सत्ताद्रोह या राष्ट्रद्रोह



डॉ.बचन सिंह सिकरवार
    गत दिनों समाज सेवी अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के समर्थन में देश के नेताओं के आचरण और उनके कारण बनी भ्रष्ट शासन व्यवस्था को व्यंग्य चित्र बनाकर राष्ट्रीय प्रतीकों के माध्यम से चित्रित करने को लेकर कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी पर जिस  तत्परता और सख्ती दिखाते हुए महाराष्ट्र पुलिस द्वारा उन्हें राष्ट्रद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया, उस पर देश के लोगों को बहुत हैरानी हुई। इसकी वजह यह कि  गत ११ अगस्त माह में मुम्बई के आजाद मैदान मेंसुन्नी जमात-उल-उलेमातथा  रजा-ए-मुस्तफासंगठनों के बुलावे पर म्यानमार में मुसलमान पर हमलों और असम की साम्प्रदायिक हिंसा के विरोध में आयोजित सभा के दौरान  बड़े पैमाने पर पुलिस कर्मियों पर हमले, विशेष रूप से महिला पुलिस कर्मियों और मीडिया कर्मियों के साथ बदसूलकी के साथ-साथ उनकी वैन और दूसरे छोटे-बड़े वाहनों को जलाया गया। इसके बावजूद पुलिस कर्मियों और उनके अधिकारियों का मूकदर्शक बने देखते रहना अखरता है जबकि उनमें से कुछ उपद्रवियों नेअमर जवान ज्योतिस्मारक को भी तहस-नहस कर दिया था। फिर भी पुलिस ने उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने की नहीं सोची। कुछ सूत्रों के अनुसार इस आयोजन में महाराष्ट्र सरकार के एक मंत्री का सहयोग और संरक्षण रहा है। यह भी बताया जा रहा है कि उस समय डिप्टी पुलिस कमिश्नर ने इन उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई का प्रयास किया, लेकिन उनके  कमिश्नर ने उन्हें सरे आम छिड़कते हुए रोक दिया। उनका कहना था कि यदि कार्रवाई की जाती, तो उसकी गम्भीर प्रतिक्रिया होती। इसके बाद इन्हीं लोगों द्वारा दक्षिण भारत के विभिन्न राज्यों में कार्यरत पूर्वोत्तर के छात्रों और दूसरे लोगों को एसएमएस तथा दूसरे संचार माध्यमों से भयभीत किया गया, जिससे वे हजारों की संख्या में अपने काम-धन्धे छोड़ अपने राज्यों को जाने को मजबूर हुए फिर भी उनके खिलाफ अभी तक सख्त कार्रवाई नहीं की गयी है, ही कथित धर्मनिरपेक्षों ने इन कट्टरपंथियों के विरोध में अपनी जुबान खोली है।

पता नहीं ,कितनी बार कश्मीर घाटी में तिरंगे का अपमान करने के साथ पाकिस्तानी झण्डे फहराने के साथ-साथहिन्दुस्तान मुर्दाबादऔरपाकिस्तान जिन्दाबादके नारे लगाये जाने की घटनाएँ होती आयीं हैं फिर भी उन अलगाववादी ,पाकिस्तान समर्थक देशद्रोहियों के खिलाफ सख्ती बरती गयी और ही उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकद्दमा दर्ज कर गिरफ्तार ही किया गया है।
इसी २७ सितम्बर को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की कश्मीर यात्रा के दौरान अलगाववादी संगठनों ने उन्हें काले झण्डे दिखाये तथा संसद पर हुए हमले के साजिशकर्ता अफजल गुरु की दया याचिका मंजूर कर जल्दी रिहा करने की माँग करते  हुए प्रदर्शन किया, पर देश का एक भी धर्मनिरपेक्ष नेता  उनके इस कदम की निन्दा करने को आगे नहीं आया। क्या अफजल गुरु राष्ट्रद्रोही नहीं है, फिर उनके हिमायतियों को आप किस श्रेणी में रखेंगे









