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पाकिस्तान की दहशतगर्दी के खिलाफ यह कैसी जंग?

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डॉक्टर बचन सिंह सिकरवार            पाकिस्तान सरकार के आतंकवाद के खिलाफ तथाकथित जंग के लड़ते अचानक स्वात घाटी में तालिबानों के संगठन ‘ तहरीक - ए-निफाज-ए-शरीया-ए-मुहम्मदी '( इस्लामी कानून लागू करने की मुहिम-टी.एन.एस.एम.)के सरगना सूफी मुहम्मद साथ समझौता   किये जाने से दुनिया के उन लोगों को जरूर हैरानी होगी , जो उससे अमरीका के निरन्तर दबाव के चलते अपने मुल्क के मजहबी दहशतगर्दों के सफाये की उम्मीद लगाये हुए थे। यह समझौता पाकिस्तान में तालिबान के बढ़ते असर को ही दर्शाता है।   पाकिस्तान की सेना ने अपनी मुहिम छोड़ यहाँ युद्धविराम भी घोषित कर दिया है। यह समझौता   ऐसे वक्त हुआ है , जब अमरीका राष्ट्रपति के विशेष दूत रिचर्ड होलब्रुक उपमहाद्वीप की यात्राा पर थे और पाकिस्तान सरकार पर ‘ तालिबान ' और ‘ अलकायदा ' के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करने के लिए   दबाव डाला जा रहा था। लेकिन आतंक के खिलाफ अमरीका की ‘ वैश्विक युद्ध ' का सबसे बड़ा और अहम मददगार पाकिस्तान ने दहशतगर्दों से ही हाथ मिला लिया है। इससे पाकिस्तानी सरकार की कमजोरी ...

ऐसे नहीं बुझेगी पश्चिमेशिया की आग

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- डॉ.बचनसिंह सिकरवार गाजा पट्टी पर इजरायल के ताजा हमले में ६६० से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। इसमें हर रोज होने वाली जनहानि तथा घायलों की संख्या के समाचारों से सारी दुनिया चिन्तित और परेशान है लेकिन इनमें से कोई भी पक्ष हमलावर कार्रवाई   रोकने को तैयार नहीं है। गत २७ दिसम्बर को गाजा पट्टी पर इजरायल ने हमला फलस्तीनी आतंकवादी संगठन ‘ हमास ' की हमलावर कार्रवाई के प्रत्युत्तर में किया है जिसका वर्त्तमान में फलस्तीन पर शासन है। इस हमले से पश्चिमेशिया की शान्ति भंग करने के लिए केवल इजरायल को   दोषी नहीं माना   जाना चाहिए , क्योंकि पिछले जून में मिस्र की मध्यस्थता में इजरायल तथा हमास के संघर्ष विराम कराया था। अब उसने ही उसे तोड़ा है। वैसे पश्चिमेशिया की इस अशान्ति या खूनखराबे के लिए अकेले इजरायल को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसका कारण यह है कि इस्लामिक मुल्कों के साथ-साथ कट्टरपंथी इस्लामिक उग्रपंथी भी इजरायल के   वजूद को अब तक मंजूर करने को तैयार नहीं हैं और वे इसे हर हाल में नेस्तनाबूद करने पर उतारू हैं। ये मुल्क हैं- ईरान , सीरिया , सऊदी अरब , लेबनान , सीरिया ...

कौन वापस करेगा अब यमुना की पावनता को ?

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डॉ.बचनसिंह सिकरवार   हिमालय के अंचल में स्थित यमुनोत्री से निकली भगवान सूर्य ( रवि) की बेटी और   यम(काल) की बहन यमुना आदि काल से इस धरा के लोगों को हर तरह से तारती आयी है। अब उन्हीं के वंशजों के स्वार्थपूर्ण कार्यकलापों ने इस मोक्षदायनी की न केवल पावनता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है , बल्कि इतना विषाक्त कर दिया है कि वे लाख चाहने पर    इसके जल का आचमन तो दूर , इसमें   नहाने का साहस भी नहीं कर पा रहे हैं।   वस्तुतः हिमालय की चोटियों से निकल कर रवि सुता यमुना देश के कई राज्यों की सीमाओं में बहती हुई अन्ततः इलाहाबाद(प्रयाग) में संगम पर गंगा में विलीन हो जाती है। अब यमुना के प्रदूषण का खतरा अपने उद्गम स्थल यमुनोत्री पर भी उत्पन्न हो गया है जहाँ   मानवीय गतिविधियों के बढ़ने तथा उनके   हस्तक्षेप से यमुना की पवित्राता और अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह   लगने प्रारम्भ हो गये हैं। अमरीका की ‘ नेशनल एयरोनोटिक स्पेस एजेन्सी ' ( नासा) की एक रपट के अनुसार   वैश्विक उष्णता ( ग्लोबल वार्मिंग) के कारण गढ़वाल हिमालय के समस्त ‘ हिमखण्ड ' या ‘ हिम नदी ' ( ...

