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अगस्त, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भेड़ों की भीड़ नहीं, रेशमा सी पीर चाहिए............

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विनीत सिंह अरे भाई सुनो … . क्या रेशमा रंगरेज को जानते हो..... अरे दो पल ठहरो तो सही .. जिससे भी पूछो यह सवाल, हर कोई झल्ला कर एक ही जवाब देता है..... देश अन्ना के रंग में रंगा है और तुम रंगरेज को तलाश रहे हो.... नहीं जानते लोग उस रेशमा को जिसे में तलाश रहा हूं..... आखिर भेड़ बनी यह भीड़ जानेंगे भी कैसे ? उनके अंदर की रेशमा मर जो गयी है... उन्हें तो बस चरवाहों की चीख का पीछा करने की आदत हो गयी है ... जिधर हांको उधर ही चल पड़ती हैं..... यह लानत यूं हीं नहीं है .... अधिकारों की भूख से तो हर कोई तड़पता मिल जाता है लेकिन कर्तव्यों की बेदी पर खुद को हवन करने वालों का हर ओर टोटा जो है...फिलहाल देश में क्रांति आयी हुई है ... माहौल बना है भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष का... मांग उठी है एक कानून बनाने की ... लेकिन इन भेड़ों के सामने एक सवाल भी मुंह बांये खड़ा है ..... जो मांगता है इस भीड़ से जवाब कि कितने लोग हैं यहां, जो अब तक बने कानूनों का पालन करते आये हैं... या फिर उन्होंने क्या कभी नहीं तोड़ा कोई कानून...सबके सब मौन साध लेते हैं.... नहीं तो भीड़ के खिलाफ भाषण देने पर पत्थर उछालने लगते है...

थाईलैण्ड में जन विजय

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डॉ.बचन सिंह सिकरवार थाईलैण्ड में कोई साल भर चली भारी राजनीतिक उथल-पुथल के बाद हाल में हुए संसदीय चुनाव में ' फ्यू थाई पार्टी ' की नेता ४४वर्षीय महिला उद्योगपति यिंगलुक शिनवात्रा विजयी रही हैं जो यहाँ के अपदस्थ प्रधानमंत्री थैक्सिन शिनवात्रा की छोटी बहन हैं। वे   पाँच साल पूर्व हुए तख्ता पलट के बाद से ही दुबई में स्वनिर्वासित जीवन बिता   रहे हैं। इस जीत के बाद यिंगलुक थाईलैण्ड की   पहली   महिला और अट्ठाइसवीं प्रधानमंत्री बनेंगी। इनकी सरकार पाँच दलों का गठबन्धन वाली होगी। हालाँकि यिंगलुक शिनवात्रा को अपदस्थ प्रधानमंत्री थैक्सिन शिनवात्रा का राजनीतिक मुखौटा बताया जा रहा था , किन्तु इस चुनाव में मिली अभूतपूर्व विजय ने यह सिद्ध कर दिया कि उनकी थाईलैण्ड में अपनी भी लोकप्रियता है जिसके बल पर लोगों ने उनमें अपना भरोसा जताया है। इधर थैक्सिन शिनवात्रा ने भी कहा   कि   थाईलैण्ड की राजनीति में लौटने की उनकी कोई इच्छा नहीं है। वे संन्यास लेने को तैयार हैं। उनका कहना है कि थाई नागरिकों ने बदलाव के लिए अपने मतों का उपयोग किया है। उधर कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना ह...