देश भर में  असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी पर अपना आक्रोश जताते हुए लोगों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात बताया। इसी मामले में उच्चतम  न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश तथाभारतीय प्रेस परिषद्के अध्यक्ष श्री मार्कण्डेय काटजू ने कहा कि पुलिस अधिकारियों तथा उनके मुकद्दमे की सुनवायी कर अभिरक्षा में भेजने का आदेश देने वाले न्यायाधीश के खिलाफ भी कार्यवाही की जानी चाहिए।  प्रारम्भ में असीम त्रिवेदी ने न्यायालय के जमानत कराने के प्रस्ताव को यह कहते हुए स्वीकार नहीं किया कि जब तक महाराष्ट्र सरकार उन परराष्ट्रद्रोहका आरोप रद्द नहीं करती, तब तक वह जेल में ही रहेंगे। लेकिन बाद में कुछ लोगों के आग्रह पर उन्होंने अपनी जमानत यह कहते हुए करा ली कि भविष्य में भी वह भ्रष्टाचार और दूसरे मुद्दों पर व्यंग्य चित्र बनाते रहेंगे। श्री त्रिवेदी के इन चित्रों पर कार्टूनिस्ट इरफान ने अपने लेख में  कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार संविधान ने ही हमें दिया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई भी खड़ा होकर संविधान पर पेशाब करने लगे। अभिव्यक्ति की आजादी की एक लक्ष्मण रेखा है और असीम ने इसे लांघा है। वह जितना जल्दी इस बात को समझ लें, भविष्य में उनके लिए उतना उजाला होगा। किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आजादी वहीं तक है,जहाँ तक दूसरों की भावनाएँ आहत हों। फिर यह मामला तो देश के प्रतीक चिन्हों और संविधान से जुड़ा है। लेकिन श्री त्रिवेदी के पक्षधरों का विचार है कि उन्होंने राष्ट्रीय प्रतीकों को उपहास नहीं उड़ाया है, बल्कि भ्रष्ट नेताओं के आचरण से उत्पन्न स्थिति का चित्रण किया है।
 हाल में ही एक दूसरा मामला तमिलनाडु की कुडानकुलम परमाणु बिजली घर का विरोध कर रहे लोगों का है जिसमें कोई आठ हजार प्रदर्शनकारियों के खिलाफ यहाँ की सरकार ने राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज कराया है। क्या अपने हितों के लिए आवाज उठाना राष्ट्रद्रोह है? महाराष्ट्र निर्माण सेना के नेता राज ठाकरे आये दिन उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को मुम्बई छोड़ने की धमकी देते रहते हैं लेकिन उनके खिलाफ केन्द्र या राज्य सरकार ने राष्ट्रद्रोह तो दूर किसी भी तरह का मुकद्दमा दर्ज कराने की नहीं सोची।
अब यहाँ प्रश्न यह है कि महाराष्ट्र पुलिस समेत केन्द्र और दूसरे राज्यों की सरकारों से है कि असीम त्रिवेदी के मामले में पुलिस का जैसा रवैया रहा, वैसा ही बर्ताव वे देश के स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता, सार्वभौमिकता को चुनौती देने वाले आतंकवादियों ,अलगाववादियों, मजहबी कट्टरपंथियों के खिलाफ क्यों नहीं करतीं ? कमोबेश रूप से ऐसा ही रवैया देश के ज्यादातर राजनीतिक दलों का रहा है जिनके धर्मनिरपेक्षता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, उदारवाद, पूँजीवाद, जातिवाद, भ्रष्टाचार  के मामलों को देखने-समझने के  अपने-अपने पैमाने हैं। इनमें से कुछ को भारत माता और दूसरे हिन्दू देवी-देवताओं के नग्न और अश्लील चित्र बनाने वाले मरहूम चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन की नीयत और उनकी करनी में जरा भी खोट नजर नहीं आया। इसके विपरीत उनकी इस कारतूत पर एतराज  जताने वाले उन्हें कट्टरपंथी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विरोधी नजर आये । इन लोगों ने मकबूल हुसैन के चित्रों की अभिव्यक्ति आजादी नाम पर हिमायत ली। लेकिन वे ही लोग बांग्लादेश के लेखिका तस्लीमा नसरीन को हिन्दुओं पर मुसममानों के अत्याचार, बलात्कार, उनके सम्पत्ति ,पूजा स्थलों की तोड़फोड़ समेत उन्हें हथियाने आदि का सशाई से बयान करने वाली पुस्तकलज्जा’ , अपने मजहब सम्बन्धी तथा महिला विमर्श पर लिखने के कारण नापसन्द करते हैं।
धर्मनिरपेक्षता के सबसे बड़े झण्डाबरदार वामपंथियों ने अपने शासित राज्य में मुसलमानों के नाराज होने की आच्चंका में उन्हें पश्चिम बंगाल में रहने नहीं दिया , वहीं भाजपा शासित राजस्थान में भी तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने भी उन्हें एक रात भी जयपुर में नहीं गुजारने दी। हिन्दुओं के देवी-देवता के चित्र अपने और दुनिया के किसी किसी देश में उन वस्तुओं पर छपते आये हैं जहाँ उन्हें नहीं छपना चाहिए। इस पर हिन्दू थोड़ा बहुत आक्रोश व्यक्त कर शान्त बैठ जाते हैं। इसके ठीक विपरीत कहीं दूर देश में मुसलमानों पर कुछ भी हो जाए तब अपने यहाँ के कुछ कट्टरपंथी इसका गुस्सा अपने ही मुल्क के बेकसूर लोगों, सार्वजानिक सम्पत्ति, पुलिस और सुरक्षा बलों पर निकालते आये हैं लेकिन आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने उनके इस अनुचित रवैये के खिलाफ अपनी जुबान नहीं खोली है। कभी किसी ने उनसे यह नहीं पूछा कि डेनमार्क के कार्टूनिस्ट द्वारा पैगम्बर मोहम्मद साहब के चित्र बनाने के मामले में क्या हिन्दुस्तानी कसूरवार  है ?जो यहाँ तबाही मचा रहे हो। इसी तरह  म्यानमार में मुसलमानों पर हुए हमले का भारत से क्या लेना-देना? रही बात असम की साम्प्रदायिक हिंसा की तो इसमें दोनों मजहब के लोग हिंसा के शिकार हुए हैं। अब अमरीका में किसी  सिरफिरे द्वारा बनायी फिल्मइनोसेन्स ऑफ मुस्लिम्सको लेकर कश्मीर घाटी में कट्टरपंथियों ने  जुलूस निकाल कर विरोध जताने के दौरान सुरक्षा बलों और उनके वाहनों पर पथराव किया। फिर फुरफुराशरीफ सेवा फाण्डेशन ने २७ सितम्बर को उक्त फिल्म को लेकर कोलाकाता में अमरीकी सेण्टर पर हजारों मुसलमान प्रदर्शनकारियों ने उग्र प्रदर्शन किया इसके बावजदू किसी भी राजनीतिक दल ने उनकी आलोचना नहीं की है।



