वारा उनके खिलाफ अब तक 29 मुकदमें दर्ज हो चुके हैं,जिनकी शिकायतें सपा सरकार में उनके दबदबे के चलते कहीं क्या,मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक सुनने को तैयार नहीं थे। इस कारण अब राज्य सरकार ने उन्हें ‘भू माफिया’ घोषित किया हुआ है। अब अपने को मजलूम बताते हुए मुहम्मद आजम खाँ यह कहते फिर रहे हैं कि तालीम की रोशनी फैलाने के पाक और नेक मकसद से तामीर करायी उनकी यूनिवर्सिटी को  राज्य सरकार बन्द और बर्बाद कराने पर आमादा है और उन्हें बेवजह सताया जा रहा है।     ...

कौन हैं अनुच्छेद 370 को बरकरार रखने के हिमायती?

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                      डॉ.बचन सिंह सिकरवार  गत 5 अगस्त को केन्द्र सरकार के जम्मू-कश्मीर की अनुच्छेद 370 तथा 35ए खत्म किये जाने और इस सूबे को विभाजित कर दो केन्द्र प्रशासित राज्य घोषित करने पर आए दिन भारत सरकार को चुनौती देने वाली घाटी आधारित सियासी पार्टियाँ नेशनल कान्फ्रेंस, पी.डी.पी., पीपुल्स कॉन्फ्रेंस समेत  अलगाववादियों,  पाकिस्तानपरस्तों को भारी धक्का और गहरा सदमा लगा है। उन्होंने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि कभी कोई सरकार उनके द्वारा मुल्क के बँटवारे से लेकर इस सूबे को अपनी जागीर की तरह राज करने ही नहीं,उसमें दारुल इस्लाम/निजाम-ए-मुस्तफा लाने के लिए तथाकथित विशेष पहचान(मुस्लिम बहुल/हिन्दूविहीन) बनाये रखने के कश्मीरियत, जम्हूरियत, इन्सानियत की ओट में भारतीय संविधान में पहले अनुच्छेद 370 और उसके बाद अनुच्छेद 35ए जोड़ने और बचा रखने की हर तिकडम के बाद भी उन्हें एक ही झटके में खत्म कर देगी। इससे भी ज्यादा हैरानी उन्हें यह देखकर हो रही है कि केन्द्र सरकार के इतने बड़े फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर में कहीं कोई पत्ता तक क...

अफगानिस्तान में संकट बढ़ने के आसार

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                                 डॉ.बचन सिंह सिकरवार अब अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने चुनावी वादे को पूरा करने की गरज से किसी भी तरह अफगानिस्तान से अमेरिकी और ‘उत्तर अटलाण्टिक सन्धि संगठन’(नाटो)की सेनाओं की किसी भी तरह सुरक्षित वापसी के लिए बेताब हैं ,इसके लिए उन्हें अपने ही पैदा किये भस्मासुर ‘तालिबान’ से न केवल उसकी शर्तों पर समझौता करने से गुरेज है और न शर्मिन्दगी ही। यहाँ तक कि उसे अब अफगानिस्तान के भविष्य की भी परवाह नहीं है। इस मुल्क में सन् 2001से तैनात  अपने सैनिकों में से 2,400 को गंवाने के बाद भी वह खाली हाथ लौटने को मजबूर है। अमेरिका जिस आतंकवाद को दुनिया से मिटा देने की अब तक दम भरता आया है, अब उसके ही एक इस्लामी दहशतगर्द संगठन ‘तालिबान’से हाथ मिलाकर अफगानिस्तान को  अपने रहमोकरम पर छोड़ने जा रहा है,लेकिन इस बीच तालिबान के हमले जारी हैं। इसी 28अगस्त को ही पश्चिमी हेरात प्रान्त में सुरक्षा चौकियों पर उसके हमलों में अफगान सरकार समर्थित मिलिशिया के 14 सदस्य मारे गए हैं।...

संघर्ष, उत्सर्ग,वीरता की शौर्यगाथा क्षत्रिय राजवंश बड़गूजर-सिकरवार-मढाड़

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पुस्तक समीक्षा लेखक - कँुवर अमित सिंह , डॉ . खेमराज राघव , पवन बख्शी समीक्षक - राघेवन्द्र सिंह सिकरवार पूर्व प्रधानचार्य अपने देश में विभिन्न जातियों , वंशों पर अनेकानेक पुस्तिका लिखी गई हैं इनमें से कुछ क्षत्रिय वंशों के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री से परिपूर्ण भी हैं। क्षत्रियों में प्रमुख वंश बड़गूूजर , सिकरवार , सिकरवार , मढाड़ पर कई पुस्तकें पूर्व में भी प्रकाशित हो चुकी हैं। हाल में प्रकाशित   कुँवर अमित सिंह , डॉ . खेमराज राघव , पवन बख्शी द्वारा लिखित ‘ बड़गूजर - सिकरवार - मढाड़ पुस्तक उन समस्त पुस्तकों में ऐतिहासिक दृष्टिकोण   बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसमें बड़गूजर क्षत्रियों के पूर्वज भगवान राम के पुत्र लव के वंशज लवपुर या लवकोट ( लाहौर ) के अन्तिम राजा कनकसेन का उल्लेख है जो लवकोट से वर्तमान गुजरात के बड़नगर में बस गए और वल्लभी साम्राज्य की स्थापना की।   इनके वंश की   एक शाखा मेवाड़ तथा दूसरी शाखा ढूंढाड़ प्रदेश में आ बस गई...

