तब ही पाक बन्द करेगा कश्मीरी राग



डॉ.बचन सिंह सिकरवार
पाकिस्तान  कश्मीर के मुद्दे को गाहे-बगाहे हर जगह उठाने की अपनी पुरानी आदत  से अब भी बाज नहीं रहा है। ऐसा करते हुए  भारत के साथ सम्बन्ध सुधार की चल रहीं प्रक्रियाओं को धक्का पहुँचने का उसे जरा भी ख्याल नहीं आता। अगर ऐसा होता, तो क्या पाकिस्तान  एक बार फिर इस्लामिक जगत्‌ के सबसे बड़े संगठन इस्लामिक सहयोग संगठन ' (ओआइसी)की इसी फरवरी को काहिरा में हुई बैठक में जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन की जाँच के लिए उससे  अपने स्वतंत्र दल जाँच दल भेजने के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम के उल्लंघन की संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक दल(यूएसएमओजी) से कराने का प्रस्ताव देता ।क्षोभ की बात यह है कि इस संगठन ने भी खुशी-खुशी पाकिस्तान के इन प्रस्तावों को मंजूर कर लिया। इसके बाद  भारत से  अपने एक जाँच मिशन और अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन को दौरा करने की अनुमति देने को कहा , लेकिन भारत ने कश्मीर के मामले में अकारण हस्तक्षेप पर गहरी नाराजगी जताते हुए कहा कि उसके आन्तरिक मामले में दखलदांजी का उसे कोई अधिकार नहीं है। इससे पहले गत अक्टूबर को  संयुक्त राष्ट्र की एक विच्चेष बैठक में पाकिस्तान के उप स्थायी प्रतिनिधि रजा बशीर तरार कश्मीर मुद्दे का अप्रसांगिक उल्लेख करते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर विवाद का हल खोजे बगैर संयुक्त राष्ट्र की उपनिवेच्च मुक्त दुनिया की परिकल्पना पूरी नहीं हो सकती। उनका मुल्क इस मुद्दे का शान्तिपूर्ण हल चाहता है ,जो सभी  पक्षों को मंजूर हो। इस पर भारतीय दूतावास के प्रथम सचिव प्रकाच्च गुप्ता ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जम्मू-कश्मीर देच्च का अभिन्न हिस्सा है। पाकिस्तान की ओर से उठाया गया यह मसला गैरजरूरी है। भारत का संविधान सभी नागरिकों को मौलिक अधिकारों की गारण्टी देता है। जम्मू-कश्मीर के लोग लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं और इस मामले में वे कई बार अपनी राय भी जाहिर कर चुके हैं। इस पर बशीर तरार का जवाब था कि जम्मू-कश्मीर  तो भारत का अभिन्न भाग है और कभी होगा।
 इससे  एक हफ्ते पहले पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने कहा था कि कश्मीर संयुक्त राष्ट्र की विफलता का प्रतीक है। तब इसके प्रत्युत्तर में भारत के तत्कालीन विदेच्च मंत्री एम.कृष्णा ने कड़ी आपत्ति जतायी थी।        

