शिक्षा मन्दिरों में बढ़ती अराजकता और संवेदनहीनता

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डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों देश के प्रख्यात बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में लगातार छात्राओं के साथ छेड़छाड/हर तरक की बदसलूकी़, उनकी शिकायत की सुनवायी न होना, आक्रोशित छात्रों द्वारा नारेबाजी, धरना-प्रदर्शन, आगजनी, मारपीट, लाठीचार्ज, उग्र आन्दोलन, छात्रावासों को खाली कराये जाने और विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े  छात्र संगठनों और राजनीतिक दलों द्वारा जैसी ओछी राजनीति के माध्यम से अशान्ति भड़काने की कोशिशें की र्गइं, वह अत्यन्त क्षोभ और चिन्ताजनक हैं।  वैसे इन तमाम घटनाओं के लिए कहीं न कहीं इस विश्वविद्यालय के कुलपति समेत प्रशासन से जुड़े लोग जिम्मेदार रहे हैं जो अब वहाँ के आयुक्त और जिला प्रशासन की प्रारम्भिक रपट से भी स्पष्ट है। इन्होंने छात्राओं की छेड़छाड़ की शिकायत पर  आवश्यक कदम समय से  नहीं उठाये। यहाँ तक कि उनके धरने पर जाकर शिकायत सुनना भी जरूरी नहीं समझा। इस कारण छात्र-छात्राओं का आक्रोशित होना स्वाभाविक है। ऐसे में बाहरी तŸवों को उन्हें भड़काने को जिम्मेदारी ठहराना कहाँ तक उचित है? आखिर यह मौका तो इन लोगों ने ही तो दिया। क्षोभ की बात यह है कि फिर भी बनारस विश्वविद्यालय के कुलपति  अपनी चूक/गलती दर गलतियों को स्वीकार करने तक को तैयार नहीं हैं,इसे आप क्या कहेंगे ?
   हकीकत यह है कि अपने देश के विभिन्न शिक्षा मन्दिरों  में चल रही अव्यवस्थाओं तथा इनमें हो रही गन्दी राजनीति और इसके लिए उत्तरदायी व्यवस्थापकों की अकुशलता, घोर स्वार्थपरता, बेहद संवेदनहीनता तथा उनका गैरजिम्मेदाराना ही रवैया ही दिखायी देता है। इसके लिए किसी एक राजनीतिक दल को जिम्मेदार ठहराना बेमानी होगा। सच्चाई यह है कि अपने देश के छोटे-बड़े सभी  राजनीतिक दल उत्तरदायी हैं। इन्होंने शिक्षा मन्दिरों को अपने राजनीति/स्वार्थसिद्धि की पूर्ति का स्रोत और छात्रों को अपनी सियासत का मोहरा बनाया हुआ है। इससे  शिक्षा के इन केन्द्रों में अब शिक्षा देने के सिवाय सभी गतिविधियाँ हो रही हैं। ये छात्रों को शिक्षित/प्रशिक्षित करने के साथ बेहतर इन्सान बनाने के बजाय बगैर पढ़े-लिखे और प्रशिक्षण दिये मोटी रकम लेकर उन्हें फर्जी उपाधियाँ बाँटने के अड्डे बन गए हैं,इसके लिए सभी सियासी पार्टियों की सरकारें जिम्मेदार हैं।
इसका कारण यह है कि जहाँ पहले  लोगों का शिक्षा मन्दिरों की स्थापना और उनका संचालन का उद्देश्य जनसेवा तथा अधिक से अधिक अपने लिए सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने तक सीमित था, अब उनका  महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय बनाने का मकसद हर तरह के छल-प्रपंचों से अधिकाधिक धन कमाना होगा। अपने देश में अधिकतर शिक्षण संस्थान राजनीतिकों या उनके सगे-सम्बन्धियों के हैं या फिर उनके समर्थकों या पूँजीपतियों के हैं जिनका एकमात्र लक्ष्य निवेशित पूँजी से अधिकाधिक धन कमाना है। ये लोग राजनीतिक दलों को  घूस देकर अपनी मनमानी कर छात्रों का हर तरह से उत्पीड़न करते हैं और उनसे बगैर पढ़ाये नाना बहानों से मोटी रकम वसूलते है। इन पीड़ित छात्रों की कहीं कोई सुनवाई नहीं है,क्यों कि ज्यादातर मामलों में उच्च न्यायालय अपने फैसले में कुलाधिपति/राज्यपाल को निर्णय करने को निदेशित करता है या फिर कुलपति को भेज देता है,जिनसे शिक्षक या छात्र पीड़ित होते हैं। इससे कुलपति की गलतियों को दुरुस्त करने वाला कोई नहीं है,क्यों कि वे किसी न किसी राजनीतिक से जुड़े और उनसे संरक्षण प्राप्त होते हैं। यही कारण जनप्रतिनिधि भी इनके मामले में अक्सर चुप्पी साधे रहते हैं,क्यों कि इनमें से कुछ  शिक्षक होते हैं तो कुछ ने इस अराजकता को अपनी कमाई/अवैध कार्य कराने का जरिया बनाया हुआ है।
वर्तमान विश्वविद्यालयों की दुर्व्यवस्थाओं के लिए केन्द्र और राज्यों में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल ही उत्तरदायी हैं, क्यों कि देश के सभी राज्यों में केन्द्र में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल की सरकार अपनी पार्टी के वफादारों को राज्यपाल बनाती हैं जिनकी योग्यता बस अपनी पार्टियों के  आकाओं के संकेतों पर निर्णय लेना होता है। परिणामतः वे कुलाधिपति की हैसियत से विभिन्न विश्वविद्यालयों के लिए अधिमान्य योग्यता की अनदेखी कर पार्टी से जुड़े लोगों को कुलपति नियुक्त करते आये हैं। हाल में आयी एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में आगरा की डॉ.भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय समेत राज्य के छह विश्वविद्यालयों में अधोयोग्यता केे कुलपति बनाये गए हैं। परिणामतः इनसे न तो विश्वविद्यालयों की व्यवस्था सम्हाल रही है और न शैक्षणिक वातावरण ही सुधारा जा रहा है। जहाँ तक डॉ.भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा का प्रश्न है तो गत दो दशक से इसकी हालत बद से बदतर होती गई है। इसके लिए कहीं न कहीं अयोग्य, अकुशल, संवेदनहीन कुलपति  उत्तरदायी हैं जिन्होंने अपनी अवैध कमाई के लिए कर्मचारियों से  कार्य  लेकर  एजेंसियों से कराना शुरू किया। पिछले कई सालों से इस विश्वविद्यालय के कुलपतियों ने भ्रष्ट कर्मचारियों को ही प्रश्रय दिया है, ताकि विभिन्न प्रकार से लूट कर उनकी जेबे भर सकें। यही कारण है कि उन्होंने मोटी रकम लेकर रेबड़ी की तरह  कॉलेजों को मान्यता बाँटना शुरू कर दिया है,जो वांछित आर्हताएँ पूर्ण नहीं करते थे। इनमें से कुछ ने एक ही इमारत पर अलग-अलग नामों से कई महाविद्यालयों की मान्यता दे दी । यहाँ के कुलपति भी संवेदनहीनता में बनारस विश्वविद्यालय के कुलपति से किसी माने में पीछे नहीं रहे हैं। इनमें से कुछ ने ठण्डे में ठिठरते अनशनकारी छात्रों की सुनवायी नहीं की,तो कुछ ने छात्रों की भूख हड़ताल पर ध्यान नहीं दी,तो कुछ अपने कथित सुरक्षाकर्मियों(गुण्डों)तथा पुलिस से पिटवाया तथा उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज कराएँ हैं। यहाँ भी कुछ छात्र विश्वविद्यालय के रवैये से दुखी होकर अपनी जान गंवा चुके हैं। पिछले कई सालों से उपाधि प्रमाण पत्र नहीं बाँटे गए हैं। कुछ सौभाग्यशाली छात्र ऐसे हैं, जिन्होंने हजारों रुपए रिश्वत में देकर उपाधि प्रमाण प्राप्त करने में सफल रहे हैं। यहाँ न समय से परीक्षाएँ हो पाती हैं और न परिणाम ही निकलते हैं। सालों से कोई भी सत्र अपने नियत कार्यकाल में पूर्ण नहीं हो रहा है। 
     इस विश्वविद्यालय से लाखों रुपए देकर इंजीनियरिंग की उपाधि बेचने प्रकरण सामने आए हैं तथा बिना पढ़े-लिखे बी.एड.समेत विभिन्न उपाधियाँ दाम लेकर बेची जा रही हैं। यहाँ छात्रों के छोटे से छोटे कार्य भी बिना दाम लिए नहीं होते हैं। फर्जी प्रमाण पत्रों से प्राध्यापक से लेकर प्राचार्य बनाये जाते हैं,उनकी शिकायत ही नहीं,साक्ष्य दिये जाने पर भी उन पर कार्रवाई नहीं होती। इसलिए    रिश्वतखोरी से मालामाल हुए  यहाँ के छोटे-बड़े कर्मचारी महँगी गाड़ियों में घूमते हैं। आज तक किसी भी कुलपति ने इन भ्रष्ट और कमचोर कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का साहस नहीं दिखाया है,क्यों कि उन्हें अपने कुलपति की कारगुजारियों की खबर रहती है। सूचना के अधिकार की तहत सूचना प्राप्त करना  यहाँ बहुत ही टेड़ीखीर है। आगरा विश्वविद्यालय के क्षेत्राधिकार में कई जिले आते हैं,किन्तु यहाँ की अव्यवस्था, अराजकता,भ्रष्टाचार के विरुद्ध कायदे किसी भी सांसद/विधायक ने संसद/विधानसभा में अपनी आवाज नहीं उठाई हैं,क्यों इसका जवाब उन्हें देना चाहिए। 
हालाँकि  बनारस विश्वविद्यालय के प्रोक्टोरियल बोर्ड के कुछ सदस्यों ने त्याग पत्र दे दिया,पर बात इतने भर से बनने वाली नहीं है। वैसे भी जब तक शिक्षा के इन मन्दिरों में राजनीतिक हस्तक्षेप बन्द नहीं होगा और जागरूक नागरिक समितियाँ सक्रिय होकर इन पर अपनी निगरानी रखने की जिम्मेदारी  नहीं सम्हालेगीं, तब इनकी दुर्दशा सुव्यवस्था में नहीं बदलेगी साथ ही भ्रष्ट कार्यकलापों में लिप्त प्रशासनिक, शिक्षकों,कर्मचारियों को नमूने की सजा दिये जाने की व्यवस्था भी जरूरी है। इन शिक्षा मन्दिरों में शैक्षणिक स्तर के आधार के साथ -साथ कुशल एवं संवेदनशील कुलपति और प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त किया जाना भी आवश्यक है ,जो छात्रों के साथ नौकरशाहों जैसा व्यवहार न कर पिता तुल्य व्यवहार करते हों।ऐसा किये बगैर शिक्षा के इन मन्दिरों को सच में नाम के अनुरूप बदलना सम्भव नहीं है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

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