इसी तरह कुछ दिनों पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा अपना  व्यंग्य चित्र बनाने और उसे ऑन लाइन प्रसारित करने पर एक प्रोफेसर को गिरफ्तार कराया जा चुका है। ऐसे ही भाजपा समेत दूसरे दलों के मुख्यमंत्री भी अपने खिलाफ कुछ भी दिखाने -लिखने पर जेल का रास्ता दिखाते आये हैं। लेकिन यह सब भी वे अपने वोट बैंक को देख करते हैं। हाल में लखनऊ के दो पार्कों में ईंद पर कुछ उपद्रवियों ने मूर्तियाँ तोड़ने के साथ-साथ इन्हें तहस-नहस कर दिया, लेकिन उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई तो दूर रही। कुछ कहने से भी सत्तारूढ़ और पूर्व सत्तारूढ़ दलों के मुखियों बचते आये हैं। यहाँ तक कि उन्हें बचाने की हर सम्भव कोशिश की गयी। अगर किसी दूसरे सम्प्रदाय के लोगों ने ऐसा किया हो तो प्रदेश में उनके समर्थक कहर बरपा देते। लखनऊ में ही कुछ समय पहले वे ऐसा कुछ अपने नेता की मूर्ति तोड़ने पर  कर चुके हैं।
उ.प्र. में हाल में बरेली, गाजियाबाद, कोसी समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जनपदों, कस्बों में सामान्य-सी घटनाओं पर साम्प्रदायिक हिंसा भड़का भी चुके हैं। इनमें से कुछ में थाना और करोड़ों की सम्पत्ति जलाने तथा कई लोगों की जानें भी जा चुकी हैं। पर वोट बैंक की खातिर दंगाइयों के खिलाफ नमूने की कार्रवाई नहीं हुई है। इसी तरह हाल में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मुम्बई केअमर जवान ज्योतिको नष्ट करने में शमिल नवयुवक को महाराष्ट्र पुलिस के बिहार पुलिस को बगैर सूचित किये गिरफ्तार करके ले जाने पर विशेष आपत्ति नहीं होती, अगर वह खास सम्प्रदाय का नहीं होता।  
वस्तुत  उन्हें अपने मुस्लिम वोट बैंक के खिसक जाने की फिक्र हर दम परेशान किये रहती है कि कहीं यह उनके जाने-अनजाने में किसी गलती या लापरवाही से उनके प्रतिद्वन्द्वी लालू प्रसाद यादव के पाले में चली जाए। इस डर की खातिर वह सोते-जागते गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को कोसते रहते हैं ताकि उनका वोट बैंक कहीं और जाने पाये। इसी मनोवृत्ति के कारण कुछ साल पहले दिल्ली मेंबटाला हाउसमुठभेड़को काँग्रेस तथा दूसरे राजनीतिक दलों ने भुनाने की कोशिश की, जिसमेंइण्डियन मुजाहिदीनके कुछ सदस्य और दिल्ली पुलिस के इन्सपेक्टर नरेन्द्र शर्मा मारे गए थे। एक तरफ केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें साधारण से मामलों में भी आसाधारण कार्रवाई करने से नहीं चूकतीं ,दूसरी ओर संसद पर हमले की साजिश में फाँसी पाये अफजल गुरु, पंजाब के मुख्यमंत्री बेअन्त सिंह के हत्यारे भुल्लर, मन्दिरजीत सिंह बिट्टा पर बम से हमला करने वाले आदि को फाँसी लटकाने में किसी की कोई दिलचस्पी नहीं है। इनकी दया याचिका पर विचार करने को राष्ट्रपति कार्यालय को समय ही नहीं है। अब मुम्बई में हमले में फाँसी सजा पाये पाकिस्तान आतंकवादी अजमल कसाब भी इसी शामिल हो गया है।