इल्जाम लगाने से पहले फर्क जान लें येचुरी

डॉ.बचन सिंह सिकरवार गत दिनों मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी(माकपा)के महासचिव सीताराम येचुरी के भोपाल में अपनी ही पार्टी द्वारा ‘संसदीय प्रणाली, चुनाव और जनतंत्र’ विषय पर  आयोजित परिचर्चा में ‘रामायण‘ और ‘महाभारत’ ग्रन्थों समेत हिन्दू शासकों के आपसी युद्धों का उदाहरण देते हुए हिन्दुओं के हिंसक होने की जो बात कही है उसका मकसद सिर्फ सियासी फायदे के लिए हिन्दुओं को एक समुदाय विशेष के समकक्ष ठहराना था,जिससे सम्बन्धित मजहबी दहशतगर्द दुनियाभर के मुल्कों में मजहबी नफरत को लेकर तबाही मचाए हुए हैं। उनकी दहशतगर्दी से गैरमजहबी ही नहीं,खुद हममजहबी भी बेहद खौफजदा हैं। इन्होंने अफगानिस्तान, इराक, सीरिया,यमन आदि कई मुल्कों को बर्बाद कर दिया है। अपने देश में भी ये दहशतगर्द जम्मू-कश्मीर में आए दिन दहशत फैलाते हुए सुरक्षा बलों और आम नागरिकों का खून बहाते रहते हैं। ऐसे में येचुरी की उस मजहब के मानने वालों से हिन्दुओं से तुलना बेमानी ही नहीं, शरारतपूर्ण भी है। वैसे तो उनकी पार्टी द्वारा उस विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई, जिससे उनकी पार्टी के कथित नीति-सिद्धान्तों से कोई नाता नहीं है। साम्यवादी अपने स...

ऐसे हुई हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत

                        डॉ.बचन सिंह सिकरवार  दुनियाभर में अखबार भले ही खबरों के लिए निकाले गए हों,पर  अपने देश में विशेष रूप से हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत और उसका विकास ‘राष्ट्रीयता’  की उद्बोधक, उसकी सम्पोषक तथा उसके दिग्दर्शन के महती उद्देश्य के रूप में हुआ है। अब नए युग के आधुनिक पत्रकार भले ही पत्रकारिता को व्यवसाय/रोजी-रोटी कमाने का जरिया मानते हांे और मानकर चल भी रहे हों, लेकिन देश का जनमानस अब भी हिन्दी पत्रकारिता को राष्ट्र तथा समाज के लिए कार्य करना ही मानता है। यही कारण है कि वह इन उद्देश्यों से तनिक विचलन भी स्वीकार नहीं करता है। आज हम लोग हिन्दी पत्रकारिता के जिस रूप-स्वरूप तथा विस्तार को देख रहे हैं,उसे इस स्तर/मुकाम तक पहुँचाने में अनगिनत त्यागी, तपस्यी पत्रकारों/साहित्यकारों का अथक परिश्रम लगा है, जिन्होंने हर तरह के खतरों का सामना करते  और अभावों को झेलते हुए भी हिन्दी पत्रकारिता के उद्देश्यों पर किसी तरह की आँच नहीं आने दी।इसके लिए उन्होंने ब्रिटिश शासन की यातनाएँ सहीं और जेलों  ...

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के एकतरफा पैरोकार

                      डॉ.बचन सिंह सिकरवार  हाल में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर आपत्तिजनक पोस्ट करने मामले में  कथित पत्रकार प्रशान्त जगदीश कन्नौजिया की गिरफ्तारी को प्रथम दृष्टया अनुचित मानते हुए उच्चतम न्यायालय ने उन्हें जमानत पर तत्काल रिहा करने का आदेश अवश्य दिया, किन्तु उसने  सोशल मीडिया पर  उनके पोस्ट या ट्वीट का समर्थन नहीं किया है। इस बारे में उच्च न्यायालय ने भी स्पष्ट कर किया है कि जो मामला कन्नौजिया के विरुद्ध न्यायालय में चल रहा है, वह चलता रहेगा। हालाँकि प्रशान्त कन्नौजिया जमानत पर रिहा होकर बाहर आ गए हैं,लेकिन उनकी गिरफ्तारी को लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तथाकथित पैरोकारों ने बगैर उनकी हकीकत जाने ऐसा हाहाकार/कोहराम मचाया, जैसे देश में अभिव्यक्ति स्वतंत्रता का गलाघोंट दिया गया हो। लेकिन देश में कोई भी ऐसा संगठन आगे नहीं आया,  जिसने  उनसे यह  प्रश्न किया हो कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी कहने-बोलने पर पाबन्दी क्यों नहीं होनी चाहिए, जिससे जातिगत, धा...