अफगानिस्तान की नयी दुविधा

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डॉ.बचन सिंह सिकरवार अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हमीद करजाई ने हाल में अपनी द्विदिवसीय भारत यात्रा के दौरान अपने देश के हित में जिस तरह भारत के साथ सामरिक और दूसरे करार करना जरूरी समझा था , कुछ वैसे ही इन करारों को लेकर   पाकिस्तान की चिन्ता दूर करना भी आवश्यक लगा। यही कारण है   कि उन्होंने जहाँ पाकिस्तान को ‘ जुड़वा भाई ' कहा , वहीं ‘ भारत को महान मित्रा ' । अफगानिस्तान की नयी दुविधा यह है   कि अपने इन दो पड़ोसी मुल्कों में से किस पर भरोसा करें ? उसकी मजबूरी यह है कि वह हकीकत बयान करने की हालत में नहीं हैं। पाकिस्तान उसका कैसा ‘ जुड़वा भाई ' है , अफगानिस्तान भली भाँति जानता है। भारत की उसके लिए कितनी अहमियत है , उसका ज्यादा बखान करना उसके लिए हितकर नहीं हैं। वैसे भी उनकी यह भारत यात्रा   अनायास नहीं हुई है , बल्कि वह अमरीकी   और नाटो सेना की वापसी के बाद अपने देश की सुरक्षा-व्यवस्था समेत दूसरी जरूरतों को दृष्टिगत रखते हुए खूब सोच - विचार कर ही भारत आये थे। इसकी तात्कालिक वजह यह है कि शान्ति प्रक्रिया से जुड़े   पूर्व राष्ट्रपति प्रो. रब्बानी की आत्मघाती पा...

चीन अब भारत से परेशान क्यों है ?

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चीन भारत के दक्षिण चीन सागर में वियतनाम के साथ संयुक्त तेल खोज परियोजना सहयोग के बहाने   वियतनाम से प्रगाढ़ सम्बन्ध बनाने तथा इस सागर के अन्तर्राष्ट्रीय जल में अपने कानूनी दावों को सुदृढ़ करने   से बेहद नाराज है। इसके लिए वह वियतनाम के साथ-साथ फिलीपींस को भी कोस रहा है। उसका आरोप है कि ये दोनों देश तेल से समृद्ध विवादित दक्षिण चीन सागर पर चीन के दावे को खारिज करने के लिए भारत तथा अमरीका जैसी बाहरी शक्तियों की सहायता ले रहे हैं। ऐसा करके ये दोनों मुल्क इस मसले को चीन के साथ द्विपक्षीय ढंग से सुलझाने के अपने वादे से मुकर रहे हैं। उसका यह भी कहना कि ये देश सौदेबाजी के तहत बाहरी ताकतों को बुला रहे है , किन्तु उनका यह मंसूबा कभी पूरा नहीं होगा। अब अच्छी बात यह है कि भारत उसके विरोध और धमकियों की कतई परवाह नहीं कर रहा है। गत १५ से १७ सितम्बर की विदेशमंत्री एस.एम.कृष्णा की वियतनाम यात्रा को लेकर अपनी नाखुशी जतायी। इस यात्रा के दौरान भारत ने वियतनाम के साथ वैज्ञानिक , तकनीकी , शिक्षा , व्यापार , तेल और गैस अन्वेषण , रक्षा , सेना , नौसेना और वायु सेना के संयुक्त अभ्यास ,...