वस्तुतः अपने देश में किसी भी राजनीतिक दल को राष्ट्र से कोई सरोकार नहीं है। उनके लिए असली दुश्मन वे नहीं हैं ,जो सीमा पार से आते हैं या मुल्क की सरहदों मे ही रहकर उसके और उसके बाशिन्दों के खिलाफ काम करते हैं फिर ये नेता इस राष्ट्र को अपनी हीजागीरमानते हैं ऐसे में किसी आम आदमी द्वारा अपने पर उंगुली उठना ही उनके लिए राष्ट्रद्रोह हैं। उनकेजानी दुश्मनीतो अपनी सत्ता के दुश्मनों से, जो उनकी मनमानी, देश के प्राकृतिक संसाधनों की लूट और भ्रष्टाचार पर अंगुली उठाने की जुर्रत करते हैं। इसी लिए  असीम त्रिवेदी, अन्ना हजारे और इनके जैसे दूसरे लोगों में वे राष्ट्रद्रोह नहीं ,सत्ताद्रोह देखते हैं। उनकी मजबूरी यह है कि सत्ताद्रोह में ऐसे आम आदमी को सख्त सजा कैसे दें? इसलिए उन्हें अपने सत्ता विरोधियों को सख्त सजा देने के लिए उन पर राष्ट्रद्रोह का आरोप लगाना आसान लगता है, इसलिए उन्हें सबक सिखाने और सजा देने से ये जरा भी चूकते नहीं हैं।
 





टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कोई आजम खाँ से यह सवाल क्यों नहीं करता ?

अफगानिस्तान में संकट बढ़ने के आसार

कौन हैं अनुच्छेद 370 को बरकरार रखने के हिमायती?