विश्व का सबसे नवीनतम देश दक्षिणी सूडान

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डॉ.बचन सिंह सिकरवार ‘ अन्धेरा महाद्वीप ' के नाम से मशहूर अफ्रीका के देश सूडान में   दशकों के खूनखराबे के बाद गत ९जुलाई को विश्व   के मानचित्र पर   एक नये देश ‘ दक्षिणी सूडान ' का उदय हुआ है जिससे अब   संयुक्त राष्ट्र संघ में सदस्य देशों की संख्या १९३ तथा अफ्रीकी देशों की संख्या बढ़कर   ५४ हो गयी है। इस नवोदित राष्ट्र का जन्म   सूडान के उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों के लोगों के बीच सालों से चले गृहयुद्ध का परिणाम है जिसमें कोई २० लाख से अधिक लोगों की जानें गयीं। तब अमरीका के तत्कालीन विदेशमंत्री कोलिन पावेल की पहल पर सन्‌ २००५ में संघर्षरत दोनों पक्षों के बीच ‘ समग्र शान्ति समझौता ' हुआ , तब भारत ने उस समझौते का खुलकर समर्थन किया था। उसी के अन्तर्गत ९जनवरी , २०११ को सूडान को विभाजित कर दक्षिणी सूडान के गठन के मुद्दे पर एक जनमत संग्रह कराया गया। इसमें दक्षिणी सूडान के लगभग ९९.७७ प्रतिशत लोगों ने नए राष्ट्र दक्षिणी सूडान के गठन के पक्ष में मतदान किया। तमाम अभावों , घोर गरीबी और अनेक समस्याओं से ग्रस्त दक्षिणी सूडान के लोगों   के लिए अपने मूल देश सू...

भ्रष्टाचार के राक्षस से देश बचाने को आगे आयें

डॉ.बचन सिंह सिकरवार अपने देश के कथित विकास , उसकी ऊँची दरें , गगन चुम्बी इमारतों , सड़कों पर महँगी गाड़ियों की कतारें देख और लगातार तेजी से बढ़ती आर्थिक समृद्धि को लेकर हम कितनी ही डीगें मारें और इतराते फिरें , लेकिन आज जीवन के हर क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार के दानव पर विचार करते ही ; सब कुछ व्यर्थ दिखायी देता है। आज देश को चीन-पाकिस्तान सरीखे शत्रु भाव रखने वाले मुल्कों के साथ-साथ इस्लामी और माओवादी आतंकवाद से भी बढ़कर भ्रष्टाचारियों से कहीं ज्यादा खतरा है , क्यों कि दूसरे मुल्कों की सेनाएँ और आतंकवादी तो सरहद के बाहर से कभी-कभी हमला करते हैं जहाँ   तैनात हमारे जवान उन्हें देखते ही अक्सर मार गिराते हैं , किन्तु ये रिश्वतखोर तो हर जगह   देश के संसाधनों तथा लोगों के लहू को रात-दिन जोंक की तरह पी रहे हैं   इन्हें मारना तो दूर , पकड़ा भी नहीं जाता।   इस कारण न तो देश   सुरक्षित है और न यहाँ के बाशिन्दे। वैसे यह भी सच है कि आज भ्रष्टाचार के इस राक्षस के चुंगल से न सेना बची है और न पुलिस-प्रशासन। जिन पर देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी है वे ही मुल्क को   बे...

सत्याग्रह: कांग्रेस को जिससे मिला राज उसी को दबा रही है आज

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विनीत सिंह सरकार कहती है कि शांति पूर्ण तरीके से आंदोलन करो हम सुनेंगे लेकिन क्या सरकार ने कभी महसूस की ईरोम शर्मिला की भूख, क्या सरकार ने कभी जहमत उठाई स्वामी निगमानंद की मौत से सबक लेने की, या फिर कभी सरकार ने समझा पुलिसिया कहर के चलते जिंदगी और मौत के बीच झूलती राजबाला का दर्द। नहीं कभी नहीं क्योंकि सबके सब गांधी जी के अहिंसा और सत्याग्रह का व्रत लिये हुए हैं। सरकार को तो बस चिंता होती है कि किस तरह कश्मीर में स्वतंत्रता दिवस पर भी तिरंगा न फहर सके क्योंकि वहां हिंसा भड़क सकती है, सरकार तो बस समझती है रामदेव के समर्थकों पर आधीरात में कायराना हमला करने की वजह क्योंकि देश में काले धन के खिलाफ लोगों का गुस्सा बढ़ सकता है और सरकार समझती है बस अन्ना को जेल में ठूसना क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ उसकी झूठी सांत्वना की कलई खुल सकती है और सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानी मांग सकते हैं उससे हिसाब 2 जी स्पेक्ट्रम या कॉमन वेल्थ गेम्स में फंसे उसके नेताओं की तरफदारी का हिसाब। बात शुरू करते हैं ईरोम शर्मिला से., वह 04 नवम्बर 2000 से अनवरत भूख हड़ताल पर बैठी हैं और तभी से न खत्म होने वाली पुलिस हिरासत मे...