दरअसल, कोरे विरोध से पाकिस्तान  कश्मीरी राग गाने से बाज आने वाला नहीं। उसकी पैदाइच्च और अब वजूद ही हिन्दू और हिन्दुस्तान से नफरत पर बुनियाद पर टिका है। इसलिए हमारे लिए यह जरूरी है कि हम भी उसकी कमजोर नसों को दबायें। इसके लिए हमें दूसरों का आसरा छोड़ कर खुद ही उसके मुकाबले में खड़े होना होगा। हम अमरीका और दूसरे यूरोपीय देच्चों से अनुरोध करते फिरते हैं कि वे पाकिस्तान को आतंकवादी मुल्क' घोषित करें ,भला वे ऐसा क्यों करने लगे? वह तो  उनकी सामरिक-भू- राजनीति एक मुहरा है। वे उसे खामखाँ क्यों नाराज करते फिरें ? अगर भारत को उसके आतंकवादियों की गतिविधियों से परेच्चानी है तो वह क्यों नहीं ,उसे स्वयं आतंकवादी मुल्क' घोषित करता ,जो आतंकवाद को पालने-पोसने में कई सालों से लगा हुआ है।
      इसी तरह  भारत को यह अच्छी तरह पता है कि फिलहाल पाकिस्तान की सबसे कमजोर नस बलूचिस्तान' है। जहाँ पाकिस्तान के गठन से ही उसके साथ भारी भेदभाव किया जाता रहा है जिसे लेकर वहाँ के लोगों में पाकिस्तान के खिलाफ  भारी असन्तोष और नफरत व्याप्त है।  यहाँ के बलूच उससे अलग होना चाहते हैं। इस कारण पाकिस्तान बलूूचिस्तान की आजादी माँग करने वालों को कुचलने के लिए हर तरह के जुल्म ढहा रहा है। अब भारत भले ही बलूचिस्तान की आजादी के माँग करने वालों का खुलकर हिमायत करे, लेकिन विच्च्व मंचों पर उसे बलूचों पर होने वाले जुल्मों और उनके साथ होने वाले भेदभावों का जिक्र तो करना ही चाहिए।
सिन्ध में अब पहले जैसे हालात भले ही हों, लेकिन वहाँ के बाच्चिन्दों में पाकिस्तान से अलग होने की तड़प खत्म नहीं हुई है। उनका जीए सिन्ध' का ख्वाब अभी मरा नहीं है उसके नारे सिन्धियों के कानों में गूँज रहे हैं। हमें  सिन्ध के लोगों की भावनाओं के साथ खड़े होने का उन्हें अहसास कराना चाहिए।
 कमोबेच्च यही स्थिति सीमान्त प्रान्त अब खैबर पख्तूनव्वा' के पठानों की है, जिन्होंने कभी भी पाकिस्तान के साथ रहना नहीं चाहा। अब वे मन मार कर जैसे-तैसे अपना वक्त गुजार रहे हैं।हमें जरूरत पड़ने पर पठानों के साथ भी अपनी हमदर्दी जताने में पीछे नहीं रहना चाहिए।
        अब बात करते हैं कि मुहाजिरों की ,जो पाकिस्तान को अपने लिए जन्नत समझ कर अपना घर-द्वार छोड़ कर भारत से वहाँ गए थे।  उत्तर प्रदेच्च-बिहार से वहाँ पहुँचे इन उर्दू भाषी मुसलमानों के लिए यह दोजख से कम साबित नहीं हुआ। पाकिस्तान में उन्हें ६५साल बाद भी नफरत और हिकारत से मुहाजिर' (शरणार्थी) कहे जाने के साथ-साथ उनके साथ हर मामले में दूसरे दर्जे के नागरिकों सरीखा सलूक किया जाता है। उन्होंने भी मुहाजिर कौमी मूवमेण्ट'(एम.क्यू.एम.)बना कर आन्दोलन किये हैं, लेकिन उनकी हालत में अभी तक कोई सुधार नहीं हुआ है। भारत को मौका मिलने पर इन मुहाजिरों के घावों पर हमदर्दी की मरहम लगाते रहना चाहिए। यह सब करने के बाद देखते हैं कि पाकिस्तान कैसे और कब तक कश्मीरी राग अलापता है? 
          पाकिस्तान जिस जम्मू-कश्मीर और उसके बाच्चिन्दों का खैरखव्वाह बन दुनिया भर में उसकी तथाकथित आजादी के लिए अपना माथा-छाती कूट कर रोता-गाता रहता है उससे कोई यह नहीं पूछता कि उसने हड़पे हुए जम्मू-कश्मीर(गुलाम कश्मीर यानी पी.ओ.के.)में कौन-सी जन्नत ला दी है? वहाँ के बाच्चिन्दे पिछले ६५साल से तमाम तरह के अभाव झेलते हुए गुलामों सरीखी जिन्दगी बसर कर रहे हैं। उसने गुलाम कश्मीर के एक महत्त्वपूर्ण और बड़े भू-भाग को अपने आका चीन को सौंप दिया है जिस पर उसने काराकोरम मार्ग बना लिया है। अब भी वह गुलाम कश्मीर में चीन के दम पर तमाम योजनाएँ चला रहा है जो यहाँ के बाच्चिन्दों के फायदे के लिए नहीं, बल्कि उसके अपने और चीन के फायदे के लिए हैं। एक ओर भारत में अल्पसंख्यक सभी राज्यों में सुरक्षित ही नहीं, बल्कि उन्हें कुछ विच्चेषाधिकार भी मिले हुए हैं।इनकी आबादी बढ़ने की दर बहुसंख्यक हिन्दुओं से कहीं ज्यादा है। दूसरी ओर पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी लगातार घट रही है तथा उनकी मान-मर्यादा की तो बात ही क्या? उनका जीवन, औरतें ,बच्चे ,जमीन-जायदाद ,मजहब में से कुछ भी महफूज नहीं है। जिस कश्मीर की दुर्दच्चा पर पाकिस्तान को बेहद तकलीफ और मलाल है वहाँ के मुसलमानों ने उसके उकसावे और अपनी कट्टरपन्थी विचारधारा के कारण कश्मीर घाटी से हिन्दुओं का सफाया कर दिया है। उनके पूजाघरों और घरों को खण्डहर में तब्दील कर दिया है। ये कश्मीरी पण्डित कोई और नहीं यहाँ के मूल बाच्चिन्दें और उनका अपना खून हैं। फर्क बस इतना है कि उन्होंने उनकी तरह इस्लाम कबूल नहीं किया है। जहाँ तक जम्मूू-कश्मीर के भारत के अभिन्न अंग होने का सवाल है ,तो इसमें शक शुबह की कोई गुंजाइच्च नहीं, लेकिन पाकिस्तान किस हैसियत से उसे अपना होने की वकालत करता है?उसकी खुद की पैदाइच्च भी तो मजहबी नफरत की बिना पर भारत के बँटवारे से हुई है। जिस तरह भारत के दूसरे राज्य हैं , ठीक वैसे ही कश्मीर भी उसका सादियों से अभिन्न हिस्सा था , है और आगे भी रहेगा। अगर नहीं रहेगा ,तो वह मुल्क पाकिस्तान होगा ,हिन्दुस्तान और उसका अटूट हिस्सा कश्मीर नहीं।
-सम्पर्क-
डॉ.बचन सिंह सिकरवार ६३ ,गाँधी नगर,आगरा-२८२००३
 मो.न.९४११६८४